चिकित्सा ज्योतिष
पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ ।
हर शरीर विशेष प्रति और प्रवृत्ति का होता है। हम शरीर को तीन गुणों अथवा दोषों में विभाजित कर सकते हैं। इन्हें ही त्रिगुण या त्रिदोष कहा जाता है। ये तीन गुण-दोष हैं वात-पित्त-कफ।
यदि इन तीनों का संतुलन अच्छा है तो शरीर में रोग नहीं आते और व्यक्तित्व भी उच्च कोटि का होता है। ऐसे व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक शक्तियां बहुत प्रबल होतीं है। उसका भावनात्मक संतुलन भी उच्च स्तर का होता है। परंतु यदि त्रिदोष उत्पन्न हो जाए तो विभिन्न प्रकार के रोग शरीर में होते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है, जिससे रोग आसानी से पकड़ सकते हैं। ऐसे में भावनात्मक संतुलन भी अच्छा नहीं होता। क्रोध, बेचेनी, अवसाद, अधिक चिंता करने की आदत, निंदा करने की आदत आदि परेशानियों से ये लोग जूझते हैं। इनकी स्मरण शक्ति, एकाग्रता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
नाड़ियों का स्पष्ट उल्लेख हमारी कुंडली के आरंभ मे ही होता है। ये नाड़ियां तीन भागों में विभक्त की गई है। आद्य, मध्य और अन्त्य। ये वो ही नाड़ियां हैं, जो विवाह के लिए भी मिलायी जाती हैं।
आद्य नाड़ी/ वायु विकार
यदि किसी की आद्य नाड़ी है तो वह वायु विकार का शिकार होगा और उसे मल-मूत्र संबंधी समस्याए होंगी। ऐसा व्यक्ति यदि अरहर, उरद, मांसाहार, दूध गरम भोजन को छोड़ दे, भोजन में हींग ले और सूर्योदय से पूर्व बिस्तर छोड़ दे, फिर तांबे के गिलास मे रखा जल पिये और टहले, देर रात को भोजन ना करे और भोजन के उपरांत लौंग चूसे तो वह लिवर, रक्तचाप, क्रोध, डर, अतिव्यग्रता, कमजोर स्मरणशक्ति, कामजनित कमजोरी आदि समस्यायों का स्वयं निदान कर सकता है। अन्यथा ये समस्याएं न केवल उसे बल्कि उसकी अगली पीढ़ी को भी परेशान करेंगी।
मध्य नाड़ी/ पित्त विकार
कुंडली के हिसाब से जिसकी मध्य नाड़ी होती है वो पित्त विकारों से परेशान रहता है। ऐसे व्यक्ति का क्रोध एवं गरिष्ठ भोजन का सेवन उसको गंभीर रोग देता है। इस नाड़ी के लोगों को शराब तथा मांसाहार का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। अत्यधिक क्रोध व चिंता इन्हें शुगर की समस्या दे सकती है। इस नाड़ी के लोग स्वभावत: व्याकुल रहने वाली प्रवृत्ति (एंग्जाइटी) के होते हैं जिसके कारण आगे जाकर इनको सिर, आंख, और ससिं की दिक्कत हो जाती है तथा व्याकुलता ज्यादा बढ़ जाने के कारण इन्हें शरीर में अनेक रोग हो जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते हैं। सुपाच्य भोजन, उचित नींद और ध्यान-मौन से ही इन समस्याओं को होने से रोका जा सकता है।
अन्त्य नाड़ी/ कफ विकार
कुंडली के अनुसार तीसरी अन्त्य नाड़ी है- कफ नाड़ी। जिसके भी यह नाड़ी हो उसे अनावश्यक डर, चिंता, सुस्ती तथा दिवा-निद्रा सताते रहते हैं। ये नाड़ी एकाग्रता की कमी भी तो लाती ही है साथ ही अत्यधिक भावुकता के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न करती हैं। इस नाड़ी वाले लोगों को शरीर में ताकत देने वाला भोजन करना चाहिए। जल्दी सोकर जल्दी उठना चाहिए। हींग, अजवाइन और आंवला का सेवन जरूर करना चाहिए। खासतौर से इस नाड़ी वाली स्त्रियों को संतान को जन्म देने के तीन माह तक सर्दी व ठंडी चीजों का विशेष परहेज करना चाहिए अन्यथा जीवनपर्यंत शरीर में दर्द से परेशान रह सकती हैं।