हमास के बर्बर कृत्यों पर क्या बोले भारत के राजनितिक दल, जानें किसने क्या कहा-
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने बुधवार (18 अक्टूबर) को इजराइल और आतंकी संगठन हमास के बीच चल रहे युद्ध पर कांग्रेस द्वारा अपनी कार्यसमिति बैठक (CWC) में पारित किए गए प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ‘हमास’ की निंदा नहीं की और तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनावों पर नजर रखते हुए पार्टी नेता राहुल गांधी के आग्रह पर फिलिस्तीन के लिए अपने समर्थन का ऐलान किया। सीएम सरमा ने यह भी कहा कि नवगठित भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A.) के घटक दलों के बीच कोई एकता नहीं है और इसका गठन सिर्फ और सिर्फ भारत के “लोगों को धोखा देने” के लिए किया गया है।
उन्होंने कहा कि, ‘देखिए, हाल ही में CWC की बैठक हुई थी। वहां हमास के मुद्दे पर चर्चा हुई। बैठक में सभी ने कहा कि इस वक़्त (हमले के लिए) हमास की निंदा करना जरूरी है। लेकिन राहुल गांधी ने कहा कि तेलंगाना में चुनाव आ रहा है, इसलिए हमें फिलिस्तीन का समर्थन करना चाहिए।” सीएम सरमा ने कहा कि, मैं आपको CWC के अंदर की कहानी बता रहा हूं। उसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया। बता दें कि, 9 अक्टूबर को अपनी बैठक में, कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर आतंकी संगठन हमास द्वारा किए गए भयानक हमले का जिक्र किए बिना फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पास किया था।
इसको लेकर सीएम सरमा ने कहा कि CWC प्रस्ताव में हमास के बारे में “एक भी शब्द नहीं” था। उन्होंने कहा कि, “कांग्रेस यह कहकर अपना प्रस्ताव संतुलित कर सकती थी कि हम हमास की निंदा करते हैं, लेकिन साथ ही हम स्वतंत्र फिलिस्तीन का समर्थन करने के भारत के रुख पर कायम हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।’ मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, मगर कांग्रेस अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इस तथ्य के बावजूद आतंकवाद के खिलाफ कुछ नहीं बोल रही है कि भारत आतंकवाद का शिकार है।
उन्होंने कहा कि, “यह दुख की बात है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को खुले तौर पर हमास की निंदा करनी चाहिए थी। साथ ही वे कह सकते हैं कि हम फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं। यह एक अलग मुद्दा है। चूंकि कांग्रेस की नजर वोट बैंक पर है, इसलिए उन्होंने ऐसा किया।’ सीएम सरमा ने चुटकी लेते हुए कहा कि चूंकि राहुल गांधी बाइकर हैं, इसलिए संभावना है कि वह किसी दिन गाजा जाकर बाइक चलाएं या वहां ट्रैक्टर पर बैठें। फिलिस्तीन के लिए भारत के दीर्घकालिक समर्थन के बावजूद “इजरायल के साथ खड़े होने” के लिए NCP प्रमुख शरद पवार की सरकार की कथित आलोचना के बारे में पूछे जाने पर, सरमा ने कहा कि भारत में कुछ लोग हैं जो हमास को क्लीन चिट दे रहे हैं क्योंकि वे तुष्टिकरण से आगे कुछ भी नहीं देख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि, “यहां तक कि हमास भी इजरायल की उस तरह निंदा नहीं कर रहा है, जिस तरह से भारत में कुछ लोग इजरायल की निंदा कर रहे हैं। यहां तक कि हमास ने भी स्वीकार कर लिया है कि उससे गलती हुई है। हमास जानता है कि उन्होंने बच्चों का अपहरण किया है और यह एक पाप है।”
कनाडा-ब्रिटेन और भारत से सेलेब्रेशन की खबरें, यूएई और सऊदी से क्यों नहीं
