राजीव रंजन।
रिश्तों में बेवफाई और विवाहेत्तर सम्बंधों को लेकर बॉलीवुड में थोक भाव से फिल्में बनी हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही याद रखी जाने लायक हैं। इस कड़ी में गुलजार निर्देशित ‘अचानक’ (के.एम. नानावटी केस से प्रेरित), महेश भट्ट निर्देशित ‘अर्थ’ और यश चोपड़ा निर्देशित ‘सिलसिला’ आदि का नाम लिया जा सकता है। करण जौहर निर्देशित ‘कभी अलविदा ना कहना’ को भी याद किया जा सकता है। महेश भट्ट के बैनर की ‘मर्डर’ भी काफी चर्चित रही थी, लेकिन अपनी कहानी से ज्यादा मल्लिका शेरावत और इमरान हाशमी के बोल्ड दृश्यों की वजह से। इसी हफ्ते ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘अमेजन प्राइम वीडियो’ पर रिलीज हुई शकुन बत्रा निर्देशित और दीपिका पादुकोण की मुख्य भूमिका वाली ‘गहराइयां’ भी रिश्तों में बेवफाई और विवाहेत्तर सम्बंधों की पृष्ठभूमि पर ही आधारित है, ढेर सारे बोल्ड दृश्यों के साथ।
क्या यह फिल्म अपने विषय के साथ न्याय कर पाई है? क्या इसके किरदार दर्शकों के जेहन में अपनी छाप छोड़ पाते हैं? पत्रकार राजीव रंजन अपने ब्लॉग में लिखते हैं- फिल्म विषय का गंभीरता से निर्वाह नहीं कर पाती। इसके किरदार दर्शकों को प्रभावित करने में असफल रहे हैं, क्योंकि न तो कहानी को ठीक से बुना गया है, न किरदारों को ढंग से गढ़ा गया है। फिल्म में समंदर की मौजूदगी ठीकठाक है, वह एक महत्त्वपूर्ण किरदार भी है और कहानी से उसका गहरा नाता है। लेकिन कमजोर लेखन की वजह से फिल्म में गहराई नहीं आ पाती है। पटकथा की कमजोरी और चुस्त निर्देशन के अभाव की वजह से यह एक बेहद औसत दर्जे की फिल्म बन कर रह गई है।
प्लॉट
आलीशा (दीपिका पादुकोण) योगा इंस्ट्रक्टर है और अपने बॉयफ्रेंड करण (धैर्य करवा) के साथ रहती है। करन नॉवेल लिखने के लिए एडवर्टाइजिंग कंपनी की नौकरी छोड़ देता है। घर का सारा खर्च आलीशा ही चला रही है। टिया (अनन्या पांडे) आलीशा की चचेरी बहन है और अमेरिका में रहती है। टिया का बॉयफ्रेंड जैन (सिद्दांत चतुर्वेदी) रियल स्टेट डेवलपर है। वह एक बड़े प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है, जिसमें टिया के पिता का भी पैसा लगा है। अमेरिका में वह कुछ साल पहले टिया के पिता का असिस्टेंट था। टिया अमेरिका से कुछ दिनों के लिए मुंबई आती है जैन से मिलने के लिए। मुंबई में उसके पिता का एक शानदार बीच हाउस है। वह आलीशा और करन को अपने बीच हाउस पर चलने के लिए आमंत्रित करती है। दिलचस्प बात यह है कि आलीशा को उसकी चचेरी बहन से उसका प्रेमी मिलाता है। बहरहाल, आलीशा और करन अपनी जिंदगी में काफी आर्थिक जद्दोजहद से गुजर रहे हैं, वहीं टिया और जैन की जिंदगी बड़े ठाट से चल रही है। चारों एक प्राइवेट याट पर बीच जा रहे हैं, जिसे जैन ने एक साल के लिए किराये पर ले रखा है। वह इसी यात्रा के दौरान, फटाक से आलीशा की ओर आकर्षित हो जाता है। यह जानते हुए भी, कि जैन उसकी बहन का मंगेतर है, आलीशा उससे दूरी बनाकर रखने की कोशिश नहीं करती। अपने प्रेमियों के पीठ पीछे दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगती हैं और बहुत जल्दी ही सारी दूरियां मिट जाती हैं…
स्क्रिप्ट पर ठीक से काम नहीं
