पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष

ओशो।
एक तरह से यह संकट-स्थिति अच्छी है क्योंकि वह लोगों को चुनाव करने के लिए बाध्य करेगी: तुम मरना चाहते या तुम एक नया जीवन जीना चाहते हो? 

क्षतिपूर्ति हो सकती है। तो फिर अतीत के प्रति मर जाओ, तुम्हें अतीत की विरासत की भांति जो भी मिला है उसे त्याग दो और नई शुरुआत करो। मानो तुम इस धरती पर पहली बार अवतरित हुए हो। प्रकृति के साथ दुश्मन की तरह नहीं, दोस्त की तरह काम करना शुरू करो; और पर्यावरण फिर से एक सावयव एकता की भांति काम करने लगेगा।

विषाक्त होती जा रही धरती

God- A Stigma | Quotes, Osho, Ego

पृथ्वी कहती है, मुझ से कुछ लो तो कुछ वापस भी करो। हम पृथ्वी से केवल लेते हैं, उसे वापस कुछ नहीं लौटाते। प्रकृति एक पूर्ण चक्र है : एक हाथ से लो, तो दूसरे हाथ से दो। इस वर्तुल को तोड़ना ठीक नहीं है। लेकिन हम यही कर रहे हैं -सिर्फ लिये चले जा रहे हैं। इसीलिए सारे स्रोत सूखते जा रहे हैं। धरती विषाक्त होती जा रही है। नदियां प्रदूषित हो रही हैं, तालाब मर रहे हैं। हम पृथ्वी से अपना रिश्ता इस तरह से बिगाड़ रहे हैं कि भविष्य में इस पर रह नहीं पाएंगे।

प्रकृति पर विजय चाहिए विज्ञान को

आधुनिक विज्ञान का रवैया जीतने वाला है। वह सोचता है कि धरती और आकाश से दोस्ती कैसी, उस पर तो बस फतह हासिल करनी है। हमने कुदरत का एक करिश्मा तोड़ा, किसी नदी का मुहाना मोड़ दिया, किसी पहाड़ का कुछ हिस्सा काट लिया, किसी प्रयोगशाला में दो-चार बूँद पानी बना लिया …और बस प्रकृति पर विजय हासिल कर ली।

एक दिन जीवन मर जाएगा प्लास्टिक से

Plastic pollution - Wikipedia

प्लास्टिक को देखो। उसे बना कर सोचा, प्रकृति पर विजय हासिल कर ली। कमाल है, न जलता है, न गीला होता है, न जंग लगती है – महान उपलब्धि है। उपयोग के बाद उसे फेंक देना कितना सुविधाजनक है। लेकिन मिट्टी प्लास्टिक को आत्मसात नहीं करती। एक वृक्ष जमीन से उगता है। मनुष्य जमीन से उगता है। तुम वृक्ष को या मनुष्य को वापस जमीन में डाल दो तो वह अपने मूल तत्वों में विलीन हो जाते हैं। लेकिन प्लास्टिक को आदमी ने बनाया है। उसे जमीन में गाड़ दो और बरसों बाद खोदो तो वैसा का वैसा ही पाओगे।
अमेरिका के आसपास समुद्र का पूरा तट प्लास्टिक के कचरों से भरा पड़ा है। और उससे लाखों मछलियां मर जाती हैं, उसने पानी को जहरीला कर दिया है। पानी की सजीवता मर गई। और यह खतरा बढ़ता जा रहा है कि दिन-ब-दिन और अधिक प्लास्टिक फेंका जाएगा और पूरा जीवन मर जाएगा।

पूर्णता को नहीं जान सकते सीमित दृष्टि से

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पर्यावरण का अर्थ है संपूर्ण का विचार करना। भारतीय मनीषा हमेशा ‘पूर्ण’ का विचार करती है। पूर्णता का अहसास ही पर्यावरण है। सीमित दृष्टि पूर्णता का विचार नहीं कर सकती। एक बढ़ई सिर्फ पेड़ के बारे में सोचता है। उसे लकड़ी की जानकारी है, पेड़ की और कोई उपयोगिता मालूम नहीं है। वे किस तरह बादलों को और बारिश को आकर्षित करते हैं। वे किस तरह मिट्टी को बांध कर रखते हैं। उसे तो अपनी लकड़ी से मतलब है।
वैसी ही सीमित सोच ले कर हम अपने जंगलों को काटते चले गए और अब भुगत रहे हैं। अब आक्सीजन की कमी महसूस हो रही है। वृक्ष न होने से पूरा वातावरण ही अस्तव्यस्त होता जा रहा है। मौसम का क्रम बदलने लगा है और फेफड़ों की बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं।

जब पक्षी विहीन हो गया पूरा देश

The Wars of Frederick the Great : The Battle of Leuthen | Frederick the great, Military art, History war

सुना है कि पुराने जमाने में प्रशिया के राजा फ्रेडरिक ने एक दिन देखा कि खेत- खलिहानों में पक्षी आते हैं और अनाज खा जाते हैं। वह सोचने लगा कि ये अदना से पंछी पूरे राज्य में लाखों दाने खा जाते होंगे। इसे रोकना होगा। तो उसने राज्य में ऐलान कर दिया कि जो भी पक्षियों को मारेगा उसे इनाम दिया जाएगा। बस प्रशिया के सारे नागरिक शिकारी हो गए और देखते ही देखते पूरा देश पक्षी विहीन हो गया। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उत्सव मनाया -उन्होंने प्रकृति पर विजय पा ली।
पर अगले ही वर्ष गेहूँ की फसल नदारद थी। क्योंकि मिट्टी में जो कीड़े थे और जो टिड्डियां थीं, उन्हें वे पक्षी खाते थे और अनाज की रक्षा करते थे। इस बार उन्हें खाने वाले पंछी नहीं थे सो उन्होंने पूरी फसल खा डाली। उसके बाद राजा को विदेशों से चिडि़याएँ मंगानी पड़ीं।

हो सकती है क्षतिपूर्ति

इस धरती को और हरा-भरा बनाना कठिन नहीं है। यदि बहुत सारे वृक्षों को काटा गया है तो और बहुत से वृक्ष लगाए भी जा सकते हैं। और वैज्ञानिक सहयोग से वे बड़ी तेजी से बढ़ सकते हैं और उन पर ज्यादा घने पत्ते आ सकते हैं। नदियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के अवरोध खड़े किए जा सकते हैं जिससे कि बांग्लादेश जैसे गरीब देशों का बाढ़ से नुकसान न हो। वही पानी कई गुना अधिक बिजली पैदा कर सकता है और हज़ारों गाँवों की अंधियारी रातें रोशन कर सकता है, सर्द शीतकाल में उष्मा दे सकता है। बात सरल है। सभी समस्याएँ सरल हैं। लेकिन इन समस्याओं के मौलिक आधार गड़बड़ हैं।

सीखना होगा सबके साथ जीने का सलीका

An Evening with Osho | The New Leam

सृष्टि परस्पर निर्भर है। उसे किसी भी चीज से खाली करने की कोशिश खतरनाक है। न हम निरंकुश स्वतंत्र हैं, और न परतंत्र हैं। यहाँ सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह हमारे लिए सहोदर के समान है। हमें उन सबके साथ जीने का सलीका सीखना होगा।
मैं सारी दुनिया को यह बताना चाहता हूं कि अगर तुम एक होने के लिए तैयार नहीं हो तो इस ग्रह से विलीन होने को तैयार हो जाओ।