अफवाह फैलाने वाले गीता प्रेस के नाम से चंदा इकट्ठा कर अपनी जेबें भर रहे
डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
गीता प्रेस बंद होने नहीं जा रहा है। उस पर कोई आर्थिक संकट नहीं है। सोशल मीडिया पर बहुधा आपने अफवाह फैलाने वाली एक अपील देखी होगी।
अफवाह फैलाने वाली अपील
दुखद समाचार
गीता प्रेस गोरखपुर बंद होने वाला है।
गीता प्रेस अपने कर्मचारियों को वेतन भी देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि वे सनातन धर्म की सभी पुस्तकें बिना किसी लाभ के बेचते हैं। अगर गीता प्रेस बंद हो जाती है तो यह हिंदू धर्म के लिए बहुत बड़ी क्षति होगी। हमें 10 रुपये से कम की चाय भी नहीं मिल सकती है, लेकिन आप हनुमान चालीसा 1 या 2 रुपये में प्राप्त कर सकते हैं।
यदि आप वास्तव में हिंदू धर्म को बचाने में रुचि रखते हैं, तो इसे 20 लोगों तक फॉरवर्ड करें, ताकि गीता प्रेस को बंद न किया जा सके!
कृपया इसे फॉरवर्ड करें।
क्यों फैलाई जाती है गीता प्रेस बंद होने की अफवाह
इस प्रकार की अपील करने वाले वास्तव में धोखेबाज लोग हैं। और जो लोग इस अपील को फारवर्ड करते हैं, वे अनजाने में इस प्रकार की धोखाधड़ी को बढ़ावा देते हैं।
प्रारम्भ से ही गीता प्रेस की यह नीति रही है कि वह किसी से कोई दान स्वीकार नहीं करता है। गीता प्रेस बंद होने की अफवाहें इसलिए फैलाई जाती हैं, क्योंकि यह अफवाह फैलाने वाले लोग बाद में गीता प्रेस के नाम से चंदा इकट्ठा करते हैं और अपनी जेबें भरते हैं।
आज गीता प्रेस भारत की ही नहीं, विश्व की एक अग्रणी प्रकाशन संस्था है। यहां से प्रतिदिन कोई 50 हजार पुस्तकें छप कर बाजार में आती हैं। लगभग दो सौ कर्मचारी यहां काम करते हैं।
यहां की व्यवस्था अद्भुत
पिछले दिनों गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के आयोजन में जब गोरखपुर जाना हुआ तो गीता प्रेस जाने का भी अवसर पत्रकार मित्र राहुल देव के साथ मिला। गीता प्रेस अपने आप में इतिहास है और गर्व का क्षण भी। यहां की व्यवस्था अद्भुत है ।लगभग 100 वर्ष से गीता प्रेस का काम अनवरत चल रहा है और यह संस्था हम सबको सनातन धर्म की पुस्तकें ही नहीं प्रेरक और शिक्षा दायक पुस्तकें भी कम से कम दामों में उच्च क्वालिटी के साथ उपलब्ध कराता रहा है , वो भी बिना दान और अनुदान के। बस शायद जरूरत इस बात की है कि गीता प्रेस की पहुंच युवाओं और बच्चों में भी ठीक तरह से हो ताकि वे भी धर्म और समाज को समझ सकें। गीता प्रेस इस मामले में कितना आगे बढ़ कर के जाता है, हम सबको इसकी प्रतीक्षा रहेगी।
अकु श्रीवास्तव
सम्पादक- नवोदय टाइम्स, नयी दिल्ली।
इस दुष्प्रचार के आधार पर कुछ लोग देश और विदेश में गीता प्रेस के नाम पर चंदा उगाही करके अपनी जेबें में भर रहे हैं।
गीताप्रेस के खिलाफ चलाये जा रहे दुष्प्रचार अभियान का सिलसिला पुराना है। 2016-17 में भी ऐसी अफवाहें जोरों पर थीं। तब सन् 2017 में गीता प्रेस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा: “गीता प्रेस में कोई आर्थिक संकट नहीं है। संस्थान सुचारू रूप से कार्यरत है। भारत में संस्थान के बीस विक्रय केंद्र कार्यरत हैं । इसके अतिरिक्त स्टेशन स्टालों स्थानों की श्रंखला भी कार्यरत है। …गीता प्रेस द्वारा कभी भी आर्थिक सहायता न तो मांगी गई है और न ही स्वीकार की जाती है।”
विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि यदि कोई गीता प्रेस के नाम पर धन संग्रह करता है, तो निश्चित रुप से ऐसे करना ऐसा करने वाला ठगी कर रहा है।
गीता प्रेस बंद होने की अफवाहों के विरुद्ध वहाँ के प्रशासन ने वर्ष 2020 में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। अब सन् 2021 में उन्होंने एक बार फिर फिर विज्ञप्ति जारी की है। फिर भी अफवाह फैलाने वाले अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे।
गीता प्रेस ने 11 करोड़ रुपए की एक पुस्तक-बाइंडिंग मशीन लगाई है। पूरा प्रोजेक्ट 25 करोड़ रुपए का है।
लाभ कमाना नहीं गीता प्रेस का उद्देश्य
गीता प्रेस सस्ते में पुस्तकें इसलिए दे पता है क्योंकि लाभ कमाना उसका उद्देश्य नहीं है। आज गीता प्रेस कोई पंद्रह भाषाओं में सनातन धर्म संबंधी पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है। ये भाषाएँ हैं: हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलगू, कन्नड, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उड़िया, असमी, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू।
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)