सुरेंद्र किशोर।
7 नवंबर, 2013 को छत्तीसगढ़ के कांकड़ की सभा में गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘‘ देश का जो काला धन विदेश में जमा है, उसके एक-एक पैसे यदि हम ले आएं तो यूं ही एक-एक व्यक्ति को 15-20 लाख रुपए मिल जाएंगे।’’
(छत्तीस गढ़ के अखबार के 8 नवंबर 2013 के अंक में नरेंद्र मोदी की यह उक्ति आपको पढ़ने को मिल जाएगी।आजकल तो पिछले दिनों के भी अखबार ऑनलाइन उपलब्ध रहते हैं।)
नरेंद्र मोदी की उक्ति की शब्दावली पर ध्यान दीजिए। फिर इस मुद्दे पर मोदी विरोधी नेताओं के समय-समय पर आ रहे बयानों की शब्दावलियों पर ध्यान दीजिए। यानी, नरेंद्र मोदी ने यह नहीं कहा था कि विदेश से पैसे लाकर सबके खाते में 15 -15 लाख भेज दूंगा।
काला धन अब भी स्विस बैंक में है?
क्या भारतीयों के काला धन अब भी स्विस बैंक में मौजूद है कि कोई उसे भारत ला देगा? वह धन अब स्विस बैंक से निकल कर कहां चला गया, उसकी कहानी यहां पढ़िए।
जहां चला गया, वहां से लाना किस तरह असंभव है, यह भी पढ़ लीजिए।
उसे असंभव किसने बनाया, यह भी पढ़िए।
जिसने बनाया, वही अब मोदी पर आरोप लगा रहा है।
देशद्रोह की घिनौनी कहानी
यह बात तब की है जब इस देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी। स्विस बैंकों ने अमेरिका के भारी दबाव के कारण अपने यहां के बैंकों के खातों की गोपनीयता से संबंधित नियमों में ढील देने का निर्णय किया। यानी, स्विस बैंक गुप्त खातेदारों के नाम जाहिर करने लगे।
इससे घबरा कर भारत सहित दुनिया भर के काला धन वालों ने पास के ही लाइखटेंस्टाइन देश के एल.जी.टी. बैंक की ओर रुख कर लिया। वह बैंक वहां के राजा के परिवार का है और वहां गोपनीयता की पूरी गारंटी है।
एल.जी.टी. बैंक का एक कम्प्यूटर कर्मचारी हेनरिक कीबर कुछ कारणवश बैंक प्रबंधन से बागी हो गया। उसे नौकरी से निकाल दिया गया। वह बैंक के सारे गुप्त खातेदारों के नाम पते वाला कम्प्यूटर डिस्क लेकर फरार हो गया। जाहिर है कि उसमें भारत के खातेदारों के विवरण भी थे।
इस तरह दुनिया के अनेक देशों के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों का विवरण कीबर के पास आ गया। उसने उस पूरी सी. डी. की काॅपी को जर्मनी की खुफिया पुलिस को 40 लाख पाउंड में बेच दिया।
ब्रिटेन ने सिर्फ अपने ही देश के गुप्त खातेदारों के नाम उससे लिए। इसलिए उसे सिर्फ एक लाख पाउंड में विवरण मिल गया।
जर्मन सरकार, भारत सरकार को भारत के लोगों के गुप्त खातों का विवरण मुफ्त देने को तैयार थी। पर,मनमोहन सरकार ने उसे लेने से इन्कार कर दिया।
अमेरिका, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम और अन्य देश कीबर से बारी -बारी से अपने -अपने देश के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों के विवरण ले गए। ब्रिटेन को उस विवरण के आधार पर अपने देश में कार्रवाई करने पर ब्रिटिश सरकार को टैक्स के रूप में भारी धन राशि मिल गई।
कीबर भारत सरकार को भी वह जानकारी बेचने को तैयार था। इस संबंध में एल.के. आडवाणी ने तब मनमोहन सरकार को पत्र भी लिखा था। पर, भारत सरकार ने नहीं खरीदा।
साथ ही,उन दिनों यह भी सनसनीखेज खबर आई थी कि मनमोहन सरकार ने जर्मनी सरकार से अनौपचारिक रूप से यह आग्रह कर दिया कि भारत से संबंधित गुप्त बैंक खातों को जग जाहिर नहीं किया जाए। याद रहे कि लाइखटेंस्टाइन के उस बैंक में बड़ी संख्या में भारतीयों के भारी मात्रा में काला धन जमा थे। अब कितना है,यह नहीं मालूम।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)