भारतीय संस्कृति का अनुसरण करके ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है
पहले बात करेंगे जी-20 समिट की, जिसमें अध्यक्ष की आसंदी पर विराजित मोदी एक विश्व एक परिवार, सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास और सब के प्रयास की थीम पर अपना उद्बोधन देते हैं। उनकी यह थीम विश्व भर के नेताओं को इतनी पसंद आई कि हर कोई उनकी कार्य प्रणाली का मुरीद होता नजर आया। निसंदेह उनके प्रति वैश्विक नेताओं का जो सम्मानजनक भाव रहा उसने भारतीय प्रतिष्ठा को गुणात्मक यश और कीर्ति प्रदान की है। अन्य वैश्विक मंचों पर भी नरेंद्र मोदी का यही स्वरूप और कथन समय-समय पर एक ओर वैश्विक शांति को लेकर सकारात्मक वातावरण निर्मित करते हैं, तो वहीं इस विश्वास को दृढ़ता प्रदान करते हैं कि अंततः भारतीय संस्कृति का अनुसरण करके ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है, सभी के बीच सद्भाव स्थापित किया जा सकता है और समावेशी विकास की नींव रखी जा सकती है।
भाजपा के नेता एकात्मक मानव दर्शन का विचार लेकर मानव मात्र का भला करने निकले हुए हैं
बिल्कुल इसी थीम पर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को चलते देखा जा सकता है। यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सदैव ही सर्वधर्म समभाव और एकात्मक दर्शन की बात करते रहे हैं। उनकी कथनी और करनी में मोदी के समान ही संतुलन है। इसी का परिणाम है कि अब ओंकारेश्वर में एकात्मक दर्शन के प्रणेता आदि शंकराचार्य जी की प्रतिमा अनावरित हो चुकी है। यह वह संस्कृति और विचारधारा है जो भारत के सभी सिरों को एक सूत्र में पिरोती है तथा भेदभाव के दंश से हमें सुरक्षा प्रदान करती है। लिखने का आशय यह की बात प्रदेश की हो अथवा देश की, भाजपा की सरकारें और उसके नेता एकात्मक मानव दर्शन का विचार लेकर मानव मात्र का भला करने लंबी यात्रा पर निकले हुए हैं।
हमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्मक मानव दर्शन को समझना होगा
यह विचारधारा समूची विश्व की मूल इकाई कहे जाने वाले मानव के लिए कितनी हित कारक है, इसके लिए हमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्मक मानव दर्शन को समझना होगा। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय सदैव ही यह मानते रहे हैं कि अंततः जीव परमात्मा का ही अंश है। यह बात मनुष्य पर भी लागू होती है। यदि और सरल शब्दों में कहें तो हम किसी भी जाति संप्रदाय पंथ से संबंध रखते हों, अंततः तो हम परमपिता परमात्मा के अंश ही हैं। यानि आत्मा ही परमात्मा है और आत्मा ही परमात्मा का अंश है। तो फिर सभी मानव एक ही तो हुए!
जब हम सब एक हैं, एक ही पिता की संतान हैं तो फिर हम में भेद कैसा? हमारे बीच अपने पराया का भाव क्यों? क्यों हम आपस में एक दूसरे को उच्च नीच की दृष्टि से देखें? उनकी सदैव मान्यता रही की प्रदेश के मुख्यमंत्री हों, देश के प्रधानमंत्री हों अथवा विश्व के सर्वमान्य नेता, इन सभी को मानव और मानव के बीच भेद करने की नीति का त्याग करना होगा। जिस दिन नीति निर्धारकों ने इस व्यापक सोच के साथ जनहित के कार्य करने की ठानी, समझ लो मानव मात्र का अर्थात समूचे विश्व का भला होना ही है, इसमें संदेह नहीं।
संघ की तपस्या से उपजा था पंडित दीनदयाल में एकात्म मानव दर्शन का विचार
अब सवाल उठता है की पंडित दीनदयाल जी को ऐसे उच्च कोटि के विचार आए तो आए कहां से। इसके लिए इतना भर जानना समझना काफी होगा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय युवावस्था से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और इस महान संगठन के जीवन व्रती प्रचारक बने रहे। वहां उन्होंने भारतीय संस्कृति से संबंधित अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया। जिसमें आदि शंकराचार्य जी का जीवन दर्शन भी शामिल रहा। बाद में स्वर्गीय दीनदयाल उपाध्याय जी ने भी अनेक ग्रंथ लिखे। उनमें एकात्मक मानव दर्शन को बेहद उत्कृष्ट साहित्य के रूप में देखा जाता है।
जाहिर है इस एकात्मक मानव दर्शन का पठन-पाठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के अनेक मूर्धन्य विद्वानों के साथ-साथ नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं ने भी केवल पढ़ा ही नहीं, बल्कि उन्हें आत्मसात भी किया। यही कारण है कि जब मानव मात्र के हित की बात आती है तो हमारे देश के नीति नियंताओं को अंततः एकात्मक मानव दर्शन के पथ पर चलना ही होता है। यह सब संभव हो पा रहा है तो इसलिए क्योंकि आदि शंकराचार्य जी ने हमें ऐसे संस्कार दिए, जिन्हें एक कुशल लेखक, विचारक, विद्वान और चिंतक के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महा मनस्वी ने लिपिबद्ध किया।
फलस्वरुप उन सर्वोच्च विचारों को पढ़कर हमारा देश एक बार फिर जगतगुरु के पद पर स्थापित होने की ओर अग्रसर हो चला है। वर्तमान और भावी पीढ़ियों को ऐसे उत्तम विचारों से ओतप्रोत करने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को शत-शत नमन। उनकी पवन जन्म जयंती पर सभी देशवासियों को अनंत बधाइयां और शुभकामनाएं।(एएमएपी)