प्रदीप सिंह।
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष मुकुल राय का तृणमूल कांग्रेस में वापस चले जाने का पूरा घटनाक्रम अपने आप में कई सन्देश समेटे है। यह सन्देश तृणमूल कांग्रेस के लिए भी है, बीजेपी के लिए भी और समान्य तौर पर राजनीति के लिए भी। वह कांग्रेस से निकले तो तृणमूल कांग्रेस बनाई। तृणमूल कांग्रेस से निकले तो भारतीय जनता पार्टी में आए। और अब भारतीय जनता पार्टी से तृणमूल कांग्रेस में वापस चले गए हैं। मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक नेताओं में थे। कहा जाता है कि तृणमूल कांग्रेस का संगठन खड़ा करने, पार्टी की राजनीतिक और चुनावी रणनीति बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। भाजपा की नजर उन पर थी।
नंबर दो से नंबर तीन
मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस में असहज थे। वह असहज तब हुए जब ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाना शुरू किया। मुकुल राय को लग रहा था कि वह पार्टी में नंबर दो हैं। लेकिन अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाए जाने से वह नंबर दो से नंबर तीन की स्थिति पर चले गए जो उनको मंजूर नहीं हुआ। भाजपा में उनको अवसर दिखा और वह आ गए। लेफ्ट में जा नहीं सकते थे। कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में जो स्थिति है उसे देखते हुए वहां जाने का कोई मतलब नहीं था। ऐसे में उनके सामने एक ही विकल्प था- भारतीय जनता पार्टी। पश्चिम बंगाल में 2016 का विधानसभा चुनाव होने के सवा- डेढ़ साल बाद सितंबर 2017 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उल्लेखनीय है कि 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद ही ममता बनर्जी ने भतीजे अभिषेक बनर्जी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर आगे बढ़ाना शुरू किया था। यह सबसे बड़ा कारण था मुकुल राय के टीएमसी से बीजेपी में जाने का। इसके अलावा बहुत से नेताओं- जो कांग्रेस से आए हैं या क्षेत्रीय दलों के हैं- की नजर इस बात पर भी रहती है कि अपने परिवार खासकर बेटा या बेटी का राजनीतिक भविष्य कैसे सुधारें।
कई लोगों को बीजेपी में लाए
यह भी याद रखना चाहिए कि भाजपा ने जब मुकुल राय को पार्टी में शामिल किया था तब नारदा और शारदा घोटालों में उनका नाम था। नारदा स्टिंग ऑपरेशन था जिसमें टीएमसी के नेता कैश लेते हुए दिखे और शारदा चिटफंड घोटाला था। दोनों मामलों की जांच चल रही है। चार साल वह भाजपा में रहे लेकिन जांच बंद नहीं हुई। वह जांच अभी जारी है। बीजेपी ने इनको पार्टी में शामिल किया और टीएमसी से लोगों को लाने में उनका उपयोग किया। ऐसे कई लोगों को वह बीजेपी में लेकर आए जिनके बारे में वह जानते थे कि वे टीएमसी में असंतुष्ट या नाराज चल रहे हैं या किसी वजह से पार्टी में साइड लाइन कर दिए गए हैं। बड़ी संख्या में लोग टीएमसी से बीजेपी में आए। इस काम में मुकुल राय ही नहीं थे, कई और लोग भी थे- लेकिन मुकुल राय की इसमें बड़ी भूमिका थी क्योंकि वह टीएमसी में बड़े पदों पर रहे- पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रहे, केंद्र में मंत्री रहे, ममता बनर्जी के खास रहे।
बीजेपी की मजबूरी
बीजेपी ने उनको लिया क्योंकि उसके पास पश्चिम बंगाल में स्थानीय नेतृत्व नहीं था। पश्चिम बंगाल में भाजपा के बड़े नेता और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी चुनावी राजनीति के लिए एक तरह से नए ही हैं। बीजेपी को वहां राजनीति में ऐसे लोगों की जरूरत थी जिनकी वहां की राजनीति में पहचान और पकड़ हो। जनाधार हो या ना हो यह एक अलग विषय है। जनाधार वाले लोग भी चाहिए और ऐसे लोगों की भी राजनीति में जरूरत होती है।
तृणमूल से थोक में नेताओं को लेने का नतीजा
कहावत है कि बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय। बीजेपी, जो कि कैडर वाली पार्टी थी, उसने जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस से थोक में नेताओं को लिया और तुरंत अपना टिकट देकर उम्मीदवार बनाया- उसका यही नतीजा होना था। कोई भी राजनीतिक पार्टी अपना दो प्रकार से विस्तार करती है एक ऑर्गेनिक रूप से और दूसरा इनऑर्गेनिक रूप से। ऑर्गेनिक रूप से विस्तार यह है कि आप धीरे-धीरे अपना जनाधार, संगठन और कार्यकर्ताओं का ग्राफ बढ़ाइए। स्थानीय स्तर पर नेता तैयार कीजिए। इसमें काफी लंबा समय लगता है। अब लगभग सभी पार्टियां अपने विस्तार को गति देने के लिए इनऑर्गेनिक ग्रोथ का सहारा लेती हैं। यानी दूसरे दलों से कार्यकर्ताओं और नेताओं को लेना। जैसा कि कॉरपोरेट सेक्टर में होता है की कंपनियों को बड़ा करने के लिए कुछ छोटी कंपनियों को खरीद लिया जाता है या उनका अपनी कंपनी में विलय करा दिया जाता है। इसी तरह का काम राजनीतिक दल भी करते हैं।
