मेरी स्मरण शक्ति… शायद पतंजलि की मेधा वटी का कमाल।
सुरेंद्र किशोर।
यह साबित करने का अवसर हमारे सामने है कि सभी आत्म कथाएं झूठी नहीं होतीं। मैं इन दिनों दो पुस्तकों पर एक साथ काम कर रहा हूं: 1- मुख्य धारा की पत्रकारिता में मेरी अति सक्रियता के दिन (1977-2007) और 2- राजनीतिक जीवन के कटु-मधु अनुभव (1966- 1976)।
यही नहीं कि कहां-कहां तीर मारे
लेखन का काम धीरे -धीरे चल रहा है। संदर्भ सामग्री, सही तारीख और कुल मिलाकर लेखन में एकूरेसी बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ रहे हैं। उसमें आपकी मदद की जरूरत पड़ रही है। मेरी पुस्तक में सिर्फ यह नहीं होगा कि मैंने कहां-कहां तीर मारे। बल्कि यह भी रहेगा कि मैंने कहां- कहां गलतियां कीं। उन गलतियों से कितना सीखा या नहीं सीखा। मैं जार्ज बर्नार्ड शॉ की इस उक्ति को एक हद तक झूठा साबित करने की कोशिश करूंगा कि- “सारी आत्म-कथाएं झूठी होती हैं।’’ पता नहीं, सफल हो पाऊंगा या नहीं।
मेरी स्मरण शक्ति अब भी कुल मिलाकर मेरा बड़ा साथ दे रही है। शायद पतंजलि की मेधा वटी का कमाल है। फिर भी बहुत सारी बातें छूट जाने का खतरा है।
सिर्फ तथ्यात्मक विवरण
यह अच्छी बात है कि मेरे राजनीतिक जीवन और पत्रकारिता काल के अनेक मित्र और परिचित मेरे फेसबुक फ्रेंड भी हैं। उनसे मेरी विनती है। मेरे और उनके बारे में कई मिले-जुले संस्मरण हैं। दिल्ली के मशहूर पत्रकार हरिशंकर व्यास और शम्भूनाथ शुक्ल उस पर थोड़ा लिख भी चुके हैं। व्यास जी और शम्भूनाथ जी यदि उसे एक बार फिर विस्तार देकर मेरे ईमेल पर भेज सकें तो मैं आभार मानूंगा। वह मेरी पुस्तक का बहुमूल्य अध्याय होगा।
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इन दोनों महानुभावों के तो मैंने यहां नाम लिए हैं। इनके अलावा भी बिहार के बाहर के जो अन्य मित्र लिखना चाहें तो उनका विशेष आभार मानूंगा। याद रहे कि सिर्फ तथ्यात्मक विवरण होने चाहिए। प्रशंसा से लेखन बोझिल हो जाता है।
बिहार के भी मेरे बहुत से फेसबुक फ्रेंड मेरे कंटकाकीर्ण जीवन मार्ग के साथी, मददगार या दर्शक रहे हैं। उनमें से लवकुमार मिश्र, परशुराम शर्मा, दयाशंकर सिंह, राम बिहारी सिंह, उमेश प्रसाद सिंह, नन्दलाल सिंह, कन्हैया भेलाड़ी के नाम तत्काल ध्यान में आते हैं। वैसे अन्य अनेक नाम छूट रहे हैं। जिन्हें लगे कि वे इस संदर्भ में दो लाइन भी लिख सकते हैं, तो वे लिखे दे, मैं उनका आभार मानूंगा।
ऐसे विवरण मंगाने का एकमात्र उद्देश्य लेखन में एकूरेसी लाना है। अपना ईमेल एड्रेस मैं अलग से फेस बुक वॉल पर डाल रहा हूं। उसके जरिए भेजेंगे तो ठीक रहेगा। अंत में- थोड़ा कहना, बहुत समझना!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख उनकी फेसबुक वॉल से)