डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
भारतवर्ष के बहुत से बच्चे और कई बड़े भी यह नहीं जानते हैं कि सनातन धर्म क्या है? भारत का नाम मुसलमानों ने हिन्दुस्तान रखा। यहाँ की जनता को हिन्दू कहा। तब यहाँ की संस्कृति भी हिन्दू संस्कृति कहलाने लगी। यानी भारतीय संस्कृति का दूसरा नाम है हिन्दू संस्कृति। हिन्दू संस्कृति वही है जो सनातन धर्म की संस्कृति है। सनातन धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है।
‘धर्म’ संस्कृत का शब्द है
धर्म शब्द संस्कृत का शब्द है। जैन और बौद्ध ग्रन्थ प्राकृत और पालि भाषा में हैं। ये दोनों भाषाएँ संस्कृत के बाद आईं। और भारत के अंदर इनका प्रचलन उत्तरी भारत तक रहा। इनमें संस्कृत के धर्म शब्द के स्थान पर धम्म शब्द है। पर इसको वे सुविधा के लिए धर्म कहने लगे हैं।
ईसाई रेलीजन है; मुस्लिम मजहब है
ईसाई रेलीजन है। मुस्लिम मजहब है। इन सबको वे बाद में सुविधा के लिए धर्म कहने लगे हैं। एक बात और है कि सनातन धर्म का कोई प्रवर्तक नहीं है। सनातन धर्म आदि काल से है। बाकी सब धर्मों के प्रवर्तक हैं। प्रवर्तक का मतलब है वह व्यक्ति जिसने वह धर्म शुरू किया।
वाल्मिकी रामायण ईसा से सकड़ों वर्ष पूर्व की है। वाल्मिकी रामायण और भगवद्गीता दोनों संस्कृत में हैं। और ये दोनों सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त भी सनातन धर्म के दो हजार से अधिक ग्रन्थ हैं। जबकि ईसाइयों के लिए सिर्फ बाइबिल है और मुसलमानों के लिए सिर्फ कुरान।
वाल्मिकी रामायण के आधार पर सोलहवीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखी अवधी भाषा में। उस रामचरितमानस की टीका (भावार्थ) हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य कई भारतीय भाषाओं में गीता प्रेस ने प्रकाशित की।
हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया गया
हमारे देश के बच्चों को आज तक जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह अधिकतर यह है कि यहाँ मुस्लिम शासक आए, फिर अंग्रेज़ आए, और फिर कांग्रेस पार्टी ने देश को आजाद कराया। ये इतिहास इन्हीं साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों ने गढ़ा है। हमारे बच्चों को यह नहीं बताया जाता कि मुगलों के लगभग 350 वर्ष के और और अंग्रेजों के लगभग 100 वर्ष के शासन काल के पहले सैकड़ों वर्ष तक मौर्य वंश, गुप्त वंश, आदि का शासन था। दक्षिण भारत में लगभग एक हजार साल तक चोला वंश का शासन था। उत्तर पूर्व में लगभग 600 वर्ष तक अहोम वंश का शासन था। सिक्किम में 300 से ज्यादा वर्षों तक चोग्याल वंश का शासन था। इनमें से कुछ राजाओं का शासन अफगानिस्तान तक था। कुछ का शासन दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और मलेशिया तक था। ये साम्यवादी और छद्म सेकुलर इतिहासकार यह नहीं बताते हैं कि कांग्रेस के अलावा भी तमाम लोगों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान गंवाई है और कुर्बानियाँ दी हैं।
वीर सावरकर को दो बार अंडमान में काला पानी की सजा हुई थी
