के. विक्रम राव ।

सर्वप्रथम आयेंगे पण्डित बालमुकुन्द कौल के पड़पोते शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पुत्र मियां मोहम्मद फारूक अब्दुल्ला। डा. फारूक के समधी हैं गूजर कांग्रेसी राजेश पाइलेट। उनके पुत्र मियां उमर अब्दुला अटलजी की सरकार के विदेश राज्य मंत्री थे। राजग ने जार्ज फर्नाडिस के आग्रह पर डा. फारूक को 2002 में उपराष्ट्रपति नामित कर दिया था। मगर अंतिम क्षणों में मुलायम सिंह के प्रस्ताव पर एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बन गये। इसलिये दो मुसलमान उच्च पदों पर एक साथ कैसे रहते ? अतः डा. अब्दुल्ला कट गये। नाराज भी हो गये। अगले नम्बर पर आतें हैं आतंकियों के गढ़ डोडा जनपद के वासी भारतभक्त कृषक मोहम्मद रहमतुल्ला के पुत्र गुलाम नबी आजाद। अन्त में बचे आधे मुस्लमान। वे हैं पूर्वी यूपी में गाजीपुर जनपद के जुलाहा परिवार के मियां मोहम्मद हामिद अंसारी। उनके भतीजे हैं माफिया सरगना विधायक मियां मोहम्मद मुख्तार अंसारी, जो पटियाला के निकट रोपड़ जेल में कई अपराधों के सिलसिले में नजरबंद हैं। उनपर अपहरण, हत्या, फिरौती, लूट आदि के कई जघन्य कुकृत्यों के लिये मुकदमा चल रहा है। गत सप्ताह मुख्तार अंसारी ने उच्चतम न्यायालय को बताया भी था कि वे सच्चरित्र हैं क्योंकि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के सगे भतीजे हैं।


निखालिस राष्ट्रवादी कौन

विचारणीय विषय है कि इन ढाई मुसलमानों में निखालिस राष्ट्रवादी कौन कहा जा सकता है? पहला स्थान नबी के गुलाम जनाब आजाद को जायेगा। किसी भी देशभक्त हिन्दू से वे कहीं बड़े राष्ट्रवादी हैं। बाल्यावस्था से पाकिस्तान-समर्थक दहशतगर्दों से घिरे डोडा जनपद के भदरवाह-सोती गांव के किसान मियां रहम-उल-अल्लाह के इस पुत्र गुलाम नबी ने खुलकर करोड़ों दर्शकों-श्रोताओं के सामने कल मंगलवार शाम (9 फरवरी 2021) संसद में ऐलान किया कि वे भाग्यशाली हैं कि अपने सात दशकों के जीवन वे कभी भी इस्लामी पाकिस्तान नहीं गये। तुलना करें अवध, बिहार और पंजाब के हजारों मुसलमानों से जो खोजा-शिया मोहम्मद अली जिन्ना का अनुकरण कर पाकिस्तान हिजरत कर गये। हालांकि करोड़ों मुसलमान जो जिन्ना को कायदे आजम मानते रहे, खण्डित भारत में ही रह गये। आज उनकी आबादी दोगुनी हो गयी। इनमें ही एक हैं मियां मोहम्मद हामिद अंसारी।

जिक्र गुलाम नबी का। वे महाराष्ट्र (वाशिम) से सांतवी लोकसभा (1980) के लिये निर्वाचित हुए थे। वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहे। तीस साल के अंतराल के बाद कश्मीर में कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। अर्थात जुगराफिया के हिसाब से पूरे भारत राष्ट्र का संसद में प्रतिनिधित्व वे कर चुकें हैं। गुलाम नबी ने गर्व से कहा भी कि कश्मीरी पंडितों के वोट से वे चुनाव जीतते रहे। कश्मीर के सबसे बड़े संस्थान एसपी कालेज में अपने मुसलमान साथियों के साथ 15 अगस्त मनाते थे। मगर कई छात्र 14 अगस्त (पाकिस्तान दिवस) मनाते थे। अतः एक सप्ताह तक गुलाम नबी कालेज नहीं जाते थे। पाकिस्तान-परस्त छात्रों की मार से बचने के लिये।

