योगी का चाबुक चला तो तौकीर फ़क़ीर और छांगुर झींगुर बन गया।
प्रदीप सिंह।
किसी भी गुंडे-माफिया की ताकत चार बातों पर निर्भर करती है। एक- उसके पास कितने हथियारबंद लोग हैं, जो उसके लिए मरने-मारने को तैयार हों, दूसरा- राजनीतिक संरक्षण, तीसरा- उसका आर्थिक साम्राज्य एवं चौथा और सबसे अहम उसका आतंक। गुंडे के आतंक के चलते शरीफ लोग तो उससे रास्ता बचाकर चलते ही हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति ने एक ऐसा लंबा दौर देखा है कि जब पुलिस तक इन गुंडों-माफिया से रास्ता बचाकर चलती थी। उनके सामने आने से डरती थी। यहां तक कि न्यायपालिका भी भयभीत रहती थी। बीसियों बार केस स्थगित होता था। उनके मामले में सुनवाई करने से जज मना कर देते थे। इसी भय के चलते पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी इन माफिया के सामने जाकर सलाम बजाते थे।
पिछले दिनों मारे गए एक माफिया अतीक अहमद का जलवा यह था कि उनका कुत्ता मंच पर उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की गोद में बैठता था। पिछले आठ साल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी की सफाई कर रहे हैं। पहले तो उन्होंने लोगों के दिल से माफिया का डर निकाला और दूसरा राजनीतिक संरक्षण बंद करा दिया। अब किसी पार्टी की हिम्मत नहीं कि खुले तौर पर माफिया का समर्थन कर सके। योगी ने गुंडों-माफिया के आर्थिक साम्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने का काम किया है। उनके अवैध निर्माण को बुलडोजर लगाकर गिरा दिया। सुप्रीम कोर्ट तक में इसकी चर्चा हुई। चीफ जस्टिस ने कहा कि देश बुलडोजर न्याय से नहीं बल्कि संविधान से चलता है। लेकिन क्या बुलडोजर न्याय के खिलाफ चलता है? इसका सवाल भी सीजीआई को देना चाहिए था,जो उन्होंने नहीं दिया। तो इसलिए बुलडोजर चलना लोगों में एक तरह का आत्मविश्वास पैदा करता है। लोगों को आश्वस्त करता है कि गुंडा अगर उनके खिलाफ कुछ करेगा, तो उसका यह हाल होगा। एक मशहूर फिल्म शोले का डायलॉग है-जो डर गया सो मर गया। लेकिन इस मामले में थोड़ा सा उसमें बदलाव कर लीजिए। जो गुंडा डर गया वो मर गया। और यही उत्तर प्रदेश में हुआ है।
अब दो लोगों की बात, जो समाज के इतने बड़े द्रोही और दुश्मन हैं, जो गुंडों को भी पीछे छोड़ते हैं। उसमें से एक हैं बरेलवी संप्रदाय के तौकीर रजा। बरेली और आसपास उनका साम्राज्य था और वह हर समय धमकी की भाषा में बोलते थे। हालत यह थी कि उनका समर्थन हासिल करने के लिए होड़ लगती थी। अरविंद केजरीवाल, प्रियंका वाड्रा समेत कई नेता इस कोशिश में रहते थे कि तौकीर रजा उनके समर्थन में बोल दे। लेकिन तौकीर रजा ने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती यह की कि उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती दे दी। लोगों से अपील करने लगा कि सड़क पर आओ। आई लव मोहम्मद के नाम से जो कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश हुई उससे उसको लगा कि उसका कद और जलवा बढ़ जाएगा। लेकिन जलवा कायम होना तो दूर। बरेली दंगे के बाद से उसके 84 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। वह खुद गिरफ्तार हो चुका है और फर्रूखाबाद की सेंट्रल जेल में बंद है। उसकी 200 करोड़ की संपत्ति जब्त या ध्वस्त हो चुकी है। और हालत यह है कि कोई वकील उसकी जमानत की अर्जी तक नहीं दे रहा है। ये वही तौकीर रजा है, जिसे 2010 में बरेली में हुए दंगे के बाद सिर्फ हिरासत में लिया गया था। उसकी गिरफ्तारी नहीं हो पाई। हिरासत में भी उसे एसएसपी के दफ्तर में बिठाया गया और केवल 48 घंटे बाद रिहा कर दिया गया। जबकि उस समय मुख्यमंत्री थीं मायावती। कानून व्यवस्था के मामले में उनकी प्रतिष्ठा भी बहुत ज्यादा थी।
किसी प्रदेश की कानून व्यवस्था कैसी है, इसका सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि गुंडे के मन में कानून का डर है या आम लोगों के मन में गुंडे का डर है। तो योगी सरकार ने गुंडों के मन में कानून का डर बिठा दिया है। अब तौकीर रजा को लग रहा है कि जेल में है तो सुरक्षित है। इस तरह का डर उत्तर प्रदेश के लोगों ने गुंडों में कभी देखा नहीं था। 79 साल में इस तरह की परिस्थिति कभी नहीं बनी कि माफिया का राज समाप्त हो जाए। अपने को माफिया बताने से कोई डरे।
एक समय माफिया का समानांतर राज चलता था। किसी पुलिस वाले की हिम्मत नहीं थी कि माफिया के खिलाफ कुछ बोले। जिन एक-दो लोगों ने कोशिश की उनका करियर और जीवन बर्बाद कर दिया गया। यह हुआ था मुलायम सिंह यादव के राज में। लेकिन अखिलेश यादव आए तो लोगों को बड़ी उम्मीद थी कि परिवर्तन होगा। वो अलग तरह की राजनीति करेंगे। पढ़ लिखकर आए हैं। लेकिन आखिर वह भी उसी ढर्रे पर चले जो उनके पिता का था। पिता ने बनाया था। उन्होंने उसको बिगाड़ा नहीं। उसको मजबूत करने का ही काम किया। 2017 तक उत्तर प्रदेश में माफिया राज चलता रहा। लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस पर लगाम लगी। अब ये जो समाज विरोधी हैं, समाज में विद्वेष पैदा करना चाहते हैं, दंगा कराना चाहते हैं। अब देश के सामने जो सबसे बड़ा खतरा है, वो है डेमोग्राफी बदलने और धर्मांतरण का। इस तंत्र को खत्म करने का काम भी योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। तौकीर रजा को तो योगी ने फकीर बना दिया और धर्मांतरण में लगे छांगुर को झींगुर बना दिया। धर्मांतरण का रैकेट चला रहे छांगुर की गतिविधियों पर योगी सरकार 3 साल से नजर रखे हुए थी और जब मामला पक गया तो उसको गिरफ्तार किया गया। धर्मांतरण के लिए विदेशों से हजारों करोड़ रुपए उसके पास आते थे। लेकिन आज कोई और राजनीतिक दल का नेता उसके खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है। यह है हमारी राजनीति की स्थिति।
योगी सरकार में जो तीसरा बड़ा काम हुआ है, वह है हलाल सर्टिफिकेशन पर रोक। हर चीज पर हलाल सर्टिफिकेशन का बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा चल रहा था। योगी ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि उनको यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि साबुन भी हलाल, कपड़ा भी हलाल, अपार्टमेंट और अस्पताल भी हलाल बनने लगा। दरअसल हलाल केवल मांस के बारे में है। बकरे को जब जिबह करते हैं तो उसकी गले की नस और सांस की नली को काटा जाता है। जब तक पूरा खून न निकल जाए तब तक उसको रोका नहीं जाता। उस समय कुछ पढ़ा जाता है जो इस्लामिक विधि के अनुसार मानते हैं कि मान्य है। और मुसलमान कहते हैं कि वो केवल हलाल का मीट खाएंगे। अब यह हलाल जब होटलों में बिकने लगा, हर जगह सर्टिफिकेशन मिलने लगा तो हुआ यह कि जितने हिंदू इस व्यापार में थे सब बाहर हो गए। अब सवाल यह है कि हलाल सर्टिफिकेट देने का अधिकार किसको है? भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की कोई एजेंसी ऐसा सर्टिफिकेट नहीं देती। 2023 में योगी की सरकार ने उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन बंद कर दिया। हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए केवल उत्तर प्रदेश में 25,000 करोड़ से ज्यादा जुटाए जाते थे और उनका इस्तेमाल लव जिहाद और धर्मांतरण के काम में होता था। दरअसल हलाल सर्टिफिकेशन का सिलसिला ऑस्ट्रेलिया से शुरू हुआ। ऑस्ट्रेलिया से जो मांस का निर्यात होता था उस पर कुछ मुस्लिम देशों ने एतराज उठाया कि हमको कैसे मालूम कि ये हलाल है या झटका। अगर हलाल होगा तभी हम लेंगे। तो वहां सर्टिफिकेशन शुरू हुआ। लिखा जाने लगा कि यह हलाल मीट है। उसके बाद यह चलन शुरू हुआ कि अरब देशों को जो कुछ निर्यात किया जाएगा वो हलाल सर्टिफिकेशन होना चाहिए। आज हालत यह है कि पतंजलि जैसी संस्था भी अपना सामान अरब देशों में हलाल सर्टिफिकेशन के साथ बेचती है। आयुर्वेद की दवाइयां भी जब हलाल सर्टिफिकेशन से बिकेंगी तो समझिए कि ये देश कहां जा रहा था? अगर दो नेता मोदी और योगी इस देश में न आए होते तो यह देश बीते 11 सालों में ही कहां पहुंच गया होता? अगर 2014 में फिर से कांग्रेस की सरकार बन गई होती तो कोई ऐसी चीज नहीं होती जो आपको बिना हलाल सर्टिफिकेट के मिल सके। और यह सब डेमोग्राफी बदलने के लिए पैसा जुटाने के तरीके थे। उत्तर प्रदेश ने 2023 में हलाल सर्टिफिकेशन बंद कर दिया। लेकिन देश के अन्य प्रदेशों में बंद हुआ या नहीं कोई नहीं जानता। कई लोग इसी मानसिकता में जी रहे हैं कि देश कहां जा रहा है, समाज कहां जा रहा है, उनकी भावी पीढ़ी का क्या होगा, उन्हें इससे क्या मतलब। हमारा आज का काम चल रहा है, सब ठीक है। लेकिन चिंता करने वालों के भी काम करने की एक सीमा है। जिस दिन उनका धैर्य खत्म हो गया, उनकी सीमा आ गई तो कल्पना कीजिए हमारे देश का क्या हाल होगा? तौकीर का फकीर और छांगुर का झींगुर बनना देश के लिए एक शुभ संकेत है। यह चलन और यह प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। इसमें हम-आप क्या कर सकते हैं? हम-आप कम से कम इसका समर्थन तो कर ही सकते हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)



