सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के झगड़े के आगे गांधी परिवार बेबस।
प्रदीप सिंह।
कर्नाटक में विवाद की शुरुआत तो तभी हो गई थी जब विधानसभा चुनाव का नतीजा आया था। पहले ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद सिद्धारमैया और अगले ढाई साल के लिए यह पद डीके शिवकुमार को देने का फार्मूला देकर कांग्रेस हाईकमान या कहें गांधी परिवार ने इस विवाद को टाल दिया था। नवंबर में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे हो चुके हैं। अब डीके शिवकुमार की निराशा बढ़ रही है क्योंकि मीडिया के पूछे जाने पर सिद्धारमैया बार-बार यही कह रहे हैं कि वह अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। उधर डीके शिवकुमार ने यह बात सार्वजनिक कर दी कि 2023 में चुनाव नतीजे आने के बाद एक समझौता हुआ था। उसमें छह लोग थे। हालांकि नाम उन्होंने नहीं बताया। उसमें ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय हुआ था। अब हाईकमान को उसे लागू करना चाहिए।

डीके शिवकुमार अब ऐसा लगता है कि समझौता करने के मूड में नहीं हैं और सिद्धारमैया को यह समझ में आ रहा है कि उनके लिए पद पर बने रहना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि हाईकमान खुलकर उनका साथ नहीं दे रहा है। तो मुद्दा है कि मुख्यमंत्री बदलेगा कि नहीं? वैसे डीके शिवकुमार की परोक्ष रूप से भाजपा ने मदद कर दी है। 8 दिसंबर से कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। बीजेपी ने घोषणा की है कि वह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी। अब अविश्वास प्रस्ताव डीके शिवकुमार को सरकार गिरा देने का डर पैदा करने का मौका देता है। अगर डीके शिवकुमार के विधायक अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा के समर्थन में वोट दे देते हैं तो फिर सरकार का गिरना तय है। तो अब सरकार बचाएं, सिद्धारमैया को बचाएं या डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाएं, यह तीन प्रश्न गांधी परिवार के सामने हैं और तीनों में से किसी का उत्तर उनके पास नहीं है। इस तरह के प्रश्नों का जवाब देने के लिए आपके पास फैसला लेने और उसको लागू करने की ताकत होनी चाहिए,जो गांधी परिवार के पास नहीं है। वह समय चला गया जब कांग्रेस किसी को मुख्यमंत्री बना देती थी और अगले चुनाव में फिर जीत जाती थी।

कर्नाटक कांग्रेस में इस सिर फुटौव्वल के कारण भारतीय जनता पार्टी सबसे अच्छी स्थिति में है। अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो डीके शिवकुमार उसके बाद गुस्से में जो करेंगे वह बीजेपी के लिए फायदेमंद है। सिद्धारमैया को हटा देते हैं तो भी फायदेमंद है। कर्नाटक में इन दोनों नेताओं के झगड़े से सरकार का कामकाज ठप हो गया है। उसका सीधा असर लोगों पर पड़ रहा है। तो गांधी परिवार को केवल मुख्यमंत्री के बारे में फैसला नहीं करना है। कर्नाटक की आगे की कांग्रेस की राजनीति के बारे में भी फैसला करना है। सिद्धारमैया घोषणा कर चुके हैं कि वह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे, जबकि डीके शिवकुमार का मालूम है कि मुख्यमंत्री बनने का यह उनके लिए स्वर्णिम अवसर है। अगर इस बार मुख्यमंत्री बन गए तो बन गए वरना जीवन में कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। इसलिए वह कोई समझौता करने के मूड में नहीं हैं। उनका सिर्फ एक ही कहना है कि आपने वादा किया था, अब निभाइए। आपके वादे के कारण मैं ढाई साल चुप रहा। मैंने गांधी परिवार के लिए इतना त्याग किया। मैं जेल भी गया,पार्टी की हर क्राइसिस में मदद की। उसके बदले में मुझे क्या मिल रहा है? और मुझे कुछ नहीं मिल रहा है तो मैं क्यों साथ दूं? डी के शिवकुमार अगर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे तो आप मानकर चलिए उनको यह सरकार गिराने में जरा भी संकोच नहीं होगा। उधर सिद्धारमैया ने भी यह कहकर कि हाईकमान चाहेगा तो डी के शिव कुमार मुख्यमंत्री बन जाएंगे, एक तरह से अपनी कमजोरी तो स्वीकार की ही है साथ ही हाईकमान को चुनौती भी दी है कि अगर हिम्मत है तो डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाकर दिखाओ। सिद्धारमैया अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। जिस दिन हाईकमान यह फैसला करेगा कि वे इस्तीफा दें उस दिन आपको सिद्धारमैया का असली रूप दिखाई देगा।

वैसे इस पूरे खेल में पीछे से कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे भी खेल रहे हैं। वे कहते घूम रहे हैं कि सब कुछ हाईकमान तय करेगा। कांग्रेस अध्यक्ष अगर हाईकमान में शामिल नहीं है तो फिर कौन है? खरगे तीन बार मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए। अब वे अपने बेटे प्रियांक खरगे का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं। प्रियांक सिद्धरमैया सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस की भविष्य की राजनीति की दिशा क्या होगी,यह प्रियांक खरगे बता रहे हैं। लेकिन भविष्य तो तब होगा जब वर्तमान बचेगा। गांधी परिवार इस मुद्दे को जितना टालता जाएगा, उतना ज्यादा नुकसान होता जाएगा। फिर ऐसा भी समय आ सकता है कि लोग विरोध में खड़े हो जाए। कुल मिलाकर कर्नाटक में गांधी परिवार बुरी तरह से फंसा हुआ है। किसी भी पक्ष में फैसला ले नुकसान होना तय है। अभी गांधी परिवार शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन घुसा कर बैठा हुआ है कि शायद यह तूफान निकल जाए। शायद दोनों आपस में समझौता कर लें। ऐसी स्थिति में कर्नाटक में मकर संक्रांति तक माना जा रहा है कि कोई न कोई क्रांति जरूर होने वाली है। अब उसका स्वरूप क्या होगा यह उसी समय पता चलेगा।
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