संस्कृत पुस्तकालयों के परिवर्तन पर तीन दिवसीय संगोष्ठी का समापन।

आपका अखबार ब्यूरो।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “विकसित भारत@2047 के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में संस्कृत पुस्तकालयों का रूपांतरण” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी का समापन 28 मार्च को विचारोत्तेजक चर्चा के साथ हुआ। इस संगोष्ठी का उद्देश्य संस्कृत ग्रंथालयों के डिजिटलीकरण, संरक्षण और आधुनिक अनुसंधान पद्धतियों को बढ़ावा देना था।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय थे और विशिष्ट अतिथि थे दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह, जबकि संरक्षक थे आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी। इस अवसर पर, आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि के निदेशक एवं प्रमुख प्रो. (डॉ.) रमेश चन्द्र गौड़, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. आर.जी. मुरली कृष्ण और विश्वविद्यालय ग्रंथपाल (लाइब्रेरियन) डॉ. पी. एम. गुप्ता भी उपस्थित रहे।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि श्री रामबहादुर राय ने कहा कि संस्कृत भारतीय ज्ञान प्रणाली की गंगोत्री है। उन्होंने संस्कृत पुस्तकालयों के रखरखाव पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इनका रखरखाव वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो रहा है। इस संदर्भ में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी की एक घटना का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत पांडुलिपियों के संरक्षण की उचित व्यवस्था नहीं है। संस्कृत पांडुलिपियों का दुरुपयोग हो रहा है। श्री राय ने प्रख्यात दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति को उद्धृत करते हुए कहा कि क्या हम अपनी सम्पदा (ज्ञान परम्परा) के प्रति सचेत हैं! उन्होंने कहा, हमारे सामने तीन चुनौतियां हैं। एक, सम्पदा का संरक्षण; दूसरा, सम्पदा के प्रति जागरूकता और तीसरा, पुस्तकालयों के वर्गीकरण के सम्बंध में पश्चिम का या औपनिवेशिकता का जो प्रभाव है, उससे मुक्ति का उपाय हमें खोजना होगा।

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने पुस्तकालयाध्यक्षों की भूमिका पर बात करते हुए कहा कि संस्कृत पुस्तकालयों का रूपांतरण तभी होगा, जब ग्रंथपालों यानी लाइब्रेरियन का रूपांतरण होगा। पाठक पुस्तकालयों में तभी आएंगे, जब उन्हें वहां आत्मीय वातावरण मिलेगा। डॉ. जोशी ने कहा कि ग्रंथपालों का दायित्व बहुत बड़ा है। हमारा संकल्प पक्का होगा, दृढ़ होगा, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं पाएगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने कहा कि संस्कृत हमारी संस्कृति की वाहक है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा इतिहास उन आक्रांताओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने हमारी संस्कृति के संवाहक तत्त्वों को नष्ट करने का काम किया। उन्होंने संस्कृत भाषा के ह्रास के कारणों की भी चर्चा की और बताया कि बाबासाहब भीमराव अंबेडकर ने संस्कृत आयोग बनाने की वकालत की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि के निदेशक एवं प्रमुख प्रो. (डॉ.) रमेश चन्द्र गौड़ ने कहा कि यह संगोष्ठी बहुत सारे मायनों में अनूठी रही। संस्कृत के जो पुस्तकालय हैं, उनकी क्या स्थिति है, इस पर विचार करने के लिए इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय संस्कृत संघ की आवश्यकता है, एक ऐसे नेटवर्किंग की आवश्यकता है, जहां सभी संस्कृत पुस्तकालय जुड़ सकें और अपनी धरोहर को आगे बढ़ा सकें। यह संगोष्ठी इस संदर्भ में एक रोडमैप तैयार करने में सहायक होगी।

राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. आर.जी. मुरली कृष्ण ने पुस्तकालयों की महत्ता का प्रतिपादन किया। कार्यक्रम के अंत में, डॉ. पी. एम. गुप्ता ने अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों और आगंतुकों के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया।

गौरतलब है कि इस तीन दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार थे, जबकि विशिष्ट अतिथि थे भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री बी.आर. शंकरानंद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने और संगोष्ठी की अध्यक्षता की आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि के निदेशक एवं प्रमुख प्रो. (डॉ.) रमेश चन्द्र गौड़ ने। संगोष्ठी के प्रधान संरक्षक थे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी और संयोजक थे विश्वविद्यालय के ग्रंथपाल डॉ. पी. एम. गुप्ता।

इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में निम्नलिखित विषयों पर परिचर्चाएं हुईः

  • लाइब्रेरी ऑटोमेशन टू रिसोर्स डिस्कवरीः ऑपर्चुनिटी एंड चैलेंजेज फॉर संस्कृत लाइब्रेरीज (पुस्तकालय स्वचालन से संसाधन अन्वेषण तक: संस्कृत पुस्तकालयों के लिए अवसर और चुनौतियां)
  • संस्कृत एंड इंडिक डिजिटल रिपॉजिटरी: इश्यूज एंड चैलेंजेज (संस्कृत और भारतीय डिजिटल रिपोजिटरी: मुद्दे और चुनौतियां)
  • ­भारतीय ज्ञान परम्परा एवं विकसित भारत
  • INFLIBNET लाइब्रेरी इन्फॉर्मेशन एंड सर्विसेज (इनफ्लिबनेट लाइब्रेरी सूचना और सेवाएं)
  • लाइब्रेरी कोऑपरेशन एंड नेटवर्किंग (पुस्तकालय सहयोग और नेटवर्किंग)
  • प्रिजर्वेशन एंड कंजर्वेशन ऑफ लाइब्रेरी मटीरियल्स (पुस्तकालय सामग्री का रक्षण और संरक्षण)
  • डिमॉन्स्ट्रेशन ऑफ कोहा लाइब्रेरी ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर (कोहा लाइब्रेरी ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर का प्रदर्शन)
  • ओजेएस डिमॉन्स्ट्रेशन एंड प्लेटफॉर्म इंस्टालेशन (ओजेएस प्रदर्शन और प्लेटफ़ॉर्म इंस्टालेशन)
  • रोल ऑफ एनईपी 2020 इन ट्रांसफॉर्मिंग ऑफ संस्कृत लाइब्रेरीज फॉर विकसित भारत (विकसित भारत के लिए संस्कृत पुस्तकालयों के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका)

इन चर्चाओं के अलावा, संगोष्ठी में शास्त्रीय नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया, जिसमें प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना वाणी माधव और उनके समूह ने नृत्य प्रस्तुति दी, साथ ही लोक संगीत की प्रस्तुतियां भी हुईं। इस संगोष्ठी से संस्कृत ग्रंथालयों और डिजिटल प्रौद्योगिकी के समावेशन को लेकर नए दृष्टिकोण और रणनीतियां उभरीं, जिससे भारत की पारंपरिक ज्ञान परम्परा को और अधिक सशक्त बनाने में मदद मिलेगी।