भारत के मुसलमानों को समझना चाहिए कि आखिर यूएई और सऊदी अरब के मुसलमान अपने रोष को क्यों दबाए हुए हैं. सऊदी के मुसलमान क्या भारत के मुसलमानों से कमतर हैं? दरअसल दुनिया भर में देश के नागरिकों के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है. यूएई और सऊदी की समस्याएं अलग अलग हैं. यही कारण है कि सऊदी और यूएई के मुसलमान अपने देश के साथ हैं. ईरान अगर आज हमास का समर्थन कर रहा है तो ये उसका हित है. पर जो हित ईरान का है वही हित यूएई और सऊदी का नहीं हो सकता. ईरान हूती विद्रोहियों को यूएई और सऊदी के खिलाफ साजो सामान मुहैया कराता रहा है. हूती विद्रोहियों से निपटने के लिए और यमन में सरकार को पुनर्स्थापित करने के लिए सऊदी अरब ने 2015 में अरब देशों का एक सैन्य गठबंधन तैयार किया था. दुनिया जानती है कि यमन पर कब्जे की लड़ाई में सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों और ईरान के बीच एक छद्म युद्ध चलता रहा है. अगस्त, 2020 में इजरायल और यूएई के बीच एक समझौता हुआ ईरान विरोधी गठबंधन में इजरायल की भी एंट्री हो गई. अब यूएई और सऊदी के लोग अपने देश के साथ मजबूती से खड़े हैं।
यूएई खुलकर आया इजरायल के साथ, सऊदी का बैलेंस रुख
इजरायल पर हमले का ईरान और कई मुस्लिम देशों में जश्न मनाया जा रहा है, वहीं यूएई ने हमास को चेताया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यूएई खुलकर इजरायल के साथ आ गया है. बताया जा रहा है कि यूएई ने भी सीरिया को अपनी धरती से इजरायल के खिलाफ किसी भी हमले की अनुमति नहीं देने की चेतावनी दी है.यूएई ने साल 2021 में इजरायल में अपना दूतावास खोला था. कई खाड़ी देशों ने IOC के मंच पर यूएई की आलोचना भी की थी कि यूएई इजरायल के खिलाफ नरम पड़ रहा है. यूएई ने कहा कि वह इन खबरों से हैरान है कि हमास ने इजरायल के लोगों को उनके घरों से निकालकर बंधक बना लिया है.सऊदी अरब ने भी बहुत सतर्कतापूर्वक प्रतिक्रिया दी है. यूएई और सऊदी अरब दोनों इजरायल के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहे हैं. सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला रुख़ तुर्की का है.तुर्की के विदेश मंत्रालय के बयान को देखिए , ‘’हिंसा बढ़ने का किसी भी पक्ष को फ़ायदा नहीं होगा. तुर्की हालात काबू करने में सहयोग देने के लिए हमेशा तैयार है.हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं, वो हिंसा का रास्ता छोड़ एक स्थायी समाधान की दिशा में काम करें।
हमास/कट्टरपंथ से नाता जोड़ने वालों के लिए ऐतिहासिक सबक
हिंदू-मुस्लिम एकता कायम रखने के लिए भारत ने 1920 में वो ऐतिहासिक भूल की थी, जिसने इस उपमहाद्वीप को बंटवारे की कगार पर ला दिया. मुसलमानों में वैश्विक एकता कायम करने के लिए तभी खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ था. अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में महात्मा गांधी ने उस दौरान मुस्लिम लीग का साथ इस शर्त पर लिया कि कांग्रेस खिलाफत आंदोलन में उसका समर्थन करेगी. लोकमान्य तिलक ने विरोध भी किया. बाद में इसी के चलते मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी. ये और बात है कि बाद में खुद जिन्ना एक कट्टर सेक्युलर नेता से सांप्रादायिक मुसलमान बन गए. इस ‘ग्लोबल मुस्लिम ब्रदरहुड’ को नजरअंदाज करने का जो सिलसिला 1920 में कांग्रेस ने शुरू किया था, वो भारत के बंटवारे के बाद इंदिरा गांधी से लेकर यूपीए -2 तक वैसे ही चलता रहा. यह वैश्विक लेवल के मुस्लिम भाईचारे का ही डर था कि इजरायल को कभी एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी गई. यह वैश्विक मुस्लिम भाईचारा ही था कि यासिर अराफात के फिलिस्तीन को दुनिया में सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में भारत भी शामिल था. पर अब समय बदल गया है. बदलते समय को देखते