श्रीश्री रविशंकर ।
आज पूरी दुनिया और हमारा देश इस सदी के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। यह स्वाभाविक है कि इस वक्त हमारे मनोबल में कुछ कमी आ जाए या हम उदास हो जाएं। अपने आजू बाजू देखते हैं तो हमारे मित्रों और रिश्तेदारों के कष्टों पर नजर जाती है। उनमें से कई को हम खो भी बैठे हैं। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति का टूट जाना साधारण सी बात है।

ऐसी परिस्थिति- जहां हम मृत्यु का तांडव देख रहे हैं, बीमारी बढ़ रही है, चारों तरफ दुख और दर्द में डूबी आवाजें सुनाई दे रही हैं- हमको क्या करना चाहिए। मेरे ख्याल से इस वक्त हमें कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए।

धैर्य को जगाएं

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पहली बात यह कि हर व्यक्ति के भीतर हिम्मत और धैर्य नाम की चीज कुदरत ने भरी हुई है। यह शक्ति हमें ईश्वर ने दी है और यही समय है कि हम धैर्य को जगाएं। जिस तरह अस्पताल में डॉक्टर मरीज का इलाज करते हैं। डॉक्टर इसीलिए इलाज कर पाते हैं क्योंकि वे स्वस्थ होते हैं। उसी तरह हम को समझना चाहिए कि आज हम में से एक एक व्यक्ति वैद्य है। सामाजिक और मानसिक रूप से हमारे ऊपर एक जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए हमें अपने भीतर धैर्य शौर्य और जोश को जगाना है। जोश को जगाने से उदासी दूर हट जाती है। होश को संभालना भी बहुत जरूरी है। ऐसा करने से हम बहुत भावुकता में आकर बह नहीं जाएंगे। जब भी हम भावुकता में बह जाते हैं तो बाद में अफसोस होता है।

दुनिया में कितना दुख है, अपना दुख…

हमारा अपना दुख तो बड़ा है ही लेकिन जब हम दूसरों को देखते हैं कि उनका दुख हम से भी बड़ा है, तो ऐसे में हम सेवा प्रवृत्ति में लगने को सहज ही प्रेरित हो जाते हैं। जब हम अपने में धैर्य रखते हैं तो हम दूसरे लोगों को हिम्मत बंधाने की योग्यता हासिल कर लेते हैं। जब हम खुद ही टूट जाते हैं तो फिर हम किसी के काम नहीं आ सकते।

करुणा यानी सेवा

एक और बात। हम सब के भीतर करुणा है। जब पार्टियां हो रही हैं, चारों तरफ चहल पहल है, सब बढ़िया चल रहा है, लोग मौज कर रहे हैं… उस समय करुणा की क्या आवश्यकता है? जब व्यक्ति उदास है- दुखी है- दर्द से पीड़ित है- तब अपने भीतर करुणा जगाने की जरूरत है। करुणा का मतलब है हम सेवा के काम में लग जाएं। अपने से जो हो सकता है वह सेवा हम दूसरों की करें। कुछ दिन पहले आपने यह खबर देखी होगी कि- एक नर्स थी जिसके अपने परिवार में किसी की मृत्यु हो गई। लेकिन इसके बावजूद वह अस्पताल में संक्रामक बीमारी से पीड़ित लोगों की सेवा करती रही। वह वैसा इसलिए कर सकी कि उसे पता था के अस्पताल में जितने मरीज भर्ती हैं उनकी सेवा करने की जिम्मेदारी उसके ऊपर है। अपने भीतर की करुणा के कारण ही वह अस्पताल में डटी रही। सेवा और करुणा का भाव हमें कहीं से लाना नहीं है- यह हम सब के भीतर है। यह समय है उस भाव को प्रकट करने का। सेवा में लग जाएं तो हमारा मनोबल भी बढ़ जाता है।

