प्रदीप सिंह।
किसी भी पुरुष प्रधान समाज में नारी का सबसे बड़ा सम्मान क्या हो सकता है। क्या उसे देवी बनाकर, मूर्ति बनाकर स्थापित कर दिया जाना चाहिए। या उसकी जो पददलित स्थिति- जो बहुत से देशों के समाज में है और अपने देश के समाज में भी है- वह बनी रहनी चाहिए। मेरी समझ से नारी का सबसे बड़ा सम्मान है उसे बराबरी का दर्जा देना, बराबरी का स्थान देना, हर फैसले और बात में उसको शामिल करना।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते…
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।’ इसकी भावना समझने की बजाय हमारे समाज ने इसका शाब्दिक अर्थ ग्रहण कर लिया। मतलब नारी को पूजा के स्थान पर बैठा दीजिए, उसे सामान्य मनुष्य से ऊपर का दर्जा दे दीजिए- यही नारी का सम्मान है। नहीं… शास्त्रों में जो कहा गया है उसकी भावना दूसरी है। भाव यह है कि जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है। देवता अर्थ है कि जो भी जीवन में नैतिक है, जो सत्य है, जो शिव है- वही सुन्दर है।
जीवन में जो कुछ अच्छा है वह वहीं होगा जहां नारी को हेय दृष्टि से नहीं बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। अब आपको लग रहा होगा कि मैं समाचार की दुनिया से निकलकर कही अध्यात्म की दुनिया में तो नहीं चला गया। प्रवचन देने लगा हूं। नहीं ऐसा निश्चय ही नहीं है। उस दिशा में और उस विषय पर मेरा कोई ज्ञान या समझ नहीं है इसलिए मैं उस दिशा में जाने की कोई कोशिश भी नहीं करूंगा।
नारी सम्मान का सही मतलब
मैं बात कर रहा हूं नारी सम्मान की। नारी को सम्मान देने या बराबरी का स्थान देने का मतलब क्या है। मेरी नजर में नारी को सम्मान और बराबरी देने का सही मतलब है जीवन के हर फैसले में नारी की सहभागिता हो। इसका अर्थ है जीवन के हर फैसले में उसकी राय, सुझाव और विचार को वही महत्व मिले जो परिवार या समाज में पुरुष की राय को मिलता है। परिवार में पैसे कमाकर कौन लाता है यह बात गौण है। बात यह है कि जब पैसा घर में आता है उसे जीवन को बेहतर, सुगम बनाने के लिए उद्यम कौन करता है, दिन रात इसके बारे में कौन सोचता है- यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। और यहीं पर नारी की भूमिका आती है। मकान को घर बनाने में सबसे बड़ी और केंद्रीय भूमिका स्त्री की, नारी की होती है। तो अगर आप नारी को सम्मान, प्रतिष्ठा, बराबरी का हक देते हैं तो आप वास्तव में नारी का सम्मान करते हैं। अगर आप सिर्फ यह समझते हैं कि आप सिर्फ आदेश देने के लिए हैं और वह उस आदेश को मानने के लिए बाध्य है तो आप नारी को सम्मान नहीं दे रहे हैं।
महिलाओं की स्थिति
इक्कीसवीं सदी में भी हमारे समाज में महिलाओं की क्या स्थिति है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाइए कि आज भी हमें डोमेस्टिक वायलेंस यानी घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून की जरूरत है। कानून की जरूरत तब पड़ती है जब समाज फेल हो जाता है। जब समाज अपने स्तर पर सुधार नहीं कर पाता है तब स्थिति को रोकने के लिए शासन को कानून बनाकर दखल देना पड़ता है। सबसे बड़ा समाज सुधार वही होता है जो समाज के अंदर से आता है। कानून से जो सुधार आता है वह दरअसल एक थोपा हुआ, अनुशासित और एक व्यवस्था में किया गया काम होता है।
लंबे इंतजार के बाद बदलाव की आहट
