युद्ध पर आमादा तालिबान पर लगाम लगाने का एक मात्र
तरीक़ा- शंघाई सहयोग संगठन।

एजाज़ वानी।
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के साथ ही युद्ध ग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान पर जल्द कब्ज़ा जमाने की मंशा से फिर से ताकतवर होता तालिबान अपनी पूरी कोशिशों में जुटा हुआ है। अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी इलाके और मज़ार ए शरीफ़ के उत्तरी जिलों के अपने पारंपरिक गढ़ में तालिबान ने फिर से जबरदस्त वापसी की है। तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों को चारों तरफ से घेर लिया है। प्रमुख सीमा के क्रॉसिंग और चेकप्वाइंटस पर दोबारा कब्ज़ा जमा लिया है और फिर से सिगरेट पीने और दाढ़ी कटाने पर पाबंदी जैसे नियमों को लागू कर दिया है। यहां तक कि महिलाओं को बिना पुरूष के साथ बाहर निकलने पर भी मनाही है। तालिबान ने तो तमाम इमामों से ‘अपने कब्ज़े वाले इलाके में 15 साल की उम्र से बड़ी लड़कियों और 45 साल की विधवाओं की सूची बनाने को कहा है जिससे तालिबान लड़ाके उनसे शादी कर सकें ।

तालिबान का उत्थान और उसके साथ ही तालिबान द्वारा पवित्र क़ुरान का विश्लेषण जिसमें सख़्त नियमों की सिफारिश की जा रही है, वह न सिर्फ़ ट्रंप और जो बाइडेन प्रशासन के तुष्टिकरण की नीति का नतीजा है बल्कि तालिबान के साथ तमाम क्षेत्रीय शक्तियों के निपटने की वजह भी है। हालांकि, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) तमाम क्षेत्रीय शक्तियों के साथ काम कर सकती है, लेकिन कुछ मुल्कों की संकीर्ण स्वार्थ की वजह से अफ़ग़ानिस्तान और इसकी सीमा से सटे इलाकों में लंबे समय के लिए शांति और स्थिरता के रास्ते में अभी भी कई व्यवधान हैं।

Taliban on the brink of taking over Kabul after capturing presidential palace - World - DAWN.COM

क्षेत्रीय शक्तियां और तालिबान

क्षेत्रीय शक्तियां अपनी भू रणनीतिक, भू आर्थिक और सुरक्षा के दांव के साथ इस बात को लेकर काफी असमंजस में हैं कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान से पूरी तरह सेना को वापस लेने की घोषणा कर दी। भारत को छोड़कर ज़्यादातर क्षेत्रीय शक्तियां गुप्त रूप से तालिबान से मुलाकात कर चुकी हैं और अपने इलाके में भू-रणनीतिक और सुरक्षा हितों के लिए कुछ मुल्कों ने इसका इस्तेमाल भी किया है। मसलन, तेहरान और मास्को ने साल 2019 के बाद अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट से संबंधित पृष्ठभूमि को लेकर तालिबान को मदद की थी। इन मुल्कों ने इस आतंकी समूह का इस्तेमाल अमेरिका के साथ अपनी दुश्मनी साधने के लिए किया। तालिबान के प्रतिनिधि ने तेहरान और मास्को जाकर वहां की सरकारों के साथ बातचीत की और अंतर अफ़ग़ानिस्तान वार्ता को संबंधित देशों के साथ सफल बनाया।

क्या वादा निभाएगा तालिबान?

अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकी समूहों या व्यक्तिगत तौर पर’ जिसमें अल कायदा और आईएसआईएस- के जैसे आतंकी समूह भी शामिल हैं- उनके द्वारा इस्तेमाल रोकने को लेकर तालिबान ने हमेशा से अमेरिका और उसके सहयोगियों की आंखों में धूल झोंकने का काम किया है। तालिबान ने ऐसा ही भरोसा शिया संप्रदाय की सहनशीलता के लिए रूस, अफ़ग़ानिस्तान के उत्तर में मौजूद मध्य एशियाई मुल्कों, चीन और इरान को भी दिया था। लेकिन पिछले दो महीनों से तालिबान की गतिविधियों को देखते हुए क्षेत्रीय ताकतों को तालिबान की कथनी और करनी पर भरोसा नहीं रह गया है।

अफगानिस्तान को जल्द भुला देंगे पश्चिमी देश

7 जुलाई को एक बार फिर चीन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर अमेरिका के जल्दी में लिए गए फैसले की आलोचना की और चेताया कि अफ़ग़ानिस्तान दोबारा ‘इस क्षेत्र में बारूद की ढ़ेर की तरह बन जाएगा जिससे भविष्य में यह इलाका आतंकवादियों के लिए जन्नत हो जाएगी।’ इसी तरह मध्य एशियाई देश जिनकी अफ़ग़ानिस्तान के साथ असुरक्षित सीमा है, उनके सामने बेहद चौंकाने वाली स्थिति पैदा हो गई जब बदख्शान प्रांत से 1,037 अफ़गान कर्मचारियों ने सीमा पार कर ली। इस घुसपैठ के बाद तज़ाकिस्तान की सरकार ने मजबूरी में अपनी सीमा पर 20,000 रिज़र्व सुरक्षा जवानों की तैनाती करनी पड़ी। इतना ही नहीं तज़ाकिस्तान सरकार ने सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीईटीओ) से मदद की मांग की। मई 2021 में पश्चिमी काबुल इलाके में शिया संप्रदाय के हज़ारा समुदाय की आबादी वाले इलाके में एक बम बिस्फोट हुआ, जिसमें 50 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए। लेकिन इस हमले की ज़िम्मेदारी किसी भी आतंकी संगठन ने नहीं ली, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने इस हमले के लिए तालिबान को ज़िम्मेदार बताया।

पड़ोसी मुल्कों पर भी होगा जंग का असर

Kabul Falls, Afghanistan Burns as Taliban Declare 'War Is Over'

अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने की कोशिश और देश के अलग अलग हिस्सों में जो हिंसा तालिबान ने मचा रखी है वह पूरी तरह से इस बात को साबित करती है कि देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल करने को लेकर अंतर अफ़गान वार्ता के बारे में अब तक संबंधित मुल्कों और समूहों के साथ तालिबान ने सिर्फ धोखा किया है। अहमद राशिद, पत्रकार और ‘तालिबान: मिलिटेन्ट इस्लाम’ नाम की किताब के लेखक का कहना है कि “अफ़ग़ानिस्तान में जारी जंग का असर पड़ोसी मुल्कों पर भी होगा।” ईरान, मध्य एशियाई मुल्क, पाकिस्तान और चीन के जिनजिंयांग प्रांत में इसका तुरंत असर देखा जाएगा जबकि रूस और भारत में इसे लेकर सुरक्षा और आतंकवाद की चुनौतियां बढेंगी।  इतना ही नहीं, जैसे-जैसे क्षेत्रीय शक्तियां तालिबान को हिंसा फैलाने से रोकने की कोशिश करेंगी, अफ़ग़ानिस्तान में जारी गृह युद्ध का फायदा उठाने के लिए दुनिया भर के आतंकवादी संगठन अफ़ग़ानिस्तान का रूख़ करेंगे जिससे उनका हित पूरा हो सके। ऐसी स्थिति में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) इस क्षेत्र में तालिबान की चुनौतियों से निपटने के लिए एक अनुकूल अवधारणा को विकसित करने में मदद करेगा। (ओआरएफ द्वारा प्रकाशित आलेख के सम्पादित अंश)
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