इजरायल और फलस्तीन के संबंधों का साया भारतीय राजनीति पर बहुत पहले से रहा है.भारत पर राज करने वाली पार्टियां इसे अपने वोट बैंक के हिसाब से डिफाइन करती रही हैं.आजादी के बाद से ही भारत ने कभी इजरायल को महत्व नहीं दिया. इसका कारण था फलस्तीन. दुनिया के सारे इस्लामी मुल्क फलस्तीन के अधिकारों के लिए इजरायल को मान्यता नहीं देते थे इसलिए भारत की कांग्रेस पार्टी को यही सूट करता था कि वो इजरायल से दूर रहे. बाद में 1991 में नरसिंह राव की सरकार में इजरायल में भारत का वाणिज्यिक दूतावास खोला।

2014 में  नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद भारत और इजरायल के संबंधों को नया आयाम मिला. बीजेपी ने इसे अपने वोटबैंक के हिसाब से आगे बढ़ाया. जबकि, विदेश नीति अब भी ‘two state’ समाधान पर कायम है.  इजरायल में हमास के ताजा आतंकी हमले से भारत में बहस और ज्‍यादा स्‍पष्‍ट हो गई है. सोशल मीडिया पर दक्षिपंथी और लिबरल्स की बातों से लगता है कि किस तरह इजरायल-फलस्तीन के संघर्ष को वोटों का ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

कांग्रेस ने लिया चुनावी लाभ अब बीजेपी की बारी

भारत में साठ और सत्तर के दशक में पैदा होने वाली पीढ़ी को अमेरिका- ब्रिटेन और चीन के नेताओं के नम और शक्ल याद नहीं होंगे पर फलस्तीन के नेता यारिस अराफात का नाम जरूर याद होगा. भारत में जब ये आते थे तब इनका स्वागत दुनिया के बड़े नेताओं की तरह होता था. जबकि फलस्तीन को मान्यता भी दुनिया के बहुत से देशों ने नहीं दिया था. इंदिरा गांधी हों या राजीव गांधी सबके साथ इनकी कई तस्वीरें गूगल पर दुनिया के किसी अन्य राष्ट्राध्यक्ष से अधिक मिलेंगी जो आपको इनके महत्वपूर्ण होने का अहसास कराएंगी. दरअसल कांग्रेस का कोर वोटर देश का मुसलमान हुआ करता था. इसलिए भारत ने हमेशा से इजरायल की जगह फलस्तीन को तरजीह दी।

पर 2014 के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद इस स्थित में बदलाव हुआ. देश में पहली बार 2015 में इजरायल के रक्षा मंत्री की यात्रा हुई. 2017 में भारत से पहली बार कोई प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा की. हालांकि 2018 में पीएम मोदी ने फलस्तीन की यात्रा की थी. इजरायल इस समय भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक साझीदार तो है ही रणनीतिक साझीदार भी है. रूस के बाद सबसे अधित रक्षा सामग्री का आयात इजरायल से ही हो रहा है।संबंधों के तरजीह देने का कारण ही है कि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला होते ही भारत के प्रधानमंत्री का ट्वीट इजरायल के समर्थन में आ जाता है . जबकि कांग्रेस पार्टी की ओर से ट्वीट दूसरे दिन 8 अक्टूबर को आता है. जयराम रमेश की ओर से आए ट्वीट में बहुत समझदारी से बैलेंस अप्रोच रखा गया है. दरअसल पार्टी में एक तबका ऐसा है जो कहीं से भी ये संदेश नहीं देना चाहता कि कांग्रेस राष्ट्रवादी पार्टी नहीं है. इंडिया एलायंस की ओर से तो अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं आया है जिससे इस मुद्दे पर गठबंधन का रुख क्लीयर कर सके।

इजरायल और गाजा के बीच चल रहे युद्ध  से यहां के नागरिकों का बुरा हाल है. अब तक दोनों तरफ के 1600 लोग मारे जा चुके हैं. वहीं अगर बात इजरायल की करें तो हमलों में 900 के करीब आम नागरिक और सैनिक मारे जा चुके हैं. खौफ का कुछ ऐसा माहौल है कि सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है. खुद को सुरक्षित रखने के लिए लोग अपने घरों में छिपे रहने के लिए मजबूर हैं. गाजा पट्टी से करीब 10 किमी दूर एस्केलॉन में वहां के लोगों में डर का माहैाल है ।

‘लोग घर के बंकरों में छिपने को मजबूर’

एक स्थानीय महिला एविशाक एविनोअम के साथ बातचीत की. उन्होंने बताया कि किस तरह से त्योहारी सीजन होते हुए भी सड़कें खाली पड़ी हैं.लोग अपने घरों में सेफ प्लेस में रहने के लिए मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि पुराने घरों में सेफ प्लेस नहीं होता था लेकिन 1980 के बाद से इजराइल में बनने वाले हर घर में सेफ प्लेस होना अनिवार्य है.एनडीटीवी ने उस जगह पर जाने की कोशिश की जहां पर रॉकेट से हमला हुआ था और तबाही मची थी।

त्योहारी सीजन में सड़कों पर सन्नाटा

हमारी टीम जिस सड़क से गुजर रही थी वह पूरी तरह से सुनसान दिखाई पड़ रही थी. सभी वाहन सड़कों पर पार्किंग में थे. शायद ही कोई वाहन सड़क पर चलता दिखाई दे रहा था. जबकि आमतौर पर यहां का नजारा ऐसा नहीं होता है.एविशाक एविनोअम ने बताया कि त्योहार के समय में सड़कों पर बहुत ट्रैफिक रहता है. लोग बहुत ही मजा करते हैं वह अपने परिवारों से और दोस्तों से मिलते हैं. लेकिन युद्ध के हालात को देखते हुए सभी लोग अपने घरों में बने बंकरों में छिपे हुए हैं. सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है. आसमान में हर तरफ रॉकेट की गूंज सुनाई दे रही है. जिस तरह से रॉकेट से बार-बार हमला हो रहा है तो सुरक्षा कारणों से लोग बंकरों में छिपे हुए हैं. इसीलिए शहर में सन्नाटे का हाल है।

एस्केलॉन के लोगों में असुरक्षा का डर

एविशाक एविनोअम ने एनडीटीवी को बताया कि 1980 के बाद जो भी घर और रिहायशी इमारतें ऐस्केलॉन में बनी हैं वहां पर सेफ प्लेस यानी कि बंकर बनाना अनिवार्य हो गया है. लगातार बढ़ते हमलों की वजह से हर घर में सेफ हाउस बनाना जरूरी कर दिया गया है. तमाम लोग फिलहाल बंकरों में छिपे हुए हैं. असुरक्षा के डर की वजह से त्योहारी मौसम में भी लोग सड़कों पर नजर नहीं आ रहे हैं।(एएमएपी)