divya prakash dubeyदिव्य प्रकाश दुबे । 
जब नया नया लिखना शुरू करो तो एक बात रहती है मन में- कि कोई बड़ा लेखक मिल जाए और हम उससे पूछ लें कि आप हमें कुछ टिप्स दे दीजिए। मैं तो खैर किसी को क्या ही टिप्स दूंगा। 

शरत बाबू से नागर जी की मुलाकात

Biography Of Amritlal Nagar One Of The Prominent Hindi Writers, Author And Journalist - 'प्रकृति के अनुसार ढलना ही प्रकृति पर विजय पाना है' - Amar Ujala Hindi News Live

एक बहुत बड़े लेखक हुए हैं लखनऊ के- अमृतलाल नागर। वो जब अपने शुरुआती दौर में थे, नया-नया लिखना शुरू किया था, नया नया जोश था, तो वह शरत चन्द्र से मिले। अब शरतचंद्र तो मतलब शरत चंद्र ही थे। बहुत बड़े लेखक। 19 साल की उम्र में उनकी तीन किताबें आ चुकी थीं और वह बहुत लोकप्रिय हो चुके थे। देवदास जैसी कितनी ही किताबें उन्होंने लिखीं। हमारे युवा साथियों को अगर शरद चंद्र के बारे में ज्यादा नहीं पता है तो उन्हें शरतचंद्र को जरूर पढ़ना चाहिए। न जाने कितने उपन्यास और कितनी कहानियां हैं उनकी। एक आत्मकथा भी लिखी गई ‘आवारा मसीहा’ नाम से। इसे लिखा विष्णु प्रभाकर ने। खैर वह एक अलग बात है।

कुछ टिप्स दे दीजिए

गद्य साहित्य में शरत चंद्र भारत के हर लेखक से ऊपर हैं

नागर जी जब शरद चंद्र से मिले तो उन्होंने कहा कि आप हमें कुछ टिप्स दे दीजिए। शरद चंद्र ने उनसे कहा कि मुझे तो इस बारे में कुछ नहीं पता लेकिन मेरे गुरु जी ने मुझे कुछ बातें बताई थीं। मैं वह बता सकता हूं। अब शरद चंद्र के गुरु वाला किस्सा इस किस्से के अंदर शुरू होता है।

‘तुमने अपनी कोई किताब मुझे नहीं दी’

देवदास : शरतचंद्र चटर्जी | Devdas : Sharatchandra Chatarji - Free Hindi PustakSharatchandra Ki Pratinidhi Kahanian

शरतचंद्र के कॉलेज के एक गुरुजी थे। उन्होंने शरतचंद्र से कहा कि तुम्हारी इतनी किताबें आ गईं लेकिन तुमने अपनी कोई किताब मुझे नहीं दी।
तब शरद चंद्र ने कहा, ‘अभी मुझे ऐसा लगा नहीं कि वे किताबें इस लायक हैं कि आपको भेंट की जाएं। जब इस लायक लिखने लगूंगा तो आपको भेंट कर दूंगा।’ गुरु जी ने चलते हुए (जैसे के गुरुजी लोग होते हैं) शरतचंद्र को तीन बातें बताईं। और वही तीन बातें शरद चंद्र ने अमृतलाल नागर को बताईं।

वो तीन बातें

वो तीन बातें क्या थीं। 
पहली बात: जो भी आपका अनुभव है केवल उसी को लिखो।
दूसरी बात: जो भी लिखो उसे लिखने के बाद तीन महीने के लिए अपनी मेज की दराज में डालकर छोड़ दो। फिर उसको देखो और एडिट करो …और तब तक एडिट करते रहो जब तक तुम पूरी तरह आश्वस्त न हो जाओ कि हां, अब यह दुनिया को दिखाने लायक है।
तीसरी बात: गुरुजी की बताई तीसरी और सबसे जरूरी बात यह थी कि- कभी किसी की निंदा मत करो।
मैं जितने भी लेखकों को जानता हूं उनमें से ज्यादातर को निंदा करने में मजा आता है… और किसी की भी निंदा करने में मजा आता है। उसमें जीवन का काफी सारा समय खराब होता है।

कुछ बचा के रखो

शरद चंद्र ने ये तीन बातें तो अमृतलाल नागर को बताईं। फिर इसमें एक बात अपनी तरफ से जोड़ी। वह यह थी कि- अगर चार पैसे कमाओ तो तीन पैसे बचाओ और एक पैसा खर्च करो। अगर बहुत जरूरत है तो दो पैसे बचाओ। अगर उसके बाद भी खर्चा बहुत बढ़ रहा है तो एक पैसा बचाओ। फिर मान लो जीवन में चारों पैसे खर्च ही हो गए तो किसी से उधार मत मांगो।

चारों बातों का जीवन भर पालन किया

बाद में जब यह किस्सा अमृतलाल नागर ने लिखा तो उन्होंने बताया कि इन चार बातों का उन्होंने जिंदगी भर ध्यान रखा। चारों बहुत बड़ी और बहुमूल्य बातें हैं।
वैसे तो लेखकों के पास हजारों टिप्स होते हैं देने के लिए। लेकिन जितने दिनों से मैं पढ़ रहा था या सुन रहा था, मुझे लगा कि यह किस्सा सबको पता होना चाहिए। मुझे लगता है यह बात आप में से बहुतों को पता होगी। लेकिन जिन्हें नहीं पता है उन्हें यह जानना चाहिए। 1-आप अपने अनुभव से लिखें, 2- जो लिखें उसे कुछ दिन के लिए दराज में डाल दें और फिर एडिट करें, 3- किसी की निंदा न करें, और 4- अगर आप फुल टाइम राइटिंग कैरियर चाहते हैं तो पैसा बचाएं, संभल कर खर्च करें।

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