निजी सोच-विचारधारा को जांचना चाहिए
आपको याद दिला दें कि 60 के दशक में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी अशोक मेहता के नेतृत्व में पूरी की पूरी कांग्रेस में विलय हो गई थी। कई बड़े जुझारू नेता उसमें थे। जैसे अशोक मेहता, चंद्रशेखर और कृष्णकांत आदि। इन सब लोगों ने एक साथ कांग्रेस ज्वाइन की। सीपीआई से निकलकर मोहन कुमारमंगलम शामिल हुए थे। ऐसा सभी पार्टियां करती हैं आज भी पंजाब में कांग्रेस के लिए मुश्किल बने हुए नवजोत सिंह सिद्दू बीजेपी से आए हैं। झटका खाने के बाद भी अपने विस्तार के लिए राजनीतिक पार्टियां ऐसा करती रही हैं। लेकिन एक कैडर वाली पार्टी को निश्चित रूप से यह देखना चाहिए कि जिसे हम अपनी पार्टी में ला रहे हैं वह हमारी विचारधारा से तालमेल बिठा सकता है या नहीं, उसकी सोच क्या है। वह व्यक्ति अभी तक सार्वजनिक रूप से जो बोलता रहा वह अलग बात है क्योंकि जो जिस पार्टी में होगा उसी की भाषा बोलेगा, उसे जो कहा जाएगा वही बोलेगा। यह बात दरकिनार कर निजी रूप से उसकी सोच-विचारधारा को जांचना चाहिए। यहां यह बात इसलिए नहीं कही जा रही कि मुकुल राय आए और चले गए जो बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका है।
भाजपा से जाने का बड़ा कारण
बीजेपी में आने के बाद मुकुल राय पहली बार चुनाव जीते। वह कृष्णानगर उत्तर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर जीते। इससे पहले वह न कभी विधानसभा का चुनाव जीते, न लोकसभा का। उन्हें ममता बनर्जी ने राज्यसभा में भेजा था और वहीं से वह केंद्र में मंत्री बने थे। भले मुकुल राय बीजेपी में आने के बाद पहली बार चुनाव जीते लेकिन यह उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण बात नहीं थी। क्यों… इसके दो कारण थे। जो समस्या उनको तृणमूल कांग्रेस में अभिषेक बनर्जी के आगे आने से हुई थी- उससे बहुत ज्यादा समस्या उनको भाजपा में तब हुई जब सुवेंदु अधिकारी उनसे आगे निकल गए। जब मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस में थे तब भी वह सुवेंदु अधिकारी को पसंद नहीं करते थे। फिर सुवेंदु अधिकारी बीजेपी में आ गए। नंदीग्राम से टिकट मिला और वहां उन्होंने ममता बनर्जी को हरा दिया। सुवेंदु अधिकारी जनाधार वाले नेता हैं। ऐसे नेता की बीजेपी को जरूरत थी। भाजपा ने उनको विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया। यह बात मुकुल राय के गले से नहीं उतरी। उनके मन में आकांक्षा रही होगी कि अगर बीजेपी जीतती है तो मेरा मुख्यमंत्री बनने का दावा होगा। बीजेपी नहीं जीती तो उस दावे की तो बात छोड़ दीजिए। मुकुल राय विधानसभा का चुनाव जीत गए थे इसलिए उनको उसी विधानसभा में सुवेंदु अधिकारी के पीछे बैठना पड़ता। जाहिर है मुकुल राय अपने आपको सुवेंदु अधिकारी से ज्यादा वरिष्ठ और बड़ा नेता मानते हैं जो कि वह हैं भी- तृणमूल में भी और भाजपा में भी। लेकिन नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराकर सुवेंदु अधिकारी ने लंबी छलांग लगाई। मुकुल राय के भाजपा से जाने का एक बड़ा कारण तो यह था।
बेटे की राजनीति की चिंता
दूसरा बड़ा कारण था अपने बेटे की राजनीति की चिंता। उनका बेटा विधानसभा का चुनाव लड़ा था और हार गया। उनको लगा कि अब शायद उनके बेटे का भविष्य भारतीय जनता पार्टी में उतना सुरक्षित नहीं है। मुकुल राय से ज्यादा उनके बेटे को लगा कि वह तृणमूल कांग्रेस में रहकर ज्यादा सहज महसूस करेगा इसलिए उसने पहले ही बयान देना शुरू कर दिया कि चुनी हुई सरकार की आलोचना नहीं होनी चाहिए और अभिषेक बनर्जी से बात भी की।
राय को तृणमूल में लेना क्यों चाहती थीं ममता
एक बात और ध्यान देने वाली है। दो मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मुकुल राय ने नतीजों के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला कि अच्छा हुआ… बुरा हुआ… या कहां गलती हो गई… क्या करना चाहिए! वह चुप्पी साधे रहे। मुकुल राय ने बंगाल में भाजपा के नेताओं से बातचीत करना बंद कर दिया था जबकि तृणमूल में शामिल होने से पहले आठ-दस दिनों में उनकी ममता बनर्जी से चार बार फोन पर बात हो चुकी थी। ममता बनर्जी मुकुल राय को तृणमूल कांग्रेस में लेना चाहती थीं। जुलाई 2020 में भी इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस में वापस जा सकते हैं। इसके दो कारण थे। एक- मुकुल राय की उपयोगिता और दूसरा- यह भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। अगर मुकुल राय विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद बीजेपी छोड़ देते हैं तो यह बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल में और राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बड़ा झटका है। क्या बीजेपी इसके पास संभलेगी और इस झटके से कोई सबक सीखेगी?