अब थोड़ी सगुण बात करते हैं। हमने गुलामी का जो लंबा दौर देखा उसके पहले देश में महिलाओं की बहुत अच्छी स्थिति थी। यहां हम उसकी बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन पिछले आठ सौ, हजार सालों में महिलाओं की जो स्थिति बनी है और उसमें जो माहौल बना उसमें सात साल पहले एक नेता प्रधानमंत्री के रूप में आता है- नरेंद्र मोदी। अब जैसे चलता आया बहुमत मिला, प्रधानमंत्री बने, सरकार चला रहे हैं। जैसे बाकी सरकारें चलीं वह भी योजना बनाते रहते उन्हें लागू करते रहते। सरकार चलती रहती। कोई समस्या नहीं थी। फिर राजनीति के और बहुत से तरीके होते हैं चुनाव जीतने के। उन तरीकों से चुनाव जीतते रहते। लेकिन जब आपके बारे में किसी विषय को लेकर संवेदना हो तब उसको लेकर गहराई से सोचते हैं और उसमें बदलाव लाने की सोचते हैं।
अपना बैंक खाता
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जनधन योजना शुरू करते हैं जिसमें जीरो बैलेंस से गरीबों के बैंक खाते खोले जाएं। उसका मुख्य मकसद अब तक मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था, बैंकिंग व्यवस्था से बाहर रहे देश की आबादी के एक बड़े वर्ग यानी गरीबों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ना था। इस योजना की स्पीड और स्केल देखिए। कुछ ही समय में चालीस करोड़ से ज्यादा खाते खुल गए। पर यह उसका सिर्फ एक पक्ष है। यह उसका प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक पक्ष है। पर मोदी का उद्देश्य सिर्फ इतना नहीं था। कोशिश यह हुई कि ज्यादा से ज्यादा बैंक खाते महिलाओं के नाम से खोले जाएं।
जरा आप उस गरीब महिला की कल्पना कीजिए और अगर आपने देखा हो तो उसका चेहरा याद कीजिए जब पहली बार बैंक का खाता खुलने के बाद पासबुक उसके हाथ में आई। ये उसका इम्पावरमेंट भी था कि उसका भी बैंक खाता हो सकता है। उसको छिपाकर चुराकर पैसा रखने की आवश्यकता नहीं है, सबके सामने बैंक में रखने की जरूरत है, कोई भी जान सकता है। ये इम्पावरमेंट आपके पूरे व्यक्तित्व को बदल देता है। यह प्रशासन के जरिये सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश है। योजना का घोषित उद्देश्य को निश्चित रूप से यही है कि ये सारे लोग बैंकिंग व्यवस्था से बाहर क्यों रह जाएं। और फिर बैंकों का राष्टÑीयकरण भी इसी मकसद से किया गया था कि गरीब भी बैंकों तक पहुंच सके… हालांकि वह और दूर होता चला गया! जनधन योजना में जो बैंक खाते खुले उनमें दो तिहाई से ज्यादा खाते महिलाओं के नाम से खुले।
‘कालिमा’ से उज्ज्वला की ओर
मई 2015 में एक और योजना आई- उज्ज्वला योजना। रसोई गैस का मुफ्त कनेक्शन। एक समय घर में रसोई गैस का कनेक्शन होना सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्पन्नता का प्रतीक था। गरीब आदमी उसको बड़ी हसरत की नजर से देखता था- क्या ये सभी हमारे घर में हो पाएगा। उसको नहीं लगता था कि ये कभी हमारे घर में हो सकता है। सक्षम लोगों को भी रसोई गैस कनेक्शन के लिए काफी पैरवी लगवानी पड़ती थी। मंत्री, विधायक से लिखवाओ, सिफारिश कराओ, फिर कोटा-परमिट सब पार करते हुए बड़ी मुश्किल से मिलता था। फिर गैर सिलेंडर के लिए मारामारी। वो सब खत्म कर दिया। गरीब लोगों के लिए नौ करोड़ से ज्यादा गैस कनेक्शन मुफ्त केंद्र सरकार ने दिए। और यहां भी प्राथमिकता घर की महिला को। उसके नाम से गैस कनेक्शन दिया गया।
सदियों के अपमान से मुक्ति
