सेटेलाइट व जीपीएस आधारित लगेगी नई घड़ी।
स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगी आभा से दमकेगी घंटाघर की सुंदरता।

मीरजापुर शहर के मध्य स्थापित ऐतिहासिक घंटाघर की वैभव जल्द लौटेगी। अब शहर की धड़कन की मधुर आवाज फिर गूजेंगी। ऐतिहासिक घंटाघर की घड़ी राह चलते लोगों को समय बताने के साथ अपनी खासियत से भी वाकिफ कराएगी। साथ ही ऐतिहासिक इमारत ट्राई कलर से जगमग नजर आएगा यानी अब उपेक्षित घंटाघर पर सरकार की नजर पड़ चुकी है। ऐसे में सुंदरीकरण होने से शहर के मध्य घंटाघर पर्यटन केंद्र बनेगा। देश-विदेश से विंध्य क्षेत्र आने वाले लोग घंटाघर को देखने जरूर आएंगे। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।आजादी के 75 वर्ष बाद अमृत काल में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर ऐतिहासिक घंटाघर व उसकी घड़ी भी स्वतंत्र हो जाएगी। स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगी आभा से दमकते घंटाघर की सुंदरता लोगों की निगाहें बरबस ही अपनी ओर खींचेगी। रौशनी से चकाचैंध घंटाघर तिरंगा रंग में नजर आएगा।

नगर पालिका परिषद मीरजापुर के अध्यक्ष श्याम सुंदर केशरी ने बताया कि ऐतिहासिक इमारत घंटाघर की घड़ी वर्षों से बंदी पड़ी थी। यही नहीं, कुछ माह पूर्व गिरी आकाशीय बिजली से घड़ी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। अब दिल्ली की मेडिवल इंडिया की टीम 14 अगस्त तक घंटाघर की घड़ी को बनाएगी। नई घड़ी पूरी तरह से सेटेलाइट और जीपीएस सिस्टम पर आधारित होगी। इससे ऐतिहासिक इमारत फिर से घड़ी की गूंज से गुंजायमान होगा। साथ ही ट्राई कलर से जगमग नजर आएगा, जो आटोमैटिक सिस्टम पर आधारित होगा। सुबह होते ही अपने आप उसकी लाइट बंद हो जाएगी। घंटाघर के ऐतिहासिक स्वरूप को बरकरार रखते हुए केवल अंदर से डिजिटलाइल्ड किया जा रहा है। घंटाघर परिसर स्थित फाउंटेन को भी दुरुस्त किया जाएगा। साथ ही लोगों की सुविधा के लिए सुलभ शौचालय भी बनवाया जाएगा।

समृद्ध धरोहर की कहानी बयां कर रहा घंटाघर

मीरजापुर ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से समृद्ध है। पुरखों से हमारे लिए समृद्ध विरासत छोड़ी है। मीरजापुर शहर की धड़कन कहा जाने वाला घंटाघर समृद्ध धरोहर की कहानी बयां कर रहा है, लेकिन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना ऐतिहासिक घंटाघर की बुलंद इमारत व शहर को समय बताने वाली घंटाघर की घड़ी पर अब तक संरक्षण के अभाव में उपेक्षा की नजर लगी हुई थी। इससे मीरजापुर शहर की धड़कन कहा जाने वाले घंटाघर की घड़ी थम गई थी और प्रशासनिक व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते घंटाघर की घड़ी बदहाल पड़ी थी। इसी बीच एक ऐसा समय आया जब आसमान से गिरी बिजली से घंटाघर की घड़ी चकनाचूर हो गई यानी प्रकृति ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

लौटा समय, अब ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू हो सकेगी भावी पीढ़ी

कलात्मक घंटाघर के शिखर पर लगी घड़ी की रफ्तार कब की थम चुकी थी। वर्षों से लोगों को घड़ी की सुइयां चलती नहीं दिख रही थी। कभी सैकड़ों लोगों को घंटाघर से ही समय की जानकारी हो पाती थी। कारण यह था कि तब घड़ी सिर्फ रइसों के पास ही हुआ करती थी। ऐसे में आम लोगों को समय की जानकारी घंटाघर में लगी घड़ी से ही हो पाती थी। उस समय काफी दूर तक घड़ी की मीठी आवाज सुनाई पड़ती थी। घड़ी खराब होने से घंटाघर का समय भी खराब चल रहा था। अब घंटाघर का सुंदरीकरण होने से आने वाली पीढ़ी ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू हो सकेगी।

मात्र 18 हजार रुपये में बना था घंटाघर, गुरुत्वाकर्षण बल से चलती थी घड़ी

करीब दो सौ वर्ष पूर्व घंटाघर का निर्माण हुआ था। इसके निर्माण की तिथि घंटाघर के आखिरी मंजिल की खिड़कियों पर अंकित है। उस समय इसके निर्माण में 18 हजार रुपये खर्च आए थे। सबसे खास इस इमारत की घड़ी है, जिसे मीरजापुर की धड़कन कहा जाता था। इसकी मीठी आवाज नगर के चारों ओर सुनाई पड़ती थी और लोगों को समय पता चलता था। खास बात यह थी कि घड़ी गुरुत्वाकर्षण बल से चलती थी। ऐसी टेक्नोलाजी आज के समय में असंभव है।

काबिले तारीफ है कलात्मक घंटाघर की दुर्लभ नक्काशी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर्यटन व धार्मिक स्थलों के विकास को लेकर प्रयत्नशील हैं। शासन की मंशानुरूप ऐतिहासिक विरासत घंटाघर पर्यटन को बढ़ावा देगा ही, रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। गुलाबी देशी पत्थरों पर की गई अद्भुत व महीन नक्काशियों से बने घंटाघर जैसी विशाल इमारत कहीं और देखने को नहीं मिलती। इस कलात्मक घंटाघर को बनाने में यहां के कारीगरों ने अपनी कारीगरी का बखूबी इस्तेमाल किया है, जो वाकई काबिले तारीफ है। ऐसी दुर्लभ नक्काशियां कम ही देखने को मिलती हैं। फिलहाल यह इमारत इस वक्त नगर पालिका की अभिरक्षा में है।(एएमएपी)