सोशल मीडिया पर हिंदी का रचनात्मक जनांदोलन- ‘हम हिंदी मीडियम’।
आपका अख़बार ब्यूरो।
जाने-माने तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच ने हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से कौशल विकास की अनूठी मुहिम शुरू की है जिसमें सोशल मीडिया का रचनात्मक प्रयोग किया गया है। उन्होंने हिंदी की पृष्ठभूमि से आने वालों, विशेषकर युवाओं को, निःशुल्क नए कौशल सिखाने के लिए फ़ेसबुक पर एक समूह तैयार किया जिसे ‘हम हिंदी मीडियम’ नाम दिया गया। यहाँ हर सप्ताह किसी एक आधुनिक विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला होती है जिसमें सैंकड़ों लोग कुछ न कुछ नया सीखते हैं। जुलाई में बने इस समूह के 2000 से अधिक सदस्य हो चुके हैं और इसकी हर साप्ताहिक कार्यशाला में 150 से 200 के बीच प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं।
बालेन्दु कहते हैं- “हम नहीं मानते कि हिंदी माध्यम के लोग विज्ञान, तकनीक, वाणिज्य, उन्नत कलाओं, प्रबंधन, विधि, गणित, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कन्सलटिंग, डेटा एनालिसिस, मार्केटिंग जैसे आधुनिक क्षेत्रों में नहीं जा सकते। फिर जिन बेहतर वेतन वाली नौकरियों से घरों में समृद्धि आती है वे हिंदी माध्यम के लोगों से दूर क्यों हैं? और हिंदी वाले उनसे दूर क्यों हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम संकोच और अनभिज्ञता में बड़े अवसर खो रहे हैं?”
संभावनाएँ और आत्मविश्वास
इस जुनूनी फेसबुक समूह का यही उद्देश्य है कि हर हिंदी माध्यम वाले व्यक्ति के दिमाग में नई संभावनाएँ और मन में आत्मविश्वास जगाया जाए। लेकिन यह आत्मविश्वास मात्र प्रेरक भाषणों या वीर रस की कविताओं से नहीं बल्कि अपनी योग्यता, ज्ञान और कौशल को कई सोपान ऊपर ले जाने से आए, तब कुछ मजा है। जब हिंदी वालों के लिए नए क्षेत्रों में संभावनाएँ खुलें, तब मजा है। बातों के गुब्बारों और कल्पनाओं के किलों से आगे बढ़ने के लिए पहल हमीं को करनी है। मगर क्या हम इसके लिए तैयार हैं? हमें यह सवाल खुद से पूछना है। बालेन्दु कहते हैं- “मुझ जैसे अनेक लोग अब ऐसी मानसिक स्थिति में हैं कि हम एक सामाजिक दायित्व महसूस करते हैं। वह सामाजिक दायित्व है- हिंदी से प्रेम करने वाली युवा पीढ़ी को सशक्त करने का। उसे विश्वास दिलाने का कि ‘हिंदी मीडियम’ में कोई समस्या नहीं है। हाँ, हमारे आसपास हमारे ही लोगों द्वारा चुनौतियाँ पैदा की जाती हैं लेकिन अब जमाना बदल रहा है और आप चाहें तो हिंदी को अपनी ताकत बना सकते हैं। जैसे मैंने हिंदी से कदम पीछे खींचे बिना इसे अपनी शक्ति में तब्दील करने की कोशिश की। इसमें कामयाब भी हुआ। दुनिया की शीर्ष आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ़्ट में एक वरिष्ठ पद तक पहुँचा।“
‘हम हिंदी मीडियम’ नाम क्यों
तात्पर्य यह कि हमें हिंदी मीडियम होने पर हीनभाव की ज़रूरत नहीं है। इसीलिए इस समूह का नाम हम हिंदी मीडियम है। जहाँ हिंदी मीडियम शब्द हीनभाव का प्रतीक नहीं बल्कि आत्म-गौरव का प्रतीक है। हम गर्व के साथ उद्घोष करते हैं कि हाँ हम हिंदी मीडियम या हिंदी माध्यम से आने वाले लोग हैं और हमें इस पृष्ठभूमि को सम्मानजनक प्रतीक का रूप देना है। हिंदी मीडियम शब्द का प्रयोग अक्सर किसी को कमतर आंकने के संदर्भ में होते देखा गया है- लीजिए, ये आ गए हिंदी मीडियम वाले! हम इस छवि को बदलना चाहते हैं, लेकिन सकारात्मक काम करके, अपना प्रभाव पैदा करके।
अपने ही देश में अपनी भाषा बोलने, समझने, लिखने पर हमारा आत्मविश्वास हिलना नहीं चाहिए। इसके लिए हम करोड़ों हिंदीभाषियों को मेहनत करनी होगी- न सिर्फ अपनी कामयाबी के लिए बल्कि हिंदी को उन बेड़ियों से निकाल लाने के लिए जो उस पर बेवजह थोप दी गई हैं। हिंदी हमें तरक्की करने से रोकती नहीं। हम खुद अपने को रोकते हैं। इस मुहिम के अंतर्गत लोग सकारात्मक ढंग से खुद पर काम करने के लिए आगे आए हैं। वे सीखेंगे, कौशल विकसित करेंगे, कामयाब लोगों से मिलेंगे, एक दूसरे से नेटवर्किंग करेंगे और मिल-जुलकर आगे बढ़ेंगे। हिंदी को एक रचनात्मक और सकारात्मक सामाजिक आंदोलन की रीढ़ बना देंगे।
हिंदी के आधुनिक चेहरे का प्रतिनिधित्व
श्री दाधीच कहते हैं कि हम हिंदी के व्यापक, उदार तथा आधुनिक चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं और हिंदी भाषियों की छवि को बदल देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम हिंदी भाषी इतने सक्षम बनें कि लोग हमारी काबिलियत और अहमियत को स्वीकार करने पर विवश हों। बालेन्दु शर्मा दाधीच बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- स्थानीय भाषाएँ एवं सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं। ‘हम हिंदी मीडियम’ नामक पहल उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर की है। इसका तथा बालेन्दु की सोशल मीडिया गतिविधियों तथा टिप्पणियों का माइक्रोसॉफ़्ट से कोई संबंध नहीं है। ये गतिविधियाँ निजी स्तर पर संचालित हैं।