के. विक्रम राव।
पड़ोसी इस्लामी जम्हूरियाये पाकिस्तान के वजीरे आजम खान मोहम्मद इमरान खान पठान के विषय में कराची दैनिक (जिन्ना द्वारा स्थापित) ”दि डान” की खबरों के अनुसार विदेश की यात्रा पर इमरान को करोड़ों रुपयों के उपहार मिलते हैं। उन्होंने उसे दुबई में बेचकर अकूत धन कमाया। सरकारी नियम है कि राष्ट्रनायकों को मिले उपहारों को सरकारी खजाने में जमा करना पड़ता है। इमरान ने इस कानून की सरेआम अवहेलना की और निजी मुनाफे में जोड़ लिया।


इमरान ने बेची 70 लाख की घड़ी

पाकिस्तान प्रतिपक्ष की नेता मोहतरमा मरियम नवाज शरीफ और मौलाना फजलुर रहमान के अनुसार खाड़ी राष्ट्र के एक अरब शाहजादे ने इमरान को एक कीमती घड़ी पेश की थी, जिसे उन्होंने दूसरे अमीर अरब को बेचकर दस लाख डॉलर (करीब 70 लाख रुपये) कमा लिये। नियम यह है कि केवल दस हजार से कम का उपहार साथ ले जा सकते है। इमरान के विशेष सचिव शाहबाज गिल ने बताया कि राष्ट्रीय सूचना आयोग के आदेशानुसार यदि प्रधानमंत्री को मिले उपहारों की कीमत सार्वजनिक कर दी जाये तो राष्ट्र के गौरव को धक्का लगेगा।

मोदी क्या करते हैं

Over 2,700 Gifts Received By PM Narendra Modi To Be Auctioned From  September 14

अब जानने की कोशिश करें कि भारतीय प्रधानमंत्रियों को भेंट में मिली वस्तुओं का क्या होता रहा? नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने निहायत सावधानी बरती। अभी कुछ दिन पहले मोदी ने अपने समस्त उपहारों का ई-आक्शन (आनलाइन नीलामी) कर दिया था। जितनी राशि मिली सब गंगा सफाई अभियान फण्ड (‘नमामि गंगे’) में दे दिया। पास कुछ भी नहीं रखा। इमरान खान और नरेन्द्र मोदी की समता तो हो ही नहीं सकती।

वोडका से संतुष्ट कॉमरेड

इसी संदर्भ में कुछ पुराने उदाहरणों का विवरण जान लें। वह दौर था साठ और सत्तर के दशकों का। कम्युनिस्ट सोवियत रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रनायकों में प्रतिस्पर्धा थी कि किसका वर्चस्व नयी दिल्ली पर जमे। रूसी गुप्तचर संस्था केजीबी तब इन्दिरा काबीना के मंत्रियों को सूचना का स्रोत बनाने में जुटी थी। यह आरोप भी लगा था एक मंत्री पर कि वह सीआईए का इन्फार्मर है। उधर भारत की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां सरकारी सूचना लीक करने के एवज में केवल चन्द वोडका बोतलों पर ही संतुष्ट हो जाती थीं। उस वक्त राष्ट्राध्यक्षों को बेशकीमती उपहार देने का जबरदस्त चलन था।

इंदिरा और मिंक कोट

India' Remembers Jawaharlal Nehru, The First PM, On His 130th Birthday

तब की एक दुखद घटना है। जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। इन्दिरा गांधी उन दिनों मास्को की यात्रा पर गयीं। रूसी प्रधानमंत्री तथा सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रधान सचिव निकिता खुश्चेव ने इन्दिरा गांधी को एक मूल्यवान मिंक कोट भेंट किया। मिंक एक प्रकार का ऊदबिलाव होता है। इसके महीन रोयें से बुना कोट यह है। यह अत्यधिक आकर्षक होता है। इसे केवल अत्यंत धनाढ्य कुलीन जन ही पहन सकते हैं। कभी रानी-महारानी उपयोग किया करतीं थीं। इन्दिरा गांधी इसको लेकर दिल्ली लौटीं, मगर तोशखाना में जमा नहीं किया। मामला लगातार लोकसभा में उठा। तूफान खड़ा करने वाले थे कन्नौज के सोशलिस्ट सदस्य डा. राममनोहर लोहिया। मुद्दा कई बार उठा। सदन में हंगामा होता रहा। अंतत: कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने लोहिया को मनाया कि इन्दिरा गांधी की प्रतिष्ठा को काफी हानि हो चुकी है। अत: विवाद का अंत हो। लोहिया का नेहरू परिवार से पुराना नाता था। वे मौन हो गये। फिर परिवेश महिला से था, लोहिया स्वाभावत: नारी के पक्षधर रहे।

