शिवचरण चौहान।
इस बार गर्मियां कहर बरपा रही हैं। 15 मार्च के बाद गर्मियों का प्रकोप बढ़ा है तो अप्रैल के पहले हफ्ते में गर्मी 42 डिग्री तक पारा पार कर गई है। दिन में लू चलने लगी है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्मी का प्रकोप पिछले कई सालों से 2022 में सबसे ज्यादा रहेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका और आर्टिका में समय से पहले गर्मी का मौसम आ गया है। समय से पूर्व फूल खिले और समय से पहले पेंग्विन ने अंडे दिए। बर्फ पिघलने के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2022 की गर्मियां खतरनाक होंगी। रूस और यूक्रेन के युद्ध में इतनी ज्यादा बारूद का प्रयोग किया गया है कि आसमान थर्रा उठा है।
समय से पहले आ गईं गर्म हवाएं
भारत से ईरान में आने वाली गर्म हवाएं समय से पहले मार्च में ही आ गईं। भारत में राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक मध्य मार्च में ही पारा 40 से 42 डिग्री तक पहुंच गया। रात का पारा भी 29 और 30 डिग्री के बीच चल रहा है। कोयले की कमी के कारण बिजली का उत्पादन भी कम हो रहा और बिजली कटौती का दंश राजस्थान और उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा लगेगा। अत्यधिक कार्बन का उत्सर्जन, वन विनाश के कारण यह गर्मियां और विकराल होंगी। वन विनाश, कार्बन का अत्याधिक उत्सर्जन और मनुष्य द्वारा किए जा रहे अंधाधुंध विकास- कंक्रीट के जंगल खड़े करने- के कारण जलवायु और ऋतु चक्र बिगड़ गया है।
जलवायु परिवर्तन के खतरनाक संकेत
आज पूरे संसार के सामने जलवायु परिवर्तन के खतरनाक संकेत दिखाई दे रहे हैं। जलवायु में हो रहे तेजी से परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया विनाश के मुहाने पर आकर खड़ी है और चिंतित है। अमेरिका जैसे देश ने जहां पर जलवायु परिवर्तन के विश्व सम्मेलन पर रोक लगा रखी थी अब नए राष्ट्रपति बाइडेन जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत चिंतित है। ग्लासगो में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन पर गहरी चिंता जताई गई है। आने वाले दिनों में जलवायु खतरनाक रूप से पृथ्वी को प्रभावित करेगी इसलिए दुनियाभर के देश चिंतित हैं और जलवायु में सुधार के लिए प्रयासरत हैं।
मधुमक्खियां विलुप्त, फूलों के रंग फीके
दुनिया 40 के दशक से जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत सहित सभी देशों के ऋतु चक्र बिगड़ गए हैं। गर्मी में सर्दी और सर्दी में बरसात होने लगी है। मधुमक्खियां विलुप्त होने लगी हैं। फूलों में रंग फीके पड़ गए हैं। समय पूर्व मौसम बदल जाते हैं। पेड़ों में फल नहीं आते। कभी भयंकर बर्फबारी होती है तो कभी ग्लेशियर टूट कर पिघल जाते हैं। ज्वालामुखी का फटना- आए दिन भूकंप आना- यकायक आंधी तूफान का आना- समुद्र में सुनामी आना… यह सब जलवायु में हो रहे हैं भयंकर बदलाव/ परिवर्तन के कारण हो रहा है। अगर अभी हमने अपनी जलवायु/ पर्यावरण को नहीं बचाया तो धरती से जीव धारियों का नामोनिशान मिटता चला जाएगा।
विकास की अंधी दौड़
महानगरीय संस्कृति और बिना सोचे समझे किए गए विकास के कारण ही आज दुनिया में विनाश की स्थिति बनती जा रही है। हम विकास की अंधी दौड़ में दौड़ते चले जा रहे हैं जिसका परिणाम विनाश के रास्ते पर ले जा रहा है। दुनिया के संचार क्रांति ने जलवायु परिवर्तन के साथ साथ पशु पक्षियों और कीटों के जीवन के लिए संकट पैदा कर दिया है। गौरैया समाप्त होती जा रही है। गिद्ध कब के समाप्त हो चुके। परागण की आधार और 33 प्रतिशत जैव विविधता की वाहक मधुमक्खियां तेजी से विलुप्त होती जा रही है। गांव गांव में लगाए गए मोबाइल फोन के टावरों से निकल रहीं 5G और 4G की तरंगें मधुमक्खियों और पंछियों के विनाश का कारण बन रही हैं। भंवरे गायब हो रहे हैं। मोबाइल टावरों से निकली रेडियो और विद्युत चुम्बकीय तरंगों के कारण पक्षी रास्ता भटक जाते हैं और अंडों में बच्चे नहीं निकलते हैं।
नारों-गोष्ठियों तक सिमटी चिंता
जब जेनेवा में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ था तभी वैज्ञानिकों ने गहरी चिंता जताई थी कि अगर दुनिया के लोग अब नहीं सुधरे तो परिणाम भयंकर होंगे,। पर हुआ क्या जलवायु परिवर्तन सिर्फ नारों तक- गोष्ठियों तक- सिमट कर रह गया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रप ने जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर रोक लगा दी थी।
दुनिया में विकास के लिए हरे पेंडों के जंगल काट कर कांक्रीट के जंगल उगा लिए गए जिन्हें हम महानगर कहते हैं। इन घरों में एसी तो लग गए पर आक्सीजन खत्म हो गई। जहरीली गैसें बढ़ गईं। आज पर्यावरण प्रदूषण के कारण महानगरों में स्वच्छ हवा/ आक्सीजन गायब हो गई। आक्सीजन ही हमारी प्राणवायु है जो आज खोजे नहीं मिल रही। हजारों लोग बिना प्राणवायु के तड़प कर मर रहे हैं। जान बचानी मुश्किल है।
बढ़ते जा रहे कैंसर, टीबी, हाइपरटेंशन, शुगर के मरीज
आज जलवायु परिवर्तन विश्व के सामने बहुत बड़ा मुद्दा है पर हम आंखे मूंदे हैं। एक अंधी विकास की दौड़ में भागे चले जा रहे हैं। पिछले दिनों अमेरिका में 5G मोबाइल सेवा शुरू की गई थी। उससे निकली रेडियो तरंगों के कारण हवाई जहाज तक अपना रास्ता भटक जाते थे… फिर पशु पक्षियों मधुमक्खियों की कौन कहे। ग्लास्गो जलवायु सम्मेलन से भी कोई रास्ता नहीं निकला है। दुनिया के सबसे बड़े देश जैसे चीन और अमेरिका सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं किंतु अपने पर नियंत्रण नहीं लगाते हैं। ऊपर से वे चाहते हैं कि दुनिया कार्बन उत्सर्जन ना करे। भारत ने ग्लास्गो जलवायु सम्मेलन में 2027 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने का वादा किया है। कोयले पर आधारित बिजली घर नहीं चलाया जाएंगे। डीजल पेट्रोल की गाड़ियों की जगह विद्युत औरसौर ऊर्जा से चालित वाहनों का प्रयोग अधिक किया जाएगा। इसके लिए अभी से प्रयास किए जाने बहुत जरूरी हैं। अभी तो सड़कों पर इतने अधिक वाहन दौड़ते हैं कि भारत के सभी प्रमुख शहर वायु व ध्वनि प्रदूषण के खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं। महानगरों की हवा खराब हो गई है और कैंसर, टीबी, हाइपरटेंशन, शुगर के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।
अभी से सूखने लगे ताल-तलैया, कुएं
जलवायु परिवर्तन का कृषि पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अनियमित बरसात, सूखा, बाढ़ अब हर साल समस्या बनते जा रहे हैं। भूगर्भ जल का स्तर नीचे गिरता चला जा रहा है पर ना तो हमारी सरकार और ना हम कुछ करने को तैयार है। हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। यह स्थिति खतरनाक है और अगर उसमें सुधार नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में परिणाम बहुत घातक होंगे। प्रत्येक साल गर्मियों में इतनी अधिक गर्मी पड़ने लगेगी कि पशु पक्षियों और मनुष्यों का जीना कठिनतर होता चला जाएगा। मौसम पर पूरी दुनिया आश्रित है। भले ही चीन ने अपना सूरज बना लिया हो किंतु पूरी दुनिया इतनी विकसित नहीं हुई है कि जलवायु परिवर्तन की मार झेल सके। भारत जैसे विकासशील देश जलवायु परिवर्तन की मार नहीं झेल सकते हैं। इस बार गर्मियों में अभी से ताल तलैया कुएं सूखने लगे हैं। भूगर्भ जल स्तर नीचे चला गया है और छोटी छोटी नदियां सूखने लगी है गंगा यमुना का पानी भी पतली धारा की तरह दिखाई देता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)