सत्यदेव त्रिपाठी।
टी-20 विश्वकप के फाइनल मैच में अंतिम दो तीन ओवरों में एक घड़ी ऐसी भी आई जब कमेंट्रेटर को कहना पड़ा जो कमजोर दिल वाले हैं वे यह मैच न देखें। हर पल हर गेंद पर ऐसा था रोमांच। लेकिन फिर आधी रात की जीत में लखनऊ से मुंबई तक जगह जगह आकाश रंगबिरंगी आतिशबाजी से भर गया। देश ने जून में जोरदार दीवाली मनाई। जैसा क्रिकेट में होता है कि यहाँ अनिश्चितता ही निश्चित है। तमाम तनावों-संघर्षों, अवसाद-आनंदों का यह टी-20 मुक़ाबला भारत के लिए तीन-तीन दिग्गजों के बिछोह का भी कर्त्ता बना है।
पहले हैं टीम के टीम के मुख्य प्रशिक्षक (हेड कोच)राहुल द्रविड़, जिनका कार्य-सत्र समाप्त हो रहा है…। उनकी उदारता, अनुशासन-प्रियता एवं कार्य की दक्षता के तो सभी क़ायल हैं, लेकिन उनके अंतस में निहित संवेदनशील मनुष्यता को इस स्पर्धा के दौरान तब देखने का मौक़ा पूरे देश को मिला, जब अपनी बल्लेबाज़ी में लगातार असफल होते हुए कोहली सेमी फ़ाइनल के बाद विराट टूटन के शिकार होकर गलदश्रु हो रहे थे…।
उस वक्त राहुल द्रविड़ डायरी-पेन के साथ ध्यान केंद्रित किए हुए सभी खेलते खिलाड़ियों और मैदान पर होते मामलों पर पैनी नज़र रखते हुए अपने नोट्स लेने में व्यस्त थे, पर इसी बीच उनकी सजग छठीं इंद्रिय से विराट का क्षोभ भी अनजाना नहीं रहा…। वे सब छोड़-छाड़ कर उठे और देर तक विराट को सांत्वना देते व समझाते-सहलाते एवं एकाधिक बार अपने बच्चे की तरह अंकवार-बद्ध करते भी दिखे…। ऐसे कार्य-कुशल एवं इतने गहन मानवीय संवेदनाओं वाले कोच का अभाव टीम को सालेगा…और अब तो टीवी पर बैठे हम भी अगले कोच को द्रविड़ की तुला पर तौलने के लिए अपने को विवश पाएँगे…।
उनके आगामी कार्य एवं जीवन के लिए हमारी अशेष शुभ कामनाएँ…
दूसरे हैं विराट कोहली, जिनका इस खेल-प्रकार से सन्यास लेना सम्भावित तो था, लेकिन घोषित नहीं था। इसी प्रतियोगिता के दौरान मुखर हुआ, जिसमें उनके बल्लेबाज़ी-क्रम के साथ ऐसी अटल फेर-फ़ार हुई, जो उनके नाज़ुक हालात के वावजूद बदली न जा सकी…। इसके चलते कयास बनते हैं कि उनके विराट योगदान की ऐसी अनदेखी या अवहेलना से अवश्य उनके उड़ते-पड़ते इरादे व विचार पक्के हुए होंगे कि इस खेल-प्रकार में अब उनके लिए अनिवार्य व वाजिब जगह नहीं रह गयी है। तो आगे चलकर चयन से वंचित कर दिये जाने के बदले अपनी तरफ़ से हट जाना बेहतर होगा…। ऐसे में एक युति और बन गयी कि कल के मुक़ाबले में वे सफल हो गये और इस सफलता के साथ हट जाना भी अवश्य श्रेयस्कर लगा होगा…।
तीसरे हैं स्वयं कप्तान रोहित शर्मा। उनके सन्यास क़ी कोई सुनग़ुन भी न थी। ऐसे में पहला सूत्र मिलता है इस जीत का, जो ऐसा ऐतिहासिक मौक़ा है कि सन्यास के लिए इससे बेहतर और यादगार समय हो नहीं सकता…। आइडिया तो अवश्यमेव इसी ने दिया होगा…। यह तो हुआ वर्तमान, लेकिन इतिहास से सीख लेना भी बड़ी बुद्धिमानी होती है, जिसमें आईपीएल की कप्तानी के हादसे ने भी अवश्य ही कुछ स्फुट संदेश दिए होंगे…। कल को यहाँ भी भविष्य के लिए नये को आज़माने के प्रयत्न हो सकते हैं। तो जीत के साथ सन्यास का यह अवसर स्वर्णिम है। अब यह सोचना उतना संगत न होगा कि यह जीत न मिलती, तो भी क्या ऐसा होता…! और विराट के निर्णय से मिले आइडिया से भी कैसे इनकार करें…?
रोहित व विराट दोनो की तेजस्विता व संवेदनशीलता के मद्दे नज़र उनके सामाजिक सरोकार की बात भी बनती है कि नये खिलाड़ियों का इतना रेला आ रहा है…और उसमें एक से एक अच्छे भी हैं, जिनके लिए रास्ता देना भी एक गहरी मानवीय संसक्ति का सिला है और ये दोनो ही दिग्गज इतने समझदार व ज़हीन हैं कि ‘द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र’ की नौबत क्यों आने देंगे…? जो भी हो, इन्हें हम कभी भूल न सकेंगे और अभी तो संतोष है कि टेस्ट मैचों व एक दिवसीय मुक़ाबलों में इनके खेल के आनंद से हम वंचित नहीं हो रहे हैं…आमीन!
हालांकि, रोहित शर्मा और विराट कोहली ने इंटरनेशनल टी20 फॉर्मेट को अलविदा कहने के एक दिन बाद रवीन्द्र जडेजा ने भी इंस्टाग्राम पोस्ट कर अपने रिटायरमेंट की जानकारी दी। इस तरह टी20 वर्ल्ड कप चैंपियन बनने के बाद भारत के 3 बड़े खिलाड़ी इस फॉर्मेट को अलविदा कह चुके हैं।