बजट 2024-25।
प्रदीप सिंह।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वित्त वर्ष 2024-25 का बजट लोकसभा में पेश किया। अंतरिम बजट फरवरी महीने में संसद में पेश हो चुका है। सवाल यह है कि बजट कैसा है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए पहले एक प्रश्न पूछना पड़ेगा कि आपकी अपेक्षा क्या थी बजट से? उसी हिसाब से बजट का आकलन हो सकता है। आपकी अपेक्षा के अनुरूप है तो बजट अच्छा है। आपकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है तो बजट अच्छा नहीं है।
इस बजट से उम्मीदें बहुत ज्यादा थीं। मुझे भी लग रहा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बजट में लोकसभा चुनाव के नतीजों से बने नैरेटिव को ध्वस्त करने और नया नैरेटिव गढ़ने के लिए कोशिश करेगी। लेकिन सरकार ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया। कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं की। कोई रेवड़ी नहीं बांटी। किसी भी बजट को दो नजरिए से देखा जाता है। एक राजनीति की दृष्टि से, दूसरा अर्थव्यवस्था या अर्थनीति की दृष्टि से।
इस बजट के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीति साधने की कोशिश नहीं की है। उनका, उनकी सरकार का सारा ध्यान अर्थव्यवस्था पर है- 2047 तक भारत को विकसित भारत बनाने के लक्ष्य की दिशा में यह एक कदम है।
आप अगर शेयर मार्केट की दृष्टि से देखें तो सेंटीमेंट खराब हुआ है। जो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस में और एसटीटी इजाफा हुआ है उससे माहौल बिगड़ा है। लोगों का सेंटीमेंट बिगड़ा है। निवेशकों की तरफ से कहा जा रहा है कि मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास के पास उनके व्यवसाय या नौकरी के अलावा पैसा कमाने का एक साधन शेयर मार्केट था। वहां उनकी जो कमाई हो रही थी उस पर भी आपने टैक्स बढ़ा दिया तो उनको वहां भी मार पड़ी। इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ। जो इनकम टैक्स की नई योजना को अपनाएंगे उनको थोड़ा सा फायदा होगा। उम्मीद थी कि शायद इस बार मिडिल क्लास के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं होंगी लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ है। सरकार का फोकस फिर कहां है? दरअसल सरकार का फोकस स्ट्रक्चरल चेंज पर ज्यादा है। एग्रीकल्चर सेक्टर में रिफॉर्म पर है। इसके अलावा रोजगार के साधन उपलब्ध कराने पर है। बेरोजगार युवा, जो स्किल डेवलपमेंट में शामिल होना चाहते हैं तो स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान दिया गया है और साथ-साथ 5000 रूपये स्टाइपेंड की घोषणा हुई है।
उसके अलावा राजनीति की दृष्टि से देखें तो एनडीए के दो बड़े सहयोगियों टीडीपी और जेडीयू को संतुष्ट करने के लिए बिहार और आंध्र प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर के कई प्रोजेक्ट की घोषणा हुई है। उसमें भी ध्यान रखिए सरकार ने यह नहीं कहा कि उन्हें केंद्रीय बजट से पैसा दिया जाएगा। कहा, मल्टीलेटरल फाइनेंस एजेंसी से हम आपको पैसा दिलवाएंगे। तो सरकार पर कोई वित्तीय कर्ज का बोझ नहीं डाला गया है।
मेरी नजर में अगर इस बजट की कोई एक सबसे बड़ी उपलब्धि बताना हो तो वह है फिस्कल प्रूडेंस यानी राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना। अंतरिम बजट में 5.1 का लक्ष्य था, उसको 4.9 किया गया है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए 4.5 लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