हुए अरब देश खुद इस वैश्विक मुस्लिम भाइचारे से दूर हो रहे हैं. मिस्र ने तो खुद अपने देश में मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम से बने आतंकी संगठन के खिलाफ कार्रवाई की है. ऐसे में ऐसे किसी भी गठजोड़ से भारतीय मुसलमानों और भारतीय राजनेताओं को दूर रहना होगा. ऐसा करने से भारतीय मुसलमान के रूप में उन्हें अलग पहचान मिलती है, जिन पर 9/11 हो या ISIS के उभार का दौर, कोई उन पर आतंकवादी होने का शक नहीं करता. जैसा कि पाकिस्तानी मुसलमानों के साथ होता है।
फिलिस्तीनी राजदूत से मिलने वाले नेताओं के नाम जान लीजिए
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और मौजूदा और पूर्व सांसदों सहित विपक्षी नेताओं के एक समूह ने भारत में फिलिस्तीनी राजदूत अदनान मोहम्मद जाबेर अबुलहैजा से मुलाकात की। इस समूह में कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर, श्रीकांत जेना, बसपा सांसद दानिश अली, राजद सांसद मनोज झा, सपा सांसद जावेद अली, जदयू महासचिव केसी त्यागी, सीपीआई प्रमुख डी राजा, सीपीएम नेता नीलोत्पल बसु, सपा नेता शाहिद सिद्दीकी और सीपीआईएमएल शामिल हैं। अन्य लोगों के अलावा, दीपांकर भट्टाचार्य ने भी युद्धग्रस्त क्षेत्र में स्थायी शांति बहाल करने के लिए ‘तीव्र राजनयिक प्रयासों’ और ‘बहुपक्षीय पहल’ पर जोर दिया।
इजरायल के खिलाफ विपक्षी नेताओं का साझा बयान
फिलिस्तीनी दूत के साथ बैठक के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान लाने, फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का सम्मान करने और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता तत्काल पहुंचाने का आग्रह किया। संयुक्त प्रस्ताव पर कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, राजद के मनोज के झा, सीपीआई के डी राजा, सीपीआई (एम) की सुभाषिनी अली और नीलोत्पल बसु, एसपी के जावेद अली खान, जेडी (यू) के केसी त्यागी समेत कुल 16 नेताओं के नाम हैं।
इस बयान में कहा गया है, ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इजरायल राज्य पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने और फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और पहचान का सम्मान करने के लिए दबाव डालना चाहिए। हम क्षेत्र में स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए गहन राजनयिक प्रयासों और बहुपक्षीय पहल का आह्वान करते हैं।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘हम गाजा में चल रहे संकट और फिलिस्तीनियों की पीड़ा को लेकर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हैं।’ बयान में कहा गया, ‘हम गाजा में इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों पर अंधाधुंध बमबारी की कड़ी निंदा करते हैं, जिसे हम नरसंहार के प्रयास के समान मानते हैं। अली ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पोर्टल एक्स पर जाकर विपक्षी नेताओं की तस्वीरें और प्रस्ताव साझा करते हुए कहा, ‘आज, विभिन्न दलों के सांसदों और राजनेताओं ने फिलिस्तीनी राजदूत से मुलाकात की और इजरायली बलों द्वारा गाजा में मासूम बच्चों सहित फिलिस्तीनी लोगों की बेरहमी से हत्या किए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की। हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप करने और इस पागलपन को रोकने की मांग करते हैं।
साझे बयान में फिलिस्तीन पर महात्मा गांधी के रुख का जिक्र