ये साम्यवादी और छद्म सेकुलर इतिहासकार यह नहीं बताते हैं कि वीर सावरकर को दो बार अंडमान में काला पानी की सजा हुई थी जिसकी कुल सजा अवधि पचास साल थी। कांग्रेस के किसी भी नेता को एक बार भी कालापानी की सजा नहीं हुई थी। अंग्रेजों के जमाने में अंडमान में काला पानी की सजा सबसे ज्यादा बर्बर और यातनापूर्ण होती थी। अंडमान में इन्हें इसलिए भी भेजा जाता था, क्योंकि वह स्थान देश की मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर है। वहाँ किसी कैदी का नाते रिश्तेदार आसानी से मिलने नहीं आ सकता था। पूरे वर्ष में उस कैदी को सिर्फ एक चिट्ठी लिखने की इजाजत होती थी। कांग्रेस के किसी नेता को फांसी की सजा भी कभी नहीं हुई। कांग्रेसियों ने सत्ता हथियाने के लिए उस मोहम्मद आली जिन्ना से हाथ मिलाया जिसे कभी एक दिन की भी जेल की सजा नहीं हुई थी। कहने का मतलब यह है कि ये साम्यवादी और छद्म सेकुलर लोग इतिहास को तोड़ने और मरोड़ने में माहिर हैं।
महात्मा गांधी घोर सनातनी थे
गांधीजी भगवान राम में पूर्ण विश्वास करते थे। वह गोहत्या और धार्मिक कनवर्ज़न को अपराध मानते थे। ये तीनों बातें हमारे साम्यवादी और छद्म सेकुलर राजनीतिज्ञ बहुत सफाई और सतर्कता के साथ छुपाते रहे हैं और गांधीजी के विचारों की हत्या करते रहें हैं। धार्मिक कनवर्ज़न ही आज के युग में आतंकवाद का प्रधान कारण है।
18 मार्च 1932 को यरवादा जेल से ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार (1892-1971) को भेजे गए एक पत्र में महत्मा गांधी ने लिखा, “आपका पत्र मिल गया। मेरे जीवन में ऐसी कोई वस्तु का स्मरण मुझको नहीं है जिसे मैं यह कह सकता हूँ कि ईश्वर की सत्ता और दया में मेरा दिमाग जम गया। थोड़ा ही समय था जब विश्वास खो बैठा था। या तो कहो मैं सशंक था। उसके बाद दिन-प्रतिदिन विश्वास बढ़ता ही गया है और बढ़ रहा है।…” (यह पत्र जून 1948 के ‘कल्याण’, गोरखपुर, के अंक में प्रकाशित हुआ था।)
“नाम की महिमा के बारे में तुलसीदास ने कुछ भी कहने को बाकी नहीं रखा है।“ (महात्मा गांधी, ‘कल्याण’, गोरखपुर, का भगवन्नाम-अंक, 1927
“जो शक्ति रामनाम में मानी गई है, उसके बारे में मुझे कोई शक नहीं है।“ (महात्मा गांधी, ‘हरिजन सेवक’, 17 फरवरी 1946)
बेलगांव (महाराष्ट्र) में 28 दिसम्बर 1924 को गांधी जी ने कहा, “कई बातों में मैं गोरक्षा के प्रश्न को स्वराज से भी बड़ा मानता हूँ।“ (भारत सरकार के प्रकाशन: सम्पूर्ण गांधी वांग्मय, खंड 25 पृष्ठ 549, प्रकाशन वर्ष 1967)
“गोमाता कई मायने में उस माँ से भी बेहतर है जो हमे जन्म देती है।“ (महात्मा गांधी, ‘हरिजन’, 15 सितम्बर 1940)
“गोरक्षा का अर्थ है ईश्वर की सम्पूर्ण मूक सृष्टि की रक्षा। गोवंश के प्रति की गई क्रूरता ईश्वर और हिन्दुत्व की अस्वीकृति है।“ (महात्मा गांधी, ‘यंग इंडिया’, 6 अक्तूबर 1931)
“आजकल और बातों की तरह (धार्मिक) कनवर्ज़न ने एक व्यापार का रूप ले लिया है। मुझे ईसाई मत-प्रचारकों की पढ़ी हुई एक रपट याद है, जिसमें बताया गया था कि प्रत्येक व्यक्ति का पंथ बदने में कितना खर्चा हुआ। और फिर अगली फसल के लिए बजट प्रस्तुत किया गया था।“ (महात्मा गांधी, ‘यंग इंडिया’, 23 अप्रैल 1931)