दुनिया की कोई इकॉनमी, चाहे विकसित देशों की हो या विकासशील देशों की, अपने राजकोषीय घाटे को इस तरह से नियंत्रित करने की कोशिश नहीं कर रही है। राजकोषीय घाटा बढ़ने का मतलब है कि सरकार ने ज्यादा कर्ज लिया। यानी सरकार ने ज्यादा नोट छापे। उसका सीधा असर होता है महंगाई पर। महंगाई बढ़ जाएगी। महंगाई बढ़ने की सबसे ज्यादा उसकी मार पड़ेगी गरीब आदमी, आम आदमी पर। सरकार ने इस बात का ध्यान रखा है कि महंगाई ना बढ़ने पाए।
कोरोना काल को याद कीजिए। जाने माने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ पूर्व वित्त मंत्री पीसी चिदंबरम, रघुराम राजन हो और रिज़र्व बैंक के कई पूर्व गवर्नर कह रहे थे कि खुलकर खर्च कीजिए- फिस्कल डेफिसिट की चिंता ही मत कीजिए- इस समय लोगों के हाथ में पैसा दीजिए- दिल खोलकर खर्च कीजिए- खूब नोट छापिए। बहुत से देशों- अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे देशों ने यह किया। आज उनके यहां महंगाई आसमान छू रही है और हमारे यहां महंगाई कंट्रोल नियंत्रण में है। तो यह फर्क है। यह कोई मामूली कदम नहीं होता। इसके लिए बहुत बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। आप जो कदम उठाने जा रहे हैं, जो नीतियां बना रहे हैं, उस पर भरोसा हो तभी यह हो पाता है। इस बजट की सबसे बड़ी खासियत मेरी नजर में फिस्कल डिसिप्लिन है कि वह जो रास्ता अपनाया कोरोना के बावजूद, जिस रास्ते पर चले, उस रास्ते पर कायम हैं।
अगर आप कहीं कि इस बजट में सबसे निराशा जनक या सबसे खराब पक्ष क्या है, तो वह है रोजगार के अवसर। रोजगार का अवसर तभी बढ़ेगा जब कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत खर्च) बढ़ेगा। वो दो तरीके से बढ़ता है। एक सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर, दूसरा प्राइवेट सेक्टर का। सरकार अपना कैपिटल एक्सपेंडिचर लगातार बढ़ाती जा रही है। उसको बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। लेकिन पिछले 10 साल से इतना सब होने के बावजूद, इतने स्ट्रक्चरल चेंजेज होने के बावजूद, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट नहीं बढ़ा है। रोजगार देना सरकार का काम नहीं है यह बात हम सब लोगों को अच्छी तरह से समझना चाहिए। फिर सरकार का काम क्या है? सरकार का काम है कि वह ऐसी नीतियां बनाए, ऐसा माहौल तैयार करे जिसमें रोजगार के अवसर पैदा हों। यानी ऐसे पॉलिसी स्टेटमेंट पॉलिसी फ्रेम करना उसका काम है जो इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा दे। इन्वेस्टमेंट आएगा तो प्रोडक्शन आएगा। प्रोडक्शन आएगा तो रोजगार आएगा।
सवाल यह है कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट बढ़ क्यों नहीं रहा है? बार-बार विपक्ष आरोप लगा रहा है, खास तौर से राहुल गांधी कि दो तीन उद्योगपति जो मोदी के दोस्त हैं उनको पैसा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है जो आंकड़ों में सही साबित होता है कि अमीर और अमीर हो रहे हैं- गरीब और गरीब हो रहे हैं। यह खाई बढ़ती जा रही है। लेकिन हमको अतीत को भूलना नहीं चाहिए। बहुत से लोगों को लगता है कि अब मनमोहन सिंह की सरकार की बात क्यों करते हैं? आप तो दस साल रह लिए। इन दस साल में क्या किया यह