विपक्षी नेताओं ने आगे कहा कि हम महात्मा गांधी के इस कथन पर दृढ़ता से विश्वास करते हैं: ‘फिलिस्तीन उसी अर्थ में अरबों का है जैसे इंग्लैंड अंग्रेजी का है या फ्रांस फ्रांसीसियों का है,’ जो संप्रभुता को मान्यता देने के महत्व में उनके विश्वास को दर्शाता है। और फिलिस्तीनी लोगों के क्षेत्रीय अधिकार, किसी भी अन्य राष्ट्र के अपनी मातृभूमि के अधिकार की तरह। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘यह स्वीकार करते हुए कि फिलिस्तीनी लोगों ने 75 वर्षों से अधिक समय तक अपार पीड़ा सहन की है, हम दृढ़ता से कहते हैं कि अब उनकी दुर्दशा को समाप्त करने का समय आ गया है।’
नेताओं ने अपने साझे बयान में कहा, ‘हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार 1967 की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को मान्यता देने का आग्रह करते हैं। इस तरह की मान्यता इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का उचित और स्थायी समाधान सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे फिलिस्तीनी लोगों को अपनी नियति निर्धारित करने और शांति और सुरक्षा में रहने का अवसर मिलता है।
विपक्ष के बयान में हमास की बर्बरियत का जिक्र तक नहीं
हमास आतंकवादियों के बर्बर हमलों में कम-से-कम 1,300 इजरायली नागरिक मारे गए, जिनमें से अधिकांश आम नागरिक थे। हमास ने पिछले शनिवार को इजरायल में अचानक हमला कर दिया था। जवाबी कार्रवाई में इजराइल ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की जिसमें 1,500 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। लेकिन विपक्षी दलों ने निर्दोष इजयारली नागरिकों के साथ हमास की बर्बरता का जिक्र तक नहीं किया। इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने अपनी कार्यसमिति की बैठक के बाद फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव जारी किया। इसकी बीजेपी नेताओं ने घोर निंदा की।
सरकार के उलट चलने की जोर पकड़ता रिवाज
दरअसल, 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से सत्ता पक्ष और विपक्ष का किसी भी मुद्दे पर एकमत होना लगभग असंभव सा हो गया है। यहां तक कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी सरकार और विपक्ष में तनातनी ही रहती है। दोनों की इस खींचतान से राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे भी नहीं बच पाए हैं। 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकी हमला हो या उसके बाद पाकिस्तान के अंदर सेना की सर्जिकल स्ट्राइक हो, सत्ता और विपक्ष ने हमेशा एक-दूसरे से अलग रुख अपनाए रखा। आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सेना की स्ट्राइक का प्रमाण तक मांग लिया था। फिर चीन से संघर्ष के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी चीनी राजदूत से मिले। बड़ी बात है कि राहुल ने इस मुलाकात को गुप्त रखने की कोशिश की।
आखिर कब तक यूं ही होता रहेगा अंधाधुंध विरोध?
इसी तरह, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया तेज करने वाले प्रावधान सीएए पर भी विपक्ष का जबर्दस्त विरोध किया। सीएए को भारत के मुसलमानों के खिलाफ बताया गया जिसका कोई सिर-पैर नहीं है, लेकिन विपक्ष के बहकावों में आकर देश में कई जगहों पर मुसलमानों ने जमकर उधम मचाया। यही नहीं, विपक्ष ने सेना में भर्ती की नई अग्निवीर योजना से लेकर संसद के नए भवन तक का विरोध किया। ऐसे में सरकार ने इजरायल के अधिकारों की बात की तो विपक्ष के फिलिस्तीन के हक में बात करना स्वाभाविक सा हो गया था। पता नहीं, बिना तर्क, बिना आधार के यूं अंधाधुंध विरोध का सिलसिला कहां जाकर रुकेगा? सवाल यह भी है कि आखिर सरकार भी कम-से-कम राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विपक्ष के साथ राय-मशविरा करके उन्हें साथ लाने की कोशिश क्यों नहीं करती।