प्रदीप सिंह।
जिस तरह से अपमानित कर कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया गया उसके बाद से लगता है कैप्टन ने कांग्रेस को सबक सिखाने की पूरी तरह से ठान ली है। कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए कैप्टन ने पहला हथियार चुना राष्ट्रवाद। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने पहली बात कही कि यह सीमावर्ती राज्य है यहां राष्ट्रहित सबसे पहले है। कैप्टन इस बात पर लगातार जोर दे रहे हैं। जब कैप्टन सत्ता में थे तब भी उनकी गवर्नेंस को लेकर तो कई सवाल उठ सकते हैं लेकिन लेकिन राष्ट्रहित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को लेकर उनके विरोधियों तक को कोई शक कभी नहीं रहा।
‘नेता नहीं, दोस्तों से मिलने आए’
बुधवार की रात अमरिंदर सिंह की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई जो पैंतालीस से पचास मिनट तक चली। यह राजनीतिक मुलाकात थी और कैप्टन जब चंडीगढ़ से चले तभी से कहा जा रहा था कि वह अमित शाह से मिल सकते हैं। दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने के बाद कैप्टन ने कहा कि वह आवास से अपना सामान लेने आए हैं न कि किसी से मिलने। एक सवाल के जवाब में उन्होंने जो कहा उन शब्दों पर ध्यान देना जरूरी है कि ‘वह किसी नेता से नहीं अपने दोस्तों से मिलने आए हैं।’ फिर वह मिले अमित शाह से। इससे इशारा साफ समझिए। मुझे यह नही मालूम कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे, या नहीं होंगे- उनको भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इस आशय का कोई प्रस्ताव मिला है, या नहीं मिला है- अथवा उन्होंने अपनी ओर से कोई पेशकश की है, या नहीं की है। लेकिन अभी तक के घटनाक्रम के आधार पर एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनके अच्छे संबंध हैं।
पहले से जारी सिलसिला
कैप्टन के इस्तीफा देने के कुछ महीने पहले से उनकी दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ मुलाकातें हो रही थीं जिन पर कांग्रेस सवाल उठा रही थी। तब उनका कहना था कि पाकिस्तान की तरफ से ड्रोन से जो हथियार आ रहे हैं और सीमा पार से जो हरकतें हो रही हैं उनके बारे में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को बताना मेरा दायित्व है। यह सब वह कर भी रहे थे।
क्या बताने गए थे डोवाल को
कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रधानमंत्री मोदी से मिलें, गृह मंत्री शाह से मिलें, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलें, कांग्रेस के प्रभारियों से मिलें यह सब एक राजनीतिक व्यवहार में आता है। ये सब बातें हो रही हैं कि वह एक अलग राजनीतिक दल बना लें और फिर गठबंधन करें, या भाजपा में आ जाएं। यह सब हो सकता है। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात शुक्रवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित कुमार डोवाल से उनकी मुलाकात है जिसने इस पूरे खेल का आयाम बदल दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ उनकी बैठक का मतलब है कि मामला केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि कैप्टन के पास राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कुछ ऐसी जानकारियां हैं जो वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल से साझा करना चाहते हैं। और यह बैठक होती है केंद्रीय गृह मंत्री से उनकी मुलाकात के बाद। जाहिर है यह सलाह उनकी मंजूरी के बाद ही मिली होगी।
अभी तक कांग्रेस या जितने भी दलों से लोग बीजेपी में आए हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिलने की उनकी नौबत नहीं आई। जरूरत भी नहीं थी क्योंकि एनएसए कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। वह सुरक्षा मामलों के जानकार और विशेषज्ञ हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि आईबी का उनसे बढ़िया फील्ड आफिसर शायद ही कोई हुआ हो। उन्होंने बहुत बड़े बड़े काम किए हैं। कैप्टन की उनसे मुलाकात का मतलब है कि यह पंजाब और सीमा की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है। यह भी संभव है कि नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में कैप्टन के पास कोई जानकारी हो। हो सकता है कि किसी और पार्टी कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी के किसी नेता के बारे में उनके पास इसी तरह की और कुछ जानकारी हो। खालिस्तानी तत्वों से उनके संबंध के बारे में जानकारी हो। जब तक कैप्टन कांग्रेस में और पंजाब के मुख्यमंत्री के पद पर थे तब तक उन पर यह जिम्मेदारी थी कि वह पार्टी की बात अंदर ही रखें। लेकिन अब उनके पास जो जानकारी है और वह जिस रास्ते पर चल पड़े हैं और जो उन्होंने राष्ट्रवाद का स्टैंड लिया है उससे यह जरूरी हो गया है कि वह इस रास्ते पर आगे बढ़ें।
गुरुवार को अमित शाह से कैप्टन की मुलाकात के बाद कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन के मुद्दे पर बातचीत हुई है। इसका हल क्या हो- इस पर बातचीत हुई है। कैप्टन ने शाह के बैठक के बाद इसी मुद्दे पर बयान भी दिया। लेकिन प्राय: राजनीति में जैसा सामने से दिखाई देता है वह वास्तव में वैसा होता नहीं है। कई बल्कि ज्यादातर बार यह होता कि जो चल रहा होता है उससे लोगों का ध्यान हटाने के लिए सार्वजनिक रूप से दूसरी बातें कही जाती हैं।
दीवार पर लिखी इबारत
कैप्टन का इसके बाद यह कहना कि वह कांग्रेस से इस्तीफा देंगे और भाजपा में नहीं शामिल होंगे- भविष्य की राजनीति के काफी पुख्ता संकेत देना वाला है। अब यह बात पूरी तरह साफ हो गई है कांग्रेस से उनका साथ यहीं तक था। आगे वह भाजपा के साथ होंगे। भाजपा में नहीं होकर भी भाजपा के साथ होंगे। यह एक ऐसा रास्ता है जो राजनीति की मौजूदा परिस्थितियों में भाजपा को भी सूट करता है और कैप्टन को भी। क्योंकि दोनों के सामने अभी कुछ ऐसी भिन्न परिस्थितियां हैं कि दोनों एक साथ आ जाएं तो थोड़ी असहजता दोनों तरफ होगी। कुछ मिलाकर कैप्टन का अपमान कर कांग्रेस ने उन्हें जो घाव दिया है उसका असर बहुत अंदर तक है और उसका बदला लेने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह आमादा हैं। लेकिन वह जल्दबाजी या अतिउत्साह में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते जिसका उनको नुक्सान हो। या जिससे उनको अपना लक्ष्य हासिल करना में दिक्कत हो।
-सवाल उठता है कि आखिर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कैप्टन अमरिंदर सिंह से चाहता क्या है?
-अगर कैप्टन किसी भी रूप में भाजपा का साथ देते हैं तो उसका असर केवल पंजाब तक ही रहेगा या पूरे देश में कुछ हलचल हो सकती है?
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