गम्भीर आर्थिक अपराध

लेकिन बुनियादी सवाल बना रहा कि लाखों रुपयों का कीमती कोट को निजी संपत्ति कैसे बना दिया गया? तोशखाना में क्यों नहीं जमा किया गया? हालांकि यह गम्भीर आर्थिक अपराध है। इमरान खान इसीलिये फंस गये। मोदी ने उपहार की विक्रय राशि सरकार या जन फंड में (‘नमामि गंगे’) जमा कर दी।

हमसे ज्यादा जागरूक है पाक

किन्तु तोशखाना की भांति सरकारी धनराशि का अपव्यय तो अब बेहिचक हो रहा है। इसे भी भारत में कभी बड़ा गंभीर अपराध माना जाता था। अब तो प्रत्येक आईएएस अधिकारी बड़े अमीर बाप का पुत्र होता है। भले वह वस्तुत: साधारण किसान अथवा चपरासी का आत्मज हो। कारण यही कि कलक्टर साहब को मिली रिश्वत की राशि अब उन्हें वसीयत में पाई ‘खेती के लाभ’ में सहजता से समाविष्ट हो जाती है। राजसेवक को प्राप्त कितने उपहारों को आज तोशखाना में जमा किया जाता हैं? कभी जांच हुई? एक रपट कई वर्ष पूर्व जनसत्ता के लखनऊ संवाददाता जय प्रकाश शाही की प्रकाशित हुई थी। उसके मुताबिक केवल गृहऋण के रुप में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के वेतन से जितनी राशि प्रतिमाह कटती है उसके बाद जो राशि उनके हाथ में मिलती है, उससे केवल सत्तू ही खरीदा जा सकता है। अत: यदि इमरान खान फंसे हैं तो कारण यह है कि पाकिस्तान में विपक्ष सशक्त है। सूचना आयोग जागरूक है।

नेहरू को सचेत किया वित्तमंत्री ने

एक बार जवाहरलाल नेहरु ने राजीव गांधी और संजय गांधी को लंदन में उच्च शिक्षा हेतु भेजना चाहा था। दोनों ने सरकारी ऋण हेतु आवेदन किया। तब वित्त मंत्री ने अपनी आपत्ति फाइल में दर्ज करा दी कि दोनों किशोर इतने स्तर तक भारत में शिक्षित नहीं हैं कि उन्हें उच्च शिक्षा हेतु राजकीय मदद देकर विलायत भेजा जाये। इन्हीं वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री को सचेत किया था कि ब्रिटिश प्रकाशकों द्वारा प्रदत्त परिश्रमिक पर आयकर न जमा करना एक गंभीर आर्थिक अपराध है। सजा हो सकती है। नेहरू को भुगतान करना पड़ा। प्रधानमंत्री पद से मोरारजी देसाई के हटने के बाद ऐसी कठिनाई किसी राजनेता को नहीं हुई।

मौर्यकाल का मगध

यहां स्मरण हो आता है मौर्यकाल के मगध का। एक निजी व्यक्ति अपने मित्र अर्थशास्त्री कौटिल्य से पाटलिपुत्र के उपनगर में मिलने आया। तब सम्राट चन्द्रगुप्त के ऐश्वर्य सम्पन्न साम्राज्य के महामात्य एक लालटेन की रोशनी में कुछ लिख रहे थे। फिर उसे बुझाया, दूसरी जलाया और मित्र से बात करने लगे। चकित सुहृद ने इसका कारण पूछा? चाणक्य बोले, अब रोशनी मेरे निजी उपयोग की है तो राजकीय लालटेन नहीं जल सकती है। इसी कौटिल्य ने कहा था कि ‘राजपुरुष कब सरकारी धन खा ले और मछली कब पानी पी ले, इसे जानना असंभव है।’ मोदी के पास भी इसको भांपने का कोई उपाय अथवा यंत्र नहीं है। इसीलिये मोदी तो ई-नीलामी की वजह से बच गये, इमरान खान ने नहीं जाना, संकट में फंसे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)