इस फिल्म की बड़ी चर्चा थी। ऐसा कहा जा रहा था कि यह एकदम अलग तरह की फिल्म है। हाल ही में एक इंटरव्यू में अनन्या पांडे ने कहा था कि फिल्म की कहानी इतनी शानदार थी कि इस फिल्म को करने के लिए वह शकुन बत्रा के पीछे ही पड़ गई थीं और आखिरकार शकुन को उन्हें इस फिल्म में लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। फिल्म और उसमें अनन्या का किरदार देखकर यह समझ में नहीं आया कि आखिर वो कौन-सी बात थी कि अनन्या किसी कीमत पर यह फिल्म करना चाहती थीं! सबकुछ एकदम फॉर्मुलाबद्ध है। ऐसा लगता है, स्क्रिप्ट बहुत हल्के में लिख दी गई है। कहीं कोई चीज चौंकाती नहीं, किरदारों की कशमकश को दिखाती नहीं, भावनाओं को उद्वेलित करती नहीं। बस बोल्ड सीन परोसकर ही लेखक और निर्देशक ने समझ लिया कि उनका काम खत्म हो गया। हां, संवाद अपेक्षाकृत ठीक हैं। सिनमेटोग्राफी अच्छी है। ‘कपूर एंड संस’ जैसी ठीकठाक फिल्म निर्देशित करने वाले शकुन बत्रा इस फिल्म में निराश करते हैं। वह फिल्म में जैन के साथ आलीशा के सम्बंधों को जस्टिफाई करने के लिए कभी उसके अतीत का सहारा लेते हैं, तो कभी उसके प्रेमी के नाकारापन को ढाल बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन दिक्कत है कि कन्विंस नहीं कर पाते। इस तरह की फिल्मों में जिस तरह की भावनात्मक सघनता की दरकार होती है, वह नजर नहीं आती। कुछ दृश्य अच्छे हैं, लेकिन फिल्म दिल में नहीं उतर पाती।
नसीरुद्दीन शाह की क्षमता का उपयोग नहीं हुआ
आलीशा के रूप में दीपिका का अभिनय ठीक है। उन्होंने किरदार को ठीक से निभाया है। वह ग्लैमरस भी लगी हैं। अगर पटकथा का साथ मिलता, तो उनका अभिनय तथा किरदार और निखर कर सामने आता। सिद्धांत चतुर्वेदी ने भी अच्छा काम किया है। ‘गली बॉय’, ‘इनसाइड एज’ (वेब सीरीज) से लेकर ‘गहराइयां’ तक उन्हें जो भी मौके मिले हैं, सिद्धांत ने उनको भुनाने की कोशिश की है। अनन्या पांडे की भूमिका में कोई खास दम नहीं था, और जितना भी था, वह उतना भी नहीं कर पाई हैं। उनका अभिनय प्रभावित नहीं कर पाता। धैर्य करवा ने अपना काम ठीक किया है। अपने किरदार के साथ न्याय किया है। लेखक और निर्देशक ने नसीरुद्दीन शाह के साथ बहुत अन्याय किया है। वह जिस स्तर के कलाकार हैं, उस हिसाब से देखें तो लेखक और निर्देशक ने उनकी क्षमता का अपव्यय (वेस्ट) किया है। मुझे अकसर लगता है कि शायद इन्हीं वजहों से कई बार अपने साक्षात्कारों में दूसरे कलाकारों को लेकर नसीर साहब बहुत कड़वे प्रतीत होते हैं। आलीशा के पिता के रूप में न तो उनके किरदार को मजबूत तरीके से पेश किया गया है और न ही ज्यादा स्क्रीन टाइम दिया गया है। बावजूद इसके, वह सबसे असरदार लगे हैं। रजत कपूर ने अपनी भूमिका चिर-परिचित अंदाज में निभाई है। बाकी कलाकार भी ठीक हैं।
इस लड्डू को नहीं भी खाया, तो पछताएंगे नहीं
अगर आपके पास अमेजन प्राइम की सदस्यता है, तो फिल्म देख सकते हैं। नहीं भी देखेंगे, तो अफसोस नहीं होगा। इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी यह है कि दीपिका ने नौ साल (कॉकटेल) के बाद किसी फिल्म में बिकिनी पहनी है और दनादन बोल्ड सीन किए हैं, ‘स्क्रिप्ट की मांग’ पर।
फिल्म: गहराइयां
ओटीटी प्लेटफॉर्म: अमेजन प्राइम वीडियो
निर्देशक: शकुन बत्रा
कलाकार: दीपिका पादुकोण, अनन्या पांडे, सिद्धांत चतुर्वेदी, धैर्य करवा, नसीरुद्दीन शाह, रजत कपूर
स्टार- 2 (दो)