बालेन्दु शर्मा दाधीच।
अगर आपसे पूछा जाए कि धरती की बनावट कैसी है? मुझे पक्का यकीन है कि आपका जवाब होगा- गोल या गोलाकार। लेकिन आधुनिक दुनिया में भी ऐसे लोग हैं जो धरती को गोल नहीं बल्कि चपटी मानते हैं यानी कि फ्लैट। उनकी नज़र में धरती किसी सीडी या डीवीडी जैसी चपटी और गोल डिस्क है। ऐसी धारणा रखने वाले लोगों में वे भी हैं जो एक काल्पनिक किस्म के विज्ञान लोक में रहते हैं। इनमें बहुत सारे लोग धरती के बारे में बाइबल में दी गई बातों को बेहद गंभीरता से लेते हैं। लेकिन दूसरी तरफ कुछ बहुत पढ़े-लिखे और विद्वान किस्म के लोग भी हैं जो इस विचार को पूरे तर्क-वितर्क के साथ आगे बढ़ाते हैं। क्या आप जानते हैं कि दुनिया के कई हिस्सों में ऐसी सोसायटियाँ भी हैं जो चपटी धरती की कॉन्सेप्ट को जोर-शोर से आगे बढ़ा रही हैं। इन दिनों अमेरिका के कैलिफोर्निया में फ्लैट अर्थ मूवमेंट (चपटी धरती आंदोलन) ने काफी तेजी पकड़ ली है। हाल के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि अमेरिका में 2 फीसदी लोग इस बात पर यकीन करते हैं कि धरती गोल नहीं बल्कि सपाट है। और ऐसा मानने वालों में कई सेलिब्रिटीज भी शामिल हैं।
बहुत से लोगों की धारणा है कि बाइबल में धरती को चपटी बताया गया है और Isaiah (40:22) Proverbs 8:27 में लिखा है कि धरती एक डिस्क या वृत्त के आकार की है। हालाँकि बहुत से धार्मिक विद्वान इस बात का खंडन करते हैं कि बाइबल के अनुसार धरती चपटी है। सच्चाई यह है कि बाइबल का जो वर्तमान रूप हमें दिखाई देता है वह कई शताब्दियों में अनेक लेखकों और अनेक बदलावों से गुजरकर यहाँ तक पहुँचा है। Old testament के जमाने में इजराइल के लोगों की मान्यता थी कि ब्रह्माण्ड में चपटी डिस्क के आकार की धरती है जो पानी पर तैर रही है। इसके ऊपर स्वर्ग है और नीचे पाताल। ध्यान दीजिए, हिंदू धर्म भी पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक और पाताल लोक की परिकल्पना करता है लेकिन हिंदुओं के बीच अपनी धार्मिक मान्यताओं पर अड़ने और वैज्ञानिक तथ्यों को गलत साबित करने की प्रवृत्ति दिखाई नहीं देती। ओल्ड टेस्टामेंट में जैसी धरती की कल्पना की गई वह काफी हद तक 600 ईसा पूर्व में बेबीलोन में पाए गए दुनिया के नक्शे से मिलती थी। इसके अनुसार धरती सपाट है और उसके चारों तरफ समुद्र है। धरती के कोनों के परे द्वीप और पहाड़ हैं।
अलग अलग धारणाएं
चपटी भूमि में विश्वास रखने वाले लोग भी दो-तीन अलग-अलग धारणाओं में बँटे हुए हैं। कुछ लोग धरती को आयताकार मानते हैं, कुछ वर्गाकार मानते हैं और कुछ वृत्त के आकार की मानते हुए भी उसके बीच के हिस्से को उभरा हुआ मानते हैं। कुछ कुछ ऐसे, जैसे आप किसी रिंगबॉल को गीली मिट्टी में जोर से दबाएँ जिससे बीच का हिस्सा उभर जाता है। यह कुछ हद तक इस धारणा से भी मिलता है कि चपटी धरती एक गुंबद से ढँकी हुई है। कुछ की मान्यता है कि आयताकार धरती चार खंभों पर टिकी हुई है, जैसे कोई टेबल हो। लेकिन इन सबके बीच एक बात समान है कि धरती ग्लोब या गेंद जैसी नहीं है बल्कि सीडी, डीवीडी या पुराने जमाने के म्यूज़िक रिकॉर्ड जैसी चपटी है। चपटी धरती के विश्वासी यह मानते हैं कि दुनिया भर के वैज्ञानिक एक साजिश का हिस्सा हैं जिसके तहत धरती को गोलाकार बताया जाता है। असली सच बाइबल में ही लिखा है जो उनके अनुसार धरती को चपटी मानती है।
सोसायटी की सबसे ताजा मान्यता यह है कि धरती एक डिस्क के समान है। डिस्क के बीच में जहाँ पर खाली स्थान होता है, उस स्थान पर धरती पर उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक है और डिस्क के सबसे बाहरी किनारों पर बर्फ की 150 फुट ऊंची दीवार है। वे एंटार्कटिक का कोई अस्तित्व नहीं मानते क्योंकि वह उनकी धारणा के विपरीत हो जाता है। आगे उनका मानना है कि सूर्य और चंद्रमा न तो उतने बड़े हैं जितने कि हमें अंतरिक्षयान में पढ़ाए जाते हैं और न ही हमसे उतने दूर हैं जितना कि हम मानते हैं। असल में सूर्य और चंद्रमा का आकार समान है और उनका व्यास 52 किलोमीटर है। ये दोनों धरती से 4828 किलोमीटर ऊपर हैं और डिस्क जैसी धरती पर ऊपर ही ऊपर चक्कर लगाते हैं। जहाँ तक अन्य ग्रहों का सवाल है, मंगल हो या शुक्र, बृहस्पति हो या शनि ये सभी गोलाकार हैं, बस धरती फ्लैट है। धरती न तो सूर्य के चक्कर लगाती है और न ही अपनी कक्षा में घूमती है। वह स्थिर है। उनकी सबसे मजेदार मान्यता यह है कि नासा के कर्मचारी इस बात की निगरानी करते हैं कि धरती के ऊंचे, बाहरी किनारों से कोई इंसान नीचे न गिर जाए।
सोसायटी ने धरती का एक नक्शा भी जारी किया है जो संयुक्त राष्ट्र के प्रतीक चिह्न (लोगो) में दिए नक्शे से मिलता है। उसका दावा है कि संयुक्त राष्ट्र ने यह नक्शा अपने लोगो में बेवजह नहीं लगाया होगा। ये लोग मानते हैं कि दुनिया की सारी सरकारें शैतान से प्रभावित हैं और धरती को गोलाकार सिद्ध करने में उनके आर्थिक फायदे हैं। नासा धरती को गोल मानने वाले लोगों का सरगना है जिसके नाम का असली मतलब होना चाहिए- नॉट एक्चुअली साइंटिफिकली एक्यूरेट (वस्तुतः वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य नहीं)। वे कहते हैं कि आप जरा अपने आसपास देखिए। क्या आपको अपने पास की सतह गोलाकार नजर आती है?
