पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में देश की कई ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं लेकिन उचित संरक्षण व रखरखाव के अभाव में इनमें से कुछ विलुप्त हो चुके हैं तो कुछ इतिहास बनने की ओर अग्रसर हैं। इन्हीं में से एक है मल्लिकबाजार समाधिस्थल जहां देश के महानतम वैज्ञानिकों में से एक जगदीश चंद्र बोस का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हुआ था।1937 के नवंबर महीने में जब यहां बोस के शव को अंतिम संस्कार के लिए लाया गया था तब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर कई दिग्गज हस्ती पहुंचे थे। देश को वैज्ञानिक पहचान देने वाले मेघनाद साहा, सत्येंद्र नाथ बोस, पीसी महालानविस जैसे वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे जगदीश चंद्र बोस का अंतिम संस्कार यहीं मौजूद गैस चैंबर में हुआ था। यहीं पास में एक बड़ा श्मशान है जहां अंतिम संस्कार के बाद उन लोगों की अस्थियों को या तो विसर्जित किया जाता था या दफन कर दिया जाता था।

आजादी के पहले से यहां का यह समाधिस्थल और गैस चैंबर ना केवल जगदीश चंद्र बोस बल्कि भारतीय इतिहास की कई बड़ी शख्सियतों के लिए जिंदगी का अंतिम पड़ाव बना। इस ऐतिहासिक तथ्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से यहां से गुजरने वाली सड़क का नाम जगदीश चंद्र बोस रोड रखा गया था। दुर्भाग्य से अब यह गैस चैंबर इतिहास बनने की कगार पर है।

लंबे समय से इसकी देखरेख कर रहे क्रिश्चियन ब्यूरियल बोर्ड (सीबीबी) के लिये अब इसे बचाये रखना मुश्किल साबित हो रहा है। तकनीक का हाथ पकड़कर विकसित होती दुनिया के साथ अंतिम संस्कार की पद्धति भी अत्याधुनिक होती गयी। इस बीच श्मशान घाट में गैस की आपूर्ति सुनिश्चित रखना और गैस चैंबर में अंत्येष्टि जारी रखना कठिन होता गया। धीरे धीरे यहां आस-पास तथाकथित निम्न श्रेणी के लोग आकर बस गए और गैस चेंबर से सामानों की चोरी होने लगी। वक्त के साथ इसे भी आधुनिक करने की कोशिशें की गई, गैस की आपूर्ति भी सुनिश्चित की गई लेकिन चोरी का सिलसिला नहीं थमा। कई बार पुलिस में मामला दर्ज किया गया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।

सीबीबी के सचिव असीम विश्वास ने इसके पतन की कहानी बयां करते हुए कहा, 1978 में गैस की नियमित आपूर्ति नहीं हो पाने की वजह से यह बंद हो चुका था। इस बीच चोरों ने जमकर उत्पात मचाया। गैस चैंबर के पास मौजूद जमीन पर कब्जा करने के लिए भी कुछ प्रमोटर्स तत्पर थे और वे कल, बल, छल का इस्तेमाल कर किसी तरह से इस बड़े भूखंड पर कब्जा जमाना चाहते थे। पुलिस के पास शिकायत करने का भी कोई लाभ नहीं हुआ। बाद में 2014 में नगर निगम से एक समझौता किया गया। सुनिश्चित किया गया कि यहां मॉर्चुअरी (शव संरक्षण गृह) बनाया जाएगा। जैसे ही इसका काम शुरू होना था उसके बाद एक बार फिर यहां रहने वाले कट्टरपंथी लोगों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। चोरियां तोड़फोड़ होती रहीं। हालात नियंत्रित करने के लिये वरिष्ठ तृणमूल नेता फिरहाद हकीम और कोलकाता नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त खलील अहमद के अलावा स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय के कई प्रतिनिधि वहां पहुंचे। लोगों को समझाने की कोशिशें हुई लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। अंतत: शव गृह को तोपसिया इलाके में शिफ्ट कर दिया गया।

अपनी वृद्धावस्था का हवाला देते हुए सीबीबी सचिव ने निराशा और लाचारी जाहिर करते हुए कहा कि इसे बचा कर रखना हमारे लिए भी संभव नहीं हो पा रहा। यहां चोरियां और जमीन पर कब्जा रोकने के लिए हम लोगों ने प्राइवेट गार्ड भी नियुक्त किए लेकिन इसमें काफी खर्च होता है जबकि यहां कोई आय नहीं है। नगर निगम के साथ मिलकर इसे संभालने की कोशिश हो रही है लेकिन अब लगता है कि इसे संभाल पाना संभव नहीं हो पाएगा। सांकेतिक लहजे में उन्होंने कहा कि वक्त बताएगा कि हम लोग इसे बचा कर रखने में कितना सफल हुए।

उल्लेखनीय है कि मल्लिकबाजार का इलाका अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है जहां पश्चिम बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों से आए मुस्लिम समुदाय के लोग बहुतायत संख्या में रहते हैं। ऐतिहासिक गैस चेंबर और समाधिस्थल यहीं स्थित है जिस पर कब्जे की कोशिशें लगातार जारी है। (एएमएपी)