( आजादी विशेष )
प्राण से भी प्यारी अमर भूमि मां भारती की आजादी का माह चल रहा है। ऐसे में प्यारे वतन के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले क्रांतिकारियों की दास्तां फिजा में तैर रही हैं। वतन के लिए सब कुछ कुर्बान कर अमर राष्ट्र की बुनियाद बने गुमनाम क्रांतिकारियों की गाथा पाठकों के समक्ष लाने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत आज हम बात करेंगे फौलादी जिगर और बज्र इरादे वाले अमर क्रांतिकारी बंगाल के लाल भोलानाथ चटर्जी की। इनके हौसले इतने बुलंद थे कि भारत से लेकर विदेशी भूमि तक न केवल क्रांतिकारियों को एकजुट किया बल्कि अंग्रेजी राज में जब सूरज नहीं डूबता था तब अस्त्र-शस्त्र से भरे जहाज को सात समुद्र पार से भारत लेकर आते थे।अंग्रेजों की पूरी फौज और खुफिया तंत्र हाथ पर हाथ धरे रहता था लेकिन आतताई ब्रितानी अफसरों को मौत के घाट उतारने के लिए अत्याधुनिक हथियार क्रांतिकारियों के हाथ पहुंच जाते थे। इनके हौसले इतने बुलंद थे कि पकड़े जाने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अमानवीय बर्बरता की पूरी सीमा पार कर दी लेकिन भोलानाथ चटर्जी के हौसला नहीं तोड़ पाए। किसी भी क्रांतिकारी का राज उन्होंने अंतिम सांस तक नहीं खोला।
भोलानाथ चटर्जी का जन्म तत्कालीन अविभक्त बंगाल प्रांत में हुआ था। मां भारती की आजादी के प्रति उनकी दीवानगी ऐसी थी कि बचपन से ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। वतन के प्रति समर्पण ऐसा था कि शेरे बंगाल कहे जाने वाले बाघा जतिन ने बंगाल प्रांत के क्रांतिकारियों को एकजुट करने और अत्याचारी ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए अस्त्र-शस्त्र की सुरक्षित व्यवस्था करने की पूरी जिम्मेदारी भोलानाथ चटर्जी को सौंप दी। तब के जमाने में जब ब्रिटिश शासन का सूरज नहीं डूबता था तब विशाल भारत का स्थल पार करते हुए समुद्र के रास्ते जर्मनी जाकर हथियारों से भरा जहाज सुरक्षित तरीके से वह भारत लाए थे। दुनिया के कई देशों की अंग्रेजी हुकूमत की फौज को चकमा देना और पूरे खुफिया तंत्र को धता बताते हुए अंग्रेजों की नींव हिलाने का सारा सामान भारत लाना कितना चुनौतीपूर्ण था, अंदाजा लगाया जा सकता है।
गदर पार्टी के मुख्य सूत्रधार थे भोलानाथ
अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए क्रांतिकारियों ने गदर पार्टी का गठन किया था। इसमें शामिल कई क्रांतिकारियों ने अनेक अंग्रेज अफसरों और भारतीय खुफिया मुखविरों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया था। इसकी वजह से गदर पार्टी के क्रांतिकारियों से अंग्रेजों की हाड़ कांपती थी। 1915 में अंग्रेजो के खिलाफ संगठन की ओर से सशस्त्र आंदोलन होना था और इसके लिए श्याम जी कृष्ण वर्मा और लाला हरदयाल जैसे प्रवासी भारतीय विदेशों में रहकर धन और शस्त्र की व्यवस्था करते थे। इधर देश में क्रांतिकारियों का नेतृत्व शेरे बंगाल यानी बाघा जतिन कर रहे थे। तब लाला हरदयाल और श्याम जी कृष्ण वर्मा से समन्वय बनाने की जिम्मेवारी बाघा जतिन ने भोलानाथ चटर्जी को सौंपी थी। इधर अंग्रेजों को उनके बारे में पता चल गया था लेकिन पूरे खुफिया तंत्र को चकमा देकर सन 1914 में वह अंग्रेजों के शत्रु देश जर्मनी जा पहुंचे। वहां जर्मन सरकार की मदद से भारी अस्त्र-शस्त्र पानी के जहाज में डालकर वह भारत के लिए रवाना हो गए थे।
