11 मार्च को है शिव योग की महाशिवरात्रि।
ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे ।
इस वर्ष की महाशिवरात्रि कोरेना काल में उपजी नकारात्मकता और निराशा को दूर करने वाली है। शिव की पूजा मनुष्य के जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मकता का संचार करती है। भोलेनाथ अपने भक्तों के लिए सर्वत्र और सदैव उपलब्ध रहते हैं। वे इतने सरल और सहृदय हैं कि मात्र जल के अभिषेक से तुष्ट हो जाते हैं, इसीलिए आशुतोष कहे जाते हैं। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चन्द्रमा इस तिथि को सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीव रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिव पूजा करने से अभीष्ट फल मिलता है।
सभी दिशाओं, जल, थल, आकाश और पाताल के स्वामी शिव ही हैं। संक्षेप में कहें, तो ‘जो शिव नही है, वह शव है’। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी की सभ्यता, जो मनुष्य के अस्तित्व का प्राचीनतम प्रमाण है, के उत्खनन के समय जो अवशेष मिले, उनमे पशुपति शिव की कई प्रतिमाएं और आकृतियां मिलीं, जो इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं कि शिव ही सब कुछ है।
शिव के अस्तित्व को लेकर धारणाएं भी बहुत हैं और जिज्ञासा भी। शिव के स्वरूप और उनके अस्तित्व को लेकर जब मन में वैचारिक मंथन होता है, तो लगता है कि हम अपनी श्वास, प्रश्वास या हृदय के स्पन्दन की चर्चा कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि हम अपने मन और आत्मा की चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि ब्रह्माण्ड की रचना और इसमें जीवन के संचरण का कारक भी शिव को माना जाता है और प्रलय के देवता भी शिव ही हैं। समस्त आकारों के सृजनकर्ता शिव हैं, तो स्वयं निराकार भी हैं। अभिव्यक्ति के लिये स्वर के कारक महादेव स्वयं हैं और परम शांति के उद्भवकर्ता शिव ही हैं। स्वयं जटाजूट धारण करने वाले और विष प्रेरित सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले शिव सभी ऐश्वर्य के अधिष्ठाता देव हैं।
यदि शिवरात्रि त्रिस्पृशा अर्थात त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावास्या के स्पर्श युक्त हो, तो बहुत उत्तम मानी गई है। ‘स्मृत्यंतर’ में कहा गया है कि शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोष व्यापिनी ग्रहण करें। यहां प्रदोष शब्द से मतलब ‘रात्रि का ग्रहण’ है। ‘कामिक’ में भी कहा गया है कि सूर्य के अस्त समय यदि चतुर्दशी हो, तो उस रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं। 11 मार्च हो सूर्यास्त के समय चतुर्दशी है, अत: इसी दिन शिवरात्रि मनाई जायेगी।
सर्वार्थ सिद्धि योग और एश्वर्य योग की शिवरात्री
गुरुवार, 11 तारीख को प्रात:काल त्रयोदशी और दोपहर 2 बज कर 39 मिनट के बाद चतुर्दशी तिथि है। इसी दिन शिवरात्रि मनाई जायेगी। गुरुवार की शिवरात्री के अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे एश्वर्य योग भी कहा जाता है। गोचर में गुरु और शनि नीच भंग राजयोग बना रहे हैं तथा लग्न में चन्द्र युक्त बुधादित्य योग है। शिवजी का पूजन प्रत्येक को धन-धान्य से परिपूर्ण करेगा। इस दिन शिव और सिद्ध योग है तथा श्रीवत्स और सौम्य योग भी है, जो अत्यंत शुभ है। इस तरह यह सभी कष्टों से मुक्ति का त्योहार बन गया है।
भगवान शिव की पूजा में भद्रा रहती है प्रभावहीन
11 तारीख को दोपहर 2 बज कर 39 मिनट से रात्रि 2 बज कर 51 मिनट तक भद्रा का प्रभाव है। इस अवधि में धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र की कुम्भ राशि की भद्रा रहेगी। शास्त्रों में इसे मृत्युलोक की भद्रा माना जाता है, लेकिन शिव पूजन में भद्रा निष्प्रभावी होती है, इसलिए पूजा की जा सकती है।
शिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्त्व
महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। महादेव इस दिन हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त कर परम सुख, शान्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि वह रात्रि है, जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग के रूप में प्रकट हुए:
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्य समप्रभ:॥
पूजा का मुहूर्त
- 11 तारीख को दोपहर 2.39 बजे तक त्रयोदशी है।
- शाम 4 बज कर 9 मिनट से 6 बज कर 19 मिनट तक सिंह लग्न में पूजन करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है।
- रात्रि 10 बज कर 41 मिनट से 12 बज कर 56 मिनट तक वृश्चिक लग्न में पूजन करने से वैवाहिक सुख और पारिवारिक सामंजस्य बढ़ता है। रात्रि 11 बज कर 49 मिनट से 12 बज कर 37 मिनट के मध्य महानिशीथ काल में पूजन करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
सत्य और शक्ति के सामंजस्य का दिन
एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा- कौन-सा व्रत मुझे सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब भगवान शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया- फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत या उपवास से होता हूं।
इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार, श्रीब्रह्मा और श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया था। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना माहात्म्य और श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों उद्धत हुए। तब भगवान शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, क्योंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन का महत्व भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। श्रीविष्णु और श्रीब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ कर ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनका क्रोध भी शांत हो चुका था और उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए और सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।
शिव पूजन सभी के लिए लाभकारी
विद्यार्थी: 21 बेलपत्र पर लाल चन्दन लगाकर अपनी सीधी हथेली के मध्य भाग से स्पर्श कराके अर्पित करें। ‘शिवशंकराय ह्रीं’ मंत्र का जाप करें।
शीघ्र विवाह हेतु: लडके केसर युक्त दूध से और युवतियां अनार के रस से शिवजी का अभिषेक करें। ‘ह्रीं ह्रीं गिरिजा पतये शिवशंकराय ह्रीं ह्रीं’ मंत्र का जाप 108 बार करें।
रोजगार की प्राप्ति के लिए: सर्प का पूजन करने के पश्चात शिव जी का अभिषेक कर एक कमल का पुष्प अर्पित करें। प्रतिदिन शिवजी का जल से अभिषेक करें।
आर्थिक लाभ और ऋण मुक्ति हेतु: शिवजी का काले अंगूर के रस से अभिषेक करें। सूपा और काला छाता अर्पित कर मंत्र ‘धन समृद्धि प्रदाय श्रीमन महदेवाय नम:’ का जाप तीनो पहर करें।
सबकी मनोकामानाएं होंगी पूरी
पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न कामनओं की पूर्ति के लिए अलग अलग पदार्थों के शिवलिंग की रचना कर उसके अभिषेक और पूजन का प्रावधान है:
मिट्टी के शिव लिंग (नदी के तट की मिट्टी): सभी कामनाओं की पूर्ति।
कलावा के शिवलिंग: विरोधियों से बचाव।
स्फटिक के शिवलिंग: विवाह, लक्ष्मी प्राप्ति और शांति हेतु।
कपूर और कुमकुम के शिवलिंग: पारिवारिक सुख और शांति।
फूल (सफेद कनेर या कमल): राजनीतिक सफलता।
आटे या फलों के शिवलिंग: संतान प्राप्ति।
पारद शिवलिंग: सभी क्षेत्रों में उन्नति और शांति।
गुड़ और शक्कर: उत्तम स्वास्थ्य।
विभिन्न धान्य (अनाज): आर्थिक और पारिवारिक समृद्धि।
दूब (दुर्वा): अकाल मृत्यु से रक्षा।
जागेश्वर : शिव ने यहां हजारों साल तपस्या की, आदि शंकराचार्य ने कीलित किया शिवलिंग
नव ग्रहों की शांति के लिए करें शिव अभिषेक
आप यदि किसी ग्रह की पीड़ा से ग्रस्त हैं, तो शिवरात्रि के दिन निर्दिष्ट सामग्री से शिवजी का अभिषेक प्रारम्भ करें। अवश्य लाभ होगा।
सूर्य: जल से अभिषेक।
चंद्र: कच्चे दूध में काले तिल डालकर अभिषेक।
मंगल: गिलोय की बूटी के रस से अभिषेक।
बुध: विधारा की बूटी के रस से अभिषेक।
बृहस्पति: कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर अभिषेक।
शुक्र: पंचामृत से अभिषेक।
शनि: गन्ने के रस से अभिषेक।
राहु-केतु: भांग से अभिषेक।
शिव की पूजा से शनिदेव भी होते हैं प्रसन्न
संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही प्रसन्न हों, तो जीवन एकदम सुखमय हो जाता है। सूर्य को जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि शिव के पूजन से सूर्य और शनि दोनों ही प्रसन्न होते हैं।
राशी के अनुसार शिवजी का अभिषेक
महाशिवरात्रि के दिन शिवजी का राशी के अनुसार, एक निश्चित मंत्र का लगभग 5 मिनट उच्चारण करते हुए निश्चित सामग्री से अभिषेक करने से जीवन में आ रही बाधाओं का समाधान होता है और सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है:
राशि मंत्र अभिषेक सामग्री
मेष ऊं ह्रीं अधोक्षजाय साम्ब सदाशिवाय नम: केसर दूध
वृषभ ऊं ह्रीं अम्बिका नाथाय साम्ब सदाशिवाय नम मिश्री युक्त दूध
मिथुन ऊं ह्रीं श्रीकंठाय साम्ब सदाशिवाय नम: गन्ने का रस
कर्क ऊं ह्रीं भक्तवत्सलाय साम्ब सदाशिवाय नम: गाय का दूध
सिंह ऊं ह्रीं पिनाकिने साम्ब सदाशिवाय नम: अनार का रस
कन्या ऊं ह्रीं शशि शेखराय साम्ब सदाशिवाय नम: बेल का शर्बत
तुला ऊं ह्रीं शम्भवाय साम्ब सदाशिवाय नम: नारियल का पानी
वृश्चिक ऊं ह्रीं वामदेवाय साम्ब सदाशिवाय नम: पंचामृत
धनु ऊं ह्रीं सध्योजाताय साम्ब सदाशिवाय नम: गुलाब जल
मकर ऊं ह्रीं नील लोहिताय साम्ब सदाशिवाय नम: काले अंगूर का रस
कुम्भ ऊं ह्रीं कपर्दिने साम्ब सदाशिवाय नम: मोंगरे का इत्र
मीन ऊं ह्रीं विष्णु वल्लभाय साम्ब सदाशिवाय नम: बेलपत्र और दूध
पाताल भुवनेश्वर : यहां हैं शिव और आदि, अनंत, सृजन व प्रलय के रहस्य