रूसी तेल पर प्राइस कैप की कीमत 65 डॉलर से 70 डॉलर प्रति बैरल हो सकती है। दरअसल, सस्ते दामों में भारत को तेल बेच रहे रूस पर नकेल कसने के लिए जी-7 समूह और यूरोपीय यूनियन जल्द ही प्राइस कैप का एलान करने वाला है। ऐसे में इसका असर भारत पर पड़ सकता है। प्राइस कैप पर मंजूरी के लिए यूरोपीय यूनियन में शामिल सभी देश के राजदूतों ने बुधवार को बैठक की और इसमें प्राइस कैप लेवल का प्रस्ताव भी रखा। मंजूरी मिलते ही प्राइस कैप की घोषणा की जा सकती है।सूत्रों के अनुसार, यूरोपीय यूनियन रूसी कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर से 70 डॉलर प्रति बैरल के बीच कैपिंग पर विचार कर रहा है। यानी रूस इससे सस्ता या महंगा तेल नहीं बेच पाएगा। अगर इस प्राइस कैप को मंजूरी मिलती है तो यह कैंपिग सीमा रूस की उत्पादन लागत से अधिक होगी। फिलहाल रूस अपने कच्चे तेल को छूट पर बेच रहा है। इस प्राइस कैप से उसके व्यापार पर प्रभाव पड़ सकता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, जी-7 के भी ज्यादातर सदस्य देश 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप पर सहमत नजर आ रहे हैं। लेकिन कुछ सदस्य देश इस प्राइस कैप को बहुत अधिक बता रहे हैं। यह प्राइस कैप यूक्रेन युद्ध के शुरुआती समय की औसत कीमत के लगभग बराबर है।

कच्चे तेल की कीमत में गिरावट

प्रस्तावित कैप प्राइस की खबरें बाहर आते ही तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि तेल कंपनियां यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि उनके द्वारा खरीदा गया कार्गो (तेल लदा मालवाहक जहाज) निर्धारित प्राइस कैप के अनुकूल हो। अगर रूस की ओर से बेचे गए तेल की कीमत मौजूदा छूट के स्तर पर ही रहती है तो रूस यह दावा कर सकता है कि उसके कारोबार पर पश्चिमी देशों के इस प्राइस कैप का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

फिलहाल रूसी तेल यूराल ब्रिटेन के ब्रेंट की तुलना में काफी छूट पर कारोबार कर रहा है। ब्रेंट तेल की कीमत जहां लगभग 85 डॉलर प्रति बैरल है। वहीं, रूसी यूराल सिर्फ 65 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से कच्चे तेल बेच रहा है।

ब्रूगल थिंक टैंक के विशेषज्ञ साइमन तगलीपिएत्रा का कहना है कि रूसी तेल की प्राइस कैप भी ब्रेंट तेल की कीमत के बराबर होनी चाहिए। वर्तमान प्राइस कैप रूस को बहुत नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

प्राइस कैप क्यों?

प्राइस कैप का मुख्य उद्देश्य रूस की आय को कम करना है। पश्चिम की ओर से रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध का शुरू से ही मकसद रूस की आय के स्त्रोत को कम करना है ताकि यूक्रेन से युद्ध में इस्तेमाल किए जा रहे रूसी फंड में कमी आए।

अमेरिका चाहता है कि तेल बाजार में रूस की उपस्थिति भी मौजूद रहे और उसके राजस्व में भी कमी लाई जाए। इसी का परिणाम है कि कड़ी मशक्कत के बाद लागू हो रहे प्राइस कैप रूस के खिलाफ ज्यादा प्रभावी नहीं नजर आ रहा है। इसीलिए पोलैंड और बाल्टिक देश समेत कई यूरोपीय देश रूस पर जल्द से जल्द नए प्रतिबंध लगाने के लिए जोर दे रहे हैं। जी-7 समूह और यूरोपीय यूनियन के अधिकतर देश रूसी कच्चे तेल के आयात को बंद करने की योजना बना रहे हैं।

प्राइस कैप का क्या होगा असर

प्राइस कैप के लागू हो जाने के बाद अगर कंपनियां इसके अनुकूल तेल नहीं खरीदती हैं तो उस तेल के लिए कंपनियों को शिपिंग, बीमा और वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी। मतलब जी-7 समूह चाहता है कि वैश्विक बाजार में तेल की कीमत नहीं बढ़े इसलिए रूसी तेल का बाजार में रहना जरूरी है लेकिन उसकी कोशिश रूस की आय को कम करना भी है।

यूरोपीय यूनियन ने प्राइस कैप का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए ग्रेस पीरियड भी जोड़ा है। प्रस्तावित किए गए प्राइस कैप में उल्लंघन के दंड के रूप में काफी छूट दी गई है। निर्धारित कीमत से ऊपर तेल खरीदने वाले जहाजों पर पहले के अनिश्चितकालीन प्रतिबंध के बजाय अब 90 दिनों तक रूसी तेल खरीदने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।

भारत पर क्या होगा असर

यूक्रेन युद्ध के बाद से ही रूस भारत को काफी मात्रा में तेल बेच रहा है। भारत को रूस की ओर से तेल छूट पर मिल रहा है, जिस वजह से अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों के कड़े मिजाज के बावजूद दोनों देशों के बीच तेल का व्यापार जारी है। ऐसे में माना जा रहा है कि जो प्राइस कैप रूसी तेल पर लगाया जाएगा, उसका मौजूदा समय में असर भारत पर भी पड़ेगा।

अगर प्राइस कैप 65 से 70 डॉलर के बीच रहता है तो भारत के लिए यह वर्तमान जैसी ही स्थिति होगी। क्योंकि भारत इस समय पर भी जिस कीमत में रूस से तेल खरीद रहा है, वह संभवित प्राइस कैप के आसपास ही है।

भारत के पेट्रोलियम मंत्री का बयान

भारत के पेट्रोलियम और गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में प्राइस कैप पर पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि भारत सरकार पर जी-7 और यूरोपीय यूनियन के प्राइस कैप को लेकर कोई दबाव नहीं है। उन्होंने कहा था कि जब प्राइस कैप लागू होगा तब देखा जाएगा। हम इसको लेकर किसी प्रकार के डर या तनाव में नहीं हैं।

हालांकि, केन्द्रीय मंत्री के बयान के इतर भारतीय तेल कंपनियां रूस से कच्चे तेल का ऑर्डर देना बंद कर दिया है। दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफायन कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पांच दिसंबर के बाद एक भी रूसी कार्गो का ऑर्डर नहीं दिया है। भारत पेट्रोलियम ने भी एक भी रूसी कार्गो का ऑर्डर नहीं दिया है।

सूत्रों के अनुसार, भारतीय कंपनियां विदेशी बैंकों की कार्रवाई की खतरे को देखते हुए सतर्क हैं। रूस और रोजनेफ्ट की 49 फीसदी स्वामित्व वाली कंपनी नायरा ने अभी भी रूस से तेल खरीदना जारी रखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि विदेशी बैंकों ने नायरा से लेनदेन पर रोक लगा दी है। नायरा अब सिर्फ भारतीय बैंकों के साथ लेनदेन कर पा रही है। (एएमएपी)