दुनिया को सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी हमने दी
अजय विद्युत ।
जिस अंग्रेज फौजी अफसर कोर्नेल कूट की नाक हैदर अली ने काटी थी, उसकी नाक भारतीय वैद्य न जोड़ता तो वह नकटा ही इंग्लैंड लौटता। 1780 के आसपास का यह वाकया है, जिसका उल्लेख उस अंग्रेज फौजी अफसर ने अपनी डायरी में किया है। बाद में अंग्रेज यहां आए और प्लास्टिक सर्जरी सीखकर इंग्लैंड में संस्थान खोले और दुनियाभर में इसे फैलाया।
प्लास्टिक सर्जरी, जो आज की सर्जरी की दुनिया में आधुनिकतम विद्या है। इसका अविष्कार भारत मे हुआ है। जैसा कि दुनिया जानती है कि भारत ज्ञान-विज्ञान-चारित्र्य में विकास को लेकर ही विश्वगुरु रहा है। सर्जरी का अविष्कार तो भारत में हुआ ही है, लेकिन साथ ही प्लास्टिक सर्जरी का अविष्कार भी यहां ही हुआ है। प्लास्टिक सर्जरी मे कहीं की त्वचा को काट के कहीं लगा देना और उसको इस तरह से लगा देना कि पता ही न चले, यह विद्या सबसे पहले दुनिया को भारत ने दी है।
1780 में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के एक बड़े भू-भाग का राजा था हैदर अली। 1780-84 के बीच में अंग्रेजों ने हैदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है। एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट। उसने हैदर अली पर हमला किया पर युद्ध में अंग्रेज परास्त हो गए और हैदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी।
कोर्नेल कूट अपनी डायरी में लिखता है कि ‘मैं पराजित हो गया, सैनिकों ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हैदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरी नाक काट दी।’ फिर कोर्नेल कूट लिखता है- मुझे घोड़ा दे दिया भागने के लिए, नाक काट के हाथ में दे दिया और कहा कि भाग जाओ तो मैं घोड़े पर बैठ कर भागा। भागते-भागते मैं बेलगांव में आ गया। बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहां कट गयी? तो मैं झूठ बोला कि किसी ने पत्थर मार दिया।
इस पर वैद्य ने अपनी तेज नजरें गढ़ाते हुए गंभीर आवाज में कहा- ‘बेवकूफ मत बनाओ। यह पत्थर मारी हुई नाक नहीं है, यह तलवार से काटी हुई नाक है। मैं वैद्य हूँ, मैं जानता हूँ।’
अब क्या करता? मैंने वैद्य से सच बोला कि मेरी नाक काटी गयी है।
वैद्य ने पूछा- किसने काटी?
मैंने बोला- तुम्हारे राजा ने काटी।
वैद्य ने पूछा- क्यों काटी? तो मैंने जवाब दिया कि उन पर हमला किया था, इसलिए काटी।
फिर वैद्य बोला- अब तुम यह काटी हुई नाक लेकर क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे?
इस पर मैंने रुंआसे होकर कहा- इच्छा तो नहीं है, फिर भी जाना ही पड़ेगा।
मेरी पूरी रामकहानी सुनकर वैद्य को दया आ गई। वह सचमुच ही बहुत दयालु था। वैद्य बोला, ‘मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ।’
कोर्नेल कूट को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, फिर बोला- ठीक है जोड़ दो।
वैद्य बोला- तुम मेरे घर चलो। फिर वैद्य कोर्नेल को अपने घर ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का कोर्नेल कूट ने 30 पन्नों में वर्णन किया है।
ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया। अंग्रेज फौजी अफसर की नाक जुड़ गई। वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाकर और कहा- ‘यह लेप ले जाओ और रोज सुबह-शाम लगाते रहना।’ कोर्नेल कूट वह लेप लेकर चला गया। 15-16 दिन के बाद उसकी नाक बिलकुल अच्छे से जुड़ गई और वह जहाज मे बैठ कर लन्दन लौट गया।
फिर तीन महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में खड़ा होकर कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है वहां मौजूद लोगों से पूछता है- ‘क्या आपको लगता है कि मेरी नाक कटी हुई है?’