उसके बाद प्रधानमंत्री ने लालकिले से स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की। बहुत मजाक उड़ाया गया। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता ने प्रधानमंत्री का उपहास करते हुए कहा कि क्या यह ऐसा विषय है जिसे आप लालकिले से बोलें। लेकिन आप इससे हुए बदलाव को देखिए। देश में स्वच्छता, हाईजीन को लेकर जो जागरूकता आई है वो तो एक बात है। लेकिन उस योजना के तहत जो शौचालय बनाने का काम शुरू हुआ- खासतौर से ग्रामीण इलाकों में और शहरों में झुग्गी झोपड़ी व गरीब इलाकों में- उसने काफी कुछ बदल दिया।
समाज के मिडल क्लास, अपर मिडल क्लास या उससे ऊपर के लोगों की कल्पना में यह आ ही नहीं सकता कि घर में शौचालय होने का क्या अर्थ है। किसी भी महिला के लिए खुले में शौच जाने से ज्यादा अपमानजनक बात और कोई नहीं हो सकती है। उसको रोज इस अपमान से गुजरना पड़ता था। इसमें तमाम तरह के अपराध होते थे। बात केवल अपमान और अपराध तक ही सीमित नहीं है। इसकी वजह से तमाम किस्म की बीमारियां होती थीं। दिन में शौच के लिए नहीं जा सकते तो… पानी कम पीना है, खाना कम खाना है… तरह तरह की बीमारियों को न्यौता- यह सब खत्म हो गया।
इस योजना में करीब ग्यारह करोड़ शौचालय बने। देश खुले में शौच की समस्या से लगभग मुक्त हो चुका है। अपवाद के लिए कोई एकाध जगह हो सकती हैं। फिर जो ग्यारह करोड़ शौचालय बने उनमें से कुछ इस्तेमाल नहीं हो रहे होंगे। लेकिन मौटे तौर पर ज्यादातर इस्तेमाल हो रहे हैं। केवल इस्तेमाल ही नहीं हो रहे हैं बल्कि उसके प्रति जागरूकता इतनी बढ़ गई है कि हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर के पास शौचलाय बने। सरकार इसके लिए सब्सिडी दे रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि पैसा उनके खाते में जाए और शौचालय बने। उसका भौतिक सत्यापन होता है।
खुशी की बुनियाद
शौचालय और उज्ज्वला योजना भारत में महिलाओं खासतौर से ग्रामीण और शहरी गरीब महिलाओं में बदलाव लाने वाला क्रांतिकारी कदम है। खुले में शौच की मजबूरी के चलते महिलाओं को कितने अपमान, बीमारियों और लाचारी का सामना करना पड़ता था। यह बात तो शहर वालों को समझ में नहीं आ सकती। यहां तक कि ग्रामीण भारत के पुरुष भी महिलाओं की इस परेशानी का दर्द नहीं समझ सकते। मोदी ने इसे घर घर पहुंचा दिया। उज्जवला ने धुएं और मौसम की मार से बचाया। किसी भी मौसम में ईधन की समस्या नहीं है। एक बार चूल्हा जल गया तो खाना बनाने की मजबूरी नहीं। खाना चाहे जिस भी समय हो, उसी समय बनाया जा सकता है। और सबसे बड़ी बात यह कि धुएं से होने वाली तमाम तरह की बीमारियों से छुटकारा।
उसके बाद आई प्रधानमंत्री आवास योजना। गरीबों को अपना पक्का घर। घर भी कैसा जिसमें बिजली का कनेक्शन, रसोई गैस का कनेक्शन, शौचालय और नल से जल का प्रबंध है। आप उस महिला की खुशी का अंदाजा लगाइए जिसके अपने नाम से उसका घर है। इससे बड़ा सम्मान आप क्या देंगे किसी महिला को। लेकिन यह मत समझिए कि यह सिलसिला यहां आकर रुक गया है।
मीलों का सफर, बस दो कदम…
2019 में जीतकर आने के बाद अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल में एक और अभियान शुरू किया प्रधानमंत्री मोदी ने- ‘नल से जल’। हम लोग जो शहरों में रहते हैं, घरों में पानी आसानी से उपलब्ध है, उसका दुरुपयोग भी खूब करते हैं- उन्हें पानी का महत्व समझ में नहीं आता। लेकिन जो पानी की कमी वाले इलाके हैं उनकी समस्या का अनुमान लगाइए। महिला को पूरी गृहस्थी चलानी है। उसे सब चीजों के बारे में सोचना है। पानी का कैसे किफायती इस्तेमाल हो। नहाने, सफाई, कपड़े धोने, हाथ मुंह धोने हर काम में पानी की जरूरत है। हमारे समाज में घर के लिए पानी का प्रबंध करने का सारा काम ज्यादातर महिलाओं के जिम्मे है। पानी की कीमत कितनी है उसका अंदाजा आप बुंदेलखंड की इस कहावत से लगाइए कि ‘गगरी न फूटे, खसम मरि जाय’। किसी भी भारतीय महिला के लिए उसके पति के मरने की कल्पना मात्र कितनी डरावनी होती है। लेकिन वह कह रही है कि यह पानी से भरी हुई गगरी फूटने न पाए भले उसका पति मर जाए। तो इससे पानी की कीमत समझिए। और उसके घर में जब नल से जल पहुंचेगा तो उसकी खुशी का अंदाजा लगाइए। अभी भी देश में ऐसे भी गांव और जगहें हैं जहां एक दो महिलाओं को छोड़कर ज्यादातक महिलाओं का मुख्य काम पानी लाना है। दो-चार-आठ किलोमीटर तक से पानी लाना पड़ता है। कहीं गड्ढे खोद खोदकर पानी निकाला जाता है। उस गंदे पानी को छानकर पीने लायक बना रहे हैं। इसी के लिए है नल से जल अभियान।
गरीब आदमी पर फोकस
बैंक खाता, गैस कनेक्शन, आवास, नल से जल- इन सभी योजनाओं को जोड़कर देखें कि इनके मूल में क्या है? इन सब योजनाओं के केंद्र में महिलाएं हैं। ये गरीब आदमी के जीवन स्तर को उठाने, उसके जीवन में बडा बदलाव लाने का प्रयास है। और यह काम वही व्यक्ति कर सकता है जिसने गरीबी देखी हो, अभाव देखा हो। अपने घर में मां-बहन और दूसरी स्त्रियों को इन अभावों से जूझते, उनका इंतजाम करते और उनका सपना देखते हुए देखा हो। जिसको मालूम हो कि इन सबको हासिल करने पर किस तरह की खुशी होती है। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो याद रखी जाएंगी लेकिन इस देश के गरीब आदमी को पहली बार लग रहा है कि सरकार उसके लिए भी होती है। सरकार का काम केवल रेल-बस चलाना, सड़क-पुल बनाना, हवाई जहाज उड़ाना ही नहीं है, बल्कि जो गरीब आदमी वोट देकर सरकार बनाता है उसकी जरूरतों का ध्यान रखना भी है। अगर इस देश में लोकतंत्र बचा है तो उसका सबसे बड़ा श्रेय इस देश के गरीबों, दलितों, पिछड़ों, समाज के वंचित वर्ग को जाता है। जब उसके जीवन में परिवर्तन आता है तो एक ऐसा विश्वास बनता है- आज जो लोग नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से परेशान हैं उनको समझ में नहीं आ रहा है कि उनको कैसे अलोकप्रिय बनाएं, कैसे हटाएं- यह उस विश्वास का नतीजा है।
इतना अभाव, फिर मोदी-मोदी की रट क्यों?
इस विषय पर बात करने का ख्याल मेरे मन में अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो देखकर आया जिसमें अयोध्या के एक गांव की 18 साल की एक युवती जिसके घर तक सड़क नहीं है, बहुत सी परेशानियां हैं- लेकिन वह हर बात पर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करती है। आखिर में उससे रिपोर्टर ने पूछा कि तुम्हारे पास इतनी समस्याएं और अभाव हैं तो फिर क्यों प्रधानमंत्री की तारीफ कर रही हो? उसने कहा, ‘मोदी जी महिलाओं की समस्या को समझते हैं। इसलिए हमको उन पर भरोसा है।’ ये भरोसा है जिसने दो बार जिताया है। और यह भरोसा जब तक कायम रहेगा तब तक कोई हरा नहीं पाएगा।
आप मोदी को गाली दें, आलोचना करें, जो भी बुरे से बुरे शब्द हो सकते हों वे उनके लिए इस्तेमाल करें, उनके समर्थन में बोलने वालों को गाली देते रहिए… कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। क्योंकि जिनकी जिंदगी में फर्क पड़ा है उनको मालूम है कि क्या हुआ है। पढ़े लिखे लोग, बुद्धिजीवी, पत्राकर वेल्फेयर स्टेट (लोककल्याणकारी राज्य) की बात करते हैं, वह इसके सिवा और होता क्या है?