संसद टीवी के लिए प्रदीप सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से खास बातचीत-4

आपका अख़बार ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब या जरूरतमंदों को अभी तक चली आ रही परिपाटी के अनुसार ‘दान पुण्य’ के तौर पर कुछ रुपया पकड़ाकर अपने पक्ष में फुसलाने की कोशिश नहीं की। उन्होंने उनके जीवन में गुणात्मक बदलाव लाने की पहल की है। कैसे हो सका यह सब। प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह की लंबे समय तक प्रधानमंत्री के सहयोगी और उनकी राजनीतिक यात्रा के सहयात्री रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ‘संसद टीवी’ के लिए खास बातचीत के कुछ अंश।


प्रदीप सिंह– प्रधानमंत्री जब किसी को जिम्मेदारी देते हैं, बड़ी जिम्मेदारी देते हैं तो किस आधार पर, क्या सोचकर, क्या पैमाना होता है। आप को जब उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया लोकसभा 2014 चुनाव से पहले, कुछ बात की होगी, आपको बताया होगा क्या करना होगा। उत्तर प्रदेश में बहुत से लोगों ने आलोचना की कि अमित शाह जी उत्तर प्रदेश के बारे में क्या जानते हैं, कभी आये नहीं, रहे नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री ने आप पर भरोसा किया तो उसका कोई तो कारण होगा?

मोदी जी जैसी स्मृति किसी की नहीं देखी

अमित शाह– देखिए उस वक्त हमारे (भाजपा) अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी थे तो फैसला राजनाथ सिंह जी का था। मगर हां मोदी जी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी तो घोषित हो ही चुके थे और स्वाभाविक रूप से एक सामूहिक फैसले होते हैं। परंतु मैंने मोदी जी जैसी स्मृति किसी की नहीं देखी, 1980 की भी बात उनको आज जस की तस याद होती है। इस स्मृति को उन्होंने एक अलग प्रकार से संजो कर रखा है और इसमें इनसाइक्लोपीडिया जैसा हर व्यक्ति के लिए इनका एसेसमेंट तैयार होता रहता है। फिर भी साथियों से सलाह मशविरा करके ही वो अंतिम निर्णय करते हैं। तो मुझे लगता है कि व्यक्तियों के चयन के बारे में और व्यक्तियों को काम देने के बारे में उनके ज्यादातर फैसले अच्छे भी होते हैं और सफल भी होते हैं।

प्रदीप सिंह- उज्ज्वला जैसी योजना जिसका आपने जिक्र किया। शौचालय, जनधन योजना, जैम की नीति बनाई है… एक तरफ ये जो गरीबों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाने की बात, दूसरी तरफ सुधार की बात कही। एक तरफ़ लगता है कि बिल्कुल वामपंथ के रास्ते पर आप जा रहे हैं और दूसरी तरफ लगता है कि दक्षिणपंथ के रास्ते पर जा रहे हैं – ये तालमेल कैसे बैठाते हैं?

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अमित शाह- देखिए जरा भी वामपंथ का रास्ता नहीं है। आप मुझे माफ़ करना प्रदीप जी, वामपंथी रास्ता गरीब का उत्थान करना है ही नहीं, उसके अंदर पड़े हुए असंतोष को राजनीतिक पूंजी बनाकर सत्ता पर बैठना है, वरना वामपंथी स्टेटों की ये स्थिति होती? आज बंगाल की स्थिति देखिए 27 साल के वामपंथी शासन के बाद और गुजरात का स्थिति देखिए, त्रिपुरा का स्थिति देखिए और गुजरात का स्थिति देखिए। परंतु ये जो आप कह रहे थे कि वामपंथी और दक्षिणपंथी के बीच में कोई अंतर्द्वंद्व है, मैं नहीं मानता ऐसा है। सरकार किस चीज के लिए होती है, कर (टैक्स) किस चीज के लिए वसूला जाता है। जिस पर ईश्वर की कृपा है, जो ज्यादा परिश्रमी है, जिसके अंदर ज्यादा मेधा है, जिसके अंदर ज्यादा प्लानिंग की क्षमता ईश्वर ने दी है- वो ज्यादा पैसा कमाता है। तो उसको कमाने देना चाहिए क्योंकि इससे देश का विकास होता है। उसके पास से कर वसूल कर जो पिछड़ा हुआ है इसके पास विकास और समृद्धि पहुंचाना है। इसी के लिए तो सरकार होती है।

हमारी एक भी योजना वोट बटोरने के लिए नहीं

NHRC chief lauds Amit Shah for new era of peace in Kashmir and Northeast | Latest News India - Hindustan Times

बजट की व्याख्या क्या है, सीधी सादी layman की व्याख्या क्या है? जिसके पास ज्यादा है उसके पास से उचित प्रतिशत में लेकर जिसके पास नहीं है उसको पहुंचाना और पूरे देश की व्यवस्थाओं को चलाना- यही तो बजट है… और बजट क्या है? हमारी एक भी योजना वोट बटोरने की योजना नहीं है। आप समझ कर चलिए एक भी योजना ऐसी नही है। एक भी योजना में हमने किसी को सीधा पैसा नहीं दिया है। अच्छा रास्ता तो (राजनीति में यह) होता है कि चुनाव हो तो गैस सिलेंडर क्यों देना भाई? 2500 रुपया ही दे दो… और दिया भी जाता था पहले। हमने ये नहीं किया कि 2500 रुपया दे दें। उसके अंदर एक नई आशा की किरण को जागरूक किया गैस देकर। उसके जीवनस्तर को उठा कर नया आत्मविश्वास भरा। जब घर में साइकिल होती है तो स्कूटी लाने का मन होता है- जब स्कूटी होती है तो स्कूटर लाने का मन होता है- स्कूटर होता है तो मोटरसाइकिल लाने का मन होता है- और मोटरसाइकिल होती है तो कार लाने का मन होता है। हमने उसके अंदर आशा का संचार कर, उसके जीवन और सोच को ऊर्ध्वगति देकर देश के विकास के साथ जोड़ने का एक रास्ता दिया। ये वामपंथी विचार है ऐसा मैं नही मानता। मुझे लगता है कि यह सरकार का काम है।

प्रदीप सिंह- क्या लगता है आपको, इसकी वजह से मोदी सरकार की योजनाओं, नीतियो से ज्यादा मोदी पर व्यक्तिगत हमले होते हैं। ये जो उनकी व्यक्तिगत आलोचना, निंदा होती है- निजी आक्षेप लगते हैं- वो इसलिए कि वे इन मुद्दों पर जवाब नही दे सकते हैं।

अमित शाह- नहीं, ऐसा नहीं है। मैं इसको अलग तरीके से एनालिसिस करता हूँ। अपनी विचारधारा के प्रति निष्ठा रखना एक बात है… और कोई और विचारधारा का व्यक्ति सफल हो जाये वो सहन न कर पाना वो अलग बात है। मोदी जी के केस में वो हुआ है। हमारे देश में 1967 के बाद की कांग्रेस को गिन लें तो तीन चार बड़ी-बड़ी विचारधाराएं चलीं। एक समाजवादी थी- वो आंदोलन सिमट कर पहले जातिवाद में परिवर्तित हुआ और फिर परिवारवाद में परिवर्तित हों गया। कांग्रेस का आंदोलन जो था, हालांकि आंदोलन शब्द ठीक नहीं है, कांग्रेस पार्टी जो थी वो भी परिवारवाद में सिमट कर रह गयी। तो ये दोनों मिलाकर एक परिवारवाद हुआ, एक आइडियोलॉजी बन गयी- जो मेरा है वही श्रेष्ठ है, मेरा परिवार ही श्रेष्ठ है। दूसरा दक्षिणपंथी माने जाने वाले हम… मगर हम एकात्म मानववाद को मानने वाले लोग हैं… अंत्योदय मूल प्रेरणास्रोत है हमारी नीतियों का। और तीसरी वामपंथी विचारधारा। ये तीन विचारधारा के बीच में पूरी राजनीति चली और तीनों को पर्याप्त मौका दिया है इस देश की जनता ने। कांग्रेस को तो खैर कितना बढ़ा दिया, वामपंथियों को तीन राज्यों में लंबे-लंबे समय तक मौका मिला, समाजवादियों को भी बड़ा मौका मिला। मगर जहां-जहां एनडीए की सरकार हुई वहां अच्छा काम हुआ, जहां भाजपा की सरकार हुई वहां अच्छा हुआ… और नरेन्द्र मोदी जी ने आकर इसको एक अलग डायमेंशन से बदला। अब मेरा कमिटमेंट मेरी विचारधारा के लिए हो राजनीति के लिए बहुत अच्छा है। लोकतंत्र में राजनीति के अंदर व्यक्ति को विचारधारा के आधार पर ही काम करना चाहिए। परंतु मेरे अलावा और कोई विचारधारा, या कोई और विचारधारा रखने वाला नेता सफल होता है इसको मैं सहन न कर पाऊं- ये अच्छा नहीं। कुछ परिवार तो आज भी मानते हैं कि हमारे परिवार के अलावा कोई कैसे देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।

जो श्रेष्ठ होता है वो ज्येष्ठ होता है

प्रदीप सिंह- तो फिर वहां विचारधारा का सवाल कहाँ से आया?

अमित शाह- नहीं, वो परिवारवादी विचारधारा है- वो एक आइडियोलॉजी बन चुकी है। देखिए चाणक्य ने एक सूत्र दिया था कि “जो ज्येष्ठ होता है वो श्रेष्ठ नहीं होता है, जो श्रेष्ठ होता है वो ज्येष्ठ होता है।” इन्होंने कहा कि मैं ही श्रेष्ठ हूं, हमारे अलावा किसी को शासन करने का अधिकार नही है। जब मैं एसपीजी का कानून लेकर आया, तो कहा गया- भाई गांधी परिवार को क्यों हटा रहे हो? … तो भाई क्यों रखें- मेरा सवाल अलग है, ये कानून कोई गांधी परिवार के लिए नहीं, देश के प्रधानमंत्री के लिए है। आप बनो प्रधानमंत्री, चुन कर आओ- ऑटोमेटिकली आपको सुविधा मिलेगी… नहीं बनोगे तो छोड़ देंगे। कल को मेरी सरकार नहीं है तो मुझे भी आम आदमी की तरह जीना चाहिए। और हम रहे हैं सालों तक अपोजिशन में। हमने कभी ये सवाल नहीं उठाये। मगर (इनकी) ये जो मानसिकता है, उसका क्या? इसी प्रकार से वामपंथी मित्रों की भी मानसिकता है कि ये कैसे सफल हो गए- इसके कारण व्यक्तिगत हमले होते हैं। मेरा तो राजनीति में मानना है और मैं इन सभी मित्रों को कहना चाहता हूं कि आप हमारी नीतिगत बुराई जरूर करिये, हमारी सरकार में करप्शन है तो उसको उजागर करिये, हमारी कोई फेलियर है तो जनता के सामने लेकर जाइए। मगर ऐसा लिख देना कि मोदी जी नहीं रहते हैं तो ये प्रधानमंत्री बन जायेगा- इस प्रकार की बातें करना मैं उचित नहीं मानता। इस प्रकार की गतिविधियों से वे राजनीति का स्तर बहुत नीचे ले जा रहे हैं, जो दुःखद है।