शिवचरण चौहान ।
वैशाख मास चल रहा है। वैशाख नंदन बहुत खुश है। सारे वैशाख नंदन खुश हैं। आप में से ज्यादातर को तो मालूम है पर हो सकता है कुछ लोग वैशाख नंदन से परिचित ना हों। वो शायद गूगल सर्च कर रहे हों यह जानने के लिए कि वैशाख नंदन किसे कहते हैं? गूगल बताएगा कि वैशाख नंदन गधे यानि गदर्भ को ही कहा जाता है।
फिर जिज्ञासा उठेगी- ऐसा क्यों कहा जाता है?… गधा भोला, मेहनती, सीधा एवं अपनी मस्ती मे रहने वाला जानवर माना जाता है। वैशाख में गर्मी पड़ने से घास आदि चारा सूख जाता है और जानवर चारे के लिए परेशान रहते हैं। पर गधा अपनी मस्ती में जो भी थोड़ी बहुत घास मिलती है उसे ही खाकर जब पीछे मुड़ कर देखता है तो उसे कहीं घास नहीं दिखाई पडती… और वह खुश हो जाता है कि आज तो उसने सारी घास खा ली। और वह खुशी में रेंकता है ।और इसी खुशी में उसकी सेहत बन जाती है।
बारहमासी वैशाख नन्दन
वैशाख नंदन के लिए वैशाख खुशी का महीना है। वैशाख नंदनों का अभिनंदन किया जाना चाहिए। पर राजनीति के वैशाख नन्दन बारहमासी होते हैं। जैसे कांग्रेस में सोनिया, राहुल, प्रियंका… सारे बड़े पद इन्हीं को चाहिए। किंतु कांग्रेस के सारे वैशाख नंदन खुश हैं। वैशाख नंदनों को वंशवाद नहीं दिखाई देता। जब भी कद्दू कटेगा तो इन्हीं तीनों में बटेगा। बाहर वाले यानी वैशाख नंदन एक टुकड़ा भी नहीं पाएंगे। फिर भी वैशाख नंदन खुश हैं। धुर गंवई गांव की एक कहावत है:
‘हम, हमार, हम्मन। बाप ,पूत, झम्मन।’
बाप बेटे झम्मन को ही सारे पद चाहिए। तरबूज कटेगा तो झम्मन के बाप बेटे और भाइयों में ही बटेगा। सारे वैशाख नंदन खुश हैं और कह रहे हैं इनके अलावा और कोई योग्यताधारी नहीं है। बापू, पूत, झम्मन ही राजा बन सकते हैं। बाकी तो प्रजा हैं, गुलाम हैं। दरी बिछाने के लिए बने हैं।
समाजवादी एंड संस
समाजवादी राम मनोहर लोहिया की आत्मा जहां भी होगी- रो रही होगी। मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को परिवारवादी पार्टी बना दिया और मजे की बात देखिए सारी जातियों के लोग खुश हैं। यहां भी वैशाख नंदनों की कमी नहीं है जो खुशी से धूलि वंदन कर रहे हैं। भले आपस में तो लक्की आ जा रहे हैं किंतु वंशवाद से बाहर नहीं आना चाहते। मुलायम सिंह ने बड़ी सफाई से अपने बेटे को उत्तर प्रदेश की राज गद्दी सौंप दी थी। चाचा शिवपाल दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंके गए। किंतु फिर भी वह उसी में बार-बार घुस रहे हैं। सौ सौ धक्के खाएं तमाशा घुसकर देखब। बड़े लोहिया से लेकर छोटे लोहिया तक वंशवाद के खिलाफ थे किंतु मुलायम सिंह ने किसी की नहीं सुनी। उनकी पार्टी समाजवादी एंड संस पार्टी बनकर रह गई है। पारिवारिक नेता सैफई से आते हैं और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक टांग पसार कर बैठ जाते हैं। सारे वैशाख नंदन इन्हीं की जय जयकार करते हैं।
वंशवाद की परंपरा
