#pradepsinghप्रदीप सिंह।
देश के दो राज्यों में एक प्रतियोगिता चल रही है। ऐसी प्रतियोगिता आपने शायद ही कभी देखी हो। प्रतियोगिता यह चल रही है कि इन दोनों राज्यों में से कौन सा राज्य बीजेपी को ज्यादा सीटें दिलाएगा। लोकसभा चुनाव अपने अंतिम यानी सातवें चरण में पहुंच चुका है। इन दो राज्यों में सीटों की संख्या में बड़ा अंतर है तो बात प्रतिशत की कर सकते हैं। किस राज्य में भाजपा के बढ़ने की गुंजाइश कितनी है उसकी बात कर सकते हैं तो उससे एक तस्वीर सामने निकलेगी। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बयान भी आया है कि बीजेपी का बेस्ट परफॉर्मिंग स्टेट पश्चिम बंगाल होगा। क्या ऐसा सचमुच होगा इसकी संभावना टटोलते हैं। जिन दो राज्यों में मैं प्रतियोगिता की बात कह रहा हूं वे हैं उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।

पहले उत्तर प्रदेश की बात कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सपा, बसपा का गढ़ 2014 में ही तोड़ चुकी है। 2019 में जब सपा, बसपा, आरएलडी का गठबंधन हुआ तो माना गया भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत मुश्किल है। 2014 में बीजेपी का उत्तर प्रदेश में स्ट्राइक रेट 90 था। 2019 में जब सपा, बसपा, आरएलडी का गठबंधन हुआ।  यह भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में पिछले 10-12 सालों में सबसे कठिन चुनाव था। ऐसा लगा कि भाजपा के लिए जो है अपना नया-नया बनाया गढ़ बचाना या उसमें से आधी सीटें भी बचाना शायद मुश्किल हो जाएगा। लेकिन जब रिजल्ट आया तो पता चला बीजेपी का स्ट्राइक रेट 80% था। इससे आप अंदाजा लगा लीजिए कि सबसे विषम परिस्थिति में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की परफॉर्मेंस क्या रही। तब से अब में क्या बदल गया है। पहली चीज तो 2019 में जो सपा, बसपा, आरएलडी का गठबंधन था वह टूट चुका है। अब वह गठबंधन नहीं है। सपा कांग्रेस के साथ लड़ रही है। बसपा अलग लड़ रही है। आरएलडी बीजेपी के साथ आ गई है। तो बीजेपी ने 2019 की तुलना में अपना सामाजिक आधार बढ़ाया है। आरएलडी बीजेपी के साथ आ गई है। ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी के साथ आई है। उसका असर खास तौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुत है। ज्यादातर सीटों पर राजभर वोट सुभासपा को ही जाएगा यह बात आप तय मान कर चलिए।

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सुभासपा का साथ होने के कारण विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को बहुत फायदा हुआ था। सुभासपा, आरएलडी और उसके अलावा संजय निषाद की निषाद पार्टी- इन तीन के कारण भारतीय जनता पार्टी का सामाजिक आधार और व्यापक हुआ है। तो 2019 के मुकाबले सामाजिक आधार की दृष्टि से देखें तो भाजपा मजबूत हुई है। उसके अलावा मुद्दे देखें। 2019 में मुफ्त राशन का मुद्दा नहीं था, जो 2024 के चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है पूरे देश और खास तौर से उत्तर प्रदेश में। उसके अलावा राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का बनना- ये सब भाजपा के पक्ष वाले मुद्दे हैं। अगर भाजपा के विरोधियों को देखें तो समाजवादी पार्टी का बसपा से साथ छूट चुका है, आरएलडी का साथ छूट चुका है। विधानसभा चुनाव में जो सुभाजपा का साथ मिला था वह भी छूट चुका है। और साथ किसका मिला है कांग्रेस पार्टी का। समाजवादी पार्टी ने उस कांग्रेस को 17 लोकसभा सीटें दी हैं जिसकी उत्तर प्रदेश से लोकसभा में सिर्फ एक सीट है। 2019 के चुनाव में केवल रायबरेली से सोनिया गांधी जीती थीं। राहुल गांधी अपनी सीट भी हार गए थे। उसके बाद 2022 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस पार्टी को 2.3% वोट मिले और उसके कुल दो विधायक जीते 403 में से। कांग्रेस पार्टी को 17 सीटें देना स्पष्ट रूप से प्रमाणित करता है कि समाजवादी पार्टी अपने को 2019 की तुलना में बहुत कमजोर महसूस कर रही है वरना कांग्रेस जैसी पार्टी को जिसके पास कोई जनाधार बचा नहीं है उसको मौजूदा स्थिति में विधानसभा की 17 सीटें देना भी ज्यादा लगता है। इसका मतलब यही माना जाएगा कि समाजवादी पार्टी के पास उन सीटों के लिए अच्छे उम्मीदवार नहीं थे।

