मदर टेरेसा और उनके कार्यों का विश्लेषण-2
ओशो ।
कुछ ही रोज पहले भारतीय संसद में धर्म की स्वतंत्रता के ऊपर एक बिल प्रस्तुत किया गया। बिल प्रस्तुत करने के पीछे उद्देश्य था कि किसी को भी अन्यों का धर्म बदलने की अनुमति नहीं होनी चाहिए : जब तक कि कोई अपनी मर्जी से अपना धर्म छोड़ कर किसी अन्य धर्म को अपनाना न चाहे।
मदर टेरेसा पहली थीं जिन्हौने इस बिल का विरोध किया। अब तक के अपने पूरे जीवन में उन्होंने कभी किसी बात का विरोध नहीं किया। यह पहली बार था और शायद अंतिम बार भी। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और उनके और प्रधानमंत्री के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया। उन्होंने कहा, ”यह बिल किसी भी हालत में पास नहीं होना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से हमारे काम के खिलाफ जाता है। हम लोगों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और लोग केवल तभी बचाए जा सकते हैं जब वे रोमन कैथोलिक बन जाएँ”।
उन्होंने सारे देश में इतना हल्ला मचाया– और राजनेता तो वोट की फिराक में रहते ही हैं। वे ईसाई मतदाताओं को नाराज करने का ख़तरा नहीं उठा सकते थे– सो बिल को गिर जाने दिया गया। बिल को भुला दिया गया।
यदि मदर टेरेसा सच में ही ईमानदार हैं और वे यह विश्वास रखती हैं कि किसी व्यक्ति का मत परिवर्तन करने से उसका मनोवैज्ञानिक ढांचा छिन्न भिन्न हो जाता है तो उन्हें मूलभूत रूप में मत-परिवर्तन के खिलाफ होना चाहिए। कोई अपनी इच्छा से अपना मत बदल ले तो बात अलग है।
अब उदाहरण के लिए तुम स्वयं मेरे पास आए हो, मैं तुम्हारे पास नहीं गया। मैं तो अपने दरवाजे से बाहर भी नहीं जाता।
मैं किसी के पास नहीं गया, तुम स्वयं मेरे पास आए हो। और मैं तुम्हें किसी और मत में परिवर्तित भी नहीं कर रहा हूँ। मैं यहाँ कोई विचारधारा भी स्थापित नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हें कैथोलिक चर्च की तरह धार्मिक शिक्षा की प्रश्नोत्तरी भी नहीं दे रहा, किसी किस्म का कोई वाद नहीं दे रहा। मैं तो सिर्फ मौन हो सकने में सहायता प्रदान कर रहा हूँ। अब, मौन न तो ईसाई है, न मुस्लिम, और न ही हिंदू; मौन तो केवल मौन है। मैं तो तुम्हें प्रेममयी होना सिखा रहा हूँ। प्रेम न ईसाई है, न हिंदू और न ही मुस्लिम। मैं तुम्हें जाग्रत होना सिखा रहा हूँ। चेतनता सिर्फ चेतनता ही है इसके अलावा और कुछ नहीं और यह किसी की बपौती नहीं है। चेतनता को ही मैं सच्ची धार्मिकता कहता हूँ।
मेरे लिए मदर टेरेसा और उनके जैसे लोग पाखंडी हैं, क्योंकि वे कहते एक बात हैं- पर यह सिर्फ बाहरी मुखौटा होता है क्योंकि- वे करते दूसरी बात हैं। यह पूरा राजनीति का खेल है। संख्याबल की राजनीति।
वे कहती हैं, ”मेरे नाम के साथ आपने जो विशेषण इस्तेमाल किये हैं उनके लिए मैं आपको प्रेम भरे ह्रदय के साथ क्षमा करती हूँ”। पहले तो प्रेम को क्षमा की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि प्रेम क्रोधित होता ही नहीं। किसी को क्षमा करने के लिए तुम्हारा पहले उस पर क्रोधित होना जरूरी है।
मैं मदर टेरेसा को क्षमा नहीं करता, क्योंकि मैं उनसे नाराज नहीं हूँ। मैं उन्हें क्षमा क्यों करूँ? वे भीतर से नाराज होंगीं। इसीलिये मैं तुमको इन बातों पर ध्यान लगाने के लिए कहना चाहता हूँ। कहते हैं, बुद्ध ने कभी किसी को क्षमा नहीं किया, क्योंकि साधारण सी बात है कि वे किसी से कभी भी नाराज ही नहीं हुए। क्रोधित हुए बिना तुम कैसे किसी को क्षमा कर सकते हो? यह असंभव बात है। वे क्रोधित हुई होंगीं। इसी को मैं अचेतनता कहता हूँ। उन्हें इस बात का बोध ही नहीं कि वे असल में लिख क्या रही हैं। उन्हें भान भी नहीं है कि मैं उनके पत्र के साथ क्या करने वाला हूँ!
वे कहती हैं, ‘मैं महान प्रेम के साथ आपको क्षमा करती हूँ’। जैसे कि प्रेम भी छोटा और महान होता है। प्रेम तो प्रेम है। यह न तो तुच्छ हो सकता है और न ही महान। तुम्हें क्या लगता है कि प्रेम गणनात्मक है? यह कोई मापने वाली मुद्रा है? एक किलो प्रेम, दो किलो प्रेम। कितने किलो का प्रेम महान प्रेम हो जाता है? या कि टनों प्रेम चाहिए?
प्रेम गणनात्मक नहीं वरन गुणात्मक है और गुणात्मक को मापा नहीं जा सकता। न यह गौण है न ही महान। अगर कोई तुमसे कहे, “मैं तुमसे बड़ा महान प्रेम करता हूँ।” तो सावधान हो जाना। प्रेम तो बस प्रेम है, न उससे कम न उससे ज्यादा।
मैंने कौन सा अपराध किया है कि वे मुझे क्षमादान दे रही हैं? कैथोलिक्स की मूर्खतापूर्ण पुरानी परम्परा- और वे क्षमा करे चली जाती हैं! मैंने तो किसी अपराध को स्वीकार नहीं किया फिर उन्हें मुझे क्यों क्षमा करना चाहिए?
मैं इस्तेमाल किये गये विशेषणों पर कायम हूँ, बल्कि मैं कुछ और विशेषण उनके नाम के साथ जोड़ना पसंद करूँगा– कि वे मंद और औसत बुद्धि की मालकिन हैं, बेतुकी हैं। और अगर किसी को क्षमा ही करना है तो उन्हे ही क्षमा किया जाना चाहिए क्योंकि वे एक बहुत बड़ा पाप कर रही हैं। अपने पत्र में वे कहती हैं, ”मैं गोद लेने की परम्परा को अपना कर गर्भपात के पाप से लड़ रही हूँ”। अब आबादी के बढ़ते स्तर से त्रस्त काल में गर्भपात पाप नहीं है बल्कि सहायक है आबादी नियंत्रित रखने में। अगर गर्भपात पाप है तो पोप और मदर टेरेसा और उनके संगठन उसके लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि ये लोग गर्भ-निरोधक संसाधनों के खिलाफ हैं, वे जन्म दर नियंत्रित करने के हर तरीके के खिलाफ हैं, वे गर्भ-निरोधक पिल्स के खिलाफ हैं। असल में यही वे लोग हैं जो गर्भपात के लिए जिम्मेदार हैं। गर्भपात की स्थिति लाने के सबसे बड़े कारण ऐसे लोग ही हैं। मैं इन्हे बहुत बड़ा अपराधी मानता हूँ!
बढ़ती आबादी से ग्रस्त धरती पर जहां लोग भूख से मर रहे हों, वहाँ गर्भ-निरोधक पिल का विरोध करना अक्षम्य है। यह पिल आधुनिक विज्ञान का बहुत बड़ा तोहफा है आज के मानव के लिए। यह पिल धरती को सुखी बनाने में सहायता कर सकती है।
(ओशो के अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित)