(सावन विशेष)

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में विंध्याचल धाम से एक किमी पश्चिम में शिवपुर नामक स्थान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि एक बार वशिष्ठ मुनि ने पृथ्वी पर भ्रमण करने वाले नारदजी से पूछा कि पृथ्वी पर सबसे उत्तम क्षेत्र कौन-सा है तो नारदजी ने कहा कि इस ब्रह्मांड में विंध्य क्षेत्र सर्वोत्तम है। इसी विंध्य क्षेत्र के शिवपुर का रामेश्वर मंदिर तथा उसमें श्रीराम द्वारा प्रतिष्ठापित शिवलिंग आज भी लाखों-लाख जनता की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।वास्तव में विंध्य क्षेत्र बहुत विस्तृत है। शिवपुर में विशाल शिवलिंग, नन्दी तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। इनकी पूजा गोस्वामी लोग करते हैं। शिवरात्रि तथा बसंत पर मेला लगता है। शिवपुर का मेला बहुत प्रसिद्ध है। यह स्थान बहुत शांत-एकांत वातावरण में स्थित है। दाहिने हाथ दक्षिण की ओर अष्टभुजी देवी महाकाली, पूरब विंध्यवासिनी स्वयं, उत्तर में रामगया तथा भागीरथी विराजमान है।

विंध्याचल के निवासी पं. दीनबंधु मिश्र ने एक कथा का उद्रण देते हुए बताया कि जब भगवान श्रीराम रावण वध के बाद विजय प्राप्त करके अयोध्या पहुंचे, तब उन्हें दो चिंताएं सताने लगी। एक रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या का महापाप और दूसरा पिता को सद्गति की प्राप्ति न होना। प्रभु श्रीराम ने यह चिंता अपने गुरु वशिष्ठ मुनि से व्यक्त की। गुरु वशिष्ठ ने सर्वप्रथम पिता की मोक्ष व सद्गति के लिए बिहार के गया में श्राद्ध करने की बात कही थी। गया यात्रा के दौरान श्रीराम का विमान विंध्याचल पहुंचते ही अचानक ठहर गया। विंध्य क्षेत्र की आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा विमान के खींचे जाने का रहस्य श्रीराम ने गुरु वशिष्ट से जाना चाहा।

गुरु वशिष्ठ ने बताया कि यह स्थान आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी का दरबार है। यहां भगवती अपने संपूर्ण कलाओं के साथ विद्यमान है। विंध्य क्षेत्र और गंगा के संगम तट पर पितरों के लिए किया गया पिंडदान सद्गति को देने वाला है और यहां शिवलिंग की स्थापना से व्यक्ति के नाम अमर हो जाते हैं।

भगवान श्रीराम ने की थी रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना

गुरु वशिष्ट से विंध्य क्षेत्र की कथा सुनने के बाद श्रीराम ने सर्वप्रथम विंध्याचल के इसी क्षेत्र में अपने विमान को उतारने की बात कही। उसी दौरान श्रीराम ने गंगा व कर्णावती के संगम तट पर स्नान कर पितरों के लिए पिंडदान किया, जिसे रामगया के नाम से जाना जाता है। यहीं पर श्रीराम ने विशाल शिवलिंग की स्थापना की, जिसे रामेश्वरम शिवलिंग के नाम से जाना जाता है।

जीर्णोद्धार की बाट जोहता त्रेतायुग में स्थापित शिवलिंग

वर्तमान में रामेश्वरम् मंदिर की जर्जर दीवारें जीर्णोद्धार के लिए इंतजार कर रही हैं। यहां पर न तो यात्रियों के लिए रैन बसेरा है और न ही बैठने के लिए टीनशेड। बिजली, पानी और सड़क व शौचालय की व्यवस्था न होने से बाहर से आने वाले यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना महत्व होने के बाद भी श्रावण मास में यहां दर्शन-पूजन को आने वाले श्रद्धालुओं को मूलभूत सुविधा भी मयस्सर नहीं है। मान्यता है कि रामेश्वरम शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और भक्त को शिव एवं शक्ति दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

विंध्य क्षेत्र में है प्रभु श्रीराम की यात्रा के प्रमाण

मान्यता है कि भगवान राम 14 वर्ष के वनवास की अवधि में पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ विंध्याचल और आसपास के क्षेत्रों में आए थे और भावी जीवन में सफलता के लिए मां विंध्यवासिनी की गुप्त साधना भी की थी। सीता कुंड, सीता रसोई, राम गया घाट, रामेश्वर मंदिर इस दिव्य जगह पर मानवता के इस महान नायक की यात्रा के प्रमाण हैं। प्राचीन समय में विंध्याचल मंदिर ‘शक्ति’ संप्रदाय’ एवं हिंदू धर्म के अन्य संप्रदायों के मंदिरों और धार्मिक केंद्रों से घिरा हुआ था, जिस कारण से इसकी ऊर्जा और महत्ता अत्यधिक थी।

भगवान शिव के उपासक थे प्रभु श्रीराम

रामेश्वर मंदिर विंध्यवासिनी देवी और अष्टभुजा देवी के बीच स्थित है। ये तीनों मंदिर महात्रिकोण-महान त्रिकोण की रचना करते हैं। भक्त इन तीनों मंदिरों के चारों ओर परिक्रमा करने को शुभ मानते हैं और इसे त्रिलोक परिक्रमा का नाम देते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भगवान शिव के उपासक थे।(एएमएपी)