सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के झगड़े के आगे गांधी परिवार बेबस।

प्रदीप सिंह।
कर्नाटक के संबंध में एक प्रश्न हवा में तैर रहा है कि क्या मकर संक्रांति तक कर्नाटक में क्रांति होगी? मकर संक्रांति जैसे-जैसे नजदीक आ रही है इसकी संभावना बढ़ती जा रही है। मंगलवार को राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दूसरी बार नाश्ते पर मिले। मुख्यमंत्री शिव कुमार के घर आए तो उन्हें इडली,डोसा,उपमा और नट्टी चिकन कॉफी के साथ सर्व किया गया। अब इसका स्वाद जैसा भी रहा हो लेकिन राजनीतिक स्वाद दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है।
Courtesy: NewsBytes

कर्नाटक में विवाद की शुरुआत तो तभी हो गई थी जब विधानसभा चुनाव का नतीजा आया था। पहले ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद सिद्धारमैया और अगले ढाई साल के लिए यह पद डीके शिवकुमार को देने का फार्मूला देकर कांग्रेस हाईकमान या कहें गांधी परिवार ने इस विवाद को टाल दिया था। नवंबर में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे हो चुके हैं। अब डीके शिवकुमार की निराशा बढ़ रही है क्योंकि मीडिया के पूछे जाने पर सिद्धारमैया बार-बार यही कह रहे हैं कि वह अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। उधर डीके शिवकुमार ने यह बात सार्वजनिक कर दी कि 2023 में चुनाव नतीजे आने के बाद एक समझौता हुआ था। उसमें छह लोग थे। हालांकि नाम उन्होंने नहीं बताया। उसमें ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय हुआ था। अब हाईकमान को उसे लागू करना चाहिए।

मंगलवार के ब्रेकफास्ट के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हालांकि पहली बार कहा कि अगर हाईकमान चाहेगा तो डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री हो जाएंगे। इसका मतलब उन पर दबाव बढ़ गया है। दूसरी बात यह है कि दोनों के बीच दो ब्रेकफास्ट मीटिंग तो हो गई लेकिन उससे कोई रास्ता निकल नहीं रहा है। ऐसा इसलिए है कि हाईकमान यानी गांधी परिवार सोनिया गांधी,राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा निर्णय लेने से भाग रहे हैं। बल्कि कहें कि समस्या का सामना करने से भाग रहे हैं। इनको समस्या का सामना करना होता तो इनमें से कोई या इनका प्रतिनिधि या तो बेंगलुरु जाता या सिद्धारमैया और शिवकुमार को दिल्ली बुलाया जाता। दोनों नेताओं से जब पूछा गया कि हाईकमान से मिलेंगे तो उन्होंने कहा, जब समय देंगे तो मिलने जाएंगे। यानी समय नहीं मिल रहा है। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जिसकी सिर्फ तीन राज्यों में सरकार बची है और उनमें सबसे बड़ा राज्य कर्नाटक है। वहां के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि पार्टी हाईकमान उन्हें मिलने का समय नहीं दे रहा है। और ऐसा तब है जब पार्टी और सरकार दोनों क्राइसिस में हैं। पार्टी टूट सकती है और सरकार गिर सकती है।
Courtesy: navbharatlive.com

डीके शिवकुमार अब ऐसा लगता है कि समझौता करने के मूड में नहीं हैं और सिद्धारमैया को यह समझ में आ रहा है कि उनके लिए पद पर बने रहना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि हाईकमान खुलकर उनका साथ नहीं दे रहा है। तो मुद्दा है कि मुख्यमंत्री बदलेगा कि नहीं? वैसे डीके शिवकुमार की परोक्ष रूप से भाजपा ने मदद कर दी है। 8 दिसंबर से कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। बीजेपी ने घोषणा की है कि वह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी। अब अविश्वास प्रस्ताव डीके शिवकुमार को सरकार गिरा देने का डर पैदा करने का मौका देता है। अगर डीके शिवकुमार के विधायक अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा के समर्थन में वोट दे देते हैं तो फिर सरकार का गिरना तय है। तो अब सरकार बचाएं, सिद्धारमैया को बचाएं या डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाएं, यह तीन प्रश्न गांधी परिवार के सामने हैं और तीनों में से किसी का उत्तर उनके पास नहीं है। इस तरह के प्रश्नों का जवाब देने के लिए आपके पास फैसला लेने और उसको लागू करने की ताकत होनी चाहिए,जो गांधी परिवार के पास नहीं है। वह समय चला गया जब कांग्रेस किसी को मुख्यमंत्री बना देती थी और अगले चुनाव में फिर जीत जाती थी।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अहिंदा यानी दलित,जनजातीय समाज के लोग,मुसलमान और पिछड़ा वर्ग की राजनीति करते हैं। यह जनाधार उनकी और कांग्रेस की ताकत है। जबकि डीके शिवकुमार जिस वोक्कालिगा समाज की राजनीति करते हैं, उसका प्रभाव बहुत कम है। हालांकि शिवकुमार का महत्व इस वजह से है कि वे गांधी परिवार का एटीएम हैं।
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया का जो झगड़ा है यह केवल मुख्यमंत्री कुर्सी तक सीमित नहीं रहेगा। यह कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस का भविष्य भी तय करेगा। अगर ये दोनों नेता आपस में समझौता नहीं करते हैं और अलग हो जाते हैं या एक असंतुष्ट हो जाता है तो मानकर चलिए कि कर्नाटक में कांग्रेस की नाव डूबने वाली है। इन दोनों नेताओं के बयान पर ध्यान दें तो अभी तक उन्हें दिल्ली से हाईकमान का कोई बुलावा नहीं आया है। वे बुलावे का इंतजार कर रहे हैं और दिल्ली में सोनिया गांधी,राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा इंतजार कर रहे हैं कि कुछ ऐसा हो जाए कि ये लोग दिल्ली आएं ही न। तो एक मिलने के लिए आतुर है और दूसरा मिलने से बचना चाह रहा है। कांग्रेस पार्टी की यह हालत हो गई है और उस राज्य में जहां उसकी सरकार है। आप मानकर चलिए कर्नाटक की सरकार गिरी तो अगला नंबर हिमाचल प्रदेश का होगा।
Courtesy: Oneindia Hindi