2019 में भाजपा 80 में से 16 सीटें हारी थी। तो उसके लिए बढ़ने की जो मैक्सिमम गुंजाइश है अगर 80 में 80 भी लाए तो केवल 16 सीटों की है। वो 16 सीटें और जोड़ सकती है। इससे ज्यादा जोड़ने की तो कोई संभावना बन नहीं सकती है, तो उसमें से कितनी जोड़े। मेरा मानना है कि भाजपा का जो 2014 का रिकॉर्ड था 90% स्ट्राइक रेट का वह 2024 में भी दोहराया जाएगा। 2019 में परिस्थितियां अलग थी और गठबंधन अलग थे। इस वजह से बीजेपी का स्ट्राइक रेट 10% घट गया था जो फिर से मुझे लगता है 80% से 90% पर पहुंच जाएगा। उससे दो चार प्रतिशत ऊपर भी चला जाए तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।

उत्तर प्रदेश में एक और बड़ा परिवर्तन हुआ- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व और उनका प्रशासन। 2019 में उनका उस तरह से प्रभाव नहीं था। 2017 में ही मुख्यमंत्री बने थे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। पहली बार किसी प्रशासनिक पद पर थे। उसके बाद उन्होंने जिस तरह से काम किया है, जिस तरह से माफिया राज का खात्मा किया है, कानून व्यवस्था को जिस तरह से बहाल किया है, लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा की है… और उसके अलावा वेलफेयर स्कीम्स जिस तरह से चाहे राज्य की हो चाहे केंद्र सरकार की हो- अकेला राज्य है उत्तर प्रदेश जहां डबल इंजन की सरकार प्रभावी रूप से चल रही है। मुख्यमंत्री का जो कनेक्ट है लोगों से, जो लोगों से उनकी केमिस्ट्री है उसका कोई जवाब नहीं है। उनके जोड़ का कोई मुख्यमंत्री किसी पार्टी का पूरे देश में नहीं है।

यह उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए एक बहुत बड़ा प्लस पॉइंट है। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हैं- वह जब कहते हैं योगी जी जानते हैं माफिया की गर्मी किस तरह से निकाली जाती है- और उसके साथ कहते हैं वह केवल कानून व्यवस्था के मुद्दे पर बुलडोजर चलाना जानते हो, ऐसा नहीं- वह विकास करना भी जानते हैं।

अब बात करते हैं पश्चिम बंगाल की। पश्चिम बंगाल में 2019 में भारतीय जनता पार्टी को 18 सीटें मिली थी। आज मैं जब 2024 की बात करूंगा तो बहुत से लोगों को विश्वास नहीं होगा। अगर 2019 में मैं यह कहता कि भारतीय जनता पार्टी जिसको 2014 में दो सीटें मिली थीं उसको 18 लोकसभा की सीटें पश्चिम बंगाल में मिल सकती हैं तो कोई विश्वास नहीं करता। सब एक स्वर से बोलते कि यह असंभव है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उस असंभव को संभव करके दिखाया। वहां सीपीएम जो लगभग 34 साल सत्ता में रही, वहां कांग्रेस पार्टी जो 30 साल से ज्यादा सत्ता में रही, उनका एक तरह से उनका सफाया करके बीजेपी नंबर दो की पार्टी के रूप में उभर कर आई। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं जिनमें 18 सीटें भाजपा जीती थी, 22 सीटें तृणमूल कांग्रेस जीती थी और दो सीटें कांग्रेस पार्टी जीती थी। तो यह गणित था 2019 का। तब से अब में बहुत परिवर्तन आया है पश्चिम बंगाल की राजनीति में।