रावलपिंडी में 5 फरवरी 1925 में अपने भाषण में उन्होंने कहा था “कल मैंने अत्यंत खेदजनक बात सुनी और वह यह कि आप में से बहुतों ने अपनी जान बचाने के लिए पहले इस्लाम स्वीकार कर लिया तब यहाँ आए। … चाहे हमारा अस्तित्व मिट जाए, किन्तु हमें कनवर्जन नहीं करना चाहिए। हमारा सच्चा धन रुपया-पैसा नहीं है, जर और जमीन नहीं है। ये तो ऐसी चीजें हैं जो लूटी जा सकती हैं। किन्तु हमारा सच्चा धन हमारा धर्म है।“ (सम्पूर्ण गांधी वांग्मय, खंड 26 पृष्ठ 79)
इन्दिरा नेहरू और फिरोज के प्रस्तावित विवाह पर गांधीजी ने लिखा कि मैं प्रेम विवाह के विरोधी नहीं हूँ। “मैं हमेशा से इस बात का घोर विरोधी रहा हूँ कि स्त्री-पुरुष सिर्फ ब्याह के लिए अपना धर्म न बदलें। मेरा यह विरोध आज भी कायम है। धर्म कोई चादर या दुपट्टा नहीं, कि जब चाहा ओढ़ लिया , जब चाहा उतार दिया। … मेरी कल्पना का हिन्दू धर्म, मात्र एक संकुचित संप्रदाय नहीं है। वह तो एक महान और सतत विकास का प्रतीक है, और काल की तरह ही सनातन है। उसमें जरथुस्त्र, मूसा, ईसा, मो
कभी कांग्रेस के अधिवेशनों में वन्देमातरम् गीत गया जाता था
यहाँ यह भी बता देना जरूरी है कि महात्मा गांधी के समय में कांग्रेस के अधिवेशनों का प्रारम्भ वंदेमातरम् गीत से होता था। अब यह बन्द हो चुका है। क्योंकि कांग्रेस ने साम्यवादियों से हाथ मिलाया और छद्म सेकुलरिज़्म का घूँघट ओढ़ लिया।
ताशकंद में प्रधान मन्त्री लाल भादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु के बाद जनवरी 1966 में इन्दिरा गांधी सत्ता में आईं थीं। उसी साल 7 नवम्बर 1966 में उन्होंने गोहत्या बन्द कराने की मांग को लेकर हुए साधुओं के एक प्रदर्शन पर दिल्ली में गोली चलवायी थी जिसमें कई साधू मारे गए थे। साम्यवादी और छद्म सेकुलर इस पूरे मामले पर लीपापोती करने के लिए आज भी तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं।
सनातन धर्म विश्व बन्धुत्व की बात करता है
वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है। यह महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- पूरी धरती ही एक परिवार है। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। सनातन धर्म यह नहीं कहता कि हम अच्छे हैं और शेष धर्मों के लोग बुरे हैं।
सनातन धर्म कहता है सच बोलो
रामचरितमानस, अयोध्याकाण्ड में ‘कहा’ गया है:
धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥
मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा॥
भावार्थ: वेद, शास्त्र और पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। मैंने उस धर्म को सहज ही पा लिया है। इस (सत्य रूपी धर्म) का त्याग करने से तीनों लोकों में अपयश छा जाएगा।
सनातन धर्म के ग्रंथों में यह भी कहा गया है:
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
अर्थात् सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।
सभी के प्रति सद्भाव रखने वाले ऐसे ही अनेक पुण्यों का समावेश सनातन धर्म में है।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं)