पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सफाए के बाद गांधी परिवार जी 23 के उन नेताओं से बात कर रहा है जिन्हें वे देखना तक पसंद नहीं करते थे

प्रदीप सिंह।
कांग्रेस पार्टी में क्या चल रहा है, क्यों चल रहा है- इसका अंदाजा लगाना बहुत से लोगों के लिए बहुत मुश्किल है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में जिस तरह से कांग्रेस का सफाया हुआ है, उसके बाद अचानक से एक नया डेवलपमेंट दिखाई दिया। वो यह कि गांधी परिवार जी-23 के नेताओं से मिल रहा है। इस ग्रुप में पहले 23 नेता थे। अब सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद दबाव बढ़ गया है और परिवार के लोग मजबूर हो गए हैं कि जी-23 के सदस्यों से बातचीत करें। नतीजों के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक्सटेंडेड मीटिंग बुलाई गई जिसमें गांधी परिवार के वफादार लोगों को शामिल किया गया। मीटिंग काफी लंबी चली और बहुत सारे मामलों पर चर्चा हुई। मीटिंग शुरू होते ही सोनिया गांधी ने कहा कि अगर आप लोगों को लगता है कि हमारा परिवार अड़ंगा है तो हम तीनों इस्तीफा देकर बाहर जाने को तैयार हैं। और जो होना था वही हुआ कि सभी सदस्यों ने कहा कि नहीं आपको जाने की जरूरत नहीं है। यह सब पहले से संभावित था।

लीडरशिप की नाकामी

Congress faces heat after state polls debacle as G23 leaders push for top  leadership change- The New Indian Express

लेकिन सवाल यह है कि कपिल सिब्बल बोल रहे हैं कि जी-23 जी हुजूरी ग्रुप नहीं है। हम वही चाहते हैं जो राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए कहा था। तब उन्होंने तीन बातें कही थी। एक- मेरे इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस का जो अध्यक्ष चुना जाएगा वह मेरे परिवार में से कोई नहीं होगा यानी सोनिया गांधी या प्रियंका वाड्रा अध्यक्ष नहीं बनेंगी। दूसरी बात उन्होंने कही थी या कहें कि एक तरह से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर इल्जाम लगाया था कि मैं बीजेपी से अकेले लड़ रहा था और किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। हालांकि उनको यह समझ में नहीं आया कि वह जब यह कह रहे थे तो इसका मतलब यह भी निकलता है कि वह अपनी पार्टी के कैडर और नेताओं को इंस्पायर करने में नाकाम रहे। वह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह समझाने में असफल रहे कि वह जो कह रहे हैं वह सही है और यह पार्टी के हित में है। अगर कोई लीडरशिप अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं-नेताओं को यह बात नहीं समझा पा रही है तो इससे बड़ी नाकामी उसकी और क्या हो सकती है। तीसरी बात उन्होंने कही थी कि ज्यादातर वरिष्ठ नेता अपने बेटे-बेटियों को चुनाव जितवाने में व्यस्त हैं। इनमें अशोक गहलोत से लेकर तमाम नेता थे। राहुल गांधी जब बेटे-बेटियों की बात कर रहे थे तो पता नहीं उन्होंने सोनिया गांधी की ओर देखा या नहीं। सोनिया गांधी भी तो अपने बेटे-बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए सब कुछ कर रही हैं। अगर वह कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ नहीं रही हैं, पार्टी का अध्यक्ष किसी और को बना नहीं रही हैं तो इसके पीछे एक ही वजह है। और वो वजह है अपने बेटे को आगे बढ़ाना, राहुल गांधी को आगे बढ़ाना है जो तमाम धक्के के बावजूद आगे बढ़ नहीं पा रहे हैं।

जी-23 नेताओं पर हमलावर रहे वफादार

Cong 'getting weaker', G-23 leaders meet in Jammu to 'strengthen party'

यह अलग बात है कि राहुल गांधी ने जो ये तीन बातें कही थी काफी समय तक इस पर कुछ नहीं हुआ- हार का मंथन या चिंतन कुछ नहीं हुआ। तब जी-23 नहीं बना था। जी-23 ने जो पहली चिट्ठी लिखी थी उसमें यही मांगें थीं कि पार्टी का एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होना चाहिए जो हफ्ते में सातों दिन 24 घंटे काम करने वाला हो। इसके अलावा पार्टी संगठन में जो खाली पद हैं उनको चुनाव के जरिए भरा जाए और संगठन को मजबूत किया जाए। उन्होंने जो बातें कही थी उनमें से किसी बात पर परिवार ने ध्यान नहीं दिया। उनको इग्नोर किया जाता रहा। बल्कि कहना यह चाहिए कि परिवार के जो वफादार थे वे सब उन पर लगातार हमला करते रहे। अधीर रंजन चौधरी हों या अजय माकन हों या फिर और दूसरे नेता जो राहुल गांधी के करीबी हैं… सब जी-23 पर हमला करते रहे कि ये लोग पार्टी को तोड़ना चाहते हैं, विपक्ष मिले हुए हैं और सिर्फ अपना हित देख रहे हैं। तमाम तरह के आरोप जी-23 के नेताओं पर लगाते रहे। गुलाम नबी आजाद को जब पद्म पुरस्कार मिला तब भी इसका किसी ने समर्थन नहीं किया। समर्थन तो छोड़िए किसी ने बधाई भी नहीं दी। कांग्रेस पार्टी का कल्चर इस स्तर पर पहुंच गया है।

असंतुष्टों की शिकायतें तो सुनी मगर नहीं की कार्रवाई

Day after G-23 meeting, Gandhis reach out to rebel Congress leaders - India  News

विधानसभा चुनाव में हार के बाद जी-23 के सदस्यों से सोनिया गांधी मिलने को क्यों मजबूर हुईं या मिल रही हैं, क्यों राहुल गांधी मिल रहे हैं- इसके पीछे एक बहुत बड़ा राज है। इस राज से पर्दा आगे उठाऊंगा। उसके पहले कुछ और जानकारी दे देता हूं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद जी-23 के नेताओं के बैठक हुई। जिस दिन यह मीटिंग हो रही थी उस दिन सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद को फोन किया और कहा कि अगर आप बात करना चाहते हैं तो आ सकते हैं। गुलाम नबी आजाद पुराने नेता हैं, सब कुछ समझ रहे थे। यह भी समझ रहे थे कि बैठक से पहले सोनिया गांधी से मिलने का संदेश क्या जाएगा तो उन्होंने मीटिंग से पहले मिलने से मना कर दिया और कहा कि मीटिंग के बाद मिलेंगे। 18 मार्च को सोनिया गांधी गुलाम नबी आजाद से मिलीं, 22 मार्च को मनीष तिवारी से मिलीं। आनंद शर्मा और विवेक तन्खा सहित जी-23 के कई नेताओं से उन्होंने मुलाकात की, उनकी बात सुनी, उनकी शिकायतें सुनी। उधर राहुल गांधी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिले। राहुल गांधी और पूरे गांधी परिवार को मालूम है कि हुड्डा अगर कांग्रेस से निकल जाते हैं तो हरियाणा में कांग्रेस के पास कोई जनाधार वाला कद्दावर नेता नहीं रह जाएगा। हुड्डा परिवार में भी इसे लेकर थोड़ा मतभेद है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी-23 के सदस्य हैं और उनका बेटा दीपेंद्र हुड्डा राहुल गांधी के साथ है। लेकिन यह गलतफहमी किसी को नहीं होनी चाहिए कि परिवार में झगड़ा है। एक रणनीति के तहत पिता-पुत्र अलग-अलग खेमे में हैं।

जिम्मेदारी से भाग रहे राहुल

G-23 Congress and Rahul Gandhi have asked for the same thing. What is the  problem then? - India News

समस्या यह है कि राहुल गांधी अध्यक्ष के सारे अधिकारों का इस्तेमाल तो करना चाहते हैं लेकिन अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं करना चाहते हैं क्योंकि पद के साथ जवाबदेही, जिम्मेदारी सब कुछ आती है। वह इसे उठाने को  तैयार नहीं हैं। इस समय कांग्रेस की बड़ी विचित्र स्थिति है। जो फैसले ले रहा है और जो अध्यक्ष के रूप में काम कर रहा है वह अध्यक्ष नहीं है। जो अध्यक्ष है वह फैसले नहीं ले रहा है और अध्यक्ष के रूप में काम नहीं कर रहा। इस तरह से तो कोई पार्टी कभी चल नहीं सकती। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग जो इससे पहले होती रही है, उनमें और इस पिछली मीटिंग में एक बड़ा फर्क आया। इससे पहले हर मीटिंग में राहुल गांधी का बचाव करने की होड़ लगती थी। इस बार 57-58 लोगों में से सिर्फ दो लोग अशोक गहलोत और मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल गांधी का बचाव किया ।इसके अलावा किसी ने नहीं किया। यानी पार्टी में भी उनकी स्थिति पहले से ज्यादा बुरी हो गई है। पार्टी के अंदर की लड़ाई में भी उनका समर्थन लगातार घटता जा रहा है। कांग्रेस पार्टी में परिवार को लेकर लगातार दबाव बढ़ रहा है। कपिल सिब्बल पर सबसे ज्यादा हमले इसलिए हो रहे हैं कि वे खुल कर बोल रहे हैं कि पार्टी को इन तीनों लोगों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा से मुक्त हो जाना चाहिए। वह कह रहे हैं कि आप पार्टी छोड़िए और किसी और को पार्टी चलाने दीजिए। यह बात गांधी परिवार को बर्दाश्त नहीं है।

ये है वो बड़ा राज

Sonia Gandhi Likely To Meet Ghulam Nabi Azad Today As Rebels Crank Up  Pressure

मैंने कहा था कि सोनिया गांधी के जी-23 के नेताओं से मिलने के पीछे एक बड़ा राज है। वह यह राज यह है कि पांच राज्यों के नतीजे आने के बाद जिस तरह से जी-23 के सदस्यों की संख्या बढ़ रही है, परिवार का विरोध करने वालों की संख्या बढ़ रही है, उससे गांधी परिवार में इस बात का डर समा गया है कि यह स्थिति थोड़ी भी और बिगड़ी तो पार्टी में विभाजन हो सकता है। आप कह सकते हैं कि मुख्य पार्टी तो परिवार के साथ ही रहेगी। बिल्कुल रह सकती है। आप यह भी कह सकते हैं कि जी-23 के जो नेता हैं उनमें से ज्यादातर एक तरह से रिटायरमेंट मोड में हैं। रहे होंगे कभी बड़े नेता- आज उनका कोई जनाधार नहीं है। अगर विभाजन की नौबत आती है तो फिर चुनाव आयोग की भूमिका होगी। जैसे ही विवाद होगा और दोनों पक्ष जैसे ही क्लेम करेंगे कि हम असली कांग्रेस हैं, वैसे ही चुनाव आयोग पहला काम यह करेगा कि पार्टी के चुनाव चिन्ह को जब्त कर लेगा। इससे कांग्रेस का चुनाव चिन्ह चला जाएगा और जब असली कांग्रेस को मिलेगा भी तो नया चुनाव चिन्ह लेना पड़ेगा। इसके अलावा कांग्रेस के जितने भी बैंक अकाउंट हैं वे सब फ्रीज हो जाएंगे। उनको ऑपरेट करना मुश्किल हो जाएगा। कांग्रेस की जो संपत्ति है उसको चुनाव आयोग सील कर देगा तो पूरा साम्राज्य ढह जाएगा। तो डर इस बात का है। गांधी परिवार की ताजा कोशिश यही है कि किसी भी हालत में ऐसी स्थिति न आए कि चुनाव आयोग को हस्तक्षेप करना पड़े। चुनाव आयोग के हस्तक्षेप करने का मतलब है सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा के साम्राज्य का खात्मा। सिर्फ और सिर्फ यही डर है जो उनको जी-23 के सदस्यों से बात करने को मजबूर कर रहा है। वरना इन लोगों को तो ये देखना भी नहीं चाहते। उनका मकसद सिर्फ यही है कि किसी तरह से इनको शांत कराया जाए जिससे पार्टी विभाजन की ओर न जाए क्योंकि जैसे ही यह होगा सिबंल, अकाउंट, संपत्ति सब फ्रीज हो जाएगा। उसके बाद तो फिर जिस चीज के लिए परिवार इतनी लंबी लड़ाई लड़ रहा है, जिस चीज के लिए पार्टी से चिपका हुआ है, जिस वजह से पार्टी को छोड़ नहीं रहा है- वह सब हाथ से निकल जाएगा।

कांग्रेस का भविष्य जी-23 पर निर्भर

कांग्रेस में गांधी परिवार के वफादार बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह कहते हैं कि पहले भी कांग्रेस का विभाजन हुआ था। शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा जब निकले थे तब भी एक तरह से विभाजन ही हुआ था। विभाजन के बाद हमेशा कांग्रेस मजबूत होकर उभरती रही है।लेकिन तब में और अब में बहुत फर्क आ गया है। तब से अब में कांग्रेस की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका वाड्रा की इतनी हिम्मत और हैसियत नहीं है कि पार्टी को फिर से खड़ा कर सकें। अगर इसका विभाजन हो जाता है तो नया चुनाव चिन्ह लेकर नए सिरे से लड़ाई लड़ने की इन तीनों में से किसी में न तो कूवत है और न हिम्मत है। सिर्फ यही एक डर है जो इनको जी-23 के सदस्यों से बातचीत करने पर मजबूर कर रहा है। वे कह रहे हैं कि हम आपकी बात सुनने को तैयार हैं, कुछ बातें मानने को भी तैयार हैं- बस आप एक सीमा से बाहर मत जाइए। जैसे ही यह आश्वस्ति होगी फिर से पुरानी स्थिति बहाल हो जाएगी। चुनाव आयोग का दखल रोकने के लिए गांधी परिवार कुछ भी करने को तैयार है, सिवाय पार्टी पर कब्जा छोड़ने के। अब यह जी-23 पर है कि वे अपना कार्ड कैसे खेलते हैं।

Congress G-23 leaders meet at Ghulam Nabi Azad's residence after party's  drubbing state polls, Congress G-23 leaders, Ghulam Nabi Azad, assembly  polls 2023

कपिल सिब्बल सहित जी-23 के बहुत से सदस्यों का मानना है कि कोई भी विपक्षी एकता तब तक नहीं हो सकती जब तक कि यह परिवार पार्टी पर काबिज है। बाकी जो दूसरी विपक्षी या क्षेत्रीय पार्टियां हैं उन सबको ऐतराज है इस परिवार से। इस परिवार के बाहर जाते ही कांग्रेस और बाकी क्षेत्रीय पार्टियों का गठबंधन बनने की संभावना बढ़ सकती है। यह होगा या नहीं- पता नहीं… लेकिन इसकी संभावना बढ़ सकती है। विपक्ष के तमाम ऐसे नेता और पार्टियां हैं- चाहे आप ममता बनर्जी की बात कीजिए, चाहे केसीआर की, चाहे आरजेडी की या चाहे समाजवादी पार्टी की बात कीजिए- सबके मन में यह है कि इस परिवार के साथ जो जाएगा वह नीचे ही जाएगा, ऊपर नहीं जाने वाला है। इसलिए इस परिवार को हटाना जरूरी है। परिवार को हटाने का जी-23 के पास एक ही रास्ता है, और वह है पार्टी में विभाजन कराना। जबकि गांधी परिवार का इस समय एक ही लक्ष्य है कि किसी तरह से पार्टी में विभाजन की नौबत न आए। इसलिए हो सकता है कि थोड़े समय के लिए आपको दिखे कि कोई समझौता हो गया। लेकिन वह समझौता पार्टी को बेहतर बनाने, उसका पुनर्गठन करने या उसे पुनर्जीवित करने के लिए नहीं होगा बल्कि उसका मकसद होगा सिर्फ अपना साम्राज्य बचाना। अब यह जी-23 पर निर्भर है कि वह छोटा-मोटा समझौता करके चुप हो जाते हैं या फिर इस लड़ाई को नतीजे तक पहुंचाते हैं।