कर्नाटक कांग्रेस में इस सिर फुटौव्वल के कारण भारतीय जनता पार्टी सबसे अच्छी स्थिति में है। अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो डीके शिवकुमार उसके बाद गुस्से में जो करेंगे वह बीजेपी के लिए फायदेमंद है। सिद्धारमैया को हटा देते हैं तो भी फायदेमंद है। कर्नाटक में इन दोनों नेताओं के झगड़े से सरकार का कामकाज ठप हो गया है। उसका सीधा असर लोगों पर पड़ रहा है। तो गांधी परिवार को केवल मुख्यमंत्री के बारे में फैसला नहीं करना है। कर्नाटक की आगे की कांग्रेस की राजनीति के बारे में भी फैसला करना है। सिद्धारमैया घोषणा कर चुके हैं कि वह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे, जबकि डीके शिवकुमार का मालूम है कि मुख्यमंत्री बनने का यह उनके लिए स्वर्णिम अवसर है। अगर इस बार मुख्यमंत्री बन गए तो बन गए वरना जीवन में कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। इसलिए वह कोई समझौता करने के मूड में नहीं हैं। उनका सिर्फ एक ही कहना है कि आपने वादा किया था, अब निभाइए। आपके वादे के कारण मैं ढाई साल चुप रहा। मैंने गांधी परिवार के लिए इतना त्याग किया। मैं जेल भी गया,पार्टी की हर क्राइसिस में मदद की। उसके बदले में मुझे क्या मिल रहा है? और मुझे कुछ नहीं मिल रहा है तो मैं क्यों साथ दूं? डी के शिवकुमार अगर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे तो आप मानकर चलिए उनको यह सरकार गिराने में जरा भी संकोच नहीं होगा। उधर सिद्धारमैया ने भी यह कहकर कि हाईकमान चाहेगा तो डी के शिव कुमार मुख्यमंत्री बन जाएंगे, एक तरह से अपनी कमजोरी तो स्वीकार की ही है साथ ही हाईकमान को चुनौती भी दी है कि अगर हिम्मत है तो डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाकर दिखाओ। सिद्धारमैया अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। जिस दिन हाईकमान यह फैसला करेगा कि वे इस्तीफा दें उस दिन आपको सिद्धारमैया का असली रूप दिखाई देगा।

Courtesy: Deshbandhu

वैसे इस पूरे खेल में पीछे से कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे भी खेल रहे हैं। वे कहते घूम रहे हैं कि सब कुछ हाईकमान तय करेगा। कांग्रेस अध्यक्ष अगर हाईकमान में शामिल नहीं है तो फिर कौन है? खरगे तीन बार मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए। अब वे अपने बेटे प्रियांक खरगे का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं। प्रियांक सिद्धरमैया सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस की भविष्य की राजनीति की दिशा क्या होगी,यह प्रियांक खरगे बता रहे हैं। लेकिन भविष्य तो तब होगा जब वर्तमान बचेगा। गांधी परिवार इस मुद्दे को जितना टालता जाएगा, उतना ज्यादा नुकसान होता जाएगा। फिर ऐसा भी समय आ सकता है कि लोग विरोध में खड़े हो जाए। कुल मिलाकर कर्नाटक में गांधी परिवार बुरी तरह से फंसा हुआ है। किसी भी पक्ष में फैसला ले नुकसान होना तय है। अभी गांधी परिवार शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन घुसा कर बैठा हुआ है कि शायद यह तूफान निकल जाए। शायद दोनों आपस में समझौता कर लें। ऐसी स्थिति में कर्नाटक में मकर संक्रांति तक माना जा रहा है कि कोई न कोई क्रांति जरूर होने वाली है। अब उसका स्वरूप क्या होगा यह उसी समय पता चलेगा।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं) 

</div>