ओणम पर विशेष

जयंती रंगनाथन ।

ओणम… मेरे लिए ओणम को मतलब अम्मा है। अम्मा यानी विशालाक्षी रंगनाथन केरल के चित्तूर गांव में पैदा हुईं, पली-बढ़ी। बाद में मद्रास में उनकी कॉलेज की पढ़ाई हुई और शादी हुई सुदूर बिहार (अब झारखंड) के स्टील सिटी जमेशदपुर की एक साउथ इंडियन फैमिली में। मेरे अप्पा टाटा स्टील की नौकरी छोड़ कर नए-नए बने भिलाई स्टील प्लांट में काम करने आए थे। अम्मा की बचपन में पढ़ाई मलयालम में हुई। घर में तमिल सीखा। उनकी मां यानी मेरी नानी एक जमींदार परिवार की एकलौती बेटी थीं, जिन्हें बचपन में एक अंग्रेजी मेम इंग्लिश पढ़ाने आती थीं। मेरी नानी या तो फर्राटे से मलयालम या तमिल बोलतीं और उतनी ही कुशलता से इंग्लिश भी बोलतीं। अम्मा ने चैन्नई में आने के बाद हिंदी राजभाषा का कोर्स किया। शादी के बाद उन्होंने हिंदी बोलना शुरू किया। केरल में रहने की वजह से अम्मा और उनका परिवार मलयाली त्योहारों और खानपान के ज्यादा करीब रहा। हमारी बोली में भी कई मलयालम के शब्द हैं।

फूलों की रंगोली

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तो अम्मा भिलाई में ओणम मनाने लगी। घर के बाहर फूलों की रंगोली सजती। दिन में घर में ओणम सद्या यानी दावत होती। उस दिन के खास व्यंजन होते आम के चिप्स, नमकीन-मीठे दोनों, पालअड़ै प्रदमन, ओलन, कालन, सांबार, रसम, वड़ै, पचड़ी, तीन तरह के पापड़ और अचार। नारियल के बड़े से पत्ते पर यह खाना परोसा जाता। हम बच्चों का काम होता, घर को फूलों से सजाना, खासकर आंगन में और पूजा घर में पूकोलम यानी फूलों की रंगोली बनाना।

अम्मा के जाने के बाद…

अम्मा के जाने के बाद शायद ही मैंने कभी ओणम मनाया हो। दोस्त आ जाते हैं तो ओणम का स्पेशल लंच बना देती हूं। आज भी मैंने ज्यादा नहीं, छोटे प्याज (शैलेट्स) का सांबार, आलू पुड़िमास, वरवल, पचड़ी, पुड़तुवल और अपलाम बनाया।
सुबह अपनी बुआ ललिता चितंबरम का ओणम पर लिखा कमेंट पढ़ कर अहसास हुआ कि वाकई हम बचपन में ओणम मनाते थे क्योंकि अम्मा केरल से आई थीं। अप्पा का परिवार तो दूसरे विश्वयुद्ध के समय जमशेदपुर आ चुका था। इसलिए वहां केरल की प्रथाओं का समावेश ना के बराबर था।

देवता ही नहीं असुरों की भी पूजा

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एक बात और, अम्मा ही कहती थीं कि केरल एकमात्र ऐसा प्रांत है  जहां देवताओं की ही नहीं असुरों की भी पूजा होती है। ओणम की कहानी के केंद्र में जो राजा महाबलि थे, वो असुर राजा थे। पर आम लोगों के बीच वो इतने प्रसिद्ध थे कि देवताओं को अपनी कुर्सी हिलती सी लगने लगी। विष्णु ने वामन अवतार लिया महाबलि का संहार करने। महाबलि देवता के हाथों (पैरों) खुशी-खुशी जीवन त्याग दिया पर एक वरदान मांग लिया कि साल में एक बार अपने नगरवासियों का हालचाल पूछने धरती पर आएंगे। उनके ही स्वागत को केरल में ओणम मनाया जाता है। ऐसे असुर पर बलिहारी। आप सबको महाबलि की याद में ओणम की ढेर सारी शुभकामनाएं।
(लेखिका ‘हिंदुस्तान’, नई दिल्ली में एक्जिक्यूटिव एडिटर हैं)