परीक्षा के वक़्त भगवान को याद करते बच्चे

हमें जोश को जगाने के साथ-साथ होश को भी संभाले रहना है। यानी जो भी नियम- कायदे-कानून हैं… खुद भी उनका पालन करना है और… औरों को भी उनका पालन करने के लिए प्रेरित करना है। जब हम दुखी होते हैं तब हमारे मन में अस्थिरता आती है और हम मानसिक तौर पर अस्वस्थ महसूस करते हैं, इसलिए होश संभालना जरूरी है। इसके लिए हमें प्राणायाम, ध्यान और मंत्रों का उच्चारण आदि करना चाहिए। इससे हमको एक अद्भुत अनूठा आत्मबल प्राप्त होता है। हमारे पूर्वज सदियों से यह करते आए हैं। आपने देखा होगा जब बच्चे परीक्षा देने जाते हैं तो वे भगवान को याद करते हैं। साल भर चाहे जैसा भी बीता हो, भगवान को एक बार भी याद न किया हो- लेकिन परीक्षा नजदीक आती है तो बच्चे भगवान को याद करते हैं।

जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा

कम से कम इस वक्त हम मनुष्य अपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा दे रहे हैं। ऐसे में सबको अपने भीतर ईश्वर भक्ति को जगाना है। हमें यह जानकर आगे बढ़ना है कि ईश्वर हैं- वह हमको बल देंगे- और वह हमको बल दे रहे हैं। हम बार-बार कहते आए हैं… निर्बल के बल राम। लेकिन इस धारणा की परीक्षा का वक़्त आ गया है। हम निर्बल हैं। एक वायरस, जिसको हमने देखा भी नहीं- देख भी नहीं सकते हैं- उसके साथ लड़ना पड़ रहा है। हम अपनी कमजोरी, अशक्तता, असहायता को इस समय बिल्कुल साफ साफ महसूस कर पा रहे हैं। इस वक्त हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि निर्बल के बल राम। ईश्वर और विश्वास हमको मानसिक तनाव से दूर रखता है।

हेयं दुखं अनागतं

इन बातों पर ध्यान देकर हम दुख से बाहर आ सकते हैं। योग का उद्देश्य ही यही है- हेयं दुखं अनागतं। योग में कहा गया है कि जो दुख अभी आया नहीं है, आ रहा है, उसको रोकना है। और जो दुख आ गया है उससे बाहर निकलने के लिए भी योग है। योग, प्राणायाम, ध्यान को तो अब हमें जीवन में अपनाना चाहिए और अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए। इसके अलावा अपने भोजन पर ध्यान दें और सही सही भोजन करें। कोविड से ठीक हो जाने के बाद भी बहुत कमजोरियां होती हैं शरीर में। उस कमजोरी से बाहर आने के लिए हमें योग और आयुर्वेद की शरण में जाना पड़ेगा। जीवन में जितने भी कष्ट आएं, उन से बाहर निकालने के लिए ईश्वर विश्वास हमें बल देगा। हम अपने आत्मबल को बढ़ाएं।

समस्या और बढ़ जाती है नकारात्मक बातों से

एक आखिरी बात। आप दिनभर नकारात्मक बातें देखो मत, सुनो मत। टेलीविजन, दूसरे संचार माध्यम और लोगों से फोन पर बातचीत आदि में बातचीत का विषय क्या होता है। आजकल ज्यादातर एक ही विषय पर बातचीत होती है बीमारी- बीमारी- और बीमारी। इससे हटकर हम कुछ सकारात्मक बातें करें। समस्या जो है वह अपनी जगह है लेकिन नकारात्मक बातों से वह और बढ़ जाती है। मन में लगातार उसी का चिंतन चलता रहता है। इससे समस्या कम नहीं होने वाली। जितना संभव हो सके नकारात्मक मानसिकता और नकारात्मक बातों से बचना चाहिए। बोझिल वातावरण को हल्का करने के लिए हर व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए। यह निश्चित है कि हम इस संकट से बाहर आएंगे और विजेता बनकर बाहर आएंगे। जब भी किसी ताकत में हम को दबाने की चेष्टा की है हम उससे और बलवान बनके बाहर आए हैं। हमने पहले भी ऐसा कई बार करके दिखाया है। इस बार भी दिखाएंगे।
(लेखक आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं)

 

गिद्धों को भी शर्म होती है