प्रो. संतोष कुमार तिवारी।
महात्मा गांधी को पंद्रहवीं शताब्दी के  गुजराती सन्त नरसी मेहता एक भजन बहुत प्रिय था। वह भजन उनकी दैनिक प्रार्थना का अंग था। प्रस्तुत है वह गुजराती भजन हिन्दी भावानुवाद के साथ:

વૈષ્ણવ જન તો તેને કહિયે
જે પીડ પરાઈ જાણે રે।
वैष्णव जन तो तेने  कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे।
(सच्चा वैष्णव वही है, जो दूसरों की पीड़ा को समझता हो।)
પર દુ:ખે ઉપકાર કરે તો યે
મન અભિમાન ન આણે રે ॥ 
पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान ना आणे रे।।
(दूसरे के दु:ख पर जब वह उपकार करे, तो अपने मन में कोई अभिमान ना आने दे।)
पढ़िए कथाः इस भक्त के घर बार-बार आते थे भगवान श्री कृष्ण - story of narsi mehta and lord sri krishna
સકળ લોકમાં સહુને વંદે,
નિંદા ન કરે કેની રે।
सकल लोक मां सहुने वन्दे, निंदा न करे केनी रे।
(जो सभी का सम्मान करे और किसी की निंदा न करे।)
વાચ કાછ મન નિર્મળ રાખે
ધન ધન જનની તેની રે ॥
वाच काछ मन निश्छल राखे, धन धन जननी तेनी रे।।
(जो अपनी वाणी, कर्म और मन को निश्छल रखे, उसकी मां (धरती मां) धन्य-धन्य है।)
સમદૃષ્ટિ ને તૃષ્ણા ત્યાગી
પરસ્ત્રી જેને માત રે।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी परस्त्री जेने मात रे।
(जो सबको समान दृष्टि से देखे, सांसारिक तृष्णा से मुक्त हो, पराई स्त्री को अपनी मां की तरह समझे।)
જિહ્વા થકી અસત્ય ન બોલે
પરધન નવ ઝાલે હાથ રે ॥
जिह्वा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे॥
(जिसकी जिह्वा असत्य बोलने पर रुक जाए, जो दूसरों के धन को पाने की इच्छा न करे।)
મોહ માયા વ્યાપે નહિ જેને,
દૃઢ વૈરાગ્ય જેના મનમાં રે।
मोह माया व्यापे नहिं जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मन मां रे।
(जो मोह माया में व्याप्त न हो, जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो।)
રામ નામ શુ તાળી રે લાગી
સકળ તીરથ તેના તનમાં રે ॥
राम नाम शु ताली रे लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे॥
Narsinh Mehta: वो अनजान नाम, जिसने महात्मा गांधी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन' लिखा था | Meet Poet Saint Narsi Mehta Who Wrote Gandhi Favorite Bhajan Vaishnav Jan
(जो हर क्षण मन में राम नाम का जाप करे, उसके शरीर में सारे तीर्थ विद्यमान हैं।)
વણ લોભી ને કપટ રહિત છે,
કામ ક્રોધ નિવાર્યાં રે।
वणलोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।
(जिसने लोभ, कपट, काम और क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली हो।)
ભણે નરસૈયો તેનું દર્શન કરતાં
કુળ એકોતેર તાર્યાં રે ॥
भणे नरसैयो तेनु दर्शन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे॥
(ऐसे वैष्णव के दर्शन मात्र से ही, परिवार की इकहत्तर पीढ़ियां तर जाती हैं, उनकी रक्षा होती है।)

फक्कड़ प्रवृत्ति के शिखर संत

गुजरात के आध्यात्मिक कवियों में नरसी मेहता शिखर-संत हैं। वह फक्कड़ प्रवृति के थे। वह पारिवारिक दायित्वों से भी बंधे हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि कई बार उनकी मदद के लिए भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विभिन्न रूपों में उनके पास आए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद हैं)