चपटी धरती के समर्थक डी मार्बल ने एक प्रयोग किया। उन्होंने अमेरिकन एअरलाइंस के विमान में चार्लोट (नॉर्थ कैरोलाइना) से सिएटल (वाशिंगटन) के लिए विमान यात्रा की। इस दौरान वे धरती की सतह का पैमाना मापने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एअर बबल (बुलबुला) उपकरण लेकर विमान में बैठे। कुल 23 मिनट 45 सैकंड तक उन्होंने अपने इस एअर बबल की स्थिति को मापा। उनका कहना था कि अगर धरती गोलाकार होती तो विमान को एक कोण पर चलना पड़ता और इस दौरान एअर बबल की स्थिति बदलती रहती। लेकिन इस अवधि के दौरान वह स्थिर रही। डी मार्बल ने कहा कि इससे सिद्ध होता है कि धरती ग्लोब जैसी नहीं है बल्कि सपाट है।
विकसित देशों में मौजूद चपटी धरती के समर्थक
इन धारणाओं में यकीन करने और उनका प्रचार करने वाले अनेक संगठन दुनिया में मौजूद हैं। 1956 में इंग्लैंड के डोवर शहर में सैमुएल शेन्टन ने इंटरनेशनल फ्लैट अर्थ रिसर्च सोसायटी की स्थापना की थी जिसकी शाखाएँ आज भी अमेरिका, कनाडा और इटली जैसे विकसित देशों में मौजूद हैं। जी हाँ, आज भी, जबकि इंसान अंतरिक्ष में आने-जाने लगा है और चंद्रमा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन और मंगल तक से धरती के ऐसे चित्र आ चुके हैं जिनमें वह गोलाकार दिखाई देती है। सैमुएल शेन्टन को उपग्रहों से आए हुए तथा अंतरिक्षयात्रियों के लिए हुए चित्र दिखाए गए थे जिनमें धरती गोलाकार दिखाई देती है। तब उन्होंने कहा था कि यह कैमरे के वाइड एंगल लेंस के उभार के कारण हैं। इंग्लैंड और अमेरिका में कोई एक सदी पहले से ऐसे संगठन काम करते रहे हैं, जैसे सैमुएल रोबॉथम की जेटेटिक सोसायटी।
उन्नीसवीं सदी के अंत में लेडी एलिजाबेथ नामक एक महिला ने एक युनिवर्सल जेटेटिक सोसायटी की भी स्थापना की थी जिसका मकसद धार्मिक ग्रंथों की धारणाओं के अनुरूप प्राकृतिक अंतरिक्ष शास्त्र के ज्ञान का प्रसार करना था। सोसायटी की एक पत्रिका भी प्रकाशित होती थी जिसका नाम था ‘द अर्थ नॉट ए ग्लोब रिव्यू’। एक अन्य महिला लेडी ब्लाउंड ने सन 1901 से 1904 तक एक पत्रिका संपादित की थी- अर्थः ए मंथली मैगजीन ऑफ सेन्स एंड साइंस (पृथ्वीः बुद्धि और विज्ञान की मासिक पत्रिका)। अमेरिका में एक तिमाही पत्रिका ‘फ्लैट अर्थ न्यूज़’ भी प्रकाशित हुआ करती थी। कुछ साल की चुप्पी के बाद सन 2004 में अमेरिका में फ्लैट अर्थ सोसायटी की गतिविधियाँ फिर से शुरू हुईं। अब यह फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया ठिकानों पर भी सक्रिय है। इस धारणा को स्थापित करने के लिए दर्जनों वेबसाइटें भी चलाई जा रही हैं। चार और पांच अक्तूबर को अमेरिका के अलाबामा शहर में स्काईफॉल 2019 नामक सम्मेलन इसी थीम पर केंद्रित था। अगले साल तीन और चार अप्रैल को बिब्लिकल अर्थर कॉन्फरेंस भी होने वाली है जिसमें भाग लेने के लिए रजिस्ट्रेशन की तिथि सात अक्तूबर 2019 को खत्म हो गई।
चपटी धरती के समर्थक उन तर्कों को गलत बताते रहे हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि धरती गोलाकार है। मिसाल के तौर पर यह कि चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा गोलाकार रूप में ही कटा हुआ क्यों दिखाई देता है। उनका कहना है कि चंद्रमा के ही जैसा एक शैडो ऑब्जेक्ट (काली वस्तु या काला ग्रह) सूर्य के चक्कर लगाता है। सूर्य की रोशनी के कारण वह हमें दिखाई नहीं देता है। इसे वे एन्टी-मून कहते हैं। उनका मानना है कि वह किसी-किसी समय परिक्रमा करते हुए चंद्रमा के सामने आ जाता है। वह चंद्रमा की सतह को ढँक लेता है और इसीलिए हमें चंद्रमा कटा हुआ दिखाई देता है।
तो हमेशा दिन रहना चाहिए धरती पर
अगर धरती चपटी है तो उस पर हमेशा दिन ही रहना चाहिए क्योंकि सूर्य धरती के ऊपर है और पूरी धरती पर हमेशा उसकी रोशनी पड़नी चाहिए? इस सवाल का जवाब वे इस तरह देते हैं कि सूर्य का आकार बहुत छोटा है और वह पूरी धरती को रोशन नहीं कर पाता बल्कि किसी स्पॉटलाइट या टॉर्च की तरह एक समय पर उसके एक हिस्से पर ही रोशनी डाल पाता है। वह धरती नामक डिस्क के चारों तरफ समांतर रूप में घूमता रहता है और जहाँ-जहाँ से गुजरता है, वहाँ-वहाँ दिन होता है। जो हिस्से रोशनी के दायरे से बाहर रह जाते हैं वहाँ-वहाँ रात होती है। लेकिन इस तर्क पर यह सवाल पैदा होता है कि जब सूर्य हमसे दूर हो जाता है तो उसका आकार न सिर्फ छोटा होता चला जाना चाहिए बल्कि उसकी रोशनी भी धुंधली पड़ती चली जानी चाहिए। ऐसा क्यों नहीं होता?