इधर पूरी अंग्रेजी खुफिया तंत्र उनके पीछे पड़ी हुई थी। बंगाल प्रांत में क्रांतिकारी आंदोलन अपने चरम पर था और अंग्रेजों के नाक में दम किए हुए था इसलिए वहां अंग्रेजी फौज और खुफिया तंत्र भी अति सक्रिय था। इसीलिए भोलानाथ चटर्जी ने सूझबूझ दिखाते हुए हथियारों से लदा जहाज बंगाल के बजाय गोवा तट पर ले जाने की योजना बनाई। यहां पुर्तगालियों का शासन था जहां अंग्रेजी हुकूमत का कानून नहीं चलता था। इसलिए उन्होंने सोचा कि यहां से हथियारों को वह सुरक्षित भारत के अन्य राज्यों में पहुंचा सकेंगे। उनकी योजना कुछ हद तक कारगर भी रही। वह सुरक्षित गोवा तट पर पहुंच भी गए थे लेकिन एक गलती हो गई। दो अक्टूबर सन 1915 को उन्होंने बाघा जतिन के नाम पर एक तार कोलकाता भेजा। यह तार तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की व्यवस्था के अंतर्गत पहुंचना था इसलिए अंग्रेजों को इसकी खबर लग गई। यह भी पता चल गया कि गोवा तट पर हथियारों से भरा जहाज आने वाला है जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गोवा में पुर्तगाली पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
पुर्तगाली पुलिस ने किया था अंग्रेजो के हवाले
जैसे ही हथियारों से भरा जहाज गोवा के तट पर पहुंचा, पुर्तगाल की पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया। वहां भारत की सीमा पर ब्रिटिश पुलिस भोलानाथ चटर्जी को गिरफ्तार करने के लिए हथकड़ियां लिए पहले से खड़ी थी। पुर्तगाली पुलिस ने उन्हें सीमा पर छोड़ दिया जिसके बाद अंग्रेजी पुलिस ने तुरंत उन्हें हिरासत में लेकर बंदी बना लिया। चटर्जी को फर्राशखाना जेल में बंद कर दिया गया। इसी जेल में अमर बलिदानी दामोदर हरी चाफेकर को 1869 से 1898 तक बंदी बनाकर रखा गया था। जेल जाने के बाद भोलानाथ को जैसे यह तीर्थ लगने लगा था। वहां पहले से बंद अन्य क्रांतिकारियों से भोलानाथ संपर्क में आए और लगातार उन्हें जेल से निकलकर देश की आजादी के लिए काम करने को प्रेरित करते रहे।
इधर अंग्रेजों को यह बात पता चल गई थी कि भोलानाथ चटर्जी बंगाल समेत पूरे पूर्वी भारत में क्रांतिकारियों का भेद जानते हैं। इसके बाद उन पर बर्बर अमानवीय अत्याचार शुरू कर दिया गया। उनके हाथ पैर की नसें काट दी जाती थीं। नाखून उखाड़ दिए जाते थे, कील ठोक दिया जाता था और रोज सुबह से शाम तक ऐसी ही असहनीय यातनाएं चलती थीं। अंग्रेजों ने बर्बरता की ऐसी हद पार की कि क्रांतिकारियों के हौसले तोड़ने के लिए उन्हें शौच (मल) पिलाना शुरू कर दिया था।
अक्टूबर 1915 से जनवरी 1916 तक अंग्रेजों की तमाम यातनाएं मुस्कुराकर सहत रहे लेकिन उनका फौलादी हौसला जालिमों के किसी भी यातना से नहीं टूटा। इधर अंग्रेज उनसे हर कीमत पर क्रांतिकारियों का भेद उगलवाने पर तुले हुए थे। हालात को समझते हुए भोलानाथ में 27-28 जनवरी 1916 के मध्य रात को जेल की कालकोठरी में खिड़की के लोहे से अपने धोती को बांधकर प्यारे वतन के नाम अपने जीवन का पुष्प अर्पण कर गए। अंग्रेज सिपाहियों ने दरवाजा खोला तो यातनाओं से जर्जर लेकिन इस्पात हो चुके उनके पार्थिव शरीर को देखा। क्रांतिकारियों की जानकारी हासिल करने की ब्रितानियों की सारी योजनाएं विफल हो चुकी थीं, एक दुबली पतली काया और फौलादी जिगर वाले मां भारती के इस महान सपूत के साहस के आगे।(एएमएपी)