हेमंत विश्वशर्मा और मुकुल राय
मुकुल राय का जाना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह कि उनको बीजेपी में इतना सम्मान मिला। बाहर से आए नेताओं में शायद ही कोई इतनी जल्दी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना हो। 2015 में हेमंत विश्वशर्मा भाजपा में आए। 2017 में मुकुल राय आए। हेमंत विश्वशर्मा पूरे पांच छह साल पार्टी के लिए काम करते रहे। असम और पूरे नॉर्थ ईस्ट में पार्टी को खड़ा करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। 2016 में भाजपा असम में जीती जिसमें हेमंत विश्व शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन पार्टी ने कहा कि अभी उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे। वह नाराज नहीं हुए, पार्टी के खिलाफ काम करना शुरू नहीं किया और यह भी नहीं हुआ कि कोप भवन में चले गए हो। हेमंत विश्वशर्मा ने और ज्यादा मेहनत से काम करना शुरू किया। उसका नतीजा यह हुआ कि 2021 में असम में फिर भाजपा जीती और हेमंत विश्वशर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। वह भाजपा में इतने लंबे समय तक क्यों रह गए? इसलिए कि उन्होंने बीजेपी की मूल विचारधारा को अपने में आत्मसात कर लिया, उससे तालमेल बिठा लिया और उसी ऑडियोलॉजी पर चले। आप बताइए देश में कितने मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के कितने मुख्यमंत्री हैं जो मुसलमानों से यह बोलने की हिम्मत कर सकें कि जरा अपने परिवार पर नियंत्रण रखें इससे गरीबी बढ़ रही है। कोई मुख्यमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति खुलेआम मुसलमानों से परिवार नियोजन की बात करे यह कोई आसान काम नहीं। हेमंत विश्वशर्मा ने सरकारी मदद से चल रहे मदरसे बंद किए और कई और काम किये। ये सब एक ही बात की ओर इशारा करते हैं कि भाजपा की मूल विचारधारा से हेमंत विश्वशर्मा ने तालमेल बिठा लिया है। यह तालमेल मुकुल राय नहीं बैठा पाए। मुकुल राय के पिछले चार साल के क्रियाकलाप और बयानों को देखकर पहली नजर में लगता है भाजपा को मुकुल राय को लेना ही नहीं चाहिए था। जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों, जिसके बारे में भाजपा ऐसे आरोप लगाती रही हो, चार साल तक पार्टी में रहने के बाद भी उनके ऊपर से न आरोप हटे न मामला खत्म हुआ- इन सब बातों को देखते हुए लगता है कि यह होना था और यह हुआ। कब होना था इसका पता नहीं था।
बीजेपी के लिए बहुत बड़ा सबक
चूंकि बीजेपी देश के सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए यह उसके लिए बहुत बड़ा सबक है, लेकिन दूसरी पार्टियों के लिए भी सबक है- अगर सीखने को तैयार हों तो! सबक यह कि जब आप इनऑर्गेनिक ग्रोथ के लिए जाते हैं और दूसरी पार्टी से नेताओं को लेते हैं तो जरा ठोक बजा कर लीजिए। निदा फ़ाज़ली का शेर है: ‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिस को भी देखना हो कई बार देखना।’ ऐसे थोक भाव में लेंगे तो यह बाढ़ के पानी की तरह है- जो आता है, चला जाता है- और अपने पीछे बहुत सारा कूड़ा करकट और गंदगी भी छोड़ जाता है।