अजय गोस्‍वामी ।

यह प्रकृति कितनी सुंदर है, क्‍योंकि इसमें रंग भरे हैं। अगर रंग भरी इस दुनिया में वैमनस्‍यता, द्वेष, अदावत, आतंकवाद, युद्ध जैसे ज्‍वलनशील रंगों को घुलने दिया जाए, इन्‍हें न रोका जाए तो क्‍या यह खूबसूरत दुनिया रहने लायक बचेगी। कदापि नहीं। इसी तरह जीवन में भी इन रंगों को घुलने से न रोका जाएगा तो जीवन जीने लायक नहीं बचेगा। ऐसा ही कुछ संदेश होली के रंगों का भी है। इन रंगों की भाषा को पढ़ें, समझें और इस अनंत, अथाह रंगों के सागर में मिलकर खुशियों की डुबकी लगाएं, फिर देखिए सामाजिक तानाबान कितना सुंदर हो जाएगा। होली एक त्‍योहार, परंपरा है । क्‍योंकि यह बुराई पर अच्‍छाई की जीत का प्रतीक है। अहम पर सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की जीत का प्रतीक है। वसंत के आगमन के प्रतीक के रूप में रंगों के साथ मनाई जाती है। होली दशकों से मनाई जा रही है। हर साल आती है रंगों में अपना संदेश देकर चली जाती है। हरे, लाल, पीले, गुलाबी, नीले जैसे कई रंग जब एक-दूसरे के ऊपर बिखरकर आपस में घुल मिल जाते हैं तो एक नया ही रंग जमा देते हैं। क्‍या इस एक नए रंग में से कोई रंगों को अलग-अलग कर सकता है। कभी नहीं कर सकता। ऐसे ही रंग जीवन में भर लो।

होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। रात में होलिका दहन किया जाता है, दूसरे दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। होली का इतिहास प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है। प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप का पुत्र था। और होलिका, हिरण्यकश्यप की बहन यानी कि प्रह्लाद की बुआ थी। प्रह्लाद भगवान विष्‍णु का परम भक्‍त था। उसके पिता हिरण्यकश्यप चाहते थे कि भगवान विष्‍णु की पूजा कोई न करे, सब उसे ही भगवान मानकर पूजा करें। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद से भी ऐसा ही कहता था कि वो उसे भगवान माने। पर प्रह्लाद यह मानने को तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद की इस हठ को छोड़ने के लिए कई प्रयत्‍न करता है। जब नहीं मानता है तो प्रह्लाद को जान से मार देना चाहता है। पर भगवान विष्‍णु की कृपा से वो हर बार जीवित बच जाता है। हिरण्यकश्यप होलिका से भी प्रह्लाद को मारने का कहता है। होलिका राक्षसी को ब्रह्मदेव से वरदान प्राप्त था की अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। उसे वरदान में एक चादर प्राप्‍त था जो आग में नहीं जल सकता था। होलिका, प्रह्लाद को गोदी बैठाकर चादर ओढ़कर आग में बैठ जाती है। वह जल जाती है और आग से प्रह्लाद जीवित बाहर निकल आता है। तब से होली का उत्‍सव मनाया जाने लगा। हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे यह वरदान प्राप्त किया। संसार का कोई भी देवी, देवता, राक्षस मनुष्य या जीव-जंतु नहीं मार सकता। न वह रात में मर सकता है न ही दिन में, न धरती पर न आकाश में, न घर के अंदर और न ही घर के बाहर। उसे कोई शस्त्र भी नहीं मार सकता ये वरदान उसे प्राप्‍त था। पर भगवान विष्‍णु ने भक्‍त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का अवतार लिया। खंभा फाड़कर प्रकट हुए और गोधूलि बेला में घर की देहरी के बीच में बैठकर हिरण्यकश्यप को गोद में लिटाकर नाखून से उसकी छाती चीरकर बध कर दिया था। हालांकि होली उत्‍सव मनाने को लेकर भगवान शिव-पार्वती, राधा-कृष्‍ण के अलावा कई कथाएं प्रचलित हैं।

होली पर रखें स्‍वास्‍थ्‍य का विशेष ध्‍यान, केमिकल रंग डाल सकते हैं रंग में भंग

हर साल होली का उत्सव सबसे पहले भारत के बरसाना क्षेत्र सहित मथुरा, नंदगाँव, वृन्दावन आदि में शुरू होता है। यह पूरे भारत में मनाया जाता है। ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान, दिल्ली, मुंबई, जयपुर सहित उत्तरी क्षेत्रों के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है। भारत के अलावा होली नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों में भी मनाई जाती है जहां भारतीय लोग रहते हैं। इस होली पर रंगों जैसे घुल मिलकर एक होने का संकल्‍प लें।(एएमएपी)

(लेखक एक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं ।)