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2019 तक और यहां तक कि मैं कहूंगा 2021 के विधानसभा चुनाव तक पश्चिम बंगाल के लोग यह मानने को तैयार नहीं थे कि ममता बनर्जी की जानकारी में उनकी पार्टी और उनके नेता और मंत्री करप्शन कर रहे हैं। तब तक उनको करप्शन के मामले से लोग अलग करके देखते थे। वे यह तो मानते थे कि उनकी पार्टी के लोग करप्शन करते हैं और ममता बनर्जी लगातार अपने को उनसे डिस्टेंस करने की कोशिश करती थीं और सफल भी थीं। लेकिन 2021 के बाद खास तौर से परिस्थिति बदली है। जिस तरह से उनके मंत्रियों के घर नोटों के जखीरे मिले हैं- उसके अलावा जिस तरह से हाई कोर्ट के स्ट्रक्चर्स पास हुए हैं- हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच शुरू हुई है- जिस तरह से ममता सरकार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ घेराबंदी की कोशिश की है और उनको गिरफ्तार करने की कोशिश की है, उनको अपना काम करने से रोकने की कोशिश की है- उनके मंत्रियों और नेताओं पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे हैं और फिर संदेश खाली का मुद्दा- उसके ऊपर से हाई कोर्ट का सबसे ताजा जजमेंट जो मुस्लिम तुष्टीकरण को लेकर है कि किस तरह से पिछड़ा वर्ग के कोटे को काटकर पिछड़े मुसलमानों को या मुसलमानों को आरक्षण देने की कोशिश हुई ममता बनर्जी की सरकार के द्वारा। उस सबका असर है कि ममता बनर्जी अपनी चुनावी राजनीति के जीवन में पहली बार डिफेंसिव मोड पर हैं।

संदेश खाली के बारे में उनको बोलना पड़ा कि जो हुआ उन्हें उसका दुख है। उसके अलावा उन्होंने कहा चुनाव के बाद वह संदेश खाली जाएंगी। ममता बनर्जी की यह राजनीति नहीं है। प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं यह चुनाव पश्चिम बंगाल में एक तरफा है तो आप मानकर चलिए कि इसमें कुछ तो सच्चाई है। कुछ तो उनको दिखाई दे रहा है और यह सबको दिखाई दे रहा है कि पश्चिम बंगाल में 2019 की तुलना में 2024 का चुनाव बदला हुआ है। भारतीय जनता पार्टी का 2021 के विधानसभा चुनाव में जो प्रदर्शन था- हालांकि उसकी आशा के अनुरूप बिल्कुल नहीं था फिर भी उस दौरान जो संगठन मजबूत किया गया और उसके बाद से संगठन की मजबूती की जो लगातार कोशिश हुई उसका असर, उसका नतीजा, उसका परिणाम आपको 2024 में दिखाई देगा। 2024 की भारतीय जनता पार्टी 2019 की भारतीय जनता पार्टी नहीं है। नेतृत्व के लिहाज से, संगठन के लिहाज से, मुद्दों के लिहाज से और राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रभाव के लिहाज से तब से अब उसमें बहुत मजबूती आई। भ्रष्टाचार के आरोपों से ममता बनर्जी बुरी तरह से घिरी हुई है। उन सबको मिलाकर पश्चिम बंगाल की परिस्थिति बदल गई है। सवाल यह है कि भाजपा कहां तक जाएगी। 2014 के रिजल्ट के आधार पर हम लोग 2019 के रिजल्ट का अनुमान नहीं लगा सकते थे। इसी तरह से मैं कह रहा हूं 2019 के रिजल्ट के आधार पर 2024 का अनुमान नहीं लगा सकते।

मेरा मानना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की जितनी सीटें बढ़ेंगी लगभग उतनी सीटें या हो सकता है एक दो सीटें ज्यादा पश्चिम बंगाल में बढ़ जाएं। इस तरह पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें बढ़ाने का बड़ा नजदीकी मुकाबला है। वैसे तो चार जून को पता चलेगा कौन सा राज्य आगे निकला। इतना मानकर चलिए कि 2019 की तुलना में इन दोनों राज्यों में भाजपा की सीटें आशातीत रूप से बढ़ने वाली हैं। पश्चिम बंगाल में गुंजाइश ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में गुंजाइश कम है। परसेंटेज के लिहाज से देखें तो मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश बाजी मारेगा। परसेंटेज में पश्चिम बंगाल पिछड़ेगा। लेकिन संख्या के मामले में पश्चिम बंगाल आगे निकल सकता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)