उनके पास और भी बहुत सारे सवालों के जवाब हैं, भले ही हम उनसे सहमत हों या नहीं। जब कोई जहाज समुद्र में हमसे दूर जा रहा होता है तब धीरे-धीरे उसका दिखाई देने वाला आकार कम क्यों होता चला जाता है? कुछ देर बाद जहाज दिखना बंद हो जाता है और उसके मस्तूल दिखते हैं और कुछ देर बाद मस्तूल का भी सिर्फ ऊपरी हिस्सा दिखने लगता है। और अंत में वह भी गुम हो जाता है। ऐसा क्यों? अगर धरती सपाट है तो जहाज पूरा का पूरा दिखना चाहिए भले ही वह हमसे कितनी भी दूर क्यों न चला जाए? चपटी भूमि को मानने वालों का कहना है कि यह हमारी आँखों का भ्रम है।
गुरुत्वाकर्षण का अस्तित्व नहीं मानते
इस धारणा के लोग गुरुत्वाकर्षण जैसी किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं मानते। लेकिन अगर वह नहीं है तो हम लोग हवा में तैरते क्यों नहीं रहते? हम धरती पर टिके हुए कैसे हैं? इसका जवाब वे इस तरह देते हैं कि चपटी धरती 32 फीट (9.8 मीटर) प्रति सैकंड की रफ्तार से लगातार ऊपर की तरफ यात्रा कर रही है। इसकी वजह से तमाम चीजें और लोग धरती पर टिके रहते हैं। ‘यह जो रफ्तार है, इसी को आप लोग गुरुत्वाकर्षण समझ रहे हो,’ उनकी दलील है।
धरती के डिस्क जैसे स्वरूप को मानने वाले इन लोगों पर हैरत भी होती है और अफसोस भी। ऐसे युग में जब इंसान विभिन्न ग्रहों के बीच में अंतरिक्षयानों की उड़ानें शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है वे अंतरिक्षविज्ञान के उन बुनियादी तथ्यों को भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं जिन्हें आज के सैंकड़ों साल पहले भी कुछ बुद्धिमान लोगों ने समझ लिया था। तेरहवीं सदी में पश्चिमी देशों में अंतरिक्षविज्ञान की जो पाठ्यपुस्तक चलती थी उसमें भी धरती को गोलाकार बताया गया था। यहाँ भारत का जिक्र ज़रूरी हो जाता है क्योंकि आर्यभट्ट ने पाँच सौ ईस्वी के आसपास ही अपनी कृति आर्यभटीय में लिख दिया था कि धरती गोल है। मगर इसी धरती पर वह कैथोलिक रोमन चर्च भी मौजूद था जिसने अमर अंतरिक्षविज्ञानी गैलीलियो पर 1633 ईस्वी में मुकदमा चलाया था और उन्हें जीवन भर के लिए कैद की सजा दी थी। इसलिए कि उन्होंने सिद्ध किया था कि सूर्य धरती के नहीं बल्कि धरती सूर्य के चक्कर लगाती है। और यह बात धार्मिक मान्यता के विपरीत थी। याद रहे, वेटिकन ने साढ़े तीन सौ साल बाद, सन् 1992 में यह बात स्वीकार कर ली थी कि गैलीलियो सही थे।
(लेखक जाने-माने तकनीकविद् और माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- स्थानीय भाषाएँ एवं सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं। आलेख ‘हम हिंदी मीडियम’ से साभार)