गुरुवार 5 अगस्त को तोक्यो ओलंपिक में जर्मनी को 5-4 से हराकर भारत ने न केवल कांस्य पदक जीता बल्कि एक बार फिर इतिहास रचते हुए 41 साल का हॉकी में मेडल का सूखा भी खत्म किया। भारत आखिरी बार 1980 में मास्को ओलंपिक में हॉकी का गोल्ड मेडल जीता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय हॉकी टीम की इस शानदार जीत पर बधाई देते हुए ट्वीट किया- ‘ऐतिहासिक!

प्रमोद जोशी ।
1964 में तोक्यो ओलिम्पिक खेलों के हॉकी फाइनल मैच की मुझे याद है। मैं नैनीताल के गवर्नमेंट हाईस्कूल में कक्षा 8 का छात्र था। फाइनल मैच के दिन स्कूल के सभी बच्चे प्रधानाचार्य कार्यालय के पास वाले लम्बे वरांडे में बैठाए गए और एक ऊँची टेबल पर रेडियो रखा गया। भारतीय टीम में खेल रहे काफी खिलाड़ियों को मैं कुछ समय पहले नैनीताल के ट्रंड्स कप हॉकी टूर्नामेंट में खेलते हुए देख चुका था।

नैनीताल में दिग्गज खिलाड़ियों को खेलते देखा

News for 29 June 2020

मोहिन्दर लाल, जिन्होंने भारत की ओर से पाकिस्तान पर एकमात्र गोल किया था, उत्तर रेलवे दिल्ली की टीम से आए थे। उस टीम में पृथपाल सिंह और चरणजीत सिंह भी होते थे। पॉथपाल सिंह शॉर्ट कॉर्नर (उन दिनों उसका यही नाम था) विशेषज्ञ होते हैं। नैनीताल का वह हॉकी टूर्नामेंट देश में अपनी किस्म का अनोखा टूर्नामेंट में था। इतनी बड़ी संख्या में शायद किसी और टूर्नामेंट में नहीं आती थीं। नैनीताल में मैंने अपने दौर के ज्यादातर दिग्गज खिलाड़ियों को खेलते हुए देखा था। हॉकी का शौक नैनीताल से मुझे लगा था, जो आज तक जीवित है। नैनीताल में हॉकी कोच दीक्षित जी को देखा, जिनकी देखरेख में बच्चे हॉकी खेलते थे। लखनऊ आने पर यहाँ हॉकी का माहौल देखा। मैं केकेसी में भरती हुआ, जहाँ स्कूली टीमों की बुलबुल हॉकी प्रतियोगिता होती थी। शायद वह 1967 का साल था, जब नैनीताल के सीआरएसटी कॉलेज के बच्चों की टीम ने वह प्रतियोगिता जीती, तो मुझे लगा मेरी टीम जीत गई।

लखनऊ… 1973… केडी सिंह बाबू

The journey of Indian hockey's Helsinki 1952 Olympic gold

लखनऊ में सन 1973 में जब केडी सिंह बाबू के नेतृत्व में विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता खेलने जा रही भारतीय टीम का कोचिंग कैम्प लगा, तब तक मैं स्वतंत्र भारत में आ गया था। हमने स्वतंत्र भारत की साप्ताहिक पत्रिका का विशेषांक हॉकी पर निकाला। शम्भु नाथ कपूर हॉकी प्रेमी थे। शचींद्र त्रिपाठी खेल डेस्क देखते थे। मैंने अपनी तरफ से उस विशेषांक के लिए मिलकर काम किया। केडी सिंह बाबू, जमन लाल शर्मा के अलावा उन दिनों डनलप कम्पनी में अमीर कुमार किसी बड़े पद पर थे, जो बाबू के साथ ओलिम्पिक में भारतीय टीम के सदस्य रह चुके थे।

तमाम यादें

Former Indian Hockey player mir ranjan negi is helpless to give hockey  coaching for youth on sidewalk |फुटपाथ पर कोचिंग देने को मजबूर हैं 'चक दे  इंडिया' के पूर्व हॉकी स्टार |

लखनऊ में जब इनविटेशन हॉकी प्रतियोगिता शुरू हुई, तब स्वतंत्र भारत के लिए कवर मैंने किया। बाबू के नेतृत्व में एक बार भारतीय टीम का कैम्प, जिसमें मोहम्मद शाहिद को नए खिलाड़ी के रूप में उभरते हुए मैंने देखा। 1982 के एशिया खेल जब दिल्ली में हुए, तब स्वतंत्र भारत की खेल डेस्क को संभालने का मौका मुझे मिला। पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच टीवी पर देखने के लिए हम बड़े उत्साह से रॉयल क्लब विधायक निवास में बने अपने प्रेस क्लब में गए थे। उस मैच में भारतीय टीम 7-1 से हारी थी। मीर रंजन नेगी उसी टीम के गोली थे, जिनकी कहानी पर बाद में चक दे इंडिया फिल्म बनी। उस फाइनल मैच में भारत का एकमात्र गोल सैयद अली ने किया, जो नैनीताल से निकले थे। ऐसी तमाम यादें मेरे पास हैं।
1964 में जब तोक्यो ओलिम्पिक में भारतीय हॉकी ने स्वर्ण जीता था

मन कहता था इस बार…

बहरहाल इसबार मेरा मन कहता था कि तोक्यो से भारत मेडल जीतकर लाएगा। ध्यान दें 1964 के तोक्यो ओलिम्पक वास्तव में भारतीय हॉकी के एकछत्र राज का अंतिम टूर्नामेंट था। हालांकि उसके बाद 1980 में हमने गोल्ड जीता, पर वह जीत बहुत उत्साहवर्धक नहीं थी। उस प्रतियोगिता में कुल 6 टीमें थीं। पाकिस्तान, जर्मनी, हॉलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें नहीं थीं। मुझे लगता है कि तोक्यो से भारतीय हॉकी के पुनरोदय की शुरुआत हो रही है। यह मेडल अंतिम नहीं, पहला है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से साभार)