कहने को पंचनद का बीहड़ दुर्दांत डाकुओं और जंगली जानवरों के खौफनाक किस्से और कहानियों से बदनाम रहा हो, मगर इसकी खूबसूरत वादियों में मानव जीवन को बहुमूल्य औषधियों, जड़ी बूटियों के साथ स्वाथ्य वर्धक सब्जियां भी दी हैं। बिहड़ी क्षेत्र में होने वाली इन सब्जियों के सेवन से सेहत को भी संवारा जा सकता है।

यमुना, चम्बल, सिंध, पहुज और क्वारी नदियों के संगम तट की तलहटी में फैले सैकड़ों किलोमीटर परिधि के घनघोर जंगलों में वर्षा ऋतु के अवसान के बाद प्राकृतिक रूप से उगी वनस्पतियों में तमाम असाध्य रोगों को दूर करने वाली जड़ी बूटियां उगती हैं। इनमें उपचार में सहायक पत्थरचट्टा, सनेहिया, हड़जोड़, गोखरू, इनोरा, बांझ ककोड़ा जैसी असंख जड़ी बूटियां शामिल हैं। वहीं खानपान में इस्तेमाल होने वाली सब्जियों के रूप में ककोड़ा, वन करेला, पैंतिया, बिसरौंतिया, गरजें आदि तमाम सब्जियां भी आम जीवन को अपनी महत्ता से परिचित कराती हैं।

पंचनद के जंगलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र राठौर बतातें हैं कि ऋषि मुनियों की तपोभूमि पर भले ही दुःख, दुत्कार और मुफलिसी का कलंक रहा हो, मगर प्रकृति ने यहां नगरीय जीवन की तुलना में बेहतर संसाधन दिये हैं जिनका सदुपयोग कर जीवन को दीर्घायु बनाने की पाठशाला शायद ही कही हो।

आयुर्वेद के क्षेत्र में शोध कर रहे वरिष्ठ चिकित्सक और कुष्ठ रोग विशेषज्ञ डॉ मनोज मिश्रा का दावा है कि मानसून जाने के उपरांत फैलने वाले तमाम रोगों से अगर बचना हैं तो लोगों को अपनी रसोई में जंगली सब्जियों का प्रयोग कर उनके औषधीय गुणों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। शुगर लेवल को मैनेज करने में वन करेला, कैंसर जैसी घातक बीमारी को रोकने में सहायक पैंतिया और जमीन से निकलने वाली गरजें जिन्हें जंगली मशरूम भी कहा जाता है, को नियमित सेवन करने से इन रोगों से बचा जा सकता है।

प्रायः देखा गया है कि बीहड़ के लोगों का खानपान भले ही जंगली माना जाता हो, मगर शहर की तुलना में इनकी शारीरिक तंदुरुस्ती और ताकत गुणवत्ता बेहतर होती है।