इस पर सब अंग्रेज हैरान होकर कहते हैं- अरे नहीं-नहीं, तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नहीं दिखती।
फिर कोर्नेल कूट कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में कि मैंने हैदर अली पर हमला किया था। मैं उसमे हार गया। उसने मेरी नाक काटी। फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतना बड़ा हुनर है, इतना बड़ा ज्ञान है कि वे काटी हुई नाक को जोड़ सकते हैं।
फिर उस वैद्य जी की खोज-खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में ली गयी। इसके बाद अंग्रेजों का एक दल आया और बेलगांव के उस वैद्य से मिला। उस वैद्य ने जो बताया वह दांतों तले अंगुलियां दबा लेने से भी अधिक आश्चर्यजनक था। उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया कि यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है। मैं अकेला नहीं हूँ, ऐसा करने वाले हजारों-लाखों लोग हैं।
अंग्रेजों को तो बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने पूछा- कौन सिखाता है आपको?
वैद्य जी का जवाब- ‘इस विद्या के हमारे गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है।’
फिर अंग्रेजो ने उन गुरुकुलों का रुख किया। उन्होंने वहां दाखिला लिया। विद्यार्थी के रूप मे भारती हुए और यह विद्या सीखी।
और फिर जब वे भारत से सीखकर इंग्लैंड गए तो वहां उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की। और जिन-जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है, उनकी डायरियां हैं। एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है कि, ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वह भारत का विशेष आदमी था और वो नाई था जाति का।’
इससे हमारे देश की एक और समृद्ध परंपरा का पता चलता है। यानी कोई व्यक्ति जाति से नाई हो या चर्मकार या किसी अन्य जाति का हो, हमारे यहां वे लोग ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे। नाई है, चर्मकार है, इस आधार पर किसी गुरुकुल में उनका प्रवेश वर्जित नहीं था। जाति के आधार पर हमारे गुरुकुलों में किसी को प्रवेश देने या न देने का चलन नहीं रहा कभी। यानी शिक्षा व्यवस्था में जाति-पाति के आधार पर भेदभाव कतई नहीं किया जाता था। वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा। तो नाई भी सर्जन है, चर्मकार भी सर्जन है। और वो अंग्रेज लिखता है कि चर्मकार ज्यादा अच्छा सर्जन इसलिए हो सकता है कि उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है।
एक अंग्रेज लिख रहा है कि, ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जाति का नाई था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन का भी वर्णन है। 1792 की बात है। एक मराठा सैनिक के दोनों हाथ युद्ध में कट गए हैं। वह उस वैद्य गुरु के पास कटे हुए हाथ लेकर आया है जोड़ने के लिए। तो गुरु ने वह ऑपरेशन उस अंग्रेज से करवाया जो सीख रहा था, और वो ऑपरेशन उस अंग्रेज ने गुरु के साथ मिलकर बहुत सफलता के साथ पूरा किया। उस अंग्रेज जिसका नाम डॉ थॉमस क्रूसो था। वह अपनी डायरी में कह रहा है कि, ‘मैंने मेरे जीवन में इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सीखा और इस गुरु ने मुझसे एक पैसा भी नहीं लिया। यह मैं बिलकुल अचम्भा मानता हूँ, आश्चर्य मानता हूँ।’
इस तरह थॉमस क्रूसो प्लास्टिक सर्जरी यहां से सीख कर गया। फिर इंग्लैंड जाकर उसने प्लास्टिक सेर्जरी का स्कूल खोला। उस स्कूल में तमाम अंग्रेजों ने प्लास्टिक सर्जरी सीखी और उसे दुनियाभर में फैलाया।
दुर्भाग्य इस बात का है कि सारी दुनिया के सामने जो ज्ञान रखा जा रहा है, उसमें प्लास्टिक सर्जरी के उस स्कूल का तो वर्णन है, लेकिन विश्वग्रंथ में उन वैद्यों का वर्णन अभी तक नहीं आया है जिन्होंने अंग्रेजों को प्लास्टिक सर्जरी सिखाई थी।
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