भारत में ही मुसलमान सबसे ज्यादा महफूज

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इस्लामी पाकिस्तान के हालातों पर टिप्पणी करते हुए गुलाम नबी ने भारत में रह रहे मुसलमानों को चेताया कि वे गुमराह न हों तथा पहचान लें कि जिन्नावादी इस्लामी मुल्क कैसा है? दुनिया के कई इस्लामी देशों का नाम गिनाकर उन्होंने पूछा : “सीरिया, यमन, ईराक, लीबिया, मिस्र आदि में कौन किसको मौत के घाट उतार रहा है? वहां न हिन्दू है और न ही ईसाई। मुसलमान ही मुस्लिम बिरादर का कत्ल कर रहा है।” उनके आकंलन में विश्व में भारत में ही मुसलमान सबसे ज्यादा महफूज है। शायद इन्हीं विचारों को सुनकर बसपा के सांसद वकील सतीशचन्द त्रिवेणीसहाय मिश्र ने सदन में कहा : “यदि कांग्रेस गुलाम नबी को राज्यसभा के लिये पुनर्नामांकित न करके, अलविदा कहती है, तो जनता भी कांग्रेस को अलविदा कह देगी।”

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आजाद और मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी

अब तनिक तुलना कीजिये गुलाम नबी से मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी की। जुलाहा कौम के इस अंसारी राजनायिक ने हर तरह का शासकीय मुनाफा कमाया। मलाई खाई। अल्पसंख्यक जो ठहरे! सरदार मनमोहन सिंह ने कहा भी था कि: “भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।” नतीजन अंसारी लाभ उठाने के हरावल दस्ते में रहे।

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अप्रैल 1, 1937 को वे जन्मे थे। (मशहूर तारीख है)  करीब 38 वर्ष तक भारत की विदेश सेवा में कमाईदार पद पर डटे रहे। सऊदी अरब में राजदूत रहे तो लगे हाथ हज भी कर लिया होगा। फिर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के काबीना-मंत्री स्तरीय के अध्यक्ष पद पर ऊंची पगार लेते रहे। सोनिया-कांग्रेस की मेहरबानी से उपराष्ट्रपति बन गये। राज्यसभा टीवी पर चहेतों को नियुक्त किया। मनमाना प्रोग्राम चलवाया। पूरे दस वर्षों तक (साढ़े तीन हजार दिन) सत्ताइस हजार वर्गफीट (पौने सात एकड़) जमीन पर फैले मौलाना आजाद रोड में महलनुमा बंगले (उपराष्ट्रपति निवास) पर काबिज रहे। उधर मौका लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति पद पर भी थे। विश्वविद्यालय में भारत-विभाजक तथा हिन्दुओं के घोरतम शत्रु शिया मुस्लिम मियां मोहम्मद अली जिन्ना की फोटो टांगने की जद्दोजहद में लगे रहे। जैसे जिन्ना इन अंसारी मियां का सगा हो। अंसारी ने कहा कि सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की तस्वीर भी अलीगढ़ विश्वविद्यालय में लगी है। तो जिन्ना की क्यों नहीं? अब उन्हें कौन समझाये कि बादशाह खान को ब्रिटिश राज ने पन्द्रह साल और जिन्ना तथा उनके मातहतों ने बीस साल पेशावर की जेल की कोठरी में नजरबंद रखा था, सिर्फ इसीलिये कि बादशाह खान भारत के विभाजन का जमकर विरोध कर रहे थे।

‘मुसलमान खतरा महसूस कर रहा’

मियां मोहम्मद अंसारी अपने उपराष्ट्रपति पद के अंतिम दिन केरल के पापुलर फ्रन्ट आफ इण्डिया के जलसे में गये। वहां के जलसे में वे बोल आये कि ”भारत में मुसलमान खतरा महसूस कर रहा है।” अंसारी को खुफिया सूत्रों ने सचेत भी किया था कि पीएफआई पाकिस्तानी-समर्थक इस्लामी उग्रवादियों का मंच है। इसी फ्रन्ट के चार लोग अभी भी हथरस के रास्ते जाते पकड़े गये और मथुरा जिला जेल में अवैध हरकतों के लिये नजरबंद हैं।

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मान लें अगर नरेन्द्र मोदी हामिद अंसारी को कानपुर के दलित रामनाथ कोविन्द की जगह राष्ट्रपति बनवा देते तो क्या हिन्दुस्तानी मुसलमान “सुरक्षित, सुखी  और सम्पन्न” हो जाते?

तो ऐसे है ये अढ़ाई मुसलमान, आधे अंसारी को मिलाकर।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सौजन्य : सोशल मीडिया)  


हामिद अंसारी और कांग्रेस का सेक्युलरिज्म