apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत ।

कौटिल्य, चाणक्य… शासन विधान के सूत्रों का रचनाकार, एक उत्कर्ष शासन व्यवस्था का सूत्रधार, एक सुरक्षित और महान साम्राज्य की स्थापना करने में अग्रणी… और भारत में कहीं कोई चर्चा नहीं। जिसने सैकड़ों साल पहले उन्नत राजव्यवस्था का आधार ही नहीं दिया बल्कि अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ की रचना कर विस्तृत व्याख्या व व्यवस्था दी, उन्हें राज्य शासन से जुड़ा एक पुरोहित भर मान कर इतिश्री कर ली जाती है? क्या कारण हो सकता है? इन्हीं सवालों को लेकर आध्यात्मिक गुरु पवन सिन्हा से बातचीत के कुछ अंश :


 

क्या राष्ट्र को चेतनासंपन्न बनाने में चाणक्य का योगदान इतना गौण रहा है कि हमने उन्हें भुला दिया… कम से कम राजव्यवस्था का गुरु तो नहीं ही माना?

– भारतीय समाज कल्पनाओं में जीने वाला समाज है। उसने एक कल्पना की कि ऋषि कैसे होते हैं। वे न ढंग से खाते हैं, न पीते हैं। बड़ी सी दाढ़ी और बाल रखे होते हैं। उन्हें समाज, दीन-दुनिया से कोई मतलब होता ही नहीं है। वे बिल्कुल शांत रहते हैं। न हंसते हैं, न खेलते हैं। ऋषि कुछ भी कर सकते हैं महान ज्ञानी होते हैं, भगवान को भी रोक देते हैं आदि-आदि। ऐसी उसने एक कल्पना कर ली। अब वह उस कल्पना से बाहर नहीं आ रहा पांच हजार साल बाद भी। जबकि यथार्थ यह है कि ऋषि अपने समय का आधुनिकतम व्यक्ति होता है। वह आठ-दस हजार साल पहले भी मशीन बनाता था। औजार बनाता था। उनका उपयोग करता था। उसे घुड़सवारी, तलवारबाजी, शास्त्र सबका संपूर्ण ज्ञान था। भगवान राम ने जितने शस्त्र सीखे हैं वे कहां से मिले। सब ऋषियों से मिले हैं। वशिष्ठ से, अगस्त्य जी से और ब्रह्मऋषि विश्वामित्र जी से। कृष्ण ने जो सीखे हैं शस्त्र भी और शास्त्र भी, वे किससे सीखे… ऋषियों से। कृष्ण ने तो कोई शस्त्र उठाया नहीं इसलिए बनाया नहीं। शिवजी और ऋषियों की कृपा से ही उनको सारे शस्त्र चलाने आए हैं। हम ऋषि का वह स्वरूप भूल जाते हैं। इसीलिए हमने कहा कि चाणक्य ने क्या किया। एक राज्य में पुरोहित के तौर पर वह रहे। उन्होंने पठन-पाठन किया। उनकी बेइज्जती हुई तो उन्होंने राजा घनानन्द को सबक सिखाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को पैदा कर दिया। लोग उन्हें एक राजनीतिक पंडित समझने लगे हैं। लेकिन यह कितना बड़ा कार्य था जिसे कोई महापुरुष ही कर सकता था कि पूरे राष्ट्र की अस्मिता को बचाने के लिए श्रेष्ठ व्यक्ति का चुनाव किया उसकी जाति पर न जाकर। तो वह श्रेष्ठता एक ऋषि ही दिखा सकता था। उसी की वह दिव्य दृष्टि थी, वरना हजारों बच्चों में उसी को क्यों चुना उन्होंने। और फिर उसे कितना कठिन प्रशिक्षण दिया है। यह लोगों को पता ही नहीं है कि उन्होंने शिष्यों को दो धड़ों में बांटा। एक धड़ा तो उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में भेजा कि जाओ आप पूरे समाज को सिपाही बना दो। उधर स्वयं निकल गए लोगों के बीच में और उन्हें धर्म की शिक्षा दे रहे हैं। यह स्वरूप तो लोगों तक पहुंचा ही नहीं। बस, चाणक्य कौन? चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु। चंद्रगुप्त उनको साष्टांग प्रणाम करता है सम्राट होने के बाद भी। चंद्रगुप्त के बाद बिंदुसार भी उनको साष्टांग प्रणाम करता है। बिंदुसार भी अगली पीढ़ी अशोक भी उनको साष्टांग प्रणाम करता है। एक पुरोहित को राजा अपने मुकुट सहित साष्टांग प्रणाम नहीं करेगा। वह एक ऋषि हैं। बहुत बड़े गुरु हैं और ऐसे गुरु हैं जिन्होंने हर प्रकार की सूझ दी है। अर्थ, कृषि की सूझ दी है तो ज्योतिष की भी दी है, उपनिषद का ज्ञान भी बताया है। उनके तमाम सूत्र तो उपनिषदों से ही निकले हुए हैं। और उन्होंने उपनिषदों के साथ ही लोगों को वेद-वेदान्त पढ़ने को कहा और पढ़ाया भी। जब उनका कार्य हो गया और चंद्रगुप्त मौर्य स्थापित हो गए, तो एक पोटली थी उनके पास उसे लेकर चल दिए। कहां? मुझे नगर से दूर वन में पर्णकुटी बनानी है, मैं वहीं रहूंगा। चंद्रगुप्त फूट-फूटकर रोया। गुरु को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता था। गुरु से प्रेम ही ऐसा होता है। वह माता-पिता, दोस्त-भाई सब कुछ होता है। लेकिन चाणक्य नहीं रुकते हैं, बोले, ‘मेरा कार्य पूरा हुआ। अब महल में रहना मेरे लिए उपयुक्त नहीं है।’ फिर वे अपनी पर्णकुटी बनाकर रहते हैं। लोगों को वेद-वेदांत पढ़ाते हैं। जब तक बिंदुसार के समय में फिर से संकट उत्पन्न नहीं हुआ, चाणक्य समाज में नहीं आए। इसीलिए मेरी नजर में चाणक्य एक महान ऋषि हैं। यही कार्य तो अगस्त्य कर रहे हैं। यही कार्य विश्वामित्र और वशिष्ठ कर रहे हैं। उनको हम इसलिए मान लेते हैं कि बड़े प्राचीन हैं। वही भारतीय हृदय! प्राचीनता से बहुत प्रेम होता है इसे। वह परदादा को बहुत प्यार करेगा, पिताजी को नहीं करेगा। ये दो बातें हैं हमारे समाज में। जो बहुत पहले था… वह सब बिल्कुल सत्य है और सुन्दर है। और जो हमारे सामने है… नहीं, यह सत्य नहीं हो सकता और सुंदर भी नहीं है।