वंशवाद की परंपरा राजघरानों से आई है। साम्राज्यवाद में राजा का बेटा ही राजा बनता है। बेटा राजकुमार और बेटी राजकुमारी कही जाती है। इनके आगे वैशाख नंदन कभी कुछ सोचते ही नहीं थे। जब प्रजातंत्र आया लोकतंत्र का बोलबाला हुआ तो वंशवाद की जड़ें खोद दी गईं । जड़ों में मट्ठा डाल दिया गया किंतु फिर भी ना जाने कहां से वंशवाद की बेलें लहरा रही हैं। कोई इन्हें नहीं रोकता! वैशाख नंदन तो गुणगान में लगे ही रहते हैं। वैशाख नंदनों की पूरी टीम विभिन्न पार्टियों में भरी पड़ी है।
पटेल पीएम बनते तो…
नेहरु जी ने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को राजनीति की अपनी विरासत ही सौंप दी। उनकी योग्यता यह थी कि वह जवाहरलाल नेहरू जी की पुत्री थीं। अगर गांधीजी सरदार पटेल की जगह जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाते तो… कहानी कुछ और होती! इंदिरा गांधी ने लाल बहादुर शास्त्री को कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। लाल बहादुर शास्त्री की रूस के ताशकंद में अकस्मात मौत आज भी रहस्य बनी हुई है। अगर शास्त्री जी जिंदा रहते तो इंदिरा गांधी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाती। राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस के वैशाख नंदनों को और कोई दिखाई नहीं पड़ता जिसे कांग्रेस की बागडोर सौंपी जा सके। धृतराष्ट्र और गांधारी का चरित्र फिर सही हो रहा है जिसने पुत्र मोह के कारण महाभारत करवा दिया।
नेता का बेटा नेता
लोकतंत्र में जातिवाद और परिवारवाद किस बात का परिचायक है? यही ना कि आज भी कुछ परिवार प्रजातंत्र की जगह साम्राज्यवाद चाहते हैं। वंशवाद के कारण भारत का बहुत नुकसान हुआ है। वंशवाद का समर्थन करने वाले नेता कहते हैं नाई का बेटा नाई। लोहार का बेटा लोहार, व्यापारी का बेटा व्यापारी, डॉक्टर के बेटा डॉक्टर, बढ़ई का बेटा बढ़ई बन सकता है तो फिर नेता का बेटा नेता क्यों नहीं बन सकता?
बहुत लंबी है सूची
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा और उनके पूर्व मुख्यमंत्री पुत्र सत्यनारायण सिन्हा… चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह और अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी भी वंशवाद की देन हैं। हरियाणा भी वंशवाद की बेल बढ़ाने में आगे रहा है। भजनलाल के पुत्र चंद्रमोहन, बंसीलाल के पुत्र सुरेंद्र सिंह और देवीलाल का परिवार वंशवाद के उदाहरण हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव उनकी पत्नी राबड़ी देवी और उनके पुत्र तेजस्वी यादव सहित सभी पुत्र पुत्रियां वंशवाद की ही प्रतीक हैं। महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे वंशवाद की बेल हैं। अब उनके पुत्र आदित्य ठाकरे भी पार्टी और सरकार में खासा रसूख रखते हैं। बहुजन की बात करने वाली बहुजन समाज पार्टी भी अब मायावती एंड फैमिली बनने की राह पर अग्रसर है। ये और बात है कि पार्टी में अब कुछ बचा नहीं है।
बुद्धिजीवी कितनी भी बहस कर लें, सिद्धांत बना लें, किंतु यहां का वंशवाद खत्म कर पाना बहुत मुश्किल है। आज की राजनीति में अनेक नेता वंशवाद की बेल का विस्तार कर रहे हैं जो किसी से छिपा नहीं है। इनके पीछे वैशाख नंदनों की पूरी फौज है जो जय जयकार करती चलती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)