बताइए। उन्होंने क्या किया था उसको भूल जाइए। उसको भूल जाएंगे तो आज जो हो रहा है उसको समझ नहीं पाएंगे। उस समय एक्सेस कैपेसिटी बिल्ड की। खास तौर से मैन्युफैक्चरिंग में या दूसरे सेक्टर में भी जितने भी उद्योग में लोग लगे हुए हैं उनको लगा कि सरकारी बैंक से लोन लो- लौटाना पड़ेगा नहीं- तो इसका फायदा उठाकर अपनी कैपेसिटी अंधाधुंध बढ़ा ली। मैन्युफैक्चरिंग या किसी भी फील्ड की कैपेसिटी यह देखकर बढ़ाई जाती है कि उसकी डिमांड कितनी है। आपने कैपेसिटी तो क्रिएट कर ली। अब उसकी डिमांड नहीं है तो आप प्रोडक्शन नहीं कर पा रहे हैं। तो उस समय का असर अभी तक है कि आप कैपेसिटी इतनी बढ़ा चुके हैं जो अब भी डिमांड से ज्यादा है।
मान लीजिए कि आप पेन की मैन्युफैक्चरिंग करते हैं। 10 लाख पेन बनाने की आपकी कैपेसिटी है। इसको बढ़ाकर आपने उस दौरान 15 लाख कर ली। जबकि आपके पास डिमांड केवल 9 लाख की है। तो आप कैपेसिटी एडिशन तो करेंगे नहीं। आपको मालूम है कैपेसिटी एडिशन करने का मतलब घाटा और बढ़ाना। पहले तो आपको डिमांड अपनी 15 लाख की कैपेसिटी तक ले जानी है जो अभी पुरानी 10 लाख की कैपेसिटी की भी नहीं है। इसलिए प्राइवेट इन्वेस्टमेंट बढ़ नहीं रहा। प्राइवेट इन्वेस्टमेंट आ नहीं रहा है। और उस तरह से कर्ज भी नहीं मिल रहा है। मालूम है कि अगर सरकारी बैंक से कर्ज लिया और नहीं लौटाया तो कंपनी चली जाएगी और उसकी भरपाई करनी पड़ेगी। तो ये दो बड़े कारण हैं जिसकी वजह से प्राइवेट इन्वेस्टमेंट नहीं आ रहा है। हमारी उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था है। हालांकि पिछले 10 साल में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ की बड़ी तेजी से कोशिश हो रही है। सरकार की कोशिश है कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट बढ़े लेकिन समस्या यही आड़े आ रही है अब कोई भी इंडस्ट्री सरकार को खुश करने के लिए बिना डिमांड के तो कैपेसिटी एडिशन कर नहीं सकती है। इसके लिए जरूरी है कि लोगों के हाथ में पैसा हो। कंजम्पशन बढ़ेगा, डिमांड बढ़ेगी जो मौजूदा कैपेसिटी का इस्तेमाल होगा। और फिर उससे ज्यादा अगर डिमांड बढ़ेगी तो कैपेसिटी एडिशन की जरूरत होगी। लेकिन अब जैसे स्टाइपेंड की घोषणा है यह पैसा युवाओं के हाथ में आएगा तो वह खर्च करेंगे। रूरल इकॉनमी पर ध्यान दिया गया है। रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया गया है। वहां से डिमांड जनरेट हो सकती है इसके लिए खास तौर से एग्रीकल्चर सेक्टर में व्यवस्था की जा रही है।
कुल मिलाकर यह बजट अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर ज्यादा बनाया गया है, बजाय राजनीति को ध्यान में रखकर। इस बजट के जरिए कोई राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कहीं दिखाई नहीं देती बल्कि राजनीतिक नुकसान की दृष्टि से देखें तो कई चीजें आपको दिख जाएंगी। जैसे मैंने स्टॉक मार्केट का जिक्र किया जिस तरह से कैपिटल गेंस टैक्स बढ़ा दिया गया है, इंडेक्सेशन का जो लाभ मिलता था उसको खत्म कर दिया गया है, एसटीटी यानी सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स बढ़ा दिया गया है। ऐसे बहुत से कदम हैं जिनसे सेंटीमेंट बिगड़ता है। स्टॉक मार्केट के जानने वाले कह रहे हैं कि उसका नुकसान नहीं होगा। यह नी जर्क रिएक्शन (शेयर बाजार में कोई भी अचानक होने वाली प्रतिक्रिया) है। दो-तीन दिन इसका असर रहेगा फिर स्टॉक मार्केट यानी मार्केट एडजस्ट करना सीख जाएगा।
