आपका अखबार ब्यूरो।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ सप्ताह के अवसर पर इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) का मीडिया सेंटर प्रभाग ने 14 मार्च को ‘भारतीय सिनेमा में महिलाएं’ विषय पर एक विचारोत्तेजक पैनल चर्चा का आयोजन किया। इस अवसर पर पैनल चर्चा के अतिरिक्त, एक अनूठी प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें फियरलेस नाडिया की फिल्म ‘हंटरवाली’, नरगिस की ‘मदर इंडिया’, रेखा की ‘उमराव जान’, अनुष्का शर्मा की ‘एनएच 10’ आदि कई नई और पुरानी फिल्मों के पोस्टर और 1940 की ‘फिल्म इंडिया’, 1956 की ‘फिल्मफेयर’ आदि कुछ फिल्म पत्रिकाओं के दुर्लभ अंक प्रदर्शित किए गए। साथ ही, आईजीएनसीए की पत्रिका ‘विहंगम’ के ‘सिनेमा में महिलाएं’ विशेषांक का लोकार्पण किया गया और फिल्मों में महिलाओं की कुछ सशक्त भूमिकाओं पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म दिखाई गई। इस कार्यक्रम के दौरान, आईजीएनसीए द्वारा सिनेमा पर प्रकाशित पुस्तकें और केंद्र द्वारा निर्मित फिल्मों की डीवीडी भी बिक्री के लिए उपलब्ध थी। पैनल परिचर्चा में स्पिक मैके की डायरेक्टर रश्मि मलिक, प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना रीला होता, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक श्रीमती जयंती रंगनाथन और फिल्म विशेषज्ञ व लेखक इकबाल रिजवी शामिल रहे। चर्चा का संचालन मीडिया सेंटर के नियंत्रक अनुराग पुनेठा ने किया। भारत में सिनेमा ने 11 दशक पूरे कर लिए हैं और आज महिलाएं सिनेमा का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं। पैनल चर्चा में भारतीय सिनेमा में महिला कलाकारों, निर्देशकों, तकनीशियनों आदि की स्थिति पर चर्चा गई। इन विषयों पर भी चर्चा हुई कि उनका प्रतिनिधित्व उस मात्रा में है या नहीं, जितना होना चाहिए; जितना महत्त्व महिलाओं को मिलना चाहिए, उतना मिल रहा है या नहीं; उनका चित्रण ठीक से हो रहा है या नहीं; महिलाओं की सशक्त भूमिका वाली फिल्में पर्याप्त संख्या में बन रही हैं या नहीं। सभी पैनलिस्ट इस बात पर सहमत थे कि इसमें थोड़ा भी संदेह नहीं है कि सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी बहुत बढ़ी है। वे सिर्फ अभिनय ही नहीं कर रहीं, बल्कि सिनेमा से जुड़े हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं और सफलता के नए प्रतिमान स्थापित कर रही हैं। समय के साथ सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है।
इस मौके पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव, डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि आज ओटीटी के जमाने में जिस तरह का कंटेंट बनाने की चाह लोगों में आ गई है, वह काफी ज्यादा चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, आज ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर खुद को फिजिकली या फिर इमोशनली तौर एक्सपोज करने के लिए ऐसे कंटेंट को डाल रहें है, जो एक तरह का सामाजिक व्याभिचार है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सिनेमा में आज आज मलिाएं केवल शोपीस हैं या फिर केवल भीड़ खींचने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है?
पैनल चर्चा में पत्रकार जयंती रंगनाथन ने कहा कि जयंती रंगनाथन ने बताया कि 80 से 90 के दशक में बनने वाली ज्यादातर फिल्मों में महिला कलाकारों की भूमिका महत्वपूर्ण और आगे ले जाने वाली थी। उन्होंने कहा कि सन 2000 के बाद सिनेमा में महिला कलाकारों की भूमिका में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। अब फिल्मों की नायिकाएं सच के ज्यादा करीब दिखती हैं।
रश्मि मलिक ने कहा कि भारतीय फिल्में हमेशा से महिला गायिकाओं और नृत्यांगनाओं की बेहतरीन कलाकारी की वजह से सुपरहिट और सफल होती रही हैं। महिलाओं ने इस मामले में फिल्म जगत में राज किया है। इस संदर्भ में उन्होंने रोशन कुमारी, सितारा देवी और बेगम अख्तर जैसी कलाकारों के नाम गिनाए। रीला होता ने कहा कि पहले के डांस में हम प्रेम को ज्यादा दिखाते थे, जबकि अब हम तमस (कामुकता) को ज्यादा दिखाते हैं।
फिल्म विश्लेषक और लेखक इकबाल रिजवी ने कहा कि हिन्दी फिल्मों में आजादी के बाद महिला कलाकारों को ज्यादातर एक मां और संस्कारी पत्नी की ही भूमिकाओं में ज्यादा दिखाया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भूमिकाएं बदलीं और उसे एक सशक्त स्त्री के रूप में भी दिखाया गया।
कार्यक्रम का संचालन आईजीएनसीए के मीडिया सेंटर की डिप्टी कंट्रोलर डॉ. श्रुति नागपाल ने किया। वहीं माधवेंद्र कुमार ने आईजीएनसीए की पत्रिका ‘विहंगम’ के ‘सिनेमा में महिला’ विशेषांक के बारे में बताया। इक कार्यक्रम में बड़ी संख्या में सिनेमाप्रेमी, पत्रकार, बुद्धिजीवी और युवा सम्मिलित हुए।