युद्ध पर आमादा तालिबान पर लगाम लगाने का एक मात्र
तरीक़ा- शंघाई सहयोग संगठन।
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के साथ ही युद्ध ग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान पर जल्द कब्ज़ा जमाने की मंशा से फिर से ताकतवर होता तालिबान अपनी पूरी कोशिशों में जुटा हुआ है। अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी इलाके और मज़ार ए शरीफ़ के उत्तरी जिलों के अपने पारंपरिक गढ़ में तालिबान ने फिर से जबरदस्त वापसी की है। तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों को चारों तरफ से घेर लिया है। प्रमुख सीमा के क्रॉसिंग और चेकप्वाइंटस पर दोबारा कब्ज़ा जमा लिया है और फिर से सिगरेट पीने और दाढ़ी कटाने पर पाबंदी जैसे नियमों को लागू कर दिया है। यहां तक कि महिलाओं को बिना पुरूष के साथ बाहर निकलने पर भी मनाही है। तालिबान ने तो तमाम इमामों से ‘अपने कब्ज़े वाले इलाके में 15 साल की उम्र से बड़ी लड़कियों और 45 साल की विधवाओं की सूची बनाने को कहा है जिससे तालिबान लड़ाके उनसे शादी कर सकें ।
तालिबान का उत्थान और उसके साथ ही तालिबान द्वारा पवित्र क़ुरान का विश्लेषण जिसमें सख़्त नियमों की सिफारिश की जा रही है, वह न सिर्फ़ ट्रंप और जो बाइडेन प्रशासन के तुष्टिकरण की नीति का नतीजा है बल्कि तालिबान के साथ तमाम क्षेत्रीय शक्तियों के निपटने की वजह भी है। हालांकि, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) तमाम क्षेत्रीय शक्तियों के साथ काम कर सकती है, लेकिन कुछ मुल्कों की संकीर्ण स्वार्थ की वजह से अफ़ग़ानिस्तान और इसकी सीमा से सटे इलाकों में लंबे समय के लिए शांति और स्थिरता के रास्ते में अभी भी कई व्यवधान हैं।
क्षेत्रीय शक्तियां और तालिबान
क्या वादा निभाएगा तालिबान?
अफगानिस्तान को जल्द भुला देंगे पश्चिमी देश
7 जुलाई को एक बार फिर चीन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर अमेरिका के जल्दी में लिए गए फैसले की आलोचना की और चेताया कि अफ़ग़ानिस्तान दोबारा ‘इस क्षेत्र में बारूद की ढ़ेर की तरह बन जाएगा जिससे भविष्य में यह इलाका आतंकवादियों के लिए जन्नत हो जाएगी।’ इसी तरह मध्य एशियाई देश जिनकी अफ़ग़ानिस्तान के साथ असुरक्षित सीमा है, उनके सामने बेहद चौंकाने वाली स्थिति पैदा हो गई जब बदख्शान प्रांत से 1,037 अफ़गान कर्मचारियों ने सीमा पार कर ली। इस घुसपैठ के बाद तज़ाकिस्तान की सरकार ने मजबूरी में अपनी सीमा पर 20,000 रिज़र्व सुरक्षा जवानों की तैनाती करनी पड़ी। इतना ही नहीं तज़ाकिस्तान सरकार ने सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीईटीओ) से मदद की मांग की। मई 2021 में पश्चिमी काबुल इलाके में शिया संप्रदाय के हज़ारा समुदाय की आबादी वाले इलाके में एक बम बिस्फोट हुआ, जिसमें 50 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए। लेकिन इस हमले की ज़िम्मेदारी किसी भी आतंकी संगठन ने नहीं ली, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने इस हमले के लिए तालिबान को ज़िम्मेदार बताया।
पड़ोसी मुल्कों पर भी होगा जंग का असर
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