दूसरी बात यह कही जा रही है कि जहां पैसा बन रहा है इन्वेस्टमेंट वहीं आएगा। यानी स्टॉक मार्केट में लोग आएंगे ही। पिछले पांच सात सालों में स्टॉक मार्केट में, म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट बहुत तेजी से बढ़ा है। रिटेल इन्वेस्टर इतना पैसा लगा रहा है कि अब हमारा मार्किट अपने पैरों पर खड़ा है। पहले शेयर मार्केट निर्भर करता था एफआईआई के इन्वेस्टमेंट पर- या उनके बेचने पर। वे बेचते थे तो मार्केट गिर जाता था- वे खरीदते थे तो मार्केट उठ जाता था। अब रिटेल इन्वेस्टर ने उनको एक तरह से न्यूट्रलाइज कर दिया है। इतने बड़े पैमाने पर इन्वेस्टमेंट हो रहा है। उसको एक झटका लगेगा लेकिन उससे बढ़िया रिटर्न के कहीं और अवसर है नहीं। तो वो वहीं आएगा।
सरकार आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही है। देश में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ रहा है, सर्विस सेक्टर बढ़ रहा है, टूरिज्म बढ़ रहा है। तमाम क्षेत्रों में, खास तौर से इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में तेजी से डेवलपमेंट हो रहा है। सड़क, पुल, बंदरगाह बन रहे हैं। हवाई जहाज बन रहे हैं। रेलवे लाइन बिछ रही है। ये सब देश की अर्थव्यवस्था में इजाफा ही कर रहे हैं। बजट से अगर आपको उम्मीद थी कि कोई बड़ी आतिशबाजी होगी तो आप निराश हुए होंगे। अगर आपको यह उम्मीद नहीं रही होगी तो आप अगर खुश नहीं हैं तो संतुष्ट हुए होंगे। लेकिन इस बजट में पहले से मजबूत नींव को और मजबूत करने की कोशिश हो रही है। ताकि अर्थव्यवस्था की 7% विकास दर के लक्ष्य को साल दर साल हासिल करते रहें और उसमें बढ़ोतरी करते रहें। बजट को अगर आपको आंकना है तो इस नजरिए से देखना होगा आप उसके जरिए कुछ राजनीतिक आतिशबाजी चाहते थे या मजबूत अर्थव्यवस्था चाहते हैं। सरकार ने दूसरे रास्ते को चुना है। यह रास्ता सरकार को बहुत लोकप्रिय नहीं बनाता।
आप घोषणा कर दें कि यह मुफ्त देंगे वो मुफ्त देंगे फला चीज मुफ्त देंगे तो अचानक आपकी लोकप्रियता बढ़ जाती है। कई पार्टियों का उद्देश्य या विचारधारा यही बन गई कि मुफ्त की बात करो और वोट ले लो। लेकिन वह भुगतान कर रही हैं उसका। सबसे बड़ा उदाहरण कर्नाटक का है जहां कांग्रेस पार्टी की सरकार है। सरकार, सरकार के डिप्टी सीएम, अधिकारी कह रहे हैं कि डेवलपमेंट के लिए फंड नहीं रह गया। आपने इतनी मुफ्त वाली घोषणाएं कर दी हैं कि उनको पूरा करने के चक्कर में विकास योजनाओं के लिए पैसा ही नहीं है। विधायकों में भारी नाराजगी है। उनके क्षेत्र में डेवलपमेंट का काम नहीं हो पा रहा है। केंद्र सरकार ने बजट में कोशिश की है कि यह स्थिति ना आने पाए। डेवलपमेंट का काम और तेजी से चले इसकी कोशिश है। इसमें कोई दोराय नहीं कि यह बजट तात्कालिक रूप से थोड़ा निराश करता है। लेकिन भविष्य की दृष्टि से देखें तो यह फायदे का बजट है और पूरे देश के फायदे का बजट है। यह बीजेपी के फायदे का बजट नहीं है। यह बीजेपी को कोई राजनीतिक लाभ दिलाने का या बीजेपी के लिए कोई नया पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने का काम नहीं करता है। यह बजट अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम करता है तो इसी रोशनी में इसको देखा जाना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)