 

The one who won was Chandragupta Moriya. It is unfortunate that Alexander  is said to be great, while the truth is that the one who won was Chanakya,  the great Chandragupta. -

इस प्रकार तो राष्ट्र को ज्ञान, अध्यात्म, शौर्य और बेहतर जीवन व्यवस्था से युक्त करने वाले आधुनिक ऋषियों में चाणक्य अग्रणी हैं?

-हां, बिल्कुल। चाणक्य क्या कहते हैं। राज्य की सीमाओं को संरक्षित करो। और राज्य की शासन-व्यवस्था को भी उतना ही अच्छा करो क्योंकि सीमा पर समस्याएं इसलिए भी आती हैं कि राष्ट्र के भीतर शासन व्यवस्था अच्छी नहीं है, वहां कुछ समस्याएं हैं। शासन अच्छा है तो सीमा पर समस्याएं नहीं आएंगी। फिर इन सबको समझने के लिए सिपाही कम, गुप्तचर अधिक। गुप्तचर भी ऐसे जो जनता के बीच जाकर उसकी मदद कर रहे हैं। यानी उसकी जो नौकरशाही है वह कार्यालय में नहीं बैठी है। उसके महा अमात्य को छोड़कर कोई भी कार्यालय में नहीं बैठा है। अमात्य सहित जितने भी प्रशासन से जुड़े लोग हैं सब जनता के बीच जाते हैं। यहां गुप्तचर शब्द प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए प्रयुक्त किया गया है। तो प्याऊ लगवाने से लेकर कृषि उपज कैसे बिकेगी यहां तक चाणक्य का दर्शन है। और उसके साथ-साथ राजाओं के साथ दोस्ती इसलिए करके रखो कोई बाहरी आक्रमण तुम पर न हो जाए। इतने सम्यक दर्शन के बिना आज देश नहीं चल सकता। और साथ ही साथ वह धर्म की शिक्षा भी दे रहे हैं लोगों को कि वास्तविक धर्म है क्या? उसी के साथ समाज-सुधार भी कर रहे हैं। जातिप्रथा तो बिल्कुल नष्ट किया चाणक्य ने। इसलिए मैं उनको बहुत महान व्यक्तित्व मानता हूं। बल्कि कभी-कभी आश्चर्य करता हूं कि एक व्यक्ति इतना सोच कैसे सकता है? वह अवतारी पुरुष नहीं तो कौन हैं?


 

हजारों वर्ष पहले ढूंढ लिया था आज की चिंताओं का इलाज

हजारों वर्ष पहले से भ्रष्टाचार एक गंभीर रोग

चाणक्य का पूरा ‘अर्थशास्त्र’उपलब्ध नहीं