प्रदीप सिंह। 
क्यों ना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हत्या या हत्या के षड्यंत्र या आपराधिक लापरवाही का मुकदमा चलाया जाए?

अरविंद केजरीवाल की सरकार पिछले कई दिनों से लगातार ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर हंगामा करती रही कि केंद्र हमको हमारी जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन नहीं दे रहा है। हमारे जो टैंकर आ रहे हैं उन्हें दूसरे राज्यों की सरकारें रोक रही हैं, हमारे टैंकर आने नहीं दिए जा रहे हैं। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट में रोज केजरीवाल सरकार की प्रताड़ना, आलोचना व खिंचाई होती रही कि आपके यहां कोई सिस्टम नहीं है। और क्या-क्या खामी हैं, उस पर बात होती रही।

बात जो दिल्ली सरकार ने छुपाई और हाईकोर्ट भांप नहीं पाया

हाईकोर्ट भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाया कि दरअसल दिल्ली में समस्या ऑक्सीजन सप्लाई की नहीं उसके स्टोरेज और वितरण की है- जिसको दिल्ली सरकार छुपा रही है। बात यहां तक पहुंची कि हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि अगर दिल्ली को उसकी जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन नहीं दी गई तो हम केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू करेंगे। फिर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगाई। मामला अदालत में चलता रहा। मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनियों के प्रतिनिधि अदालत में आकर बताते रहे कि किस तरह से दिल्ली सरकार हर मोर्चे पर नाकाम हो रही है, ऑक्सीजन रखने के लिए कंटेनर उपलब्ध नहीं करा पा रही है, अगर कंटेनर मिल रहे हैं तो दिल्ली में ऑक्सीजन का कहां-कहां वितरण होना है- इसकी कोई जानकारी नहीं है।

33 मौतें और केजरीवाल

शुक्रवार को एक बड़ी बात सामने आई जिससे लगता है कि इतनी बड़ी संकट की घड़ी में कोई नितांत छुटभैया, अत्यंत बेईमान, भ्रष्ट नेता भी ऐसा आपराधिक कृत्य नहीं कर सकता जैसा अरविंद केजरीवाल सरकार ने किया। पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकार मचा था और दिल्ली में ऑक्सीजन ज्यादा थी… फिर भी केजरीवाल और उनकी सरकार यही चिल्लाते रहे कि हमारे पास ऑक्सीजन नहीं है। ऐसे तथ्य सामने आए हैं जो चीख चीख कर कह रहे हैं कि ऑक्सीजन की कमी से जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल में 20 और बत्रा हॉस्पिटल में 13 लोगों की मौत के लिए अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

ऐसी व्याकुलता

तथ्यों के अनुसार 5 मई को केजरीवाल सरकार ने कहा कि दिल्ली के लिए हमें 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन चाहिए। केजरीवाल सरकार लगातार ज्यादा ऑक्सीजन की मांग करती रही और इस बात का रोना रोती रही कि केंद्र हमारा ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाए।
6 मई को दिल्ली सरकार द्वारा जारी ऑक्सीजन बुलेटिन में कहा गया कि हमें अब 976 मीट्रिक टन ऑक्सीजन चाहिए। 500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन से मामला शुरू हुआ था, फिर वह 700 मीट्रिक टन पर आ गया और बाद में 976 मीट्रिक टन तक जा पहुंचा। लेकिन दिल्ली सरकार ने यह नहीं बताया कि हमारे पास स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है और अगर यह ऑक्सीजन आ जाएगी तो हम रखेंगे कहां?

कंपनियों को ऑक्सीजन लौटाई

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केजरीवाल सरकार ने गुपचुप तरीके से ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनियों से कहा कि वे दिल्ली के लिए जारी ऑक्सीजन को आसपास के राज्यों में स्टोर कराएं या अपने पास रखें।
9 मई को दिल्ली सरकार ने लिंडे से- जो देश में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन और वितरण का कार्य करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है- 120 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मांगा और उसमें से 74 टन यह कहकर वापस कर दिया कि हमारे पास रखने की जगह नहीं है। वहीं, पानीपत के मैसर्स एयर लिक्विड से कहा कि हमें दी गई ऑक्सीजन में से 62 मीट्रिक टन अपने पास रखिए क्योंकि हमारे पास स्टोर करने की जगह नहीं है। देश में लिंडे के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंपनी आईएनएक्स से 10 मई को कहा कि हमें दी गई 37 मीट्रिक टन ऑक्सीजन अपने पास रखें क्योंकि हमारे पास इसे रखने की जगह नहीं है। इस तरह उन कंपनियों ने ऑक्सीजन को पानीपत, रुड़की और कई और स्थानों पर रखवाया। इसके अलावा ऑक्सीजन दिल्ली में आ जाए तो उसका वितरण किस प्रकार होगा, किस अस्पताल को कितनी ऑक्सीजन देनी है- इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी।

कोई फोन नहीं उठाता, ऑक्सीजन पहुंचाएं कहां

इन कंपनियों के वकीलों ने हाईकोर्ट में खड़े होकर साफ-साफ कहा कि ऑक्सीजन आने के बाद उसके वितरण की कोई योजना या व्यवस्था दिल्ली सरकार के पास नहीं है। हम इस बाबत दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारियों को फोन करते रहते हैं लेकिन न तो उनका फोन उठता है, न कोई जवाब आता है। ऐसे में हम ऑक्सीजन लेकर कहां जाएं? ड्राइवर यहां-वहां भटकता रहता है।

सुनते ही हाथ पांव फूल गए केजरीवाल के

यह सब चलता रहा और उधर अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी बनी रही। कोई अस्पताल कहता रहा कि हमारे पास 4 *घंटे की ऑक्सीजन बची है, किसी ने कहा हमारे पास 2 घंटे की बची है, कहीं और भी कम समय की थी। 33 मरीजों की तो ऑक्सीजन के बिना जान ही चली गई। इस सारे हाल को देखते हुए केंद्र सरकार को और उसके अधिकारियों को यह अंदाजा होने लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है। आखिर इतनी ऑक्सीजन आने के बावजूद दिल्ली में ऑक्सीजन को लेकर इतना हाहाकार क्यों मचा हुआ है? सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दिल्ली में ऑक्सीजन का ऑडिट करा दिया जाए कि कितनी ऑक्सीजन आई, कितनी जरूरत थी और कितनी वितरित हुई। यह सुनते ही अरविंद केजरीवाल के हाथ पांव फूल गए। उनको अंदाजा हो गया कि यह ऑडिट सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगा और उसका जो भी नतीजा आएगा वह उन्हें भुगतना पड़ेगा। वह बचकर नहीं निकल पाएंगे। वह सुप्रीम कोर्ट पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप भी नहीं लगा सकेंगे क्योंकि यह आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच का मामला नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली सरकार के बीच का मामला है। उधर सुप्रीम कोर्ट ने ऑक्सीजन के ऑडिट के लिए एक कमेटी बना दी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आते ही दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी का रोना बंद हो गया। कोई हाहाकार नहीं, कहीं से खबर नहीं आ रही कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी है। इतना ही नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी और कहा कि दिल्ली के पास आवश्यकता से अतिरिक्त ऑक्सीजन है जिसे आप आस-पड़ोस के उन राज्यों को दे दीजिए जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है। हमें तो इतनी ऑक्सीजन चाहिए ही नहीं।

वो मृत्यु थी या हत्या

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सवाल उठता है कि तो फिर अभी तक क्यों रो रहे थे? क्यों इतना हल्ला मचा रहे थे? दो अस्पतालों में जो 33 लोग बिना ऑक्सीजन के मरे, जो लोग ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटक रहे थे, जिन्हें ऑक्सीजन का एक एक सिलेंडर हजारों रुपए देकर खरीदना पड़ा, अस्पताल के ऑक्सीजन न होने की बात बताने पर जो लोग अपने मरीजों को घर लेकर चले गए और घर पर उन मरीजों की मौत हो गई उसका जिम्मेदार कौन है? मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग के बारे में कहा था कि चुनाव कराते समय आपने कोरोना प्रोटोकॉल का पालन ठीक से नहीं किया, क्यों न आप पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए। ऐसे में यह सवाल सहज ही उठता है कि अब क्यों न अरविंद केजरीवाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाए।

इस बार खानापूरी नहीं न्याय चाहिए

हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जो ऑडिट हो रहा है वह पूरा होना चाहिए, उसकी रिपोर्ट आनी चाहिए और इस बार केजरीवाल को नहीं बचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश और बिहार से दिल्ली आए लाखों मजदूरों- कामगारों के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया था। पहले अफवाहें फैलाकर दहशत पैदा की, फिर डीटीसी की सैकड़ों बसें लगाकर उन गरीबों को दिल्ली बॉर्डर पर बेसहारा मरने के लिए छोड़ दिया। उनके खाने की भी कोई व्यवस्था नहीं की। ये वो मजदूर थे जो दिल्ली को बनाते हैं, चलाते हैं। रक्त बनकर दिल्ली की धमनियों में बहते हैं और दिल्ली के विकास में सहायक हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एक जांच बिठाई कि कैसे और किसके आदेश पर डीटीसी बसों का इंतजाम हुआ? हमें नहीं मालूम कि इस जांच का क्या हुआ… या वह कहां तक पहुंची… आगे बढ़ी या नहीं बढ़ी! लेकिन इस बार तो निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल को इस बात का खामियाजा भुगतना चाहिए। जिस दिल्ली के लोगों ने उनको सिर माथे पर बिठाया- उस दिल्ली के लोगों की जान से खिलवाड़- उनकी जान को इतना सस्ता बना देना- यह किसी भी सरकार है या नेता के लिए माफी के काबिल नहीं है। प्रयास में कुछ कमी रह जाए- समझ में आता है। अचानक जिस तरीके से मरीज बढ़े और ऑक्सीजन की मांग बढ़ी उसकी व्यवस्था न कर पाना भी समझ में आता है- क्योंकि व्यवस्था करने में समय लगता है। लेकिन ऑक्सीजन की व्यवस्था होते हुए आप उसे उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं और यह बता भी नहीं रहे हैं कि आपके पास स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन का कोई सिस्टम नहीं है- यह निश्चित तौर पर आपराधिक कृत्य है। इस मामले में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ निश्चित रूप से एफआईआआर दर्ज होनी चाहिए। अगर इस बात के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं कि अरविंद केजरीवाल दोषी हैं- जैसा कि प्रथम दृष्टया लग रहा है- तो उन पर मुकदमा चलना चाहिए।