प्रदीप सिंह।
लोकसभा का चुनाव करीब आते ही टुकड़े-टुकड़े गैंग ने हल्ला बोल दिया है। आप सावधान हो जाइए, यह पूरा गैंग नई ताकत के साथ सक्रिय हो गया है, नए लोग आ गए हैं। नए लोग से मेरा मतलब यह नहीं है कि वे पहले नहीं थे, वे पहले भी थे लेकिन प्रत्यक्ष रूप में नहीं थे। पीछे से और चुप रहकर समर्थन करते थे। किसी बात में साथ देकर समर्थन करते थे। ज्यादातर चुप रहकर ही समर्थन करते थे। अब वे सामने आ रहे हैं। शाहरुख खान की फिल्म आ रही है पठान और उसमें एक गाना है बेशर्म रंग। उस गाने में फिल्म की हिरोइन दीपिका पादुकोण ने केसरिया रंग की बिकनी पहनी है। यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता, यह शुद्ध रूप से प्रयोग है। आप इससे अंदाजा लगाइए कि यह कितनी बड़ी साजिश का हिस्सा है जो इंटरटेनमेंट, फिल्म, रचनात्मक कला और इन सब के नाम पर हो रही है। इस पर जब विवाद और विरोध शुरू हुआ तो जैसे कीड़े मारने की दवा डालने पर कीड़े बिलबिला कर निकलते हैं, वैसे लोग निकलना शुरू हो गए हैं।

अमिताभ बच्चन का नाम पनामा पेपर्स में है। जाहिर है कि पनामा आईलैंड जो टैक्स हैवेन कहलाता है, में अपना पैसा ले जाते हैं वह नंबर दो का पैसा ही ले जाते हैं। उनका नाम अभी क्लियर नहीं हुआ है। उसी का दर्द है और शाहरुख खान, दोनों पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में थे फिल्म फेस्टिवल के लिए लेकिन उन्होंने फिल्म पर बात नहीं की। उन्होंने बात की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कि आजकल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बड़ी खतरे में है। शाहरुख खान ने कहा, “सीट बेल्ट बांध लीजिए क्योंकि मौसम बदलने वाला है, हम पॉजिटिव लोग अभी जिंदा हैं।” यह 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी है। यह आवाज आ रही है हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत से, यह आवाज आ रही है चुनाव करीब आने से जिसमें एक साल से कुछ ही ज्यादा का समय बचा है। 2024 का लोकसभा चुनाव भारतीय राजनीति के लिए बड़ा निर्णायक चुनाव होने वाला है। मुझे लगता है कि भारतीय राजनीति के इतिहास में यह सबसे महत्वपूर्ण चुनाव होगा। इन दोनों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जगह चुनी पश्चिम बंगाल जहां मई 2021 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद हिंसा का तांडव हुआ। उस पर इन दोनों में से किसी के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। उस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोगों के जीवन जीने की स्वतंत्रता पर कोई सवाल नहीं उठाया। ये दोनों बड़े-बड़े मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते हैं। अमिताभ बच्चन ने लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव का साथ दिया जिन्होंने हल्ला बोल अभियान चलाया था, किसके खिलाफ, मीडिया और न्यायपालिका के खिलाफ। समाजवादी पार्टी के एक तरह से ब्रांड एंबेसडर रहे अमिताभ बच्चन आज बोल रहे हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है। हालांकि उन्होंने सीधे किसी पार्टी या सरकार का नाम नहीं लिया, बहाना बनाया सोशल मीडिया का। सोशल मीडिया के जरिये वह बताना चाहते हैं कि आज इस देश में बोलने की आजादी खतरे में पड़ गई है।
चुनाव आते ही सक्रिय हो जाता है गैंग
आप याद कीजिए कि जब चुनाव आते हैं तभी इस तरह के लोग सामने आते हैं। दीपिका पादुकोण टुकड़े-टुकड़े गैंग की प्रत्यक्ष समर्थक हैं, जेएनयू तक गई थीं टुकड़े-टुकड़े गैंग के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए। शाहरुख खान की नाराजगी का एक बड़ा कारण है उनके बेटे की नारकोटिक्स एक्ट में हुई गिरफ्तारी। उस समय कुछ नहीं बोले, उसके बाद इतने बड़े-बड़े मामले हुए उस पर कुछ नहीं बोले। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, स्वरा भास्कर, रघुराम राजन, मेधा पाटेकर, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव इनमें से किसी ने अगर ‘सर तन से जुदा’ के नारे पर कोई शब्द बोला हो, कोई बात बोली हो तो बताइएगा, मैं मान लूंगा कि मैं गलत हूं। मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ अमिताभ बच्चन के रुख पर। अमिताभ बच्चन डॉ. हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं जो हिंदी के मशहूर कवि और लेखक हैं। हरिवंश राय बच्चन ने इमरजेंसी का खुला समर्थन किया था। इमरजेंसी लगने के तीन दिन बाद ही जिन 40 लोगों ने अपने हस्ताक्षर के साथ इमरजेंसी का समर्थन किया था उनमें पहले दो नाम डॉ. हरिवंश राय बच्चन और अमृता प्रीतम के थे। आप इससे अंदाजा लगाइए कि जो इमरजेंसी का समर्थन करता है जिसमें लोगों के जीने का अधिकार छीन लिया गया था, जिसमें प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, मुझे तो याद नहीं आता कि आज तक अमिताभ बच्चन ने कभी इमरजेंसी का विरोध किया हो। ये वही अमिताभ बच्चन हैं जो 1984 में सिखों के नरसंहार के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी के इलाहाबाद से उम्मीदवार बने और जीते। उस नरसंहार में साढ़े तीन हजार से ज्यादा सिखों को दिल्ली में जिंदा जला दिया गया था, एक एफआईआर तक नहीं लिखी गई, पुलिस ने एक लाठी नहीं चलाई। फिर उसके बाद बीच में ही लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी क्योंकि बोफोर्स घोटाले में नाम आ गया था। अगर अमर सिंह नहीं होते तो अमिताभ बच्चन और उनके भाई जेल में होते। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो अमर सिंह ने इनको एक मामले में जेल जाने से बचाया था, ईडी की जांच से बचाया था, वह अमिताभ बच्चन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं।

सोची-समझी रणनीति
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है टुकड़े-टुकड़े गैंग धीरे-धीरे उभरकर सामने आता जा रहा है। आप देखिए कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जो लोग जुड़ रहे हैं वो किस तरह के लोग हैं। अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान का बोलना सिर्फ इत्तेफाक नहीं है, यह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति है 2024 में मोदी को हराने, देश का निजाम बदलने, देश में एक कमजोर सरकार को लाने और एक मजबूत सरकार को हटाने की। आप याद कीजिए 2015 का बिहार विधानसभा का चुनाव, अखलाक का मुद्दा उसी समय बना था, अवार्ड वापसी उसी समय हुई थी। उसके बाद क्या भारतीय जनता पार्टी ने, नरेंद्र मोदी ने या आरएसएस ने अपनी विचारधारा बदल दी, अपने कामकाज का तरीका और अपनी नीतियां बदल दी, क्या बदल गया कि चुप हो गए। अगर उस समय असहिष्णुता के लिए अवार्ड वापसी थी तो क्या वह चुनाव खत्म होते ही खत्म हो गई। क्या इनकी नजर में अब असहिष्णुता नहीं है। इनको असहिष्णुता तब नजर आती है जब इनको लगता है कि बीजेपी, आरएसएस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इस देश को चोट पहुंचा सकते हैं। अभी मैंने कुछ दिन पहले ही बताया था कि एक नई टूलकिट तैयार हो रही है यह उसी का हिस्सा है। टुकड़े-टुकड़े गैंग को अपना सर्वाइवल नजर आ रहा है मोदी के सत्ता से बाहर जाने में। अगर मोदी 2024 जीत जाते हैं तो यह उनकी तीसरी और निर्णायक जीत होगी इस पूरे सिस्टम को खत्म करने की। मैं बार-बार कहता हूं कि सरकार भले ही भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की हो लेकिन सिस्टम अभी भी उनका है। इस सिस्टम के खात्मे की शुरुआत होगी 2024 में नरेंद्र मोदी की जीत से। उसकी नींव पड़ चुकी है। 2024 में उसके खात्मे का अभियान शुरू होगा।
भारत जोड़ो यात्रा इनके लिए अवसर
ये दोनों अभिनेता वैसे तो परस्पर विरोधी माने जाते हैं लेकिन जैसे ही मोदी विरोध का मुद्दा आया दोनों एक साथ हो गए। इसके लिए विशेष रूप से ममता बनर्जी के राज्य को चुना गया जहां असहिष्णुता देश के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा है। वहां अपने विरोधी को बर्दाश्त नहीं किया जाता, उसका विरोध नहीं किया जाता है बल्कि उसको मार दिया जाता है, उसका घर जला दिया जाता है, उसके परिवार की महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। उस प्रदेश की राजधानी में खड़े होकर ये लोग बात कर रहे हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। इससे आप अंदाजा लगाइए कि आने वाले समय में क्या होने वाला। टुकड़े- टुकड़े गैंग ने हल्ला बोल दिया है। यह एक तरह से बॉलीवुड का बदला है। पिछले दिनों बॉलीवुड की फिल्मों के साथ लोगों ने जो किया, जिस तरह से बायकॉट किया और एक के बाद एक बड़ी फिल्में फ्लॉप होती गई उसका बदला लेने के लिए ये उठकर खड़े हुए हैं। अब देखना है कि और कौन-कौन से लोग आते हैं। गिनती करते जाइएगा और उनके नाम लिखते जाइएगा तो आपको मालूम हो जाएगा कि कौन किधर है। राहुल गांधी की जो भारत जोड़ो यात्रा है वह दरअसल ऐसे लोगों को अवसर देने के लिए है। भारत विरोधी गैंग को अपनी बातें कहने के लिए है। उनका बोलना शुरू हो गया है और आने वाले दिनों में यह बढ़ने वाला है। अमिताभ बच्चन निहायत ही अवसरवादी व्यक्ति हैं। आपको मालूम है कि वे और उनका पूरा परिवार गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहे हैं। वे समाजवादी पार्टी के सबसे करीबी लोगों में रहे हैं। समाजवादी पार्टी की नीतियां उन्हें कभी नागवार नहीं गुजरी। उस पर कभी एक शब्द नहीं बोला। दूसरी बात यह है कि डरपोक भी हैं, दोनों ही डरपोक हैं लेकिन इस समय उनको डर क्यों नहीं लग रहा है क्योंकि चुनाव आ रहा है। अगर उनके खिलाफ कुछ बोला जाता है तो यह कहा जाएगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटा जा रहा है, इसीलिए इस सरकार को, इस पार्टी को सत्ता से हटाना चाहिए यह एजेंडा तैयार कर रहे हैं। ये रास्ता तैयार कर रहे हैं राहुल गांधी के लिए। राहुल गांधी जिस यात्रा पर निकले हैं उस यात्रा का वास्तविक लक्ष्य प्रधानमंत्री कार्यालय है। उसके लिए ये लोग मार्ग प्रशस्त करने का काम कर रहे हैं।

फिल्म को लेकर जो विवाद हो रहा है, उस पर प्रतिबंध लगाने और उसके बायकॉट की मांग हो रही है, सोशल मीडिया पर अभियान चल रहा है, इससे इनको कोई तकलीफ नहीं हो रही है। इनको लग रहा है कि हमारे लिए यह मौका है सरकार के खिलाफ खड़े होने का कि देखिए हमारी फिल्म के साथ ऐसा हो रहा है। इससे पहले जिन फिल्मों का बायकॉट हुआ उस पर न अमिताभ बच्चन बोले, न शाहरुख खान। तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में नहीं थी। मैं फिर कह रहा हूं कि सबसे गंभीर मुद्दा अगर पिछले कुछ सालों में हुआ है तो वह नारा है सर तन से जुदा का, उस पर इन लोगों की आपराधिक चुप्पी बताती है कि ये टुकड़े-टुकड़े गैंग के ही सदस्य हैं। हरिवंश राय बच्चन की कविता की दो पंक्तियों से मैं अपनी बात का अंत करूंगा, ‘स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो सत्य का भी ध्यान कर ले, पूर्व चलने के बटोही बाट का भी ध्यान कर ले।’ केवल सपना मत देखिए, देखिए कि आस-पास सच्चाई क्या है। जिस रास्ते पर चल रहे हैं उस पर चलने से पहले सोचना चाहिए कि वह रास्ता कहां ले जाएगा। वह रास्ता देश के विरोध में ले जाता है। इनको पता है कि वह रास्ता कहां जाता है। ये संयोगवश या मजबूरी में उस रास्ते पर नहीं चले हैं। ये जानबूझ कर, सोचते-समझते खुली आंखों से उस रास्ते पर चल रहे हैं तो उसका परिणाम भी भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)



