क्या कहता है कानून
सुप्रीम कोर्ट के वकील रोहित पांडेय के मुताबिक इसके पीछे नियम कानूनों की शून्यता है। रोहित पांडेय ने कहा, “जेल में बंद दागी मंत्री को पद से हटाने के बारे में कानून मौन है। इस बारे में ना तो कोई कानून है और ना ही कंडक्ट रूल में कुछ कहा गया है। यह ग्रे एरिया है जिसका लाभ तमाम मंत्रियों को मिल रहा है।
सरकारी कर्मचारी हो जाता है सस्पेंड
देखा जाए तो एक सरकारी कर्मचारी अगर दो-चार दिन जेल में रहता है तो वह सस्पेंड हो जाता है, लेकिन एक मंत्री करीब एक महीने से जेल में होने के बावजूद पद पर काबिज है। इस अजीब संवैधानिक स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के जाने माने संविधान विशेषज्ञ डी. के. गर्ग कहते हैं कि इस बारे में कोई कानून या नियम नहीं हैं। सरकारी कमर्चारी के बारे में कंडक्ट रूल में है कि जेल जाने पर वह निलंबित रहेगा, लेकिन मंत्री के जेल जाने पर उसे पद से इस्तीफा देना होगा या वह पद से हटा दिया जाएगा कानून में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है।
बैठक करने को लेकर कोई व्यवस्था नहीं
अगर मंत्री होने के कारण कोई विचाराधीन कैदी बैठक करने का अनुरोध करे तो इस बारे में कोई लिखित व्यवस्था नहीं है। लेकिन जेल के नियम उस पर लागू होंगे। लिहाजा उसे अदालत के सामने अपना अनुरोध रखना होगा। ये अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि वो उसे अनुमति दे या नहीं।
कानून बनाने की जरूरत: संविधान विशेषज्ञ
संविधान विशेषज्ञ डी. के. गर्ग का मानना है कि इस मामले में स्पष्टता आनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को यह मुद्दा तय करना चाहिए। देखा जाए तो इस स्थिति से निबटने के दो ही तरीके हैं या तो कानून बने या फिर अदालत व्यवस्था दे। कोर्ट किसी मुद्दे को तब तक परिभाषित नहीं करता या व्यवस्था नहीं देता है जब तक उसके सामने कोई मामला नहीं आता है। ऐसे मामलों में कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर व्यवस्था नहीं देता।
विधायिका कानून बनाए
दूसरा तरीका है कि विधायिका ही इस पर नियम कानून बनाए, लेकिन सवाल है कि सियासी फायदे के ऐसे मुद्दे पर क्या राजनेता एकजुट होंगे। संविधान विशेषज्ञ डी. के. गर्ग का कहना है कि इस पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए और जेल गए मंत्री को पद पर रहना चाहिए या नहीं यह बात कम से कम कोड ऑफ कंडक्ट में आनी चाहिए। मौजूदा कानूनी स्थिति यह है कि जब तक कोर्ट से किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता तब तक वह निर्दोष माना जाता है।
ये नैतिकता का विषय है
संविधान विशेषज्ञ डी. के. गर्ग की माने तो मौजूदा कानून में अंडर ट्रायल के तौर पर जेल मे रहते हुए मंत्री के रहने पर रोक नहीं है। ये नैतिकता का विषय है और उसका तकाजा है कि जेल जाने पर मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में सांसद विधायकों को भी पब्लिक सर्वेंट बताए जाने पर डी.के. गर्ग कहते हैं कि वह फैसला बहस का विषय है। अभी यह तय नहीं है कि किस मुद्दे पर वे पब्लिक सर्वेंट माने जाएंगे।
सजा होने पर ही अयोग्य होता है सांसद या विधायक
मौजूदा कानून में तो दोषी ठहराए जाने और सजा होने पर ही सांसद या विधायक अयोग्य होता है और उसकी सदस्यता जाती है। डी. के. गर्ग ने बताया कि सदस्य और मंत्री में अंतर नहीं है अगर कोई सदस्य रह सकता है तो मंत्री भी रह सकता है। मंत्रियों की नियुक्ति की संवैधानिक व्यवस्था देखी जाए तो गवर्नर ही नियुक्ति करता है और गवर्नर ही बर्खास्त करता है। ऐसे में सवाल यह कि क्या गवर्नर को जेल में बंद दागी मंत्री को पद से बर्खास्त करने का अधिकार है।
गवर्नर किसी मंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील रोहित पांडेय ने बताया कि संविधान कहता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेंगे। किसी मंत्री की बर्खास्तगी के मामले में गवर्नर मुख्यमंत्री की सलाह पर ही काम करेंगे। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट भी पूर्व फैसलों में कह चुका है कि ऐसे मामलों में गवर्नर मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करेंगे। ऐसे में गवर्नर सीधे किसी मंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते हैं।
जेल में रहने पर वहीं के नियम होंगे लागू
वहीं अगर कोई मंत्री जेल जाता है तो यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है की जेल में मंत्री के साथ किस तरीके का व्यवहार रखा जाए। अगर मंत्री की तरफ से जेल में कुछ विशेष सुविधाएं मांगी जाती हैं तो संबंधित अदालत कानून के मुताबिक उनकी सुविधाओं को मुहैया कराता है लेकिन यह तमाम आदेश अदालत अपने विवेक और कानूनी दायरे में रहकर ही दे सकता है। क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है और इसी आधार पर देश की अदालतें काम करती हैं। हालांकि ऐसा देखा गया है कि अगर किसी भी राज्य का कोई सीनियर मंत्री जेल जाता है तो अदालतें उनको विशेष सुविधाएं देने के लिए विचार करती हैं। कोर्ट आदेश देता हैं कि उनसे जेल में किस तरीके का व्यवहार रखा जाए और वह अपने वकीलों से समय-समय पर मिल सकते हैं।(एएमएपी)