आपका अख़बार ब्यूरो ।
विरले ही ऐसा होता है कि दो लोगों में तमाम समानता के बावजूद वे परस्पर विपरीत मूल्यों के प्रतिनिधि बन जाते हैं। भारत के स्वतंत्र होने और बंटवारे को लेकर कुछ ऐसा ही संयोग हमें महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में दिखता है। यही नहीं, भगवान राम के परम साधक तुलसीदास और परम द्रोही लंकापति रावण की कुंडली देखकर भी आप अचरज से भर उठेंगे।
जिन्ना और गांधी
मोहनदास करमचंद गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना… दोनों लगते तो विपरीत ध्रुव हैं क्योंकि एक ने देश को आजाद कराने में योगदान दिया तो दूसरा देश के बंटवारा कराकर ही माना। लेकिन दोनों में तमाम समानताएं भी रहीं। जैसे
1- दोनों के नाम का प्रथम अक्षर एक
2- दोनों की मातृभाषा गुजराती
3- दोनों के माता-पिता कठियावाड़ गुजरात से
4- दोनों ने लंदन में वकालत पढ़ी। भारत लौटे और मुंबई में प्रैक्टिस की।
5- दोनों वकालत के पेशे से राजनीति में आए।
6- दोनों एक ही दल ‘कांग्रेस पार्टी’ में शामिल हुए।
7- दोनों राष्ट्रपिता। गांधी भारत में राष्ट्रपिता कहलाए तो जिन्ना पाकिस्तान में ‘बाबा-ए-कौम’।
8- दोनों का निधन एक ही साल हुआ। गांधी जी की पुण्यतिथि 30 जनवरी 1948 और जिन्ना की पुण्यतिथि 11 सितंबर 1948 है।
तुलसीदास और रावण
समीर उपाध्याय, ज्योतिर्विद
कुंडली में समान लग्न तथा ग्रहों की कुछ मिलती-जुलती स्थिति के बावजूद रावण दुरात्मा और तुलसीदास संतात्मा कैसे बने।
रावण की कुंडली
रामायण का अहम किरदार रावण… अपनी अद्वितीय शक्ति के घमंड में चूर। साधु-संतों को सताया, की तपस्या भंग की, सीता-हरण जैसे अनैतिक कार्य कर जन्म-जन्मांतर के लिए खलनायक बन गया। पौराणिक कथाओं की मानें तो सभी विद्याओं मे निपुण रावण प्रकांड विद्वान एवं अद्भुत बलशाली था।
रावण का जन्म तुला लग्न, तुला राशि में हुआ। कुंडली में चारों केन्द्र भावों में उच्च-ग्रह मौजूद थे। लग्न में उच्च राशि के शनि की उपस्थिति लम्बे समय तक प्राप्त होने वाली प्रतिष्ठा एवं वैभव देने वाला शश योग बनाए हुए थी। दशम भाव में उच्च बृहस्पति से बने हंस महापुरुष योग ने रावण को कई सिद्घियों का स्वामी बनाया और देव कृपा के साथ शास्त्रों काप्रकांड विद्वान बनाया। चतुुर्थ भाव में उच्च राशि में स्थित मंगल ने विशाल साम्राज्य दिलाया। मंगल के प्रभाव के कारण रावण बलशाली योद्घा बना। सप्तम भाव में उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से रावण को प्रतिष्ठत एवं शक्तिशाली शत्रु (राम) का सामना करना पड़ा।
ग्रह-योग जिन्होंने दुरात्मा बनाया
लग्न में चंद्र-शनि-केतु की युति के कारण चंद्रमा दूषित हो गया और उसने रावण को स्वभाव से कुटिल एवं मायावी बना डाला। लग्न में चंद्र+शनि ग्रहण एवं पुनर्फूयोग ने कई बाधाओं का सामना करवाया। सप्तम भाव में स्थित उच्च राशि के सूर्य पर चंद्र, मंगल तथा शनि की दृष्टि ने रावण को दूषित चरित्र वाला व्यक्तित्व दिया। लग्नेश शुक्र के छठे भाव में उच्च राशि में रहने ने रावण को भोगी, विलासी एवं विवादित बनाया। भाग्येश बुध की नीच राशि में स्थिति ने रावण को अपने कुल के लिए अनिष्टकारी बनाया और इसी ने रावण की बुद्घि को भ्रमित कर कुमार्गी भी बनाया।
संत तुलसीदास
पंद्रह सौ चौवन विसै, कालिंदी के तीर। श्रावण शुुक्ल सप्तमी, तुलसी धरे शरीर॥ (भविष्योत्तर पुराण)
पद्रहवीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक गांव में संवत 1554 श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन संत तुलसीदास का जन्म हुआ था। लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास कहते हैं कि दुनिया में हर समय कहीं न कहीं रामचरित मानस गाई जा रही होती है। भक्ति-भाव का यह क्रम कभी रुकता नहीं। और यही तुलसीदास को विलक्षण संत बनाता है।
ग्रह-योग जिन्होंने संत बनाया
तुलसीदास का जन्म तुला लग्न तथा तुला राशि में हुआ था। कुंडली में लग्न-चंद्र से चतुर्थ भाव में मंगल केतु की स्थिति के कारण उनके जन्म से ठीक दसवें दिन में माता चल बसीं। तुलसी जब साढ़े पांच वर्ष के हुए तो जन्म के समय पालन-पोषण करने वाली दासी चुनिया का निधन हो गया। कुंडली में लग्न तथा राशि का स्वामी शुक्र होने से पत्नी रत्नावली से अगाध प्रेम किया, किंतु चतुर्थ भाव में मंगल (मंगला दोष) तथा सप्तम में नीच राशि के शनि ने पत्नी द्वारा तिरस्कार के बाद संत बना डाला। सभी चारों केंद्र भावों में ग्रह होने से बने ‘आसमुद्रात योग’ ने उनकी कीर्ति पूरी दुनिया मे फैलाई। भाग्येश बुध दशम भाव में सूर्य के साथ तथा कर्मेश चंद्र लग्न भाव में स्थित होने के कारण विलक्षण भक्त-कवि बने। द्वितीय भाव में स्थित गुरु की दशम भाव पर दृष्टि की वजह से इनकी चौपाइयां आज भी अमोघ मंत्र की तरह व्यक्ति के कष्ट, रोग व शोक को दूर करने वाली बनी हुई हैं। जन्म लग्न तुला से दशम अर्थात कर्क लग्न-राशि में जन्मे श्रीराम के प्रति तुलसीदास के जन्मजात भक्ति ज्योतिषीय दृष्टि से सत्य सिद्घ होती है।
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