डिप्टी डायरेक्टर अधिकारी अजीत कुमार सिंह की पहल रंग लाई।

यह भी एक जुनून और सामाजिक काम करने का जज्बा ही है, जो मात्र एक पुकार और मदद के लिए हजारों हाथ घंटे भर में उठ जाते हैं। मरीज चाहे जिस भी जाति-बिरादरी का हो, उसकी आर्थिक स्थिति की सच्चाई होनी चाहिए। जब सच की जानकारी होती है तो लोग मरीज के उपचार में जुट जाते हैं और मरीज की सहायता के लिए एक दिन में चार से पांच लाख रुपये तक इकट्ठा कर लिये जाते हैं। वह भी एक रूपये से एक हजार रुपये की मदद के सहारे। यह एक विश्वास और मदद के लिए हाथ बढ़ाने का तरीका ही है, जो पूरे प्रदेश में ‘वानर सेना’ कर रही है और यह आइडिया लेकर आये पिछड़ा कल्याण विभाग में डिप्टी डायरेक्टर अधिकारी अजीत कुमार सिंह।इसकी एक बानगी अभी देखने को मिल रही है। बलिया के एक किसान परिवार अमित राय का लीवर ट्रांसप्लांट होना है। जिसमें 35 लाख रुपये का खर्च होना है। अभी वानर सेना ने चार दिन से अभियान शुरू किया है और गुरुवार की सुबह तक नौ लाख रुपये चंदा इकट्ठा हो गया। सरकारी मदद दिलाने के लिए अलग से वानर सेना मुहिम चला रही है। मदद के लिए चंदा मांगने वालों को देवदूत कहा जाता है। ये पूरे प्रदेश के हर जिले में हैं।

इस संगठन में छात्र से लेकर अच्छे पदों पर कार्य करने वाले लोग शामिल हैं। अजीत सिंह बताते हैं कि इस तरह का ख्याल आया जब हमारे गांव जौनपुर के सेरवां में एक गुमटी की दुकान चलाने वाले सौरभ की गुमटी जल गयी और वह बर्बादी के कगार पर पहुंच गया। हमने फेसबुक पर उसे डाला और मदद की गुहार लगायी। यह बात 2017 की है। फेसबुक पर डालने के बाद एक दिन में डेढ़ लाख रुपये इकट्ठा हो गये और वह आज तक अपना जीवन-यापन ठीक से कर रहा है।

हॉकर की बीटिया के शादी में की थी मदद

इसी तरह का एक वाकया बताते हुए अजीत सिंह ने कहा, ‘एक हमारे तारा चंद छात्रावास के एक हॉकर ने कहा कि भैया हमारे पुत्री की शादी है और कुछ रुपयों की कमी हो रही है।’ हमने अपने छात्रावास के ग्रुप में डाला कि आखिर चार बजे आकर हमको अखबार देने वाले का भी तो हमारी लोकसेवा आयोग की तैयारी में एक अहम भूमिका होती है। आज उसकी बिटिया की शादी है, हम सभी को कन्यादान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उसे घंटे भर में तीन लाख रूपये मिल गये। इसके बाद कोरोना काल में ख्याल आया कि लोगों की मदद में एक संगठित रूप से लोगों की मदद करने के लिए आगे आने की जरूरत है।

बंदर मुसीबत में नहीं छोड़ता साथ

इसके लिए वानर सेना का गठन किया। वानर सेना नाम क्यों दिया, इसके जवाब में अजीत सिंह ने कहा कि वानर ही एक ऐसा जानवर है, जो अपने साथी का मुसीबत में भी साथ नहीं छोड़ता। यही काम करती है वानर सेना। अजीत सिंह का कहना है कि कोरोना काल में जब अपने बेगाने होने लगे थे तो वानर सेना आगे आयी और दस हजार से भी ज्यादा लोगों को देवदूतों ने अस्पतालों का पता कर जहां जगह था, वहां एडमिट कराया। इसी तरह चार हजार से भी अधिक यूनिट ब्लड कोरोना काल में इकट्ठा कर मरीजों के लिए दिये गये, जिसको जरूरत पड़ती वह याद करता है तो देवदूत उसके पास पहुंच जाते हैं। यहां तक कि वीपी सिंह की बहू कैंसर की मरीज हैं। एक बार उन्हें खून की जरूरत पड़ी देवदूत जाकर वहां पर खून की व्यवस्था किये।

अनमय को थी गंभीर बीमारी, दिये थे तीन करोड़

यही नहीं अभी कुछ समय पहले सुलतानपुर जिले के कादीपुर क्षेत्र के विजुठुआ गांव के रहने वाले अनमय को गंभीर बीमारी थी। उसके लिए लगने वाले एक इंजेक्शन की कीमत 16 करोड़ थी। वानर सेना ने सुना और 20 दिन में तीन करोड़ रुपये की व्यवस्था कर उसके परिजनों को दे दिया। पिछले माह में ही प्रतापगढ़ के भुपिया मऊ के एक व्यक्ति को चार लाख रुपये, सुरापुर के विवेक अग्रहरी को साढ़े तीन लाख रुपये दिया गया। ये दोनों कैंसर के मरीज थे।

कीडनी ट्रांसप्लांट के लिए एकत्र किये थे 13 लाख

प्रयागराज की भूमिका की कीडनी ट्रांसप्लांट होनी थी। उसके परिवार की हैसियत नहीं थी कि वह इतना पैसा व्यय कर सके। वानर सेना ने अभियान चलाया और 13 लाख रुपये इकट्ठा करके दे दिये। अजीत सिंह का मानना है कि प्रशासन हर व्यक्ति से मिलकर मदद नहीं कर सकता। वह व्यवस्था बनाने के लिए बना है। मदद के लिए तो हम सबमें आपसी भाइचारा